
मेरठवासियो, जब आप अपने खेतों में लहराती गेहूँ की सुनहरी बालियों या गन्ने की ऊँची-ऊँची कतारों को देखते हैं, तो क्या कभी यह सवाल आपके मन में उठता है कि क्या आपकी आने वाली पीढ़ियाँ भी इसी तरह खेतों में हरियाली देख पाएँगी? क्या आपके बच्चों और पोतों को भी वैसी ही उपजाऊ मिट्टी, स्वच्छ जल और अनुकूल मौसम मिलेगा, जैसा कभी आपके पूर्वजों को मिला था? ये सवाल आज केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि व्यावहारिक और गंभीर भी हैं - खासकर मेरठ जैसे कृषि-प्रधान ज़िले के लिए, जहाँ खेत ही जीवन की असली कमाई हैं। मेरठ की मिट्टी सदा से उपजाऊ रही है। यहाँ की जलवायु, यहाँ की नहरें, और यहाँ के किसान - सबने मिलकर इस धरती को अन्नपूर्णा बनाया है। लेकिन अब वही मिट्टी थक चुकी है, नदियाँ और भूजल स्तर घटते जा रहे हैं, और मौसम का मिज़ाज भी बदल गया है। कभी बेमौसम बारिश तो कभी ज़्यादा गर्मी, कभी सूखा तो कभी अचानक ओलावृष्टि - इन सबने पारंपरिक खेती की नींव को हिला कर रख दिया है। और ऐसे में, केवल कड़ी मेहनत ही नहीं, बल्कि एक नई सोच की भी ज़रूरत है। ऐसे कठिन समय में, "टिकाऊ खेती" या "संधारणीय कृषि" केवल एक तकनीक नहीं, बल्कि एक उम्मीद बनकर उभरी है। यह एक ऐसा रास्ता है जो खेती को फिर से मिट्टी से जोड़ता है - बिना उसे क्षति पहुँचाए। टिकाऊ खेती केवल उपज बढ़ाने की बात नहीं करती, बल्कि वह पर्यावरण की रक्षा, आर्थिक आत्मनिर्भरता और सामाजिक कल्याण - इन तीनों आयामों को साथ लेकर चलती है। यह वही खेती है जो कम संसाधनों में भी बेहतर उत्पादन देती है, और प्राकृतिक संतुलन को भी बनाए रखती है। आज के इस लेख में हम समझेंगे कि मेरठ जैसे कृषि-प्रधान क्षेत्र में टिकाऊ खेती क्यों ज़रूरी होती जा रही है। सबसे पहले, हम जानेंगे कि टिकाऊ खेती यानी संधारणीय कृषि वास्तव में होती क्या है और इसके पीछे की सोच क्या है। फिर, हम भारत के संदर्भ में इसकी महत्ता और उन समस्याओं को देखेंगे जो इसे आवश्यक बनाती हैं। इसके बाद, हम विस्तार से जानेंगे सात प्रमुख टिकाऊ कृषि पद्धतियों के बारे में जो किसानों की मेहनत को अधिक लाभदायक और प्रकृति के अनुकूल बनाती हैं। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि भारत सरकार किस तरह की योजनाओं और नीतियों के ज़रिए टिकाऊ खेती को बढ़ावा दे रही है और इससे पर्यावरणीय सुधार के साथ-साथ किसानों की आर्थिक स्थिरता कैसे सुनिश्चित की जा सकती है।
मेरठ में टिकाऊ खेती की आवश्यकता: परंपरा से परिवर्तन तक की यात्रा
मेरठ की पहचान सिर्फ शिक्षा और खेल सामग्री के उत्पादन तक सीमित नहीं है, बल्कि इस ज़िले की आत्मा खेतों में बसती है। यह इलाका गंगा-यमुना के दोआब में स्थित है, जो प्राचीन काल से ही उपजाऊ भूमि के रूप में प्रसिद्ध रहा है। यहाँ की मिट्टी में वह शक्ति है जो पीढ़ियों से गेहूं, गन्ना, दालें और मौसमी सब्ज़ियों को जन्म देती आई है। लेकिन आज का मेरठ, जो कभी हरियाली और समृद्धि का प्रतीक था, अब जलवायु परिवर्तन और खेती की गैर-टिकाऊ नीतियों के कारण जूझ रहा है। बदलते मौसम चक्र, लगातार घटता भूजल स्तर, रासायनिक खादों और कीटनाशकों की निर्भरता - इन सभी ने न केवल मिट्टी की सेहत बिगाड़ दी है, बल्कि किसानों को आर्थिक संकट की ओर भी धकेल दिया है। परंपरागत तरीकों से की जाने वाली खेती अब उतनी उपज नहीं दे पा रही जितनी कभी देती थी, और मिट्टी की जैविक संरचना नष्ट हो रही है। इसी परिस्थिति में, टिकाऊ खेती मेरठ के लिए सिर्फ़ एक विकल्प नहीं बल्कि ज़रूरत बन गई है। यह खेती की एक ऐसी दृष्टि है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए मिट्टी, जल और जीवन को बचाने की दिशा में एक ठोस कदम है। यही वह बदलाव है जो मेरठ के किसान अब महसूस करने लगे हैं - परंपरा से परिवर्तन की यह यात्रा अब आरंभ हो चुकी है।
संधारणीय कृषि क्या है? अवधारणा, उद्देश्य और व्यापक परिभाषा
टिकाऊ खेती का मतलब है - "आज की ज़रूरतों को पूरा करते हुए, कल की संभावनाओं को भी सुरक्षित रखना।" यह एक ऐसी सोच और प्रणाली है, जिसमें खेती केवल उत्पादन तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह प्रकृति, समाज और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन स्थापित करती है। इसमें खेतों की मिट्टी को बार-बार नहीं जोता जाता ताकि उसमें मौजूद सूक्ष्मजीव जीवित रहें। इसमें रसायनों की जगह गोबर, कंपोस्ट (compost), वर्मीकम्पोस्ट (vermicompost), नीम के अर्क और अन्य प्राकृतिक तत्वों का उपयोग होता है। इसमें फसलें बदल-बदल कर बोई जाती हैं ताकि मिट्टी में पोषक तत्वों का संतुलन बना रहे। संधारणीय कृषि का एक बड़ा लक्ष्य यह भी है कि किसान प्राकृतिक संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग से आत्मनिर्भर बने, खेतों की जैव विविधता बनी रहे और उपभोक्ताओं को ज़हरीले रसायनों से मुक्त, पोषणयुक्त खाद्य सामग्री मिले। मेरठ जैसे क्षेत्र, जहाँ खेती से हजारों परिवारों की आजीविका जुड़ी है, वहाँ यह दृष्टिकोण अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
भारत में संधारणीय खेती की महत्ता और वर्तमान चुनौतियाँ
भारत का कृषि क्षेत्र आज एक ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। एक ओर तेजी से बढ़ती जनसंख्या है, जिसके लिए भोजन सुनिश्चित करना आवश्यक है, और दूसरी ओर हैं प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ता दबाव। भारत की 60% से अधिक आबादी आज भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से खेती पर निर्भर है। ऐसे में कृषि का टिकाऊ होना केवल पर्यावरणीय चिंता नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्राथमिकता भी है। आज सबसे बड़ी समस्या यह है कि रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का अत्यधिक उपयोग मिट्टी को बेजान बना रहा है। भूजल स्तर हर साल कुछ मीटर नीचे जा रहा है। जलवायु परिवर्तन ने मौसम को इतना अनिश्चित बना दिया है कि किसान हर साल डर के साए में खेती करते हैं। कभी असमय बारिश, कभी बेमौसम ओले और कभी लू - ये सब उत्पादन पर गहरा असर डालते हैं। इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए, टिकाऊ खेती एक ऐसा मॉडल है जो इन चुनौतियों का दीर्घकालिक समाधान प्रस्तुत करता है। मेरठ जैसे जल संकट और मिट्टी क्षरण से प्रभावित जिलों में, यह मॉडल आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थिर और समृद्ध भविष्य की नींव बन सकता है।
सात प्रमुख टिकाऊ कृषि पद्धतियाँ जो भविष्य की खेती को दिशा दे रही हैं
भारत सरकार की प्रमुख योजनाएँ जो टिकाऊ खेती को बना रही हैं मुख्यधारा
भारत सरकार ने टिकाऊ खेती को राष्ट्रीय प्राथमिकता मानते हुए कई योजनाएँ शुरू की हैं जो किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहायता उपलब्ध कराती हैं:
मेरठ जैसे जिलों में इन योजनाओं का प्रभावी क्रियान्वयन और किसानों तक सही जानकारी पहुँचाना अत्यंत आवश्यक है।
पर्यावरणीय सुधार से आर्थिक स्थिरता तक: टिकाऊ खेती का व्यापक प्रभाव
टिकाऊ खेती के फायदे केवल पर्यावरण तक सीमित नहीं हैं। इसका सीधा प्रभाव किसानों की आमदनी, ग्राम्य अर्थव्यवस्था, जन स्वास्थ्य, और जलवायु सुरक्षा तक महसूस किया जा सकता है। जब किसान टिकाऊ खेती अपनाते हैं, तो उनकी भूमि लंबे समय तक उत्पादक बनी रहती है। यह खेती लागत को घटाती है क्योंकि इसमें रसायनों की जगह घरेलू संसाधनों का उपयोग होता है। साथ ही, उत्पाद की गुणवत्ता बेहतर होती है जिससे बाज़ार में अच्छा मूल्य मिलता है। यह खेती मिट्टी की गुणवत्ता सुधारती है, जल की बर्बादी रोकती है और वातावरण में कार्बन (carbon) की मात्रा को संतुलित करती है - जो कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में अहम कदम है। सबसे बड़ी बात यह है कि टिकाऊ खेती से खाद्य सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित होती है। मेरठ के किसान जब इस बदलाव को अपनाते हैं, तो वे केवल अपने परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करते हैं।
संदर्भ-
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