सर्वाधिक अनुसरित, आध्यात्मिक शिक्षक गुरु नानक देव जी का जन्मदिन

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
19-11-2021 09:37 AM
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सर्वाधिक अनुसरित, आध्यात्मिक शिक्षक गुरु नानक देव जी का जन्मदिन

प्रसिद्ध कवि, संत कबीर दास की कुछ लोकप्रिय पंक्तियाँ हैं:
“गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोकों भय नाहिं।।”

उक्त दो पंक्तियों के माध्यम से कबीर दास जी कह गएँ हैं, गुरु की आज्ञा को सिर आँखों पर रखिये, अर्थात उनकी आज्ञा को सबसे जरूरी मानकर उसका पालन करना चाहिए। और जो व्यक्ति ऐसा करता है, उसे तीनों लोकों में किसी का भी भय नहीं होता। हालांकि अधिकांश मामलों में कबीर की यह अमृतवाणी केवल शब्दों का समावेश बनकर रह गई है, अर्थात आज कई मायनों में गुरु एवं शिष्य का पवित्र बंधन अपने मार्ग से भटक चुका है। किंतु सिख समुदाय में गुरु और उनके अनुययियों के बीच का संबंध आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है, बल्कि समय के साथ यह और अधिक मजबूत हो रहा है। साथ ही सिखों एवं उनके महान गुरुओं का उदाहरण कबीर के कथनों को भी सार्थक करता है। गुरु एवं शिष्य के पवित्र बंधन के सार को हम "नानक जयंती" के संदर्भ से समझते हैं।
गुरु नानक देव जी को नानक, (पंजाबी:ਨਾਨਕ) के नाम से भी जाना जाता है। वे सिखों के प्रथम गुरु माने जाते हैं। इनके अनुयायी इन्हें नानक, नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह नामों से सम्बोधित करते हैं। नानक देव जी अपने भीतर एक दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्मसुधारक, समाजसुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबन्धु - सभी के गुण समेटे हुए थे। जो आज पाकिस्तान के सेखपुरा जिले में स्थित है। इस शहर में उनके जन्मस्थान पर एक गुरूद्वारे का निर्माण किया गया, जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है। गुरु नानक को एक आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में माना जाता है। जिनके द्वारा15 वीं शताब्दी में सिख धर्म की स्थापना की थी। उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब लिखने की शुरआत की एवं इसके 974 सूक्तों को पूरा किया। गुरु ग्रंथ साहिब के मुख्य छंदों में यह विस्तार से बताया गया है कि, संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माता केवल एक था। साथ ही उनके द्वारा रचित छंद , मानवता के लिए निस्वार्थ सेवा, समृद्धि और सभी के लिए सामाजिक न्याय का उपदेश देते हैं। एक आध्यात्मिक और सामाजिक गुरु के रूप में गुरु की भूमिका सिख धर्म का आधार बनाती है। गुरु नानक का जन्म रावी नदी के किनारे स्थित तलवण्डी नामक गाँव में कार्तिकी पूर्णिमा को एक खत्रीकुल में हुआ था। कुछ विद्वान इनकी जन्मतिथि 15 अप्रैल, 1469 मानते हैं। किन्तु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही मानी जाती है, जो अक्टूबर-नवम्बर माह में दीवाली के 15 दिन बाद पड़ती है। इनके पिता का नाम मेहता कालूचन्द खत्री तथा माता का नाम तृप्ता देवी था। इनकी बहन का नाम नानकी था। मान्यता है की अपने बाल्यकाल से ही वे सांसारिक विषयों से उदासीन रहा करते थे। उनका पढ़ने-लिखने में इनका मन नहीं लगा। अतः मात्र 7-8 साल की उम्र में स्कूल छूट गया, क्योंकि भगवत्प्राप्ति के सम्बन्ध में इनके प्रश्नों के आगे अध्यापक ने हार मान ली तथा वे इन्हें ससम्मान घर छोड़ने आ गए। तत्पश्चात् अपना अधिकांश समय वे आध्यात्मिक चिन्तन और सत्संग में व्यतीत करने लगे। उनके बचपन के समय में कई चमत्कारिक घटनाएँ घटीं, जिन्हें देखकर गाँव के लोग इन्हें दिव्य व्यक्तित्व मानने लगे। ऐतिहासिक रूप से गुरु नानक के उत्तराधिकारी गुरुओं ने उनके जन्मदिन को पर्व के रूप में मनाने की शुरुआत की। परिभाषित तौर पर गुरुपुरब, जिसे गुरु नानक के प्रकाश उत्सव और गुरु नानक जयंती के रूप में भी जाना जाता है। सिख धर्म के संस्थापक और 10 सिख गुरुओं में से पहले गुरु नानक देव के जन्मदिन को “गुरुपुरब” कहा जाता है। उनके जन्मदिन के तौर पर जाना जाने वाला शब्द, “गुरुपुरब”, सबसे पहले गुरुओं के समय में आया था। यह शब्द पूरब (या संस्कृत में पर्व) का एक यौगिक है, जिसका अर्थ, गुरु शब्द के साथ, त्योहार या उत्सव, होता है। यह शब्द गुरु अर्जन देव जी (सिखों के 5वें गुरु) के समय में लिखे गए, भाई गुरदास (1551-1636) के लेखन में कम से कम पांच स्थानों पर प्रयोग होता है। गुरु नानक जयंती के दिन से दो दिन पूर्व से ही गुरुद्वारों में उत्सव एवं धार्मिक आयोजन शुरू हो जाते हैं। गुरु ग्रंथ साहिब का 48 घंटे तक बिना रुके (Non-Stop ) अखंड पाठ आयोजित किया जाता है। गुरु नानक के जन्मदिन से एक दिन पहले, नगरकीर्तन नामक एक जुलूस का आयोजन किया जाता है। जुलूस का नेतृत्व पांच लोगों द्वारा किया जाता है, जिन्हें पंज प्यारे के रूप में जाना जाता है, जो सिख त्रिकोणीय ध्वज, निशान साहिब को पकड़े हुए होते हैं। जुलूस के दौरान पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब (पवित्र मुख्य सिख धार्मिक पुस्तक) को पालकी में बिठाया जाता है। लोग समूहों में भजन गाते हैं और पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्र बजाते हैं और अपने मार्शल आर्ट कौशल का प्रदर्शन भी करते हैं। झंडों और फूलों से सजी सड़कों पर धूमधाम एवं हर्षोल्लास के साथ जुलूस गुजरता है। सभी गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन किया जाता है। दरसल लंगर की अवधारणा किसी भी जरूरतमंद को भोजन प्रदान करना है - चाहे उनकी जाति, वर्ग, धर्म या लिंग कुछ भी हो उनका स्वागत हमेशा गुरु के अतिथि के रूप में किया जाता है। माना जाता है कि जब गुरु नानक बच्चे थे, उनके पिता ने उन्हें कुछ पैसे दिए गए थे एवं 'सच्चा सौदा' (एक अच्छा सौदा) करने के लिए बाजार जाने के लिए कहा। उनके पिता अपने गांव के जाने-माने व्यापारी थे और चाहते थे कि युवा नानक 12 साल की उम्र में पारिवारिक व्यवसाय सीखें। बाजार पहुंचने पर सांसारिक सौदेबाजी करने के बजाय, गुरु ने पैसे से भोजन खरीदा और कई दिनों से भूखे संतों के एक बड़े समूह को खिलाया, जिसे उन्होंने "सच्चा व्यवसाय" कहा। गुरु नानक जयंती पर, जुलूस और समारोह के बाद स्वयंसेवकों द्वारा गुरुद्वारों में लंगर की व्यवस्था की जाती है। इस अवसर पर सिख जन जरूरतमंदों को भोजन और आश्रय प्रदान करते हैं। चाहे भारत में हो या विदेश में, जहां भी जरूरत हो, सिख समुदाय को लोगों की हर संभव मदद करते देखा जा सकता है। भारत में गुरु नानक जयंती को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, झारखंड और पश्चिम बंगाल में सार्वजनिक अवकाश के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर अनेक प्रकार के पारंपरिक दृश्यों एवं नृत्यों का आयोजन किया जाता है, जिसमे एक गतका भी है। दरसल 'गतका' टीमें विभिन्न मार्शल आर्ट के माध्यम से और पारंपरिक हथियारों का उपयोग करते हुए नकली लड़ाई के रूप में अपनी तलवारबाजी का प्रदर्शन करती हैं। यह जुलूस शहर की सड़कों पर निकलता है। इस विशेष अवसर के लिए मार्ग बैनरों से ढका हुआ रहता है, और द्वारों को झंडे और फूलों से सजाया जाता है। आमतौर पर गुरुपर्व के दिन, समारोह सुबह लगभग 4 से 5 बजे शुरू होते हैं। दिन के इस समय को अमृत वेला कहा जाता है। दिन की शुरुआत आसा-की-वार (सुबह के भजन) के गायन से होती है। इसके बाद गुरु की स्तुति में कथा (शास्त्र की व्याख्या) और कीर्तन (सिख धर्मग्रंथों के भजन) का आनंद लिया जाता है। कुछ गुरुद्वारों में रात्रि प्रार्थना सत्र भी आयोजित किए जाते हैं, जो सूर्यास्त के आसपास शुरू होते हैं। जब रेहरा (शाम की प्रार्थना) का पाठ किया जाता है, उसके बाद देर रात तक कीर्तन होता है। मण्डली लगभग 1:20 बजे गुरबानी गाना शुरू करती है, जो गुरु नानक के जन्म का वास्तविक समय है। और इस समारोह का समापन लगभग 2 बजे होता है ।गुरु नानक गुरुपर्व पूरे विश्व में सिख समुदाय द्वारा मनाया जाता है और सिख कैलेंडर में यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है।

संदर्भ
https://bit.ly/3x25RKm
https://en.wikipedia.org/wiki/Guru_Nanak
https://en.wikipedia.org/wiki/Guru_Nanak_Gurpurab
https://en.wikipedia.org/wiki/Gurpurb
https://en.wikipedia.org/wiki/Gatka

चित्र संदर्भ   
1. गुरूद्वारे में आए सिख संतों , को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
2. गुरुद्वारा बाबा अटल की 19वीं शताब्दी की एक दुर्लभ भित्ति चित्र जिसमें गुरु नानक को दर्शाया गया है, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. पाकिस्तान के ननकाना साहिब में गुरुद्वारा, जहां नानक का जन्म हुआ था, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. बेडफोर्ड इंगलैण्ड में गतका प्रदर्शन, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)