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मेरठ सिर्फ़ एक शहर नहीं, कहानियों की ज़मीन है, और उन्हीं कहानियों को कैमरे में क़ैद करने की परंपरा की शुरुआत यहीं से हुई थी। आज जब हम हर साल 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाते हैं, तो यह सिर्फ़ लाइट और कैमरे का उत्सव नहीं है। यह उन लोगों को याद करने का दिन है जिन्होंने तस्वीरों को केवल दृश्य नहीं, बल्कि संवेदना का माध्यम बनाया। और ऐसे लोगों में लाला दीन दयाल का नाम स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाना चाहिए - एक ऐसे इंसान ने, जो मेरठ की मिट्टी से निकला, लेकिन उसकी नज़रों ने पूरे भारत को देख लिया। यह वही धरती है जहाँ 1844 में सरधना में जन्मे लाला दीन दयाल ने भारत में फोटोग्राफी को न सिर्फ़ तकनीक और कला के रूप में स्थापित किया, बल्कि उसे इतिहास, संस्कृति और पहचान से जोड़ा। उस दौर में जब कैमरा बहुत कम लोगों के पास होता था, दीन दयाल ने भारत की रियासतों, मंदिरों, महलों और आम ज़िंदगी को अपने लेंस से इस तरह सहेजा कि वे तस्वीरें आज भी इतिहास के ज़िंदा दस्तावेज़ की तरह देखी जाती हैं। उन्होंने केवल दृश्य नहीं कैद किए, बल्कि समय को थाम लिया - ऐसे समय को, जो आज़ादी से पहले के भारत की तहज़ीब, सत्ता और साधारण जीवन को एक साथ दिखाता है। उनकी बनाई तस्वीरों ने भारत के सौंदर्य और विविधता को दुनिया के सामने रखा, और यह साबित किया कि मेरठ जैसी जगहों से निकली प्रतिभा भी पूरे भारत की छवि बदल सकती है।
इस लेख की शुरुआत हम मेरठ के लाला दीन दयाल से करेंगे, जिन्होंने फोटोग्राफी को राजसी शौक से आगे बढ़ाकर इतिहास दर्ज करने का माध्यम बनाया। फिर, जानेंगे कैसे सेसिल बीटन (Cecil Beaton), मार्गरेट बोर्क वाइट (Margaret Bourke-White), हेनरी कार्टियर ब्रेसन (Henri Cartier-Bresson) और स्टीव मैककरी (Steve McCurry) जैसे विदेशी फोटोग्राफरों ने भारत की छवि को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया। इसके बाद बात करेंगे मेरठ के युवाओं की, जिनके लिए फोटोग्राफी अब एक उभरता हुआ प्रोफेशन (profession) है, शादी, विज्ञापन और डिजिटल मीडिया (digital media) में अवसरों के साथ। अंत में चर्चा होगी कि तकनीक के साथ-साथ रचनात्मक दृष्टिकोण और संवेदनशीलता कैसे एक फोटोग्राफर को पहचान दिलाते हैं।
फोटोग्राफी की ऐतिहासिक विरासत: लाला दीन दयाल का योगदान
मेरठ के सरधना में जन्मे लाला दीन दयाल भारत के पहले पेशेवर फोटोग्राफर माने जाते हैं, जिन्होंने न सिर्फ़ कैमरे का इस्तेमाल एक तकनीक के रूप में किया, बल्कि उसे संस्कृति और इतिहास को संजोने का माध्यम भी बनाया। 19वीं सदी में जब कैमरा संभ्रांत वर्ग तक ही सीमित था और फोटोग्राफी एक मुश्किल विज्ञान मानी जाती थी, तब दीन दयाल ने रुड़की के थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज (Thomson Engineering College) से तकनीकी प्रशिक्षण लेने के बाद इंदौर में एक मामूली हेड ड्राफ्ट्समैन (head draftsman) की नौकरी से शुरुआत की। वहीं उन्होंने फोटोग्राफी को शौक के रूप में अपनाया। इंदौर के महाराजा तुकोजीराव होल्कर के प्रोत्साहन से दीन दयाल ने अपना पहला स्टूडियो ‘लाला दीन दयाल एंड संस’ 1868 में खोला। उन्होंने मंदिरों, महलों, स्मारकों, राजाओं, नवाबों और यहाँ तक कि प्रिंस ऑफ वेल्स (Prince of Wales) जैसी अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को अपने कैमरे में कैद किया। उन्होंने बुंदेलखंड के स्मारकों की 86 तस्वीरों वाला पोर्टफोलियो तैयार किया जिसे ‘मध्य भारत के प्रसिद्ध स्मारक’ के नाम से जाना गया। 1885 में उन्हें हैदराबाद के निज़ाम का दरबारी फोटोग्राफर बनाया गया और उसी वर्ष उन्हें भारत के वायसराय व बाद में रानी विक्टोरिया (Queen Victoria) का आधिकारिक फोटोग्राफर नियुक्त किया गया। उन्होंने महिलाओं के लिए अलग स्टूडियो ‘ज़नाना’ भी स्थापित किया, जिसे एक ब्रिटिश महिला संचालित करती थीं, यह उस दौर में एक क्रांतिकारी विचार था। लाला दीन दयाल ने साबित किया कि मेरठ सिर्फ़ विद्रोहियों की भूमि नहीं, बल्कि संवेदनशील रचनाकारों की भी जन्मभूमि है।

जब विदेशी कैमरों ने भारत को देखा: बीटन से मैककरी तक
दीन दयाल के बाद, भारत की विविधता और ऐतिहासिक पलों को दुनिया तक पहुँचाने में कई प्रतिष्ठित विदेशी फोटोग्राफरों ने अहम भूमिका निभाई। इन फोटोग्राफरों ने भारत को सिर्फ़ एक दृश्य नहीं, बल्कि एक संवेदनशील अनुभव की तरह देखा और दिखाया। 1944 में ब्रिटिश सूचना मंत्रालय की ओर से सेसिल बीटन को भारत, बर्मा और चीन भेजा गया, जहाँ उन्होंने युद्धग्रस्त वातावरण के बीच भी जीवन की गरिमा और सुंदरता को कैमरे में उतारा। उन्होंने अपने अनुभवों को 'Indian Diary and Album' (भारतीय डायरी और एल्बम) नामक पुस्तक में संजोया। उनकी तस्वीरें न सिर्फ़ देखी जाती हैं, बल्कि महसूस की जाती हैं, चाहे वह धूल से भरे बर्मी गाँव हों या बंबई की युद्ध से अछूती भव्यता।
मार्गरेट बोर्क वाइट ने 1946 में गांधी जी की चरखा चलाते हुए जो तस्वीर ली, वह आज भी भारतीय स्वराज और आत्मनिर्भरता की सबसे सशक्त छवियों में गिनी जाती है। यह तस्वीर 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद LIFE (लाइफ़) पत्रिका की श्रद्धांजलि में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी। हेनरी कार्टियर ब्रेसन, जिन्हें आधुनिक फोटो-पत्रकारिता का जनक कहा जाता है, ने भारत में विभाजन, जनजीवन और गांधी जी के अंतिम संस्कार तक के दुर्लभ दृश्य कैमरे में कैद किए। उनकी छवियों में वह भारत नज़र आता है जो आत्मा से जिया गया। स्टीव मैककरी की तस्वीरों ने भारत की विविधता को रंगों और भावनाओं के साथ प्रस्तुत किया - कभी राजस्थान के रेत में तो कभी बनारस की गली में। उन्होंने कहा था कि “भारत ने मुझे दुनिया के किसी भी देश से ज्यादा जादू और कहानी दी” - और शायद यही कारण है कि उनकी तस्वीरें भारत को एक नए नजरिए से दुनिया के सामने रखती हैं।

मेरठ से लेकर मुंबई तक: फोटोग्राफी में करियर की नई राहें
आज का मेरठ, जहाँ दीन दयाल जैसे फोटोग्राफर ने शुरुआत की थी, अब एक नए युग में प्रवेश कर चुका है जहाँ फोटोग्राफी केवल शौक नहीं, बल्कि करियर (career) का सशक्त माध्यम बन चुका है। आज के युवा शादी, प्री-वेडिंग शूट (Pre-Wedding Shoot), फैशन इवेंट (Fashion Events), सोशल मीडिया कंटेंट (Social Media Content) और ट्रैवल डॉक्यूमेंट्री (Travel Documentary) जैसी परियोजनाओं में अपना भविष्य देख रहे हैं। शहर में स्टूडियोज़, कैमरा रेंटल (camera rental) सुविधाएं और ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स (online tutorials) की उपलब्धता ने इस क्षेत्र को और भी सुलभ बना दिया है। मेरठ के युवाओं के लिए अब सिर्फ़ लोकल फोटो स्टूडियो (local photo studio) तक सीमित रहना ज़रूरी नहीं है। वे अपनी तस्वीरें Shutterstock (शटरस्टॉक), Getty Images (गेट्टी इमेजेस), 500px जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म (online platform) पर बेच सकते हैं। साथ ही, विज्ञापन एजेंसियों, मीडिया हाउसेस (media houses) और फैशन इंडस्ट्री (fashion industry) में भी कुशल फोटोग्राफरों की माँग लगातार बढ़ रही है। फ्रीलांसिंग (Freelancing) भी इस क्षेत्र में एक बड़ा अवसर बन चुका है जहाँ व्यक्ति अपनी रचनात्मकता के साथ स्वतंत्रता का भी अनुभव करता है।

कैमरे से बने कॅरियर: कौशल, दृष्टि और तकनीक की ज़रूरत
फोटोग्राफी आज सिर्फ़ बटन दबाने की तकनीक नहीं रही, यह दृश्य भाषा की एक ऐसी कला बन गई है, जो किसी भी क्षण को कहानी में बदल सकती है। एक प्रभावशाली तस्वीर के पीछे महज़ एक क्लिक नहीं, बल्कि संवेदना, दृष्टिकोण और तकनीकी समझ का सामंजस्य होता है। किसी साधारण सी प्रतीत होने वाली चीज़ को भी असाधारण बनाकर दिखाने का हुनर ही एक फोटोग्राफर की सबसे बड़ी पहचान है। एक सफल फोटोग्राफर को रचना (composition), प्रकाश (lighting), फ्रेमिंग (framing), रंग संतुलन, और भावनात्मक जुड़ाव की गहरी समझ होनी चाहिए। साथ ही, अब डिजिटल कैमरों, ड्रोन, 360-डिग्री लेंस, और AI-आधारित एडिटिंग टूल्स (editing tools) के आने से इस पेशे ने तकनीकी रूप से भी छलांग लगाई है। जो पहले सिर्फ़ कैमरा थाम कर शादियों या आयोजनों की तस्वीरें खींचना माना जाता था, आज वो फोटोग्राफर डॉक्यूमेंट्रीज़ (documentaries), फ़ैशन शोज़ (fashion shows), विज्ञापन अभियानों और विज्ञान तक के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

फोटोग्राफी के क्षेत्र में सफल होने के लिए केवल रचनात्मक नज़रिया ही नहीं, बल्कि निरंतर अभ्यास, अनुशासन और एक पेशेवर दृष्टिकोण भी ज़रूरी है। भारत के टॉप संस्थानों, जैसे FTII पुणे, जामिया मिलिया इस्लामिया, YMCA दिल्ली, मणिपाल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेशन (Institute of Communication) और एशियन एकेडमी ऑफ फ़िल्म एंड टेलीविज़न (Asian Academy of Film and Television) - में आज प्रोफेशनल ट्रेनिंग (professional training) की सुविधाएँ उपलब्ध हैं, जो तकनीक और दृष्टि दोनों को आकार देती हैं। फोटोग्राफी अब न सिर्फ़ एक कला है, बल्कि आत्म-अभिव्यक्ति (self-expression), संवाद (communication), और कभी-कभी तो सामाजिक बदलाव का माध्यम भी बन गई है। यदि आपके पास चीज़ों को एक अलग तरह से देखने की नज़र है, और आप भावनाओं को दृश्य रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं, तो यह क्षेत्र आपके लिए केवल करियर नहीं - बल्कि एक जुनून बन सकता है।
संदर्भ-
https://short-link.me/15I2e
https://short-link.me/1a4Ma
https://short-link.me/15I2l