मेरठ के खेतों में उगती भिंडी: पौष्टिकता, खेती और किसानों के लिए लाभ का संगम

फल और सब्जियाँ
11-11-2025 09:14 AM
मेरठ के खेतों में उगती भिंडी: पौष्टिकता, खेती और किसानों के लिए लाभ का संगम

मेरठवासियो, भिंडी न केवल आपकी थाली की पसंदीदा सब्ज़ी है, बल्कि यह हमारे क्षेत्र की कृषि संस्कृति का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। अपने उच्च पोषण मूल्य, स्वाद और विविध पाक उपयोगों के कारण भिंडी हर उम्र के लोगों को भाती है। क्या आपने कभी सोचा है कि इस कोमल और हरियाली से भरी सब्ज़ी को कैसे उगाया जाता है? गर्मियों और बरसात के मौसम में मेरठ के खेतों में भिंडी की कतारें कैसे तैयार की जाती हैं, बीज से लेकर कटाई तक की प्रक्रिया कैसी होती है, और कौन-कौन सी किस्में किसानों के लिए सबसे लाभकारी होती हैं, इस लेख में हम यही विस्तार से जानेंगे।
आज हम समझेंगे कि भिंडी का पोषण मूल्य और इसकी लोकप्रियता क्या है। फिर हम उपयुक्त जलवायु और मिट्टी की विशेषताओं के बारे में जानेंगे। इसके बाद भूमि की तैयारी, बुआई और प्रमुख भिंडी किस्मों पर ध्यान देंगे। इसके अलावा, सिंचाई, फर्टिगेशन (Fertigation), कटाई, उपज और भंडारण की महत्वपूर्ण बातें भी देखेंगे। अंत में, हम यह समझेंगे कि भारत में भिंडी की खेती का किसानों और उपभोक्ताओं के लिए क्या महत्व है।

भिंडी का पोषण मूल्य और लोकप्रियता:
भिंडी बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक सभी की पसंदीदा सब्ज़ी है। 100 ग्राम भिंडी में लगभग 1.9 ग्राम प्रोटीन (protein), 0.2 ग्राम वसा, 6.4 ग्राम कार्बोहाइड्रेट (carbohyderate), 0.7 ग्राम खनिज और 1.2 ग्राम फाइबर (fiber) होता है, जिससे यह पौष्टिकता और स्वास्थ्य दोनों में महत्वपूर्ण योगदान देती है। इसका स्वाद हल्का और मीठा होता है, जिससे यह सब्ज़ियों के व्यंजनों में आसानी से शामिल हो जाती है। वैश्विक स्तर पर 2021 में भिंडी का उत्पादन 10.8 मिलियन टन (million ton) रहा, जिसमें भारत का 60% योगदान था। उत्तर प्रदेश में 2024 में अकेले 351,012 टन भिंडी का उत्पादन हुआ, और मेरठ के किसान इस उत्पादन में अहम भूमिका निभा रहे हैं। भिंडी की यह लोकप्रियता इसे न केवल स्वादिष्ट बनाती है, बल्कि स्थानीय कृषि अर्थव्यवस्था में भी इसे महत्वपूर्ण स्थान दिलाती है।

आवश्यक जलवायु और मिट्टी:
भिंडी का पौधा मुख्य रूप से गर्म और आर्द्र जलवायु में बेहतर विकसित होता है। इसकी खेती के लिए तापमान 25° से 35° सेल्सियस के बीच होना आवश्यक है। प्रतिदिन कम से कम 6–8 घंटे की पर्याप्त धूप इसकी वृद्धि और फूल-फल के लिए जरूरी है। मध्यम वर्षा उपयुक्त है, लेकिन जलभराव से पौधे को नुकसान पहुंच सकता है। मिट्टी की गुणवत्ता भी बहुत मायने रखती है। दोमट मिट्टी, जिसमें पर्याप्त पोषक तत्व और कार्बनिक पदार्थ मौजूद हों और जिसका पीएच हल्का अम्लीय से तटस्थ (6.0–7.5) हो, भिंडी के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। सही जलवायु और मिट्टी पौधे की जड़ें मजबूत बनाती हैं और फल की गुणवत्ता एवं उपज दोनों में सुधार करती हैं।

भूमि की तैयारी और बुआई:
भिंडी की सफल खेती के लिए खेत की तैयारी बेहद महत्वपूर्ण है। इसके लिए मिट्टी को एक या दो बार अच्छी तरह जुताई करना आवश्यक है। खेत में 3 टन गोबर की खाद और 3 लीटर खाद बनाने वाले बैक्टीरिया मिलाकर 10 दिन के लिए सड़ाया जाता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है। इसके बाद मिश्रण को पूरे खेत में समान रूप से फैलाकर रोटावेटर (Rotavator) की मदद से मिलाया जाता है और ट्रैक्टर के माध्यम से 90-120 सेंटीमीटर चौड़ी क्यारियां बनाई जाती हैं। बीज गर्मियों में प्रति हेक्टेयर 5-5.5 किलोग्राम और बरसात में 8-10 किलोग्राम बोए जाते हैं। बुआई से पहले बीजों को 6 घंटे तक बाविस्टिन (Bavistin) (0.2%) में भिगोकर और छाया में सुखाकर अंकुरण के लिए तैयार किया जाता है। यह प्रक्रिया बीज को रोग-मुक्त और स्वस्थ अंकुरण देने में मदद करती है।

भिंडी की प्रमुख किस्में:
भारत में भिंडी की कई किस्में उगाई जाती हैं, जो अलग-अलग मौसम और उपज के लिए उपयुक्त हैं।

  • पूसा मखमली: हल्के हरे रंग के फल, येलो वेन मोज़ेक वायरस (Yellow Vein Mosaic Virus - YVMV) के प्रति संवेदनशील।
  • पंजाब नं. 13: वसंत-ग्रीष्म ऋतु में उपयुक्त, मध्यम लंबाई और 5 स्थूलक वाले फल।
  • पंजाब पद्मिनी: तेजी से बढ़ने वाली किस्म, कोमल और लंबे समय तक टिकने वाले फल।
  • पूसा सावनी: वसंत, ग्रीष्म और वर्षा ऋतु में उपयुक्त, 50 दिन में पकने वाली और चिकनी सतह वाली फलियाँ।
  • परभणी क्रांति: मध्यम लंबे और चिकनी सतह वाले फल, 120 दिनों में तैयार और औसत उपज 8.5-11.5 टन/हेक्टेयर।
  • अर्का अनामिका: दो बार फल देने वाली किस्म, वाईवीएमवी (YVMV) प्रतिरोधी और उच्च उपज वाली, औसत उपज 20 टन/हेक्टेयर।

इन किस्मों के चयन से किसान मौसम, रोग-प्रतिरोधकता और बाजार मांग के अनुसार अपनी खेती को लाभकारी बना सकते हैं।

सिंचाई और फर्टिगेशन:
भिंडी के पौधों को पर्याप्त और नियमित नमी की आवश्यकता होती है। गर्मियों में ड्रिप सिंचाई (drip irrigation) सबसे उपयुक्त होती है, जिससे पूरे मौसम में पौधे को लगातार नमी मिलती है। प्रारंभिक चरण में प्रतिदिन लगभग 75 मिनट और चरम विकास में 228 मिनट सिंचाई करनी चाहिए। नाली सिंचाई भी एक प्रभावी तरीका है, जिससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और पत्तियाँ गीली नहीं होतीं। फर्टिगेशन के माध्यम से नाइट्रोजन (nitrogen) को तीन बराबर भागों में देना चाहिए। इसके अलावा, सुपर फॉस्फेट (Super Phosphate), म्यूरेट ऑफ पोटाश (Muriate of Potash), अमोनियम सल्फेट (Ammonium Sulphate) और गोबर की खाद का उपयोग करके पौधों को पर्याप्त पोषण प्रदान किया जाता है।

कटाई, उपज और भंडारण:
भिंडी की कटाई रोपण के 55-65 दिन बाद शुरू होती है, जब फलियाँ 2-3 इंच लंबी और कोमल हो जाती हैं। कटाई हर 2-3 दिन में करनी आवश्यक है क्योंकि फलियाँ तेजी से बढ़ती हैं। गर्मियों में उपज 5-7 टन/हेक्टेयर और बरसात में 8-10 टन/हेक्टेयर तक होती है। भिंडी की ताजगी बनाए रखने के लिए इसे 7-10 डिग्री सेल्सियस तापमान और 90-95% आर्द्रता में 7-10 दिन तक भंडारित किया जा सकता है। तापमान 7 डिग्री से नीचे होने पर भिंडी का रंग खराब हो जाता है और वह जल्दी खराब हो सकती है।

भारत में भिंडी की खेती का महत्व:
भिंडी न केवल स्वादिष्ट और पौष्टिक है, बल्कि यह किसानों के लिए आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। इसकी खेती से स्वस्थ आहार को बढ़ावा मिलता है और किसानों को स्थिर आय मिलती है। सही किस्म का चयन, जलवायु की समझ और बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन करना, किसानों की सफलता सुनिश्चित करता है। मेरठ जैसे क्षेत्रों में भिंडी की खेती से कृषि विकास और स्थानीय बाजारों में भी संतुलन बना रहता है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/4zce2mvv
https://tinyurl.com/5y9a9ucc 
https://tinyurl.com/bdhkdwt4 
https://tinyurl.com/a7uuw4zt 
https://tinyurl.com/3hesae44 



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