कैसे मेरठ का हस्तिनापुर अभयारण्य, प्रकृति और मानव के संतुलन की आखिरी उम्मीद बना है?

वन
04-12-2025 09:27 AM
कैसे मेरठ का हस्तिनापुर अभयारण्य, प्रकृति और मानव के संतुलन की आखिरी उम्मीद बना है?

मेरठवासियों, क्या आपने कभी गंगा किनारे फैले उन शांत इलाकों को महसूस किया है, जहाँ हवा में मिट्टी की सुगंध के साथ पक्षियों की चहचहाहट गूंजती है? यही शांति और सुकून हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य की पहचान है - जो हमारे अपने मेरठ के आसपास ही प्रकृति की गोद में बसा हुआ है। 1986 में स्थापित यह अभयारण्य उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा वन्यजीव आश्रय स्थल माना जाता है, जो हमारी धरती की जैव विविधता की रक्षा के लिए बना एक अद्भुत प्रतीक है। लेकिन अफ़सोस, आज यही स्थान धीरे-धीरे अपनी प्राकृतिक चमक खोता जा रहा है - कभी अवैध अतिक्रमण, कभी औद्योगीकरण, तो कभी बढ़ती मानव गतिविधियों के कारण। ऐसे में सवाल यह उठता है - क्या मेरठ और आसपास के लोग इस प्राकृतिक धरोहर को संरक्षित रखने की ज़िम्मेदारी उठाने के लिए तैयार हैं?
आज हम इस लेख में विस्तार से समझेंगे कि हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का भौगोलिक महत्व क्या है और यहाँ कौन-कौन सी अद्भुत प्रजातियाँ पाई जाती हैं। फिर हम यह भी जानेंगे कि कैसे मानवजनित गतिविधियों और कृषि विस्तार ने इस पारिस्थितिकी तंत्र को संकट में डाल दिया है। इसके बाद, हम पक्षियों और जैव विविधता के संरक्षण की ज़रूरत को समझेंगे, और अंत में मेरठ में चल रही बर्ड वॉचिंग (Bird Watching) जैसी पहलों पर नज़र डालेंगे, जो लोगों में पर्यावरण के प्रति नई चेतना जगा रही हैं।

हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य का परिचय और भौगोलिक विस्तार
हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य, जो मेरठ से लेकर बिजनौर, गाजियाबाद और ज्योतिबा फुले नगर जिलों तक फैला हुआ है, लगभग 2073 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इसे वर्ष 1986 में स्थापित किया गया था ताकि गंगा बेसिन की पारिस्थितिकी और जैव विविधता की रक्षा की जा सके। गंगा के मैदानी इलाकों में फैला यह संरक्षित क्षेत्र जलाशयों, दलदलों और घास के मैदानों से भरा हुआ है, जो अनेक जीव-जंतुओं के प्राकृतिक निवास स्थान हैं। इस अभयारण्य की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ एक ही जगह पर नदियों की नमी, रेत के टीले और सूखी भूमि जैसी विविध भू-आकृतियाँ देखने को मिलती हैं। यह न केवल उत्तर भारत की पर्यावरणीय संपदा है, बल्कि मेरठ और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए एक पारिस्थितिक धरोहर भी है, जो जलवायु को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाती है।

यहाँ पाई जाने वाली प्रमुख वनस्पतियाँ और जीव-जंतु
यह अभयारण्य जैव विविधता का एक जिंदा संग्रहालय है। यहाँ के घास के मैदानों में दलदली हिरण (Swamp Deer) और हॉग हिरण (Hog Deer) जैसे दुर्लभ प्राणी अब भी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा ब्लैकबक (Blackbuck), नीलगाय, गोल्डन जैकल (Golden Jackal), जंगली सूअर और वाइल्ड कैट्स (Wild Cats) यहाँ की वनस्पति श्रृंखला का हिस्सा हैं। पक्षियों की बात करें तो यह क्षेत्र 180 से अधिक प्रजातियों का घर है, जिनमें सर्दियों के दौरान आने वाले प्रवासी जलपक्षी एक विशेष आकर्षण हैं। यहाँ एशियन ओपनबिल (Asian Openbill) की कई कॉलोनियाँ बसी हुई हैं, और सारस क्रेन जैसे पक्षी यहाँ प्रजनन करते हुए देखे गए हैं - जो इस अभयारण्य की पर्यावरणीय समृद्धि का प्रमाण हैं। इन जीवों की मौजूदगी यह बताती है कि हस्तिनापुर अब भी प्रकृति का एक ऐसा कोना है जहाँ जीवन अपने सबसे शुद्ध रूप में सांस लेता है।

पर्यावरणीय और मानवजनित चुनौतियाँ
बीते कुछ दशकों में हस्तिनापुर वन्यजीव अभयारण्य अनेक मानवीय दबावों से जूझ रहा है। सबसे पहले, घास और वनभूमि का अवैध दोहन, चराई, और खेती के लिए अतिक्रमण ने इसके प्राकृतिक आवास को बुरी तरह क्षति पहुँचाई है। इसके अलावा औद्योगीकरण की लहर ने यहाँ के दलदली और जल क्षेत्र को भी प्रभावित किया है। कई किसान अपनी फसलों को वन्यजीवों से बचाने के लिए खेतों के चारों ओर बिजली के तार लगाते हैं, जिससे अक्सर हिरण और अन्य जानवरों की मौत हो जाती है। गर्मियों में जलस्रोतों के सूखने से पक्षियों के लिए प्रजनन स्थलों की कमी हो जाती है। इन सबके कारण इस शांत वन का पारिस्थितिक संतुलन डगमगाने लगा है, जो आने वाले वर्षों में बड़ी पर्यावरणीय संकट की चेतावनी दे रहा है।

कृषि विस्तार और पारिस्थितिकी पर उसका प्रभाव
जब प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को साफ़ करके वहाँ खेत बनाए जाते हैं, तो सबसे पहले जंगली प्रजातियों का निवास स्थान नष्ट होता है। आज हमारी अधिकांश कृषि केवल कुछ सीमित प्रजातियों पर निर्भर है - आँकड़ों के अनुसार, हमारे भोजन का लगभग 90% सिर्फ़ 20 फसलों से और आधा से अधिक चावल, गेहूँ और मक्का से आता है। यह चयनात्मक खेती पारिस्थितिक विविधता के लिए खतरा है। इसके साथ ही कीटनाशकों, उर्वरकों और रासायनिक पदार्थों के बढ़ते प्रयोग ने मिट्टी और नदी दोनों को प्रदूषित कर दिया है। नदी तल से रेत निकाले जाने और कृषि अपवाह के कारण जलचर जीवों की संख्या घट रही है। मेरठ और आसपास के इलाकों में यह स्थिति साफ़ देखी जा सकती है - जहाँ पहले पक्षियों की आवाज़ गूंजती थी, वहाँ अब ट्रैक्टरों की गड़गड़ाहट सुनाई देती है। यह परिवर्तन केवल जमीन का नहीं, बल्कि हमारी सोच का भी है, जो प्रकृति से दूर होती जा रही है।

पक्षी संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं की आवश्यकता
पक्षी केवल सुंदरता का प्रतीक नहीं, बल्कि पारिस्थितिकी के रक्षक हैं। वे कीट नियंत्रण, बीज फैलाव, और पौधों के परागण जैसी सेवाओं से पूरे जैविक चक्र को संतुलित रखते हैं। लेकिन जब उनके घोंसले उजड़ते हैं या जलाशय सूख जाते हैं, तो यह केवल एक पक्षी का नुकसान नहीं होता - यह पूरे पर्यावरण का नुकसान है। इसलिए, पक्षी संरक्षण सिर्फ़ एक पर्यावरणीय दायित्व नहीं बल्कि मानव अस्तित्व की सुरक्षा का प्रश्न भी है। जरूरत इस बात की है कि स्कूलों, कॉलेजों और स्थानीय संस्थाओं के माध्यम से लोगों में वन्यजीव और पक्षी संरक्षण की जागरूकता फैलाई जाए ताकि हर नागरिक इस जिम्मेदारी को समझे।

मेरठ में वन्यजीव संरक्षण की पहल और बर्ड वॉचिंग शो
सौभाग्य की बात है कि मेरठ जैसे ऐतिहासिक शहर में अब प्रकृति के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। हर साल गांधी बाग (Company Garden) में आयोजित होने वाला बर्ड वॉचिंग शो इसी दिशा में एक सराहनीय कदम है। पिछले वर्ष 9 फरवरी को हुए इस कार्यक्रम में सुबह 6 बजे से 10 बजे तक सैकड़ों विद्यार्थियों और नागरिकों ने भाग लिया। विभिन्न रंगों और प्रजातियों के पक्षियों को देखकर बच्चों में प्रकृति के प्रति जिज्ञासा और प्रेम दोनों जागा। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य था - वन्यजीव संरक्षण की भावना को समाज में फैलाना और लोगों को यह एहसास दिलाना कि हम और प्रकृति एक-दूसरे के पूरक हैं। ऐसे कार्यक्रम न केवल पर्यावरण शिक्षा को बढ़ावा देते हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाते हैं कि विकास तभी सार्थक है जब वह पर्यावरण के साथ तालमेल रखे।

संदर्भ- 
http://tinyurl.com/2s3fzwy4 
http://tinyurl.com/h7tfjxnf 
http://tinyurl.com/4cwrh8e6 
http://tinyurl.com/bdff4c92 
https://tinyurl.com/2uf79tkx 



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