ब्रिटिश नीतियों की विफलताओं के परिणामस्वरूप भारत ने झेले अनेकों अकाल

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
21-12-2021 09:12 AM
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ब्रिटिश नीतियों की विफलताओं के परिणामस्वरूप भारत ने झेले अनेकों अकाल

उन दिनों के दौरान जब ईस्ट इंडिया कंपनी और ब्रिटिश राज इंडिया ने हमारे देश का प्रबंधन किया, तब भारतीयों को आर्थिक रूप से वंचित करने और इंग्लैंड को खाद्य और अन्य संसाधनों का निर्यात करने की उनकी नीतियों से कई अकाल उत्पन्न हुए जिसके परिणामस्वरूप लाखों मौतें हुईं। हमें उस समय हुए सबसे बड़े अकालों को नहीं भूलना चाहिए। कई अकालों में उत्तर प्रदेश, बंगाल और बिहार शामिल थे। भारतीय स्वतंत्रता के 70 से भी अधिक वर्षों के बादहमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत के ये अकाल प्रभावित हिस्से गहरे जंगलों और गंगा-जुमना नदी की सहायक नदियों के साथ इसकी सबसे समृद्ध भूमि थे, लेकिन 350 से अधिक वर्षों के ब्रिटिश शासन और उस समय हुए अकाल के कारण अब वो समृद्धि गायब हो चुकी है, तथा ये क्षेत्र गरीब हो चुके हैं।
अकाल किसी देश या क्षेत्र के बड़े पैमाने पर भूख की एक चरम और लंबी स्थिति है,जिसके परिणामस्वरूप व्यापक और तीव्र कुपोषण होता है और भोजन और पोषण की अपर्याप्तता के कारण भुखमरी या बीमारियों से मृत्यु हो जाती है। अकाल एक शाब्दिक अर्थ में भोजन की अत्यधिक अपर्याप्तता और पोषण की कमी को दर्शाता है।यह एक ऐसी घटना है जो एक विशाल स्थलीय क्षेत्र में विभिन्न पर्यावरणीय और जैविक कारणों से घटित होती है। एक समुदाय में अकाल कुछ हफ्तों से लेकर कुछ वर्षों तक हो सकता है। आज की दुनिया में अकाल का कारण बनने वाले प्रमुख कारक जनसंख्या असंतुलन, वर्षा की कमी के कारण स्वच्छ पानी की कमी, फसल की विफलता, सरकारी नीतियां आदि हैं।समाज में काफी पुराने समय से ही अकाल पड़ रहे हैं।प्राचीन काल में भी युद्ध या महामारी के परिणामस्वरूप जनता को अकाल का सामना करना पड़ा है और इसके परिणाम भुगतने पड़े हैं। इतिहास में कई अकाल प्राकृतिक कारणों से उत्पन्न हुए,जैसे सूखा बाढ़, बेमौसम ठंड, आंधी, चक्रवात, कीटों का प्रकोप,पौधों की बीमारियाँ आदि। हालाँकि, कुछ अकाल सामाजिक कारणों का परिणाम थे, जैसे जनसंख्या विस्फोट के कारण भोजन की कमीजो कुपोषण, भुखमरी और व्यापक बीमारियों का कारण बनी। अकाल के मानव निर्मित कारणों में अक्षम कृषि प्रक्रियाओं के कारण भोजन की कमी शामिल है, जिसके परिणामस्वरूप फसल खराब हो जाती है। इसके अलावा जब फसलों का कोई उचित भंडारण नहीं होता या कृन्तकों द्वारा फसलों को संक्रमण हो जाता है, तब भी अकाल उत्पन्न होने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ क्षेत्रों में भोजन के अनुचित वितरण के कारण भी अकाल उत्पन्न होता है। जल निकायों या वायु का संदूषण जो फसल उत्पादन में बाधा डालता है, भी अकाल की संभावना को बढ़ाता है।भारत एक विकासशील राष्ट्र है, जिसकी अर्थव्यवस्था और जनसंख्या मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है। यद्यपि कृषि के क्षेत्र में विभिन्न प्रगतियों ने इसकी गुणवत्ता में सुधार किया है, यह अभी भी मुख्य रूप से जलवायु परिस्थितियों पर निर्भर है। उदाहरण के लिए- ग्रीष्म ऋतु में वर्षा कृषि में सिंचाई की प्रक्रिया के लिए महत्वपूर्ण है। वर्षा की कमी के कारण उचित सिंचाई की कमी और फसलों की विफलता होती है। इस प्रकार, ये परिणाम अकाल की ओर ले जाते हैं। ऐसी कई स्थितियों जैसे वर्षा की कमी या सूखे ने भारत में 11वीं से 17वीं शताब्दी में कई अकालों को जन्म दिया था। भारत में सबसे गंभीर रूप से दर्ज अकालों में1943का बंगालका अकाल,1783का चालीसा अकाल,1770का ग्रेट बंगाल अकाल,1791का खोपड़ी (skull) अकाल,1866का उड़ीसाअकाल,1630का दक्कन अकाल,1873 का दक्कन अकाल,1837का आगरा अकालआदि शामिल हैं।भारत में हुए अनेकों अकाल ब्रिटिश नीतियों की विफलता का परिणाम भी थे।1770 में ग्रेट बंगाल के अकाल के कारण लगभग 10 मिलियन लोगों की मौत हुई थी। इस अकाल ने बंगाल (पूर्व और पश्चिम), बिहार, उड़ीसा और झारखंड के कुछ हिस्सों को प्रभावित किया था।1782 के मद्रास अकाल और चालीसा अकाल के कारण 11 मिलियन मौतें होने का अनुमान है।मद्रास अकाल ने जहां चेन्नई और कर्नाटक के कुछ हिस्सों के आसपास के क्षेत्रों को प्रभावित किया,वहीं चालीसा अकाल ने उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कुछ हिस्सों, दिल्ली और कश्मीर को प्रभावित किया।दोजी बारा या खोपड़ी अकाल में करीब 11 मिलियन मौतेंदर्जहुईथी तथा इस अकाल ने तमिलनाडु,महाराष्ट्र,आंध्र प्रदेश,गुजरात और राजस्थान को प्रभावित किया।बॉम्बे प्रेसीडेंसी में हुए अकाल में मृत्यु दर काफी अधिक थी, लेकिन मरने वालों की संख्या अभी ज्ञात नहीं है। इस अकाल ने मुख्य रूप से महाराष्ट्र को प्रभावित किया था।1803-1804 में राजपूताना में हुए अकाल में मृत्यु दर काफी कम थी, लेकिन मरने वालों की संख्या अभी ज्ञात नहीं है।इस अकाल ने मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और राजस्थान को प्रभावित किया।1805-1807 में मद्रास प्रेसीडेंसी में हुए अकाल की मृत्यु दर उच्च थी, लेकिन मौतों की संख्या अभी ज्ञात नहीं है। इस अकाल ने तमिलनाडु को आवरित किया।1812-1813 में राजपूताना में हुए अकाल में मरने वालों की संख्या 2 मिलियन थी तथा इसने राजस्थान को प्रभावित किया था।1907-1908 का अकालजो उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में हुआ था, में 3.2 मिलियनमौतें हुई थी।ऐसे ही अनेकों अकाल ब्रिटिश भारत के समय हुए जिसने बहुत बड़े पैमाने पर जन जीवन को प्रभावित किया।

संदर्भ:

https://bit.ly/3GUe8Uy
https://bit.ly/3e6yqxn
https://bit.ly/3p2YsrO

चित्र संदर्भ
1. पीपुल्स वार, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का एक अंग, सुनील जाना द्वारा अकाल की ग्राफिक तस्वीरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
2. भारी अकाल के गवाह रहे लोगों को दर्शाता एक चित्रण (flickr)
3. अकाल में अनाज की मांग को संदर्भित करता एक चित्रण (unsplash)