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मेरठवासियो, क्या आपने कभी कल्पना की है कि कोई जीव मृत्यु जैसी स्थिति से भी वापस जीवन में लौट सकता है? यह सुनने में किसी साइंस फिक्शन जैसी बात लग सकती है, लेकिन विज्ञान की दुनिया में कुछ सूक्ष्मजीव — विशेष रूप से बैक्टीरिया — इस असंभव को संभव कर दिखाते हैं। हमारी आँखों से दिखाई न देने वाले ये छोटे जीव वैज्ञानिकों के लिए लंबे समय से एक रहस्य रहे हैं। पर अब, नवीनतम शोधों से यह स्पष्ट हो गया है कि कुछ बैक्टीरिया अपने जीवन को हाइबरनेट अवस्था में रोक सकते हैं और अनुकूल परिस्थितियाँ मिलने पर वर्षों बाद फिर से सक्रिय हो सकते हैं। यह खोज न केवल जैवविज्ञान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि मेरठ जैसे शहरों के लिए भी जहाँ आधुनिक चिकित्सा सुविधाएँ दिन-ब-दिन विकसित हो रही हैं। जब एंटीबायोटिक (antibiotic) प्रतिरोध जैसी जटिल समस्याएँ उभर रही हों, ऐसे में बैक्टीरिया का यह व्यवहार हमें चिकित्सा पद्धति की नई दिशा की ओर संकेत देता है। यह हमें यह सोचने पर विवश करता है — क्या हम जीवन और मृत्यु की सीमाओं को जितना समझते हैं, वह उससे कहीं ज़्यादा जटिल है?
आज हम इस लेख में जानेंगे कि कैसे कुछ बैक्टीरिया मृत्यु के समान स्थिति से वापस जीवित हो सकते हैं। फिर हम समझेंगे कि ये बैक्टीरिया निष्क्रिय अवस्था में भी पर्यावरण के संकेतों को कैसे पहचानते हैं। इसके बाद हम कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुए महत्वपूर्ण शोध और इंटीग्रेट-एंड-फायर (Integrate-and-Fire) तंत्र को समझेंगे। हम यह भी जानेंगे कि कैसे यह निष्क्रियता बैक्टीरिया को एंटीबायोटिक दवाओं से बचने में मदद करती है। अंत में, हम उस एंजाइम पर चर्चा करेंगे जो बैक्टीरिया की हाइबरनेशन प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, और इसका भविष्य की दवा निर्माण में क्या योगदान हो सकता है।
कैसे कुछ बैक्टीरिया मृत्यु जैसी स्थिति से लौट सकते हैं?
कुछ बैक्टीरिया (bacteria) अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ऐसी अनूठी क्षमता रखते हैं, जिससे वे अपने चयापचय और सभी जीवन क्रियाओं को पूरी तरह रोक देते हैं। इस स्थिति को वैज्ञानिक भाषा में "बीजाणु अवस्था" कहा जाता है। जब वातावरण में अत्यधिक गर्मी, पोषण की कमी या अन्य गंभीर तनाव होते हैं, तो बैक्टीरिया खुद को एक सख्त आवरण से ढँक लेते हैं और पूर्ण निष्क्रियता में चले जाते हैं। बीजाणु बनने की यह प्रक्रिया उन्हें न केवल जीवित रखती है, बल्कि वे अंतरिक्ष जैसी चरम स्थितियों, अत्यधिक दबाव, और उच्च तापमान में भी वर्षों तक जीवित रह सकते हैं। इस अवस्था में ये सूक्ष्म जीव मृत प्रतीत होते हैं, लेकिन जैसे ही पर्यावरण अनुकूल होता है, ये कुछ ही मिनटों में पुनः सक्रिय होकर जीवन की सामान्य प्रक्रिया आरंभ कर देते हैं। यह प्रक्रिया जीव विज्ञान में मृत्यु और जीवन के बीच की रेखा को चुनौती देती है।
सबसे अद्भुत बात यह है कि यह प्रक्रिया बिना किसी मशीनी या कृत्रिम हस्तक्षेप के होती है—एक जैविक स्वचालित प्रणाली की तरह। बैक्टीरिया की यह क्षमता यह दर्शाती है कि जीवन की परिभाषा सिर्फ सक्रिय क्रियाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि कभी-कभी पूर्ण शांति में भी जीवन पलता रहता है। वैज्ञानिक इसे क्रिप्टोबायोसिस (Cryptobiosis) से भी जोड़कर देखते हैं, जिसमें जीव इतने लंबे समय तक निष्क्रिय रहते हैं कि वे अमर जैसे प्रतीत होते हैं।
बीजाणु अवस्था में भी चेतना: पर्यावरण संकेतों की पहचान की क्षमता
बीजाणु अवस्था को लंबे समय तक केवल एक निष्क्रिय अवस्था माना जाता था, जिसमें कोई संज्ञान या प्रतिक्रिया संभव नहीं थी। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि बीजाणु, मृत प्रतीत होने के बावजूद, अपने आसपास के संकेतों को पहचानने में सक्षम होते हैं। वे आसपास की दशाओं का मूल्यांकन करते हैं और यह तय करते हैं कि अभी जागना है या नहीं। बीजाणु एक प्रकार के संधारित्र (capacitor) की तरह कार्य करते हैं, जो बाहरी संकेतों से मिलने वाली विद्युत-रासायनिक ऊर्जा को संचित कर रखते हैं। जब यह ऊर्जा पर्याप्त मात्रा में एकत्र हो जाती है, तो बीजाणु निर्णय लेते हैं कि अब समय आ गया है फिर से सक्रिय होने का। इस क्षमतावान ‘सूक्ष्म चेतना’ ने वैज्ञानिकों को चौंका दिया है, क्योंकि यह दिखाता है कि जीवन की सबसे जटिल प्रक्रियाएं सबसे सूक्ष्म स्तर पर भी चल रही होती हैं।
कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का शोध और "इंटीग्रेट एंड फायर" तंत्र
यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया, सैन डिएगो (University of California, San Diego) के वैज्ञानिकों ने हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन में यह साबित किया है कि निष्क्रिय बीजाणु भी पर्यावरणीय आदानों को समझ सकते हैं। उन्होंने बैक्टीरिया बैसिलस सबटिलिस (Bacillus subtilis) पर शोध करते हुए यह सिद्ध किया कि बीजाणु अल्पकालिक पर्यावरण संकेतों को पहचानते हैं, भले ही वे संकेत जागने के लिए पर्याप्त न हों। शोधकर्ताओं ने पाया कि बीजाणु अपने भीतर पोटैशियम आयनों के प्रवाह के माध्यम से इंटीग्रेट-एंड-फायर तंत्र का उपयोग करते हैं। इसका अर्थ है कि वे हर छोटे संकेत पर थोड़ा-थोड़ा पोटैशियम मुक्त करते हैं और धीरे-धीरे तय करते हैं कि क्या यह संकेत पर्याप्त मात्रा में दोहराए जा रहे हैं। जैसे ही यह सीमा पार होती है, बीजाणु निष्क्रियता से बाहर आ जाते हैं। इस मॉडल (model) को गणितीय आधार पर भी सिद्ध किया गया है, जिससे यह जैविक प्रक्रिया और अधिक प्रमाणिक बनती है।
यह तंत्र न्यूरॉन्स (neurons) की कार्यप्रणाली से मिलता-जुलता है, जिसमें बार-बार मिलने वाले संकेतों को जोड़कर एक बिंदु पर प्रतिक्रिया दी जाती है। इससे स्पष्ट होता है कि सूक्ष्मतम जैविक संरचनाएँ भी गणनात्मक व्यवहार प्रदर्शित कर सकती हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह प्रणाली अन्य सूक्ष्मजीवों में भी पाई जा सकती है, जिससे सूक्ष्मजीवों की बायोफिज़िक्स को लेकर हमारी समझ और गहराई तक जा सकती है।
एंटीबायोटिक प्रतिरोध में निष्क्रियता की भूमिका
बैक्टीरिया की यह क्षमता, सिर्फ जीवविज्ञान तक ही सीमित नहीं है, इसका सीधा प्रभाव आधुनिक चिकित्सा पर भी पड़ता है। कई रोगजनक बैक्टीरिया जब एंटीबायोटिक दवाओं के संपर्क में आते हैं, तो वे अपने अस्तित्व को बचाने के लिए बीजाणु अवस्था में चले जाते हैं। इस अवस्था में वे दवाओं के प्रभाव से बच जाते हैं, और जब उपचार बंद हो जाता है, तो वे दोबारा सक्रिय होकर शरीर में संक्रमण फैला सकते हैं। यह प्रक्रिया एंटीबायोटिक प्रतिरोध के सबसे खतरनाक कारणों में से एक है। दवाओं से सुरक्षित बच जाने वाला यह सूक्ष्म अंश, पूरी चिकित्सा प्रणाली को असफल बना सकता है। इसलिए, वैज्ञानिक अब इस निष्क्रिय अवस्था को रोकने के लिए विशेष शोध कर रहे हैं ताकि बैक्टीरिया की यह ‘झूठी मृत्यु’ उनके खिलाफ इस्तेमाल की जा सके। इस चुनौती का एक और गंभीर पहलू यह है कि परंपरागत जांच विधियाँ इन निष्क्रिय बैक्टीरिया को पहचान नहीं पातीं। इससे डॉक्टरों को लगता है कि संक्रमण ठीक हो गया है, जबकि अंदर ही अंदर वह बैक्टीरिया अपनी वापसी की तैयारी कर रहा होता है। अतः इस प्रक्रिया को समझना और नियंत्रित करना अत्यंत आवश्यक हो जाता है, ताकि भविष्य की स्वास्थ्य प्रणालियाँ अधिक प्रभावशाली बन सकें।
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