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सनातन धर्म के प्राचीन ग्रंथों में बेहद बहुमूल्य कथाओं तथा शानदार किरदारों का वर्णन है।
उदाहरण के लिए यदि हम "अच्छाई पर बुराई की जीत" का जिक्र करते हैं, तो सर्वप्रथम हमारे
मष्तिष्क में वाल्मीकि लिखित रामायण का प्रसंग आता है। एक ओर जहाँ रामायण में प्रभु श्री राम
कलयुग के सभी यवकों के लिए एक आदर्श पुरुष हैं, वही दूसरी ओर रामायण का खलनायक माने
जाने वाले रावण के जीवन प्रसंग से भी हम,यह सीख सकते हैं की "मनुष्य को किन कर्मों से बचना
चाहिए!"
सतयुग के दौरान लंक देश का राजा माना जाने वाला रावण, रामायण का एक प्रमुख किरदार था।
रामायण के अलावा रावण का उल्लेख पद्मपुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, कूर्मपुराण, महाभारत,
आनन्द रामायण, दशावतारचरित आदि ग्रंथों में भी मिलता है। हालांकि रावण को मुख्य तौर पर
रामायण के सबसे प्रमुख खलनायकों में जाना जाता है, किंतु विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में भगवान
शिव के परम भक्त रावण के अनेक चरित्रिक गुणों का भी वर्णन मिलता है। रावण विश्रवा का पुत्र
था, जिसे महान शिव भक्त, उद्भट राजनीतिज्ञ, महाप्रतापी, महापराक्रमी योद्धा, अत्यन्त
बलशाली, शास्त्रों का प्रखर ज्ञाता, प्रकान्ड विद्वान, पंडित एवं महाज्ञानी पुरुष के रूप में भी जाना
जाता है। रावण संगीत का बड़ा ज्ञाता भी था, उसने कुछ मायनों में वीणा के सामान दिखाई देने
वाला एक प्राचीन तार वाले वाद्य यन्त्र रावणहठ वाद्य यन्त्र की रचना भी की। आज भी यह
उपकरण राजस्थान में उपयोगी है।
महाबली रावण का एक लोकप्रिय नाम दशानन (दश = दस + आनन =मुख) अर्थात दस सिरों वाला
व्यक्ति भी है। रावण के अधिकांश चित्रणों तथा प्रतिमाओं में उसे दस सिरों के साथ दर्शाया जाता
है। हालांकि कभी-कभी उसे केवल नौ सिरों के साथ भी दर्शाया जाता है, क्यों की ऐसा माना जाता है
की उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए स्वयं अपने एक सिर को काट दिया था। दशानन
को एक सक्षम शाशक, सिद्ध राजनीतिज्ञ और दक्ष वीणा वादक के रूप में भी वर्णित किया जाता
है। एक लेखक के रूप से रावण ने रावण संहिता का भी निर्माण किया था। दरसल रावण संहिता एक
हिन्दू ज्योतिष पुस्तक है, जिसमे सिद्ध चिकित्सा एवं उपचार के विभिन्न मार्गों का वर्णन किया
गया है। रावण को सृष्टि के रचीयता ब्रह्म देव द्वारा अमरत्व, अर्थात अमरता का अमृत भी प्राप्त
था। माना जाता है की, वह अमृत रावण की नाभि में संग्रहित था।
प्राचीन भारत की सबसे महत्वपूर्ण साहित्यिक कृतियों में से एक, रामायण का भारतीय
उपमहाद्वीप और दक्षिण पूर्व एशिया में कला और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। प्रमुख त्यौहार
दशहरे के दिन पूरे भारत में अच्छाई (सांकेतिक रूप में प्रभु श्री राम) द्वारा बुराई (सांकेतिक रूप में
रावण) पर जीत को दर्शाने के लिए रावण के पुतले जलाए जाते हैं।
इस दिवस को विजयदशमी,
दशहरा या दशईं के नाम से भी जाना जाता है। हर साल नवरात्रि के अंत में मनाया जाने वाला यह
एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। विजयदशमी समारोह में भारी जुलूस का आयोजन होता है, जिसमें दुर्गा,
लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश और कार्तिकेय की मिट्टी की मूर्तियों को संगीत और मंत्रों के साथ पानी में
विसर्जित कर दिया जाता है। इसी दिन दशहरा के अवसर पर बुराई के प्रतीक रावण के विशाल
पुतलों को आतिशबाजी से जलाया जाता है, जो बुराई के विनाश का प्रतीक है। विजयदशमी के बीस
दिन बाद हिन्दुओं के सबसे प्रमुख उत्सव दिवाली को भी मनाया जाता है।
हमारे शहर लखनऊ में गंगा-जमुनी तहज़ीब के कारण दशहरा मनाने का सार एकदम भिन्न और
अलौकिक होता है। यह पर्व पूरे शहर में और हर धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। लखनऊ में
मुख्य रूप से यह नवाब सादात अली खान के शासनकाल में शुरू हुआ था, साथ ही राजा मुहम्मद
अली शाह के स्वयं दशहरे में भाग लेने के कई उदाहरण दर्ज किए गए है। वही एक और वाजिद अली
शाह भी दशहरे के पर्व में सक्रिय रूप से भाग लेते थे। लखनऊ में 134 साल पहले से चली आ रही
सबसे पुरानी राम लीलाओं में से एक मौसमगंज में मुंशी शेखावत अली और भुवन चौधरी द्वारा
आयोजित की जाती है। दशहरे के दिन राम लीला मैदान ऐशबाग में रावण और उसके भाई
कुंभकरण और उनके पुत्र मेघनाथ के पुतले भी जलाए जाते हैं। शहर के कई अन्य हिस्सों में, दशहरा
और राम लीला की अवधि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यह निस्संदेह सत्य है कि
लखनऊ विविधताओं का शहर है। लखनऊ में सभी त्योहार प्रत्येक धर्म द्वारा समान उत्साह के
साथ मनाए जाते हैं।
प्रतीकात्मक रूप से रावण वर्तमान दशक की पौराणिक हस्ती है। पुराने साहित्यिक ग्रंथों के अनुवाद
में, रावण को नकारात्मक आसक्ति में डूबा दर्शाया जाता रहा है। अनादि काल से रावण को
भ्रष्टाचार, क्रोध, अहंकार, वासना और इसी तरह के अन्य बुराइयों के रूप में भी संदर्भित किया गया
है। हालांकि पिछले कुछ दशकों से रावण की छवियों का प्रयोग रचनात्मक तौर पर किया जाने लगा
है। विशेषतौर पर आज विभिन्न कंपनियों द्वारा रावण की चारित्रिक बुराइयों को आज के समाज
की व्यवहारिक बुराइयों के रूप में दर्शाया जा रहा है। दशहरे के अवसर पर विभिन्न कंपनियों द्वारा
बुराइयों के रूप में रावण का विज्ञापन दिया जाता है। पेंटिंग, मूर्तिकला, चित्रण, फिल्म और रंगमंच
जैसे विभिन्न माध्यमों से रावण के व्यक्तित्व के नकारात्मक पहलू पर जोर दिया जाता है।
उदाहरण के तौर पर तेल कंपनियों द्वारा दशानन के दस सिरों को दस प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन
के रूप में दर्शाया जाता है, अर्थात आप कंपनी के सभी दस व्यनजनों पर भारी छूट पा सकते हैं।
वही
दक्षिण रेलवे द्वारा लगाएं गए एक रचनात्मक विज्ञापन में रावण के दस सिरों को रेल यातायात के
दस नियमों के उलंघन के रूप दर्शाया गया है, अर्थात इन नियमों का पालन करना बेहद ज़रूरी है,
और उलंघन करने पर आप संकट में पड़ सकते हैं। इसके अलावा भी दशानन की छवि का प्रयोग
सड़क सुरक्षा, खाद्य पदार्थों और अन्य कई विज्ञापनों में रचनात्मक रूप से किया जा रहा है।
संदर्भ
https://bit.ly/30kus0H
https://bit.ly/3oVkzk7
https://bit.ly/3DwMg71
https://bit.ly/3mKZhDd
https://en.wikipedia.org/wiki/Vijayadashami
चित्र संदर्भ
1. रावण से युद्ध करती प्रभु श्री राम की सेना का एक चित्रण (V&A)
2. तार वाले वाद्य यन्त्र रावणहठ वाद्य यन्त्र का एक चित्रण (wikimedia)
3. रावण के जलते हुए पुतले का एक चित्रण (RobertHarding)
4. ट्रेफिक नियमों का संदेश देने हेतु रावण की छवि के प्रयोग का एक चित्रण (youtube)