क्या आप जानते हैं, मेरठ में जूट का कचरा अब पर्यावरण बचाने का जरिया बन रहा है?

शहरीकरण - नगर/ऊर्जा
24-11-2025 09:18 AM
क्या आप जानते हैं, मेरठ में जूट का कचरा अब पर्यावरण बचाने का जरिया बन रहा है?

मेरठ, जो सदियों से अपने ऐतिहासिक वैभव, शिक्षा और उद्योगों के लिए प्रसिद्ध रहा है, अब पर्यावरण-अनुकूल नवाचारों की दिशा में नए कदम बढ़ा रहा है। यह शहर, जहाँ कभी केवल खेल सामग्री, हथकरघा और कृषि उपकरणों की पहचान थी, आज सतत विकास (Sustainable Development) और हरित उद्योगों की ओर अग्रसर हो रहा है। हाल के वर्षों में मेरठ के आसपास के क्षेत्रों में प्राकृतिक रेशों और जैविक सामग्रियों के प्रयोग को लेकर लोगों की दिलचस्पी तेज़ी से बढ़ी है। इसी परिवर्तन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है - जूट और उसके कचरे का पुनःउपयोग, जो आज न केवल पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहा है, बल्कि स्थानीय रोजगार और आर्थिक विविधता का भी नया आधार बनता जा रहा है। जूट मिलों में उत्पादन के दौरान निकलने वाले “कैडिया” (Caddies) या जूट कचरे को पहले बेकार समझा जाता था, परंतु अब इन्हीं से नए औद्योगिक उत्पाद, इन्सुलेशन (insulation) सामग्री, हस्तनिर्मित कागज़, और ऊर्जा उत्पादन जैसे अभिनव उपयोगों की दिशा खुल रही है। मेरठ जैसे प्रगतिशील शहर में, जहाँ कारीगरों और छोटे उद्योगों की मजबूत परंपरा रही है, यह परिवर्तन “कचरे से संसाधन” (Waste to Wealth) की अवधारणा को साकार कर रहा है। जूट अपशिष्ट का यह नया सफ़र न केवल स्वच्छ पर्यावरण की ओर एक कदम है, बल्कि यह दिखाता है कि अगर दृष्टिकोण नवाचारपूर्ण हो, तो हर अपशिष्ट में भी संभावनाओं का सुनहरा धागा छिपा होता है।
आज के इस लेख में हम जूट से जुड़े कुछ ज़रूरी पहलुओं को सरल भाषा में समझेंगे। सबसे पहले जानेंगे कि जूट क्या है और इसके कौन-से गुण इसे एक उपयोगी प्राकृतिक रेशा बनाते हैं। इसके बाद हम देखेंगे कि जूट खेत से लेकर मिल तक कैसे तैयार होता है। फिर बात होगी जूट मिलों में बनने वाले कचरे, यानी कैडियों, की - ये क्या होते हैं, कहाँ से आते हैं और इनमें क्या खास है। आगे जानेंगे कि यही कचरा पर्यावरण और उद्योग, दोनों के लिए कैसे फायदेमंद बन सकता है। अंत में, हम इस पर भी चर्चा करेंगे कि जूट और इसके उपोत्पाद भविष्य में शहरों में टिकाऊ विकास, रोजगार और नए औद्योगिक अवसरों का मार्ग कैसे खोल सकते हैं।

जूट क्या है और इसके प्रमुख गुण
जूट एक प्राकृतिक लिग्नो-सेलुलोज़िक फ़ाइबर है, जो पौधों की कोशिका भित्तियों से प्राप्त होता है। इसे सामान्यतः “सुनहरा रेशा” (Golden Fiber) कहा जाता है, क्योंकि इसकी चमक हल्के सुनहरे रंग की होती है और यह देखने में रेशमी आभा देता है। यह रेशा अपनी मज़बूती, लोच और टिकाऊपन के कारण सदियों से मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा रहा है। जूट के रेशे में यूवी सुरक्षा, ध्वनि और गर्मी इन्सुलेशन, तथा एंटी-स्टैटिक (anti-static) गुण पाए जाते हैं, जो इसे केवल वस्त्रों तक सीमित नहीं रखते, बल्कि औद्योगिक अनुप्रयोगों में भी अत्यंत उपयोगी बनाते हैं। इसके अतिरिक्त, जूट पूर्णतः बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) और पर्यावरण-अनुकूल है, जिससे यह सिंथेटिक रेशों का श्रेष्ठ विकल्प बन जाता है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि यह नमी को नियंत्रित करता है और हवा पारगम्य होता है, जिससे यह कपड़ों, रस्सियों, बोरियों और घरेलू सजावट सामग्री में प्रयुक्त होता है। यह सबसे किफ़ायती प्राकृतिक रेशा है, जो कपास के बाद उत्पादन में दूसरे स्थान पर आता है। जूट की यही विशिष्टताएँ इसे सतत विकास और हरित उद्योगों के लिए भविष्य का आदर्श कच्चा माल बनाती हैं।

जूट की प्रोसेसिंग और उत्पादन की प्रक्रिया
जूट की यात्रा खेत से लेकर उद्योग तक एक जटिल और मेहनत-भरी प्रक्रिया से गुजरती है। इसकी खेती मार्च या अप्रैल में की जाती है और लगभग 120 से 150 दिनों में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। जब पौधों पर फूल झड़ जाते हैं और डंठल का रंग हल्का पीला पड़ने लगता है, तब समझा जाता है कि यह कटाई के योग्य हो चुका है। कटाई के बाद जूट के पौधों को रेटिंग (Rating) नामक प्रक्रिया से गुज़ारा जाता है, जिसमें पौधों को 60 से 90 सेंटीमीटर गहरे स्थिर या बहते पानी में 10-20 दिनों तक भिगोया जाता है। इस दौरान बैक्टीरिया और सूक्ष्मजीव पौधों के भीतर मौजूद पेक्टिन और अन्य बाँधने वाले तत्वों को तोड़ते हैं, जिससे फ़ाइबर को अलग करना आसान होता है। इसके बाद आता है स्ट्रिपिंग (Stripping) का चरण - इसमें फ़ाइबर को पौधे की तने से सावधानीपूर्वक अलग किया जाता है। निकाले गए रेशों को फिर स्वच्छ पानी से धोया जाता है और धूप में 2-3 दिन तक सुखाया जाता है। जब ये सूख जाते हैं, तब इनकी ग्रेडिंग (grading), बेलिंग (baling) और पैकिंग की जाती है ताकि इन्हें बाजार या जूट मिलों तक भेजा जा सके। इस पूरी प्रक्रिया में बड़ी संख्या में ग्रामीण परिवार जुड़े होते हैं, जो जूट उत्पादन को केवल एक कृषि कार्य नहीं, बल्कि आजीविका का आधार बनाते हैं।

जूट मिल के कचरे (कैडियों) की उत्पत्ति और विशेषताएँ
जूट मिलों में जब कच्चे जूट से धागे तैयार किए जाते हैं, तब प्रोसेसिंग के दौरान जो छोटे रेशे, टूटे धागे और सूक्ष्म कण अलग हो जाते हैं, उन्हें कैडियाँ कहा जाता है। इन्हें अक्सर “थ्रेड वेस्ट” (Thread Waste) या “मिल वेस्ट” (Mill Waste) के नाम से जाना जाता है। पहले इन्हें पूरी तरह बेकार समझा जाता था, लेकिन अब ये जूट उद्योग के लिए एक नई संभावनाओं का स्रोत बन चुके हैं। कैडियों में सामान्यतः कोई बाहरी धूल या अशुद्धियाँ नहीं होतीं, और इनकी संरचना मुख्य फ़ाइबर जैसी ही होती है, जिससे इन्हें पुनःप्रसंस्करण (Reprocessing) किया जा सकता है। आधुनिक तकनीक के ज़रिए इन कैडियों से इन्सुलेशन मैटेरियल, गद्दे, ऑटोमोबाइल सीट फिलर (automobile seat filler), इलेक्ट्रिक वायर कवरिंग (electric wire covering), और ताप नियंत्रण परतें तैयार की जा रही हैं। इसके अतिरिक्त, जूट कैडियों की जल अवशोषण क्षमता, ऊष्मा प्रतिरोध, और लोच उन्हें औद्योगिक उत्पादों के लिए अत्यंत उपयुक्त बनाते हैं। आज ये “अपशिष्ट” नहीं, बल्कि मूल्यवान संसाधन हैं जो परिपत्र अर्थव्यवस्था (Circular Economy) की अवधारणा को साकार कर रहे हैं।

जूट के कचरे के उपयोग और पर्यावरणीय फ़ायदे
जूट कैडियों का पुनःप्रयोग आज पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक अभिनव कदम बन चुका है। इनसे कई टिकाऊ उत्पाद तैयार किए जाते हैं जो न केवल उपयोगी हैं बल्कि प्रदूषण घटाने में भी सहायक हैं।
हस्तनिर्मित कागज़ बनाने में जूट कैडियों का विशेष उपयोग होता है। इन्हें पूर्व-उपचार, पल्पिंग, और सूखाने की प्रक्रिया से गुज़ारकर सुंदर, मज़बूत और पर्यावरण-अनुकूल कागज़ तैयार किया जाता है, जो प्लास्टिक पैकेजिंग का एक प्रभावी विकल्प बन रहा है। यौगिक (Composites) बनाने में भी इन कैडियों की भूमिका बढ़ रही है — इनसे बने नॉन-वोवन कपड़े (Non-woven Fabrics) काँच के फ़ाइबर की तुलना में हल्के, लचीले और सस्ते होते हैं, जिनका उपयोग फर्नीचर, सजावट सामग्री, और औद्योगिक उपकरणों में होता है। बायोगैस उत्पादन के लिए भी जूट कैडियाँ एक उत्कृष्ट कच्चा माल हैं। एनारोबिक फ़र्मेंटेशन (Anaerobic Fermentation) प्रक्रिया से इनसे मीथेन गैस तैयार होती है, जो ऊर्जा स्रोत के रूप में काम आती है, जबकि बची हुई स्लरी खेतों में जैविक खाद के रूप में उपयोगी होती है। इसके अतिरिक्त, जूट बैग - जो बायोडिग्रेडेबल, मज़बूत और पुनःउपयोग योग्य होते हैं - आज प्लास्टिक की जगह ले रहे हैं। ये सभी उपयोग न केवल पर्यावरणीय बोझ घटाते हैं, बल्कि उद्योगों को “कचरे से संपदा” (Waste to Wealth) के सिद्धांत पर आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देते हैं।

जूट उद्योग में मूल्य वर्धन और ऊर्जा उत्पादन की संभावनाएँ
जूट उद्योग आज मूल्य वर्धन (Value Addition) और नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में नई दिशा दिखा रहा है। जूट की कैडियों को बायोमास ईंधन, ब्रिकेट (Briquettes) या गैसीफिकेशन फीडस्टॉक (Gasification feedstock) में परिवर्तित करके ऊर्जा का नया स्रोत बनाया जा रहा है। यह न केवल पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करता है, बल्कि कार्बन उत्सर्जन में भी उल्लेखनीय कमी लाता है। बायोगैस उत्पादन की प्रक्रिया में प्राप्त स्लरी को जैविक खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है और फसल उत्पादन में सुधार होता है। साथ ही, जूट से तैयार किए जा रहे बायो-कॉम्पोज़िट्स (Bio-composites) और इको-फ्रेंडली पैकेजिंग मैटेरियल (Eco-friendly packaging material) अब अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में भी मांग पा रहे हैं। इस प्रकार, जो वस्तु पहले केवल एक अपशिष्ट के रूप में देखी जाती थी, आज वही ऊर्जा, नवाचार और हरित अर्थव्यवस्था की दिशा में परिवर्तनकारी भूमिका निभा रही है। यह दर्शाता है कि सतत विकास केवल संसाधनों की बचत नहीं, बल्कि संसाधनों के पुनःआविष्कार की प्रक्रिया भी है।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/2hufvr3u 
https://tinyurl.com/ycychkuh 
https://tinyurl.com/2nrvv2e7 
https://tinyurl.com/5yuvvbaw 
https://tinyurl.com/4ztn4u9h 



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