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मेरठ में अब जब लोग जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों के बारे में ज़्यादा जानने लगे हैं, तो “खाना ही दवा है” की सोच भी तेज़ी से फैल रही है। यह सोच लोगों को पोषण से भरपूर खाना खाने के लिए प्रेरित कर रही है, ताकि इम्यूनिटी यानी रोगों से लड़ने की ताक़त बढ़े और लंबे समय तक सेहतमंद रहा जा सके। इस सोच का मतलब है कि पोषण हमारे शरीर के लिए कितना ज़रूरी है। यह बीमारियों को रोकने, संभालने और कभी-कभी ठीक करने में भी मदद करता है। सेहत के लिए अच्छा खाना मिलना हर किसी के लिए बहुत ज़रूरी है।
इसी से जुड़ा एक और शब्द है — फ़ंक्शनल फूड्स (Functional Foods)। ये ऐसे खाने होते हैं जो सिर्फ भूख नहीं मिटाते, बल्कि सेहत को भी फ़ायदा पहुँचाते हैं। ये या तो प्राकृतिक रूप में होते हैं या इनमें पोषण और गुणों को बढ़ाया गया होता है। भारत में कुछ आम कार्यात्मक खाद्य पदार्थ या फ़ंक्शनल फूड्स हैं — दही, टमाटर, सहजन (Moringa), सरसों के बीज, हल्दी, ग्रीन टी और आँवला। वहीं दूसरी ओर, न्यूट्रास्युटिकल्स (Nutraceuticals) ऐसे प्रोडक्ट्स होते हैं जो खाने की चीज़ों से बनाए जाते हैं। इनमें विटामिन, खनिज, जड़ी-बूटियाँ और कुछ ज़रूरी तत्व मौजूद होते हैं, जो सेहत को सुधारने में मदद करते हैं।
तो आज, आइए शुरुआत करते हैं “खाना ही दवा है” की सोच से और समझते हैं कि इसका असली मतलब क्या है। फिर जानेंगे कि इस सोच को अपनाने से हमें क्या फ़ायदे हो सकते हैं। उसके बाद, भारत में सबसे ज़्यादा खाए जाने वाले कुछ कार्यात्मक खाद्य पदार्थों और उनके फ़ायदे देखेंगे। और आख़िर में समझेंगे कि न्यूट्रास्युटिकल्स (Nutraceuticals) क्या होते हैं, ये दवाइयों से कैसे अलग होते हैं, और ये दोनों मिलकर कैसे हमारी सेहत का ख़्याल रखते हैं।
“खाना ही दवा है” की अवधारणा:
यह अवधारणा मुख्य रूप से उन खाद्य पदार्थों पर ध्यान केंद्रित करती है जो प्राकृतिक, कम प्रसंस्कृत और पौधों पर आधारित होते हैं। इसमें चीनी, तेल और नमक से भरपूर अत्यधिक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के सेवन को सीमित किया जाता है। जो खाद्य पदार्थ सेहत के लिए फायदेमंद माने जाते हैं, उन्हें अक्सर फ़ंक्शनल फूड्स कहा जाता है। इनका दावा होता है कि इनमें विशेष माइक्रोन्यूट्रिएंट्स (micronutrient) या जैविक अणुओं (biomolecule) की उच्च मात्रा होती है, जो सेहत के लिए लाभकारी होती है।
“खाना ही दवा है” का तरीका पारंपरिक चिकित्सा के तरीके को चुनौती देता है, जो मुख्य रूप से चिकित्सा में तकनीकी उन्नति और फ़ार्मास्युटिकल दवाओं (pharmaceutical drugs) पर निर्भर करता है। इस दृष्टिकोण में, भोजन को दवा के रूप में देखा जाता है, जो बीमारी को रोकने और इलाज करने में मदद कर सकता है।
खाना ही दवा है अवधारणा में स्वास्थ्य देखभाल से संबंधित लाभ
बीमारी का प्रबंधन: मेडिकल न्यूट्रिशन थैरेपी (Medical Nutrition Therapy) एक ऐसी चिकित्सा पद्धति है, जिसमें भोजन और आहार का उपयोग बीमारियों के इलाज में मदद करने के लिए किया जाता है। यह दिखाता है कि आहार और भोजन का रोल रोगों को नियंत्रित करने में कितना ज़रूरी है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी व्यक्ति के शरीर में पर्याप्त फाइबर होता है, तो इससे उनके रक्त में शुगर का स्तर कम रहता है। यह पूर्व मधुमेह (pre-diabetes) या मधुमेह (diabetes) वाले लोगों के लिए फायदेमंद है, क्योंकि यह नसों और रक्त वाहिकाओं को होने वाले नुकसान को कम करता है, जो ज़्यादा शुगर की वजह से होता है।
लागत में कमी: अब पूरी दुनिया में पुरानी बीमारियाँ ज़्यादा फैल रही हैं, और इनके इलाज पर खर्च भी बढ़ता जा रहा है। 2010 में, अमेरिका में करीब 86% यानी 400 बिलियन डॉलर से ज़्यादा खर्च सिर्फ़ पुरानी बीमारियों के इलाज पर हुआ था। इन खर्चों को सरकार और मरीज दोनों मिलकर उठाते हैं। “खाना ही दवा है” का तरीका अपनाने से स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चों में कमी आ सकती है। यह बीमारी की गंभीरता को कम कर सकता है, जिससे बेहतर जांच, कम दवाइयाँ और कम हॉस्पिटल में भर्ती की ज़रूरत पड़ेगी।
भारत में कुछ महत्वपूर्ण फ़ंक्शनल फूड्स के स्वास्थ्य लाभ
1.) सहजन: यह विटामिन A, C और E, साथ ही कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम और जिंक जैसे ज़रूरी मिनरल्स से भरपूर होता है। यह पोषक तत्वों से भरपूर खाना शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट (Antioxidants)और सूजन को कम करने वाले (Anti-Inflammatory) गुणों से भरा हुआ है।
2.) हल्दी: इसमें कर्क्यूमिन (curcumin) नामक तत्व होता है, जो शक्तिशाली एंटी-इन्फ्लेमेटरी, एंटी-कैंसर और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर है। यह पाचन में मदद करता है और आंतों की सेहत को सुधारता है।
3.) लहसुन: लहसुन एक शक्तिशाली फ़ंक्शनल फूड है, जिसमें एलिसिन (allicin) जैसे फ़ाइटोकेमिकल्स (phytochemicals) होते हैं। यह इम्यून फ़ंक्शन (immune function), दिल की सेहत, और पाचन को सपोर्ट करता है, साथ ही एंटी- इंफ़्लेमेट्री (anti-inflammatory), एंटीबैक्टीरियल (antibacterial) और एंटीवायरल (antiviral) जैसे लाभ भी देता है।
4.) करी पत्ते: ये विटामिन्स, मिनरल्स, एंटीऑक्सीडेंट्स और आवश्यक तेलों से भरपूर होते हैं। यह न केवल पाचन स्वास्थ्य को बढ़ावा देते हैं, सूजन को कम करते हैं, और इम्यून फ़ंक्शन को मज़बूत करते हैं, बल्कि आंखों की सेहत, त्वचा और बालों की वृद्धि में भी मदद करते हैं और पुरानी बीमारियों और न्यूरोडिजेनेरेटिव (neurodegenerative) स्थितियों के खतरे को कम करने में मदद कर सकते हैं।
5.) सरसों के बीज: सरसों के बीज ओमेगा-3 फ़ैटी एसिड्स, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होते हैं, जो दिल की सेहत को बढ़ावा देते हैं, पाचन को सपोर्ट करते हैं, और रक्त शर्करा (Sugar) को नियंत्रित करने में मदद करते हैं।
न्यूट्रास्युटिकल्स क्या हैं?
न्यूट्रास्युटिकल्स ऐसे खाद्य पदार्थ या खाद्य घटक होते हैं, जो सिर्फ़ सामान्य पोषण से ज़्यादा स्वास्थ्य के लाभ देते हैं। इन्हें सबसे पहले 1989 में स्टीफन डि-फेलिस (Stephen DeFelice) ने बताया था। “न्यूट्रास्यूटिकल (nutraceutical)” शब्द “पोषण/न्यूट्रिशन” (Nutrition) और “दवा/ फ़ार्मास्युटिकल” (pharmaceutical) का मेल है, जिसका मतलब है कि ये उत्पाद भोजन और दवा के बीच का अंतर कम करते हैं। न्यूट्रास्युटिकल्स अलग-अलग रूपों में पाए जा सकते हैं, जैसे कैप्सूल, टैबलेट्स, ड्रिंक्स और जो पोषण से भरपूर होते हैं (fortified foods)। इनमें अक्सर विटामिन, खनिज, जड़ी-बूटियाँ, अमीनो एसिड्स या अन्य प्राकृतिक पदार्थ होते हैं, जो सेहत के लिए फायदेमंद साबित हुए हैं। न्यूट्रास्युटिकल्स के उदाहरणों में ओमेगा-3 फैटी एसिड्स, प्रोबायोटिक्स और एंटीऑक्सीडेंट्स शामिल हैं। न्यूट्रास्युटिकल्स को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में मदद करने के रूप में बेचा जाता है, लेकिन इन्हें इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर से सलाह लेना ज़रूरी है।
न्यूट्रास्युटिकल्स और फार्मास्यूटिकल्स में अंतर
न्यूट्रास्युटिकल्स, जो अक्सर खाद्य स्रोतों से बनाए जाते हैं, ऐसे होते हैं जो सामान्य पोषण से अधिक स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। वहीं, फार्मास्यूटिकल्स दवाएँ होती हैं, जिन्हें वैज्ञानिक तरीके से तैयार किया जाता है और यह बीमारियों का निदान, इलाज या रोकथाम करने के लिए सख्ती से परीक्षण की जाती हैं। फ़ार्मास्युटिकल्स को आमतौर पर सरकारी एजेंसियाँ जैसे सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (Central Drugs Control Organization) द्वारा मंज़ूरी मिलती है और इन्हें लेने के लिए डॉक्टर की पर्ची की ज़रूरत होती है।
न्यूट्रास्युटिकल्स और फार्मास्यूटिकल्स एक-दूसरे को कैसे मदद करते हैं?
रोकथाम बनाम इलाज: फार्मास्यूटिकल्स मुख्य रूप से पहले से मौजूद बीमारियों का इलाज करने के लिए बनाई जाती हैं, जबकि न्यूट्रास्युटिकल्स सेहत की समस्याओं को होने से रोकने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। जैसे, स्टैटिन (statins) दवाएँ दिल की बीमारी वाले लोगों में कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करती हैं, जबकि न्यूट्रास्युटिकल्स जैसे प्लांट स्टेरॉल्स (plant sterols) और ओमेगा-3 हृदय समस्याओं के खतरे को कम करने में मदद कर सकते हैं।
पुरानी बीमारियों का प्रबंधन: न्यूट्रास्युटिकल्स को अब पुरानी बीमारियों जैसे आर्थराइटिस (Arthritis), मधुमेह (Diabetes) और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज में शामिल किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, कर्क्यूमिन (curcumin), क्रोमियम (chromium) और ओमेगा-3 (omega-3) सेहत के लिए फ़ायदेमंद होते हैं। फार्मास्यूटिकल्स आमतौर पर लक्षणों का इलाज करती हैं, जबकि न्यूट्रास्युटिकल्स पूरे स्वास्थ्य के लिए लंबी अवधि तक सपोर्ट प्रदान कर सकते हैं।
फ़ार्मास्युटिकल्स पर निर्भरता कम करना: कुछ लोगों के लिए, न्यूट्रास्युटिकल्स दवाओं की आवश्यकता को कम कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, मैग्नीशियम सप्लिमेंट्स (Magnesium Supplements) हल्के उच्च रक्तचाप (Hypertension) को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं, जिससे एंटीहाइपरटेंसिव (Anti-Hypersensitive) दवाओं की आवश्यकता कम हो सकती है। हालांकि, यह हमेशा हेल्थकेयर प्रोफेशनल की सलाह से ही करना चाहिए ताकि किसी भी प्रकार की गलत प्रतिक्रिया से बचा जा सके।
संदर्भ
मुख्य चित्र स्रोत : pexels