लखनऊ में मुग़ल चित्रकला शैली का पुनः प्रवर्तन और अवधी कला का विकास

दृष्टि III - कला/सौंदर्य
24-01-2018 08:36 PM
लखनऊ में मुग़ल चित्रकला शैली का पुनः प्रवर्तन और अवधी कला का विकास

मान्यता है की अवधी चित्रकला मुग़ल शैली से जुडी है और समय के साथ उसने खुद की एक विशेषता भी कायम की। नवाब सफ़दरजंग के काल में मुग़ल शैली के लघु-चित्रकला में अस्थायी पुनः प्रवर्तन लाया गया। नवाब सफ़दरजंग ने दिल्ली के कलाकार फैज़ुल्लाह खान को राजाश्रय दिया जिसके बाद फैज़ुल्लाह खान लखनऊ से चित्र बनाते थे। उनके द्वारा बनाए यहाँ गए लघुचित्रों के 50 चित्रों की चित्रपंजी के बारे में कहा गया है “18वी शताब्दी तक अवध ने इस कलाकारी को जिन्दा रख के बढ़ावा दिया...”। इस मुग़ल-राजपूत चित्रकला संगम ने नवाब शुजा उद दौला में एक आश्रयदाता पाया। उनके वक़्त में मीर कलन खान एक बड़े चित्रकार थे और मुग़ल लघुचित्रकला के पुनरजीवन में उनका बहुत योगदान रहा है। उनकी शैली असंकीर्ण थी जो अवधी चित्रकारी की विशेषता है। मीर कलन खान ने अपने शैली में यूरोपीय तत्वों का भी विशेष लक्षण से इस्तेमाल किया। फीके जलरंग का पार्श्वभूमी के लिए इस्तेमाल, पर्णावली और प्रकाश का वैविध्यपूर्ण इस्तेमाल उनके चित्रकला की विशेषताएं थी। अवध शैली जो इस प्रकार तैयार हो रही थी उसमे बेल-बुटिदार हाशिया लाक्षणिक तौर पे इस्तेमाल होती थी। ये 17वी शताब्दी के मुग़ल शैली के नकल जैसी होती थी लेकिन इसका इस्तेमाल नवाब असफ उद दौला के समय तक खत्म हो गया था। प्रतिमा चित्र के साथ साथ ऐतिहासिक दृश्यों का भी चित्रण होता था। असफ-उद-दौला के बाद अवध में चित्रकारी में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई क्यूंकि उसके बाद आनेवाले नवाबों ने सिर्फ प्रतिमा चित्र बनाने के लिए चित्रकार रखे तथा उनमे भी यूरोपीय चित्रकार ज्यादा मात्र में थे। यहीं कारण है की शायद अवधी चित्रकला शैली मुग़ल चित्रकारी से ज्यादा अलग नहीं है। प्रस्तुत चित्र अवध नवाब का है और साथ मुग़ल चित्रशैली में बनाया चित्र है। 1.पेंटिंग एंड कैलीग्राफी http://shodhganga.inflibnet.ac.in/bitstream/10603/55804/7/07_chapter%202.pdf 2.आस्पेक्ट्स ऑफ़ इंडियन आर्ट: प्रतापदित्य पाल, अक्टूबर 1970 3.मास्टरपीसेस फ्रॉम द डिपार्टमेंट ऑफ़ इस्लामिक आर्ट इन द मेट्रोपोलिटन म्यूजियम ऑफ़ आर्ट: मरयम एख्तियार 4.आर्ट ऑफ़ इंडिया: विन्सेंट आर्थर स्मिथ