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भारत में बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के निवेशकों की संख्या भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। लेकिन यदि आपको अपने निवेश में मुनाफे से अधिक टैक्स (Tax) ही देना पड़ जाए, तो फिर निवेश का फायदा ही क्या है? इसलिए हमें किसी भी प्रकार की संपति में निवेश करने से पहले इससे जुड़े टैक्स यानी कर कानूनों के बारे में भी पूरी जानकारी होनी ही चाहिए।
जब भी आप कोई पूंजीगत संपत्ति (Capital Asset) बेचते हैं और लाभ कमाते हैं, तो उस लाभ को ‘पूंजीगत लाभ से आय’ (Capital Gains Income) कहा जाता है। जिस वर्ष आप कोई संपत्ति बेचते हैं, उस वर्ष आपको इस संपत्ति के लाभ पर ‘कर’ (Tax) का भुगतान करना होता है। इस कर को ‘पूंजीगत लाभ कर’ (Tax on Capital Gains) के रूप में जाना जाता है। पूंजीगत संपत्ति आपके स्वामित्व वाली ऐसी संपत्ति है, जिसेलाभ कमाने के लिए बेचा जा सकता है। पूंजीगत संपत्ति के कुछ उदाहरण भूमि, भवन, घर, वाहन, पेटेंट (Patent), ट्रेडमार्क (Trademark), पट्टे पर अधिकार, मशीनरी और आभूषण आदि हो सकते हैं। यदि आपके पास किसी भारतीय कंपनी में या उससे संबंधित अधिकार (Company Equity) हैं, तो उन अधिकारों को भी पूंजीगत संपत्ति माना जाता है। हालाँकि, कुछ संपत्ति ऐसी भी होती हैं जिन्हें पूंजीगत संपत्ति की श्रेणी में नहीं माना जाता है, जैसे किसी व्यवसाय के लिए खरीदा गया स्टॉक (Stock) या कच्चा माल, व्यक्तिगत उपयोग के कपड़े और फर्नीचर, ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि भूमि, सरकार द्वारा जारी कुछ बांड और स्वर्ण जमा योजनाएं जैसे कि केंद्र सरकार द्वारा जारी 6½% स्वर्ण बांड (1977) या 7% स्वर्ण बांड (1980) या राष्ट्रीय रक्षा स्वर्ण बांड (1980), विशेष वाहक बांड (1991), या स्वर्ण जमा योजना (1999) के तहत जारी स्वर्ण जमा बांड या स्वर्ण मुद्रीकरण योजना, 2015 के तहत जारी जमा प्रमाणपत्र आदि।
गृह संपत्ति में निवेश करना निवेशकों के बीच सबसे लोकप्रिय निवेश माना जाता है, क्योंकि यह आपको एक घर का मालिक बनने का मौका देता है। लेकिन जब आप एक गृह संपत्ति बेचते हैं, तो इसकी बिक्री से हुआ कोई भी लाभ या हानि ‘पूंजीगत लाभ’ (Capital Gains) श्रेणी के तहत कर के अधीन आ सकती है।
पूंजीगत संपत्ति दो प्रकार की होती है:
1. अल्पकालिक पूंजीगत संपत्ति (Short Term Capital Asset (STCA): अल्पकालिक पूंजीगत संपत्तियाँ वे संपत्तियाँ होती हैं जो थोड़े समय के लिए रखी जाती हैं।
अल्पकालिक संपत्ति के मानदंड इस प्रकार हैं:
सामान्य नियम: 36 महीने या उससे कम समय के लिए रखी गई किसी भी संपत्ति को अल्पकालिक पूंजीगत संपत्ति माना जाता है।
अचल संपत्ति (भूमि, भवन, गृह संपत्ति): यदि आप किसी गृह संपत्ति को कम से कम 24 महीने तक रखने के बाद बेचते हैं, तो बिक्री से उत्पन्न आय को दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के रूप में माना जाएगा। 24 महीने की यह कम अवधि केवल 31 मार्च, 2017 के बाद बेची गई अचल संपत्तियों पर लागू होती है।
चल संपत्तियां (आभूषण, ऋण-उन्मुख म्यूचुअल फंड (Mutual Fund), आदि): आभूषण और ऋण-उन्मुख म्यूचुअल फंड जैसी संपत्तियां यह निर्धारित करने के लिए 36 महीने के सामान्य नियम के अधीन हैं कि क्या वे अल्पकालिक पूंजीगत संपत्ति हैं। अचल संपत्तियों के लिए 24 महीने की कम की गई अवधि चल संपत्तियों पर लागू नहीं होती है।
इसके अलावा, कुछ ऐसी संपत्तियां हैं जिन्हें 12 महीने या उससे कम समय के लिए रखे जाने पर अल्पकालिक पूंजीगत संपत्ति माना जाता है, जब स्थानांतरण की तारीख 10 जुलाई 2014 के बाद की हो।
इन संपत्तियों में शामिल हैं:
- भारत में किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज (Stock Exchange) में सूचीबद्ध कंपनी के शेयर।
- भारत में किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध प्रतिभूतियाँ, जैसे डिबेंचर (Debentures), बांड, सरकारी प्रतिभूतियाँ, आदि।
- यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया (Unit Trust Of India) की इकाइयां, चाहे उद्धृत की गई हों या नहीं।
- इक्विटी-उन्मुख म्यूचुअल फंड की इकाइयाँ (Units Of Equity-Oriented Mutual Funds), चाहे उद्धृत की गई हों या नहीं।
- शून्य कूपन बांड, चाहे उद्धृत किया गया हो या नहीं।
अल्पकालिक पूंजीगत लाभ की गढ़ना:
अल्पकालिक पूंजीगत लाभ= बिक्री मूल्य - (अधिग्रहण की लागत + बिक्री से सीधे संबंधित व्यय + सुधार की लागत + धारा 54 के तहत अनुमत छूट)
2. दीर्घकालिक पूंजीगत संपत्ति (Long Term Capital Asset (LTCA): दीर्घकालिक पूंजीगत संपत्ति (एलटीसीए) ऐसी संपत्ति होती है जिसका स्वामित्व आपके पास 36 महीने से अधिक से होता है। इसका मतलब यह है कि यदि आपके पास जमीन, भवन या घर जैसी कोई संपत्ति 24 महीने या उससे अधिक समय से है तो यह एक दीर्घकालिक पूंजीगत संपत्ति मानी जाएगी।
कुछ अन्य संपत्तियां भी हैं जिन्हें दीर्घकालिक पूंजीगत संपत्ति माना जा सकता है यदि आप उन्हें 12 महीने से अधिक समय तक रखते हैं:
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