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बाड़मेर, जैसलमेर और बीकानेर जैसे राजस्थान के रेगिस्तानी ज़िलों की रेत भरी भूमि को देखकर यह कल्पना करना कठिन लगता है कि यहाँ भी हरी-भरी फसलें लहराती होंगी। किंतु यह सत्य है कि जहां पानी की एक-एक बूंद के लिए संघर्ष होता है, वहीं परम्परागत ज्ञान और आधुनिक तकनीकें मिलकर खेती को न केवल संभव बनाती हैं, बल्कि उसे लाभकारी भी बनाती हैं। दुनिया के अन्य सूखे क्षेत्रों की भांति भारत के थार मरुस्थल में भी कृषि की अनोखी रणनीतियाँ अपनाई जाती हैं, जो यह दर्शाती हैं कि “जहाँ चाह वहाँ राह” सिर्फ कहावत नहीं, बल्कि एक कृषि-यथार्थ है।
इस लेख में हम जानेंगे कि रेगिस्तान जैसे शुष्क और कठिन पर्यावरण में कृषि कैसे की जाती है। लेख को पाँच उपविषयों में बाँटा गया है: पहला, रेगिस्तानी कृषि का ऐतिहासिक व आधुनिक परिप्रेक्ष्य; दूसरा, जल संकट और सिंचाई तकनीकों की भूमिका; तीसरा, ज़ेरोफाइट पौधों का महत्व; चौथा, रेगिस्तानी मिट्टी की विशेषताएँ; और पाँचवाँ, आधुनिक तकनीकी खोजों की मदद से रेगिस्तान में खेती के नए रास्ते।
रेगिस्तान में कृषि: प्राचीन सभ्यताओं से आधुनिक प्रयासों तक
मानव सभ्यता के इतिहास में कृषि का प्रारंभ नदी घाटियों से हुआ, लेकिन जब सिंचित क्षेत्र रेगिस्तानों से घिरे थे, तब भी मनुष्य ने कठिन परिस्थितियों में खेती की। प्राचीन असीरिया, मिस्र, इज़राइल और सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक हिस्से रेगिस्तानी या अर्ध-रेगिस्तानी क्षेत्रों में स्थित थे, जहाँ सिंचाई और जल संचयन की जटिल पद्धतियाँ अपनाकर खेती संभव बनाई गई। उदाहरण के लिए, नेगेव मरुस्थल (Negev Desert) में लगभग 5000 ईसा पूर्व कृषि की जाती थी। वहाँ के पुरातात्त्विक प्रमाण यह दिखाते हैं कि जल प्रबंधन और छोटे तालाबों का निर्माण कर वर्षा जल को संचित किया जाता था।
वर्तमान में रेगिस्तानी कृषि के उत्कृष्ट उदाहरण दक्षिणी कैलिफोर्निया की इंपीरियल वैली, इज़राइल के नगीव क्षेत्र, सऊदी अरब की जलसिंचित खेती और ऑस्ट्रेलिया के सूखे प्रदेशों में दिखाई देते हैं। इन क्षेत्रों में भीषण गर्मी और पानी की कमी के बावजूद कृषि की उन्नत तकनीकों के माध्यम से उत्पादन किया जा रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि रेगिस्तानी कृषि कोई नई अवधारणा नहीं है, बल्कि यह हजारों वर्षों से विकसित होती एक कुशल प्रणाली है।
इतिहास यह भी दर्शाता है कि इन सभ्यताओं ने न केवल सिंचाई के साधन विकसित किए, बल्कि फसल चक्र, जल-ग्रहण तकनीकों और सामुदायिक जल प्रबंधन के मॉडल भी अपनाए। मिस्र में नील नदी की बाढ़ को नियंत्रित कर खेती होती थी, जबकि असीरिया में पत्थरों से बने जल चैनल प्रणाली का प्रयोग हुआ। आज के नवाचार, जैसे सौर ऊर्जा से संचालित जल पंप, इस ऐतिहासिक ज्ञान को आधुनिक दृष्टिकोण से जोड़ते हैं। इससे यह प्रमाणित होता है कि पारंपरिक अनुभव और आधुनिक विज्ञान का मेल ही रेगिस्तानी कृषि की स्थायित्व की कुंजी है।
जल की चुनौती और सिंचाई की आधुनिक तकनीकें
रेगिस्तान की सबसे बड़ी चुनौती है — जल की कमी। वर्षा की न्यूनतम मात्रा, अत्यधिक वाष्पीकरण और भूमिगत जलस्तर का गहराई में होना, सिंचाई के लिए विशेष रणनीति की मांग करता है। पहले समय में किसान जल संचयन, टांके, नाड़ियाँ और कुओं पर निर्भर रहते थे, लेकिन आज विज्ञान ने इस संकट से निपटने के अनेक उपाय खोज लिए हैं।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली (Drip Irrigation) का विकास रेगिस्तानी कृषि के लिए वरदान साबित हुआ है। यह तकनीक पौधों की जड़ों तक पानी की बूंदें पहुँचाती है, जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती और सिंचाई अधिक प्रभावी होती है। इसके साथ-साथ जल पुनः उपयोग (Water Recycling) और समुद्री जल के अलवणीकरण (Desalination) की तकनीकों ने खारे और अनुपयोगी जल को कृषि योग्य बनाया है। इज़राइल और सऊदी अरब जैसे देश इन नवाचारों के कारण जल संकट से जूझते हुए भी कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर पा रहे हैं।
इन तकनीकों के साथ-साथ कुछ क्षेत्रों में रेन हार्वेस्टिंग ग्रीनहाउस, सौर ऊर्जा से चलने वाली डिस्टिलेशन इकाइयाँ, और एयर-टू-वाटर जनरेटर (Air to Water generator) जैसे अभिनव उपायों को भी अपनाया गया है। इनसे हवा की नमी से पानी एकत्र कर उसे सिंचाई में प्रयोग किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त, कंप्यूटर आधारित स्मार्ट सेंसर फसलों की नमी आवश्यकता को पहचानते हैं और उसी अनुसार जल आपूर्ति करते हैं। ऐसे उपाय पानी की बर्बादी को रोकने और उच्च उत्पादकता सुनिश्चित करने में क्रांतिकारी भूमिका निभा रहे हैं।
ज़ेरोफाइट पौधे: रेगिस्तान की जीवित उम्मीद
रेगिस्तानी कृषि केवल तकनीकों पर ही नहीं, बल्कि ऐसे पौधों पर भी निर्भर करती है जो कम पानी में जीवित रह सकें। इन पौधों को ज़ेरोफाइट (Xerophyte) कहा जाता है। यह पौधे अत्यंत शुष्क और गरम वातावरण में भी फलीभूत होते हैं। इनकी जड़ें गहराई तक जाती हैं, पत्तियाँ कांटे में परिवर्तित हो जाती हैं ताकि नमी का नुकसान कम से कम हो, और उनके तने पानी को लंबे समय तक संग्रह कर सकते हैं।
कैक्टि (Cacti), अनानास (Pineapple) और कुछ जिम्नोस्पर्म पौधे ज़ेरोफाइट्स के प्रमुख उदाहरण हैं। इन पौधों की जैविक संरचना उन्हें ज़ेरोमोर्फिक बनाती है — अर्थात ऐसे पौधे जो शुष्कता के समय अपनी चयापचय क्रिया को लगभग रोक देते हैं, और फिर जल उपलब्ध होते ही पुनः सक्रिय हो जाते हैं। इस अनुकूलन के कारण ये पौधे रेगिस्तानी कृषि के मूल आधार बन चुके हैं, जिनका उपयोग हरी-भरी खेती की दिशा में किया जा सकता है।
इन पौधों में अक्सर सी ए एम (Crassulacean Acid Metabolism) जैसे विशेष चयापचय पथ पाए जाते हैं, जो रात्रि में कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण कर दिन में प्रकाश संश्लेषण करते हैं — जिससे पानी की बचत होती है। इसके अलावा, कुछ ज़ेरोफाइट पौधे भूमि की नमी को बनाए रखने वाले माइक्रो-हैबिटैट भी निर्मित करते हैं, जो आसपास की वनस्पतियों को पनपने में सहायक होते हैं। ये पौधे रेगिस्तानी कृषि के लिए न केवल फसल रूप में उपयोगी हैं, बल्कि पारिस्थितिकी तंत्र को भी संतुलित रखते हैं।
रेगिस्तानी मिट्टी की विशेषताएँ और उसकी कृषि उपयोगिता
रेगिस्तान की मिट्टी अपनी रासायनिक और भौतिक विशेषताओं के कारण अन्य मिट्टियों से भिन्न होती है। यह मिट्टी सामान्यतः पतली, रेतीली, चट्टानी और भूरे रंग की होती है। इसमें जैविक पदार्थों की मात्रा कम होती है, और पानी की धारण क्षमता भी न्यून होती है। बारिश होने पर यह मिट्टी जल को तुरंत अवशोषित कर लेती है, परंतु जल्द ही सूख जाती है।
मिट्टी के ये गुण उसके जैविक (जीवित) और अजैविक (निर्जीव) घटकों को प्रभावित करते हैं। तापमान में परिवर्तन या जल की उपलब्धता मिट्टी में उपस्थित वनस्पतियों को सीधे प्रभावित करती है। आधुनिक कृषि वैज्ञानिक अब ऐसे उपाय विकसित कर रहे हैं जिससे रेगिस्तानी मिट्टी को पोषण और नमी प्रदान की जा सके। इसमें जैविक खादों का प्रयोग, जल संरक्षित करने वाले पॉलिमर का मिश्रण, और मिट्टी के ढाँचे को बदलने वाली तकनीकों का योगदान शामिल है।
इसके अतिरिक्त, बायो-चार (biochar) और कम्पोस्ट (Compost) आधारित मिट्टी सुधार, जल धारण क्षमता को बढ़ाने में उपयोगी साबित हुए हैं। कुछ परियोजनाओं में सूक्ष्मजीवों की मदद से मिट्टी की जैविक क्रियाओं को पुनर्जीवित किया जा रहा है, जिससे उसमें पोषण क्षमता बढ़ती है। साथ ही, रेगिस्तानी मिट्टी के सौर-ग्रहण गुणों का अध्ययन कर तापीय नियंत्रण की नई संभावनाएँ भी देखी जा रही हैं। इन सभी प्रयासों से यह प्रमाणित होता है कि रेगिस्तानी मिट्टी को भी संवर्धित कर उपजाऊ बनाया जा सकता है।
रेगिस्तान में कृषि की नवीनतम तकनीकी खोजें
आज की वैज्ञानिक प्रगति ने रेगिस्तानी कृषि को नई ऊँचाई दी है। तकनीकी स्टार्टअप्स द्वारा विकसित नवाचारों ने खेती को और भी अधिक प्रभावी और टिकाऊ बना दिया है। उदाहरण के लिए, तुर्की के स्टार्टअप सॉइल-जेल (Soil-Gel) ने एक ऐसा हाइड्रोजेल (hydrogel) विकसित किया है जो जल को लंबे समय तक रोककर धीरे-धीरे पौधों की जड़ों तक पहुँचाता है। यह नैनो एडिटिव्स (nano additives) की सहायता से मिट्टी की पोषकता को भी बढ़ाता है।
इसी प्रकार, डच स्टार्टअप सॉलिड वॉटर (SolidWater) द्वारा विकसित पोटेशियम पॉली-एक्रिलेट आधारित तकनीक, पौधों को एक स्थायी जल स्रोत प्रदान करती है, जिससे सिंचाई का समय अंतराल बढ़ जाता है। इन तकनीकों से रेगिस्तान की कठोर ज़मीन भी उपजाऊ बन रही है। यह खोजें कृषि को केवल उत्पादन तक सीमित नहीं रखतीं, बल्कि जल संरक्षण, पर्यावरणीय संतुलन और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम हैं।
इनके अतिरिक्त, सेंसिंग तकनीकों पर आधारित परिशुद्ध कृषि (Precision Agriculture) प्रणालियाँ भी तेजी से अपनाई जा रही हैं। कुछ स्टार्टअप्स ए आई (AI) - सक्षम जल आपूर्ति मॉड्यूल (Efficient water supply module) और ड्रोन आधारित फसल निगरानी प्रणाली विकसित कर रहे हैं, जिससे कम संसाधनों में उच्च उत्पादन संभव हो रहा है। जापान, इज़राइल और भारत में रेगिस्तानी क्षेत्रों में वर्टिकल फार्मिंग और कंटेनर आधारित खेती जैसे मॉडल भी उभर रहे हैं, जो पारंपरिक कृषि की सीमाओं को पार कर रहे हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/4ean7y4z
https://tinyurl.com/4buu4tyz
https://tinyurl.com/3szbdsn7
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