जब लखनऊ में रहते थे, ब्रिटिश गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
20-01-2024 10:38 AM
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जब लखनऊ में रहते थे, ब्रिटिश गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स

वर्ष 1774 में लड़ा गया रोहिल्ला युद्ध, हमारे देश भारत के इतिहास में दर्ज है। इस संघर्ष में तत्कालीन बंगाल प्रांत के ब्रिटिश गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स(Warren Hastings) ने, अवध या वर्तमान अयोध्या के नवाब को, ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों की एक ब्रिगेड सौंप कर रोहिल्लाओं को हराने में मदद की थी। इस कार्रवाई के कारण, बाद में हेस्टिंग्स के संसदीय महाभियोग में, उन पर एक आरोप लगाया गया था। लेकिन, संसद ने उन्हें सही ठहराया था।
दरअसल, रोहिल्ला अफगान (Afghan) थे, जिन्होंने 18वीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य के पतन के दौरान, भारत में प्रवेश किया था और रोहिलखंड क्षेत्र पर नियंत्रण हासिल कर लिया। उस समय रोहिलखंड क्षेत्र को वास्तव में ‘कटेहर’ कहा जाता था। जब रोहिल्लाओं को मराठों द्वारा संघर्ष की धमकी दी गई, तो उन्होंने अवध के नवाबों से मदद मांगी। लेकिन बाद में, वे निर्धारित राशि का भुगतान करने में विफल रहे। अतः, हेस्टिंग्स ने ब्रिटिश कंपनी और मराठों के बीच, एक प्रतिरोधी के रूप में अयोध्या को मजबूत करने हेतु, नवाब को रोहिल्लाओं को हराने में समर्थन किया। परिणामस्वरूप, हेस्टिंग्स के आलोचकों ने उन पर, सैनिकों को नवाब को किराये पर देने, और अत्याचारों को नज़रअंदाज़ करने का आरोप लगाया था। इससे पहले, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में प्रवेश किया था, और वर्ष 1764 में बक्सर की लड़ाई में अवध को निर्णायक रूप से हरा दिया। इस कारण, अवध ब्रिटिश क्षेत्र में आ गया। अवध की राजधानी फैजाबाद में थी, लेकिन, कंपनी के राजनीतिक प्रतिनिधि, जिन्हें आधिकारिक तौर पर ‘निवासी (Residents)’ के रूप में जाना जाता था, हमारे शहर लखनऊ में स्थित थे। ब्रिटिश एवं मराठाओं के द्वितीय युद्ध तक, अवध के दरबार में एक मराठा दूतावास था, जिसका नेतृत्व पेशवा जनजाति के वकील करते थे। अवध के तत्कालीन नवाब ने व्यापक नागरिक सुधार कार्यक्रम के हिस्से के रूप में, लखनऊ में एक आधिकारिक निवास का निर्माण और भुगतान किया था।
जबकि, इस क्षेत्र के शासन में एक बुरा समय भी आया था। तब अराजकता और कुप्रशासन के बहाने, ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1770 के दशक में, इस नवाबी राज्य के मामलों में तेजी से हस्तक्षेप किया। हालांकि, वर्ष 1780 में पहली बार अवध प्रशासन द्वारा इससे विरोध की घोषणा की गई थी। अतः कलकत्ता के ब्रिटिश निदेशकों को जल्द ही एहसास हुआ कि, अवध के संसाधनों पर निरंतर दबाव, एक अस्थिर राजनीतिक रणनीति थी। और, इसका उल्टा असर भी हुआ। कंपनी और नवाब के बीच राजनीतिक समीकरण बदल गए।
फिर भी, 1784 में, वॉरेन हेस्टिंग्स ने सुधारात्मक व्यवस्थाओं को लागू किया, और इस प्रकार ब्रिटिश राज्य ने अवध का कर्ज 50 लाख कम कर दिया। इससे अवध शासन पर दबाव भी कम हो गया। परिणामस्वरूप, वर्ष 1797 में, नवाब– आसफ़-उद-दौला के निधन तक, अवध ने एक अर्ध-स्वायत्त क्षेत्रीय शक्ति के रूप में सुचारू रूप से कार्य किया। बाद में, 7 फरवरी 1856 को, गवर्नर-जनरल लॉर्ड डलहौजी(Lord Dalhousie) के आदेश से, अवध के तत्कालीन नवाब, वाजिद अली शाह को अपदस्थ कर दिया गया। और अवध राज्य को डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स(Doctrine of Lapse)– ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा शुरू की गई विलय की नीति, की शर्तों के तहत, आंतरिक कुशासन का कारण देकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के क्षेत्रों में मिला लिया गया।
बाद में 1858 में ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़ हुए विद्रोह में अवध अन्य भारतीय राज्यों के साथ शामिल हो गया, जो भारत की आखिरी शृंखला में से एक था। इस विद्रोह के दौरान, बॉम्बे प्रेसीडेंसी(Bombay Presidency) से ब्रिटिश भारतीय सैनिकों की टुकड़ियों ने इन भारतीय राज्यों पर कब्ज़ा कर लिया। इस विद्रोह को ऐतिहासिक रूप से ऑपरेशन अवध (Operation Oudh) के नाम से भी जाना जाता है। डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स के तहत अंग्रेजों द्वारा अवध पर कब्ज़ा करने के बाद, यह उत्तर पश्चिमी प्रांत ‘अवध’ बन गया। इसके अलावा, 5 जुलाई 1857 और 3 मार्च 1858 के बीच, 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान, नवाब वाजिद अली शाह की पत्नी बेगम हजरत महल ने अपने बेटे बिरजिस कादर को अवध का ‘वाली’ घोषित किया, और इस तरह उसने एक शासक के रूप में अवध पर शासन किया। इस विद्रोह के समय, अंग्रेजों ने क्षेत्र पर नियंत्रण खो दिया। हालांकि, उन्होंने अगले अठारह महीनों में अपना शासन यहां फिर से स्थापित किया। जबकि, वर्ष 1902 में, अवध प्रांत का नाम बदलकर ‘आगरा और अवध संयुक्त प्रांत’ कर दिया गया। और 1921 में, यह ब्रिटिश भारत का संयुक्त प्रांत बन गया। 1937 में, यह स्वतंत्र संयुक्त प्रांत बन गया और 1950 में अंततः हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के निर्माण तक, स्वतंत्र भारत में एक प्रांत के रूप में मौजूद था।

संदर्भ
http://tinyurl.com/32e64p8f
http://tinyurl.com/kw6p3srz
http://tinyurl.com/fmrnbvv9
http://tinyurl.com/59jvzzvy

चित्र संदर्भ
1. वारेन हेस्टिंग्स की लखनऊ में अवध के नवाब से मुलाकात को संदर्भित करता एक चित्रण (tallengestore)
2. एक रोहिल्ला घुड़सवार को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
3. अपने अरेबियन घोड़े पर सवार वॉरेन हेस्टिंग्स को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. 1857 के भारतीय विद्रोह के दौरान लखनऊ के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)



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