भूख से लड़ते मेरठ: क्या हमारी खाद्य सुरक्षा योजनाएँ सच में काम कर रही हैं?

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30-07-2025 09:31 AM
भूख से लड़ते मेरठ: क्या हमारी खाद्य सुरक्षा योजनाएँ सच में काम कर रही हैं?

मेरठवासियो, क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश में जहाँ अन्न भंडारण के लिए बड़े-बड़े गोदाम हैं, वहीं करोड़ों लोग आज भी भूख से तड़पते हैं? हमारा मेरठ, जो न केवल गंगा-यमुना दोआब की उपजाऊ भूमि पर स्थित है, बल्कि एक समृद्ध कृषि परंपरा का भी वाहक है — वहां भी गरीब परिवारों की थाली अक्सर अधूरी ही रह जाती है। सवाल ये है कि जब हमारे पास खेती, संसाधन और योजनाएं हैं, तब भी भूख क्यों है? इस लेख में हम इसी सवाल की तह तक जाएंगे।

इस लेख में आज हम जानेंगे भारत में खाद्य सुरक्षा की वर्तमान स्थिति के बारे में, फिर भुखमरी और कुपोषण के आंकड़ों को समझेंगे। उसके बाद हम देखेंगे कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली और योजनाओं में क्या खामियाँ हैं, कृषि क्षेत्र की क्या समस्याएं हैं और अंत में जानेंगे कि भोजन की बर्बादी और सरकारी प्रयास इस पूरी लड़ाई को कैसे प्रभावित कर रहे हैं।

भारत में खाद्य सुरक्षा की वर्तमान स्थिति

भारत जैसे कृषि प्रधान देश में जहां हर साल करोड़ों टन (ton) अनाज की पैदावार होती है, वहां भूखमरी का होना एक विडंबना है। खाद्य सुरक्षा का तात्पर्य सिर्फ भोजन की उपलब्धता से नहीं, बल्कि पोषण और पहुँच से भी है। मेरठ जैसे क्षेत्रों में जहाँ खेती मुख्य जीविका है, वहां भी गरीब तबके को समय पर पौष्टिक भोजन मिलना एक चुनौती बना हुआ है। खाद्य सुरक्षा के तीन प्रमुख स्तंभ हैं — उत्पादन, पहुँच और पोषण। भारत ने उत्पादन में तो आत्मनिर्भरता हासिल की है, पर वितरण और पोषण के मोर्चे पर अभी भी हम पिछड़े हुए हैं। ज़्यादातर सरकारी योजनाएं अनाज देने तक सीमित हैं, जबकि पोषण सुरक्षा की बात कम ही होती है। मेरठ जैसे शहरी-ग्रामीण मिले-जुले क्षेत्रों में जहां निर्धन परिवारों की संख्या अधिक है, वहां बच्चों और महिलाओं को पर्याप्त पोषण नहीं मिल पाता।

भुखमरी और कुपोषण के आंकड़े

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्टों (reports) के अनुसार, भारत में लगभग 16% आबादी कुपोषण से ग्रस्त है। इनमें अधिकांश बच्चे और महिलाएं शामिल हैं। मेरठ के सरकारी अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में आने वाले मरीजों में भी कुपोषण के लक्षण साफ देखे जा सकते हैं। यूनिसेफ (UNICEF) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत की 53% प्रजनन-आयु की महिलाएं एनीमिया (anemia) से ग्रस्त हैं। यह आँकड़े इस ओर इशारा करते हैं कि केवल अनाज देना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि स्वास्थ्य और पोषण की दृष्टि से संतुलित भोजन भी आवश्यक है। मेरठ में भी बाल विकास परियोजनाओं के अधीन चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति चिंताजनक है। कई जगह न तो पोषाहार नियमित मिल रहा है और न ही मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है।

खाद्य वितरण प्रणाली की खामियाँ

भारत की सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) विश्व की सबसे बड़ी योजनाओं में से एक है, लेकिन इसके ज़मीनी हालात उतने संतोषजनक नहीं हैं। कई राशन दुकानों पर मिलने वाले खाद्यान्न की गुणवत्ता और मात्रा दोनों पर सवाल उठते रहे हैं। लाभार्थियों को कभी समय पर राशन नहीं मिलता, तो कभी उनका नाम सूची से बाहर कर दिया जाता है। ग्रामीण बनाम शहरी असमानता भी खाद्य सुरक्षा को प्रभावित करती है। मेरठ के शहरी क्षेत्रों में कार्डधारकों (cardholders) को फिर भी बेहतर सेवा मिल जाती है, पर ग्रामीण क्षेत्रों में तकनीकी खामियों, आधार लिंक न होने या भ्रष्टाचार के कारण पात्र लोगों को भी लाभ नहीं मिल पाता। योजनाओं का क्रियान्वयन केवल कागज़ों पर न हो, इसके लिए नियमित निरीक्षण और पारदर्शिता जरूरी है।

कृषि क्षेत्र की समस्याएं और उनका प्रभाव

मेरठ की पहचान उसकी उपजाऊ ज़मीन और कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था से जुड़ी है। लेकिन यहां भी कृषि संकट साफ देखा जा सकता है। सिंचाई की सीमित सुविधा, मानसून पर निर्भरता, और छोटे किसानों की पूंजी की कमी जैसे मुद्दे खाद्यान्न उत्पादन को प्रभावित करते हैं। भूमि स्वामित्व में असमानता, महंगे बीज और कीटनाशक, और कृषि ऋणों की जटिल प्रक्रिया किसानों की रीढ़ तोड़ देती है। मेरठ ज़िले में भी कई किसान अब खेती छोड़कर मजदूरी या दूसरे छोटे-मोटे काम करने को विवश हैं। जब खेती कमजोर होती है, तो खाद्य सुरक्षा भी चरमराने लगती है।

खाद्य बर्बादी: एक अदृश्य संकट

भारत में प्रतिवर्ष लगभग 67 मिलियन टन (million ton) खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है। शहरों में भी शादी-ब्याह, रेस्टोरेंट (restaurant) और सब्ज़ी मंडियों में भोजन की भारी बर्बादी देखी जाती है। यह विडंबना ही है कि एक ओर कुछ लोग भोजन के अभाव में जी रहे हैं, और दूसरी ओर अनगिनत टन खाना यूँ ही फेंक दिया जाता है। सरकारी गोदामों में खराब भंडारण व्यवस्था, अनियमित ट्रांसपोर्ट (transport), और खराब प्रबंधन इस बर्बादी के प्रमुख कारण हैं। मेरठ में स्थित एफसीआई (FCI) गोदामों और स्थानीय मंडियों में भी अक्सर अनाज के सड़ने की खबरें आती हैं। इसके अलावा, हमारे घरों में भी थालियों में बचा खाना एक बड़ा कारण है। अगर हम सब मिलकर थोड़ा-थोड़ा बचाएं, तो बड़ी संख्या में लोगों का पेट भरा जा सकता है।

सरकार की योजनाएं और उनकी सीमाएं

सरकार ने लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (Targeted Public Distribution System), एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS), मिड-डे मील (Mid Day meal), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम , और पोषण (POSHAN) अभियान जैसी योजनाएं शुरू की हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य था कि गरीब और वंचित वर्गों को पोषक भोजन मिले और कोई भूखा न रहे। लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और कहती है। कई बार देखा गया है कि मिड-डे मील योजना के तहत बच्चों को भोजन की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती या समय पर खाना नहीं मिलता। एकीकृत बाल विकास सेवा (ICDS) केंद्रों पर पोषण आहार की आपूर्ति अनियमित रहती है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए-NFSA)  के तहत मिलने वाला राशन भी सभी तक नहीं पहुंचता। इन योजनाओं की विफलता के पीछे प्रमुख कारण हैं – बजट में कटौती, वितरण में भ्रष्टाचार, निगरानी की कमी और आमजन में जागरूकता का अभाव। अगर इन योजनाओं को ईमानदारी से लागू किया जाए और आम नागरिकों को भी इसमें भागीदार बनाया जाए, तो निश्चित ही बदलाव संभव है।

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