मेरठ की उपजाऊ दोमट मिट्टी: कृषि और निर्माण दोनों में बहुपयोगी विरासत

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
09-07-2025 09:21 AM
मेरठ की उपजाऊ दोमट मिट्टी: कृषि और निर्माण दोनों में बहुपयोगी विरासत

मेरठ की धरती सिर्फ ऐतिहासिक वीरता या खेल प्रतिभाओं के लिए ही नहीं जानी जाती, बल्कि यहाँ की उपजाऊ मिट्टी भी इसे उत्तर भारत के महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्रों में गिनती दिलाती है। विशेष रूप से यहां पाई जाने वाली दोमट मिट्टी — जो रेत, गाद और चिकनी मिट्टी का संतुलित मिश्रण होती है — किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। इसकी जलधारण क्षमता और भुरभुरी बनावट इसे न सिर्फ फसलों की खेती के लिए उपयुक्त बनाती है, बल्कि निर्माण कार्यों में भी इसका उपयोग होता है। मेरठवासियों के लिए यह जानना बेहद रोचक होगा कि उनकी ज़मीन की यह दोमट परत न केवल भोजन उगाने में, बल्कि घरों की दीवारें और ईंटें बनाने में भी उपयोगी रही है। आइए, इस लेख में विस्तार से जानते हैं मेरठ की इस अनमोल मिट्टी के विविध पहलुओं के बारे में।
इस लेख में हम पहले समझेंगे कि मेरठ में पाई जाने वाली दोमट मिट्टी की रचना और उसकी वैज्ञानिक विशेषताएँ क्या हैं। फिर हम जानेंगे कि कौन-कौन सी फसलें और सब्ज़ियाँ इस मिट्टी में सबसे अच्छी तरह उगाई जाती हैं। इसके बाद, हम चर्चा करेंगे कि मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने के लिए कौन-कौन से जैविक उपाय किए जाते हैं और इसे दोमट में बदलने की प्रक्रिया क्या होती है। अंत में, हम देखेंगे कि दोमट मिट्टी कृषि के अलावा किस प्रकार से निर्माण क्षेत्र — जैसे ईंट निर्माण और भवन निर्माण — में उपयोग की जाती है।

मेरठ की दोमट मिट्टी का स्वरूप, रचना और वैज्ञानिक गुणधर्म

मेरठ की मिट्टी मुख्य रूप से दोमट श्रेणी में आती है, जिसे वैज्ञानिक वर्गीकरण में AES-1 के अंतर्गत रखा गया है। यह मिट्टी तीन प्रमुख अवयवों — रेत, गाद और चिकनी मिट्टी — से मिलकर बनी होती है, जिससे इसकी बनावट संतुलित और पौधों के लिए उपयुक्त बनती है। इसके अलावा इसमें प्राकृतिक ह्यूमस (Humus) भी मौजूद होता है, जो इसे और अधिक उपजाऊ बनाता है। इस मिट्टी की जलधारण क्षमता (water retention capacity) उच्च होती है, जिससे यह अधिक समय तक नमी को संजोए रखती है, और यही गुण इसे सिंचाई-प्रधान खेती के लिए श्रेष्ठ बनाता है। इसके पीएच स्तर की बात करें तो यह सामान्यतः 7.5 से 8.5 के बीच होता है, जो अधिकांश फसलों के लिए उपयुक्त रासायनिक वातावरण प्रदान करता है। मिट्टी की यह संरचना उसे हवा और जल का अच्छा संचारक बनाती है, जिससे जड़ों को पोषण और ऑक्सीजन दोनों मिलते हैं। यही वजह है कि कृषि वैज्ञानिक इस क्षेत्र की मिट्टी को "आदर्श कृषि मृदा" मानते हैं।

इसके अतिरिक्त, यह मिट्टी ज़मीन की सतह पर नमी बनाए रखने में सहायक होती है, जिससे सूखे की स्थिति में भी पौधों की वृद्धि प्रभावित नहीं होती। इसकी संरचना पौधों की जड़ों को गहराई तक फैलने की अनुमति देती है। दोमट मिट्टी की बनावट ऐसी होती है कि इसमें बैक्टीरिया (bacteria) और सूक्ष्मजीवों का विकास बेहतर होता है, जो पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण में सहायक होते हैं। इसकी बनावट न तो बहुत सख्त होती है और न ही बहुत ढीली, जिससे यह खेती के लिए आदर्श बनती है।

दोमट मिट्टी में उपयुक्त फसलें और सब्ज़ियाँ: मेरठ की कृषि दृष्टि से महत्ता

मेरठ की दोमट मिट्टी में अनाज, दलहन, तिलहन, और सब्ज़ियाँ सभी प्रकार की फसलें सफलता से उगाई जाती हैं। गेहूं और गन्ना जैसे प्रमुख खाद्यान्न इस मिट्टी में बड़े पैमाने पर पैदा होते हैं। इसके अतिरिक्त, चना, सरसों, अरहर, और मूंग जैसी दलहनी फसलें भी अच्छे परिणाम देती हैं। सब्ज़ियों की बात करें तो इस मिट्टी में टमाटर, हरी मिर्च, भिंडी, खीरा, प्याज़, पालक, गाजर और बैंगन जैसी फसलें खूब होती हैं। विशेष रूप से रेतीली दोमट मिट्टी में जड़ वाली सब्ज़ियाँ जैसे मूली और गाजर अधिक अच्छे से उगती हैं, वहीं गाद दोमट में पत्तेदार और लता वाली सब्ज़ियाँ जैसे पालक और सेम की फली बेहतर होती हैं।

इसके अलावा आलू, शकरकंद, और लौकी जैसे मौसमी फसलें भी इस मिट्टी में अच्छी पैदावार देती हैं। मौसम और सिंचाई की स्थिति के अनुसार फसल चक्र (crop rotation) अपनाकर किसानों को उत्पादन और मुनाफा दोनों में सुधार मिलता है। दोमट मिट्टी की इस बहुउपयोगिता के कारण मेरठ कृषि मंडियों में विभिन्न उत्पादों की निरंतर आपूर्ति बनाये रखता है। यहां की कृषि प्रणाली में इस मिट्टी की भूमिका अत्यंत निर्णायक मानी जाती है।

दोमट मिट्टी को उपजाऊ बनाए रखने के उपाय और जैविक सुधार की प्रक्रिया

यद्यपि दोमट मिट्टी स्वाभाविक रूप से उपजाऊ होती है, परंतु समय के साथ इसकी उर्वरता बनाए रखना आवश्यक होता है। इसके लिए जैविक पदार्थों को मिट्टी में नियमित रूप से मिलाना महत्वपूर्ण है। इन पदार्थों में टूटे हुए पत्ते, भूसा, गोबर की खाद, और तैयार कम्पोस्ट शामिल हैं। इन्हें हर फसल चक्र के बाद मिट्टी की ऊपरी परत में मिलाया जाता है। इस प्रक्रिया को मिट्टी संशोधन कहा जाता है, और यह मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों और पोषक तत्वों को सक्रिय बनाए रखने में मदद करता है। जैविक अपघटन से उत्पन्न तत्व मिट्टी को भुरभुरी बनाते हैं, जिससे पौधों की जड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन और नमी मिलती है।

अगर मिट्टी में कार्बनिक (carbonic) पदार्थों की मात्रा निरंतर बनी रहे, तो इसकी संरचना और उर्वरता वर्षों तक स्थिर रह सकती है। इसमें उपयोग की गई कम्पोस्ट (compost) में नारियल की भूसी, सूखे फूल और खाद्य अपशिष्ट जैसी चीजें शामिल हो सकती हैं। यह प्रक्रिया न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाती है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होती है। जैविक सुधार खेती की लागत को घटाता है और मिट्टी को रासायनिक प्रभावों से बचाता है।

दोमट मिट्टी के पारंपरिक उपयोग: ईंट और भवन निर्माण में योगदान

मेरठ जैसे क्षेत्रों में, दोमट मिट्टी केवल कृषि में ही नहीं, बल्कि निर्माण कार्यों में भी उपयोग होती है। यह मिट्टी नरम और लचीली होने के कारण ईंटों के निर्माण के लिए उपयुक्त मानी जाती है। पारंपरिक तौर पर, दोमट मिट्टी से बनी ईंटें अधिक मजबूत और टिकाऊ होती हैं। इसके अलावा, भवनों की दीवारों में सीलन रोकने के लिए भी दोमट मिट्टी का उपयोग होता है। दीवारों की भीतरी सतहों पर इसकी पतली परत लगाने से नमी नियंत्रण में रहती है। चूने के साथ मिलाकर दोमट मिट्टी को एक कठोर निर्माण सामग्री के रूप में भी प्रयोग किया जाता है, जो स्थानीय निर्माण में आज भी जारी है।

पुराने समय से लेकर आज तक गाँवों में कच्चे घरों की दीवारें दोमट मिट्टी से बनाई जाती रही हैं। यह मिट्टी प्राकृतिक तापमान नियंत्रण में भी सहायक होती है — जिससे गर्मियों में ठंडक और सर्दियों में गर्माहट बनी रहती है। इसके अलावा, पारंपरिक भट्ठों में ईंटों को पकाने के लिए भी यही मिट्टी सबसे उपयुक्त मानी जाती है। इससे यह स्पष्ट होता है कि दोमट मिट्टी केवल कृषि ही नहीं बल्कि ग्रामीण जीवन और स्थानीय कारीगरी की आत्मा भी रही है।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/2s4fpadb 
https://tinyurl.com/47ffv5cs 

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