सरकारी नीतियों और श्रम सुधारों से मेरठ की महिलाओं को मिला नया कार्य अवसर

आधुनिक राज्य : 1947 ई. से वर्तमान तक
15-12-2025 09:18 AM
सरकारी नीतियों और श्रम सुधारों से मेरठ की महिलाओं को मिला नया कार्य अवसर

आज मेरठ की महिलाएँ हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं। चाहे फैक्टरियों में काम करना हो, निर्माण स्थलों पर मेहनत करनी हो, या फिर सेवा क्षेत्र में अपने कौशल से योगदान देना हो, महिलाएँ अब समाज के हर हिस्से में दिखाई देती हैं। ऐसे में यह जानना बहुत ज़रूरी है कि उनके अधिकारों और सुरक्षा के लिए हमारे श्रम क़ानून क्या कहते हैं। भारत का संविधान इन कामकाजी महिलाओं को कई विशेष अधिकार देता है, जो उन्हें न सिर्फ़ कार्यस्थल पर सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि सम्मान और समान अवसर भी सुनिश्चित करते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भूमिका हमेशा से बेहद अहम रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, देश में लगभग 14.98 करोड़ महिला श्रमिक कार्यरत हैं। इनमें से बड़ी संख्या ग्रामीण इलाकों से आती है, लेकिन मेरठ जैसे अर्ध-शहरी इलाकों में भी महिलाएँ अब बड़ी संख्या में कार्यबल का हिस्सा बन रही हैं। शहर के उद्योग, शिक्षण संस्थान और सेवा क्षेत्र महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के साक्षी हैं।
आज हम विस्तार से जानेंगे कि मेरठ की कामकाजी महिलाएँ किन श्रम कानूनों के तहत सुरक्षित और सम्मानित महसूस करती हैं, मातृत्व अवकाश और कार्यस्थल सुविधाएँ उनके जीवन को कैसे आसान बनाती हैं, व्यावसायिक प्रशिक्षण उनके आत्मविश्वास और आर्थिक स्वतंत्रता में कैसे मदद करता है, और इन सभी पहलुओं ने कैसे उन्हें हर क्षेत्र में सक्रिय, आत्मनिर्भर और समाज में सम्मानित बनाया है।श्रम क़ानून और महिलाओं की सुरक्षा
सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और कल्याण के लिए कई नियम बनाए हैं। फ़ैक्टरी अधिनिय (Factories Act) 1948 के तहत महिलाओं को ऐसे काम करने की अनुमति नहीं है, जिनसे उनके स्वास्थ्य या सुरक्षा को नुकसान पहुँच सकता है। उदाहरण के तौर पर, जब भारी मशीनें चल रही हों, तो महिलाएँ मशीनरी के पुर्ज़ों की सफ़ाई या मरम्मत का काम नहीं कर सकतीं। यह नियम किसी भी प्रकार की दुर्घटना से बचाव के लिए है। मेरठ के औद्योगिक इलाकों जैसे पार्टापुर, मोदीपुरम और मलियाना में इन नियमों का पालन कड़ाई से किया जाता है ताकि कामकाजी महिलाओं को सुरक्षित वातावरण मिले। साथ ही, महिलाओं को उन जगहों पर काम करने से भी रोका गया है जहाँ कपास दबाने या धूल और धुएँ से जुड़ा जोखिम अधिक होता है।रात में काम पर रोक
क़ानून के अनुसार महिलाएँ केवल सुबह छह बजे से शाम सात बजे के बीच ही फैक्टरियों में काम कर सकती हैं। 1966 के बीड़ी और सिगार श्रमिक अधिनियम (Beedi and Cigar Workers Act) में भी यही प्रावधान है। 1952 का खान अधिनियम (Mines Act) महिलाओं को केवल ज़मीन से ऊपर की खदानों में इन समय सीमाओं के भीतर काम करने की अनुमति देता है। मेरठ में कई निजी और सरकारी संस्थान इस नियम का पालन करते हैं ताकि महिलाएँ देर रात की पालियों से जुड़ी किसी भी सुरक्षा समस्या से दूर रहें।

भूमिगत कार्य और मातृत्व अवकाश
1952 के खान अधिनियम के अनुसार, महिलाओं को किसी भी भूमिगत खदान में काम करने की अनुमति नहीं है। वहीं 1961 का मातृत्व लाभ अधिनियम गर्भवती कामकाजी महिलाओं को छह महीने तक का अवकाश देता है। यह छुट्टी बच्चे के जन्म से पहले या बाद में ली जा सकती है। इस अवधि में महिला को पूरा वेतन दिया जाता है। मेरठ की कई शिक्षण संस्थाएँ और औद्योगिक इकाइयाँ अब इस क़ानून का पालन करते हुए मातृत्व अवकाश का पूरा लाभ प्रदान कर रही हैं। इससे महिलाएँ बिना किसी चिंता के अपने परिवार और कार्य, दोनों में संतुलन बना पा रही हैं।कार्यस्थल पर सुविधाएँ और सम्मान
श्रम क़ानून यह भी सुनिश्चित करते हैं कि महिलाओं को कार्यस्थल पर बुनियादी सुविधाएँ मिलें। अलग शौचालय और मूत्रालय की व्यवस्था संविदा श्रम अधिनियम 1970 और कारख़ाना अधिनियम 1948 में अनिवार्य की गई है। धुलाई और कपड़े बदलने की सुविधा भी कानून द्वारा आवश्यक मानी गई है ताकि महिलाएँ स्वच्छ और सम्मानजनक वातावरण में काम कर सकें। बाल देखभाल केंद्र या क्रेच (crèche) की व्यवस्था वहाँ की जाती है जहाँ बड़ी संख्या में महिलाएँ कार्यरत हों। इससे महिलाएँ अपने छोटे बच्चों की देखभाल को लेकर निश्चिंत रहती हैं और पूरे मन से अपने काम पर ध्यान दे सकती हैं। मेरठ के कई औद्योगिक और कॉर्पोरेट दफ़्तर अब ऐसी सुविधाएँ उपलब्ध करा रहे हैं, जिससे महिलाओं का आत्मविश्वास और उत्पादकता दोनों बढ़ रहे हैं।

महिला प्रशिक्षण और आत्मनिर्भरता
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारत सरकार ने कई प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। रोजगार एवं प्रशिक्षण महानिदेशालय (Directorate General of Employment and Training) के अंतर्गत चलने वाला महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम इस दिशा में बड़ी भूमिका निभा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत देशभर में कई संस्थान कार्यरत हैं जैसे नोएडा में राष्ट्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान और मुंबई, बेंगलुरु, तिरुवनंतपुरम, कोलकाता, इलाहाबाद और इंदौर में क्षेत्रीय व्यावसायिक प्रशिक्षण संस्थान।
मेरठ की महिलाएँ भी इन कार्यक्रमों का लाभ उठा रही हैं। शहर में कई निजी संस्थान सिलाई, कंप्यूटर संचालन, डेटा विश्लेषण और डिजिटल मार्केटिंग (Digital Marketing) जैसे आधुनिक कौशलों का प्रशिक्षण दे रहे हैं। इन पहलों ने अनेक महिलाओं को आर्थिक रूप से मज़बूत और आत्मनिर्भर बनने में मदद की है।

मेरठ की महिलाओं की बदलती तस्वीर
आज मेरठ की महिलाएँ केवल घर तक सीमित नहीं रहीं। वे शिक्षा, प्रशासन, उद्योग, स्वास्थ्य सेवा और खेल के क्षेत्रों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं। श्रम क़ानूनों ने उन्हें सुरक्षा और अधिकारों की वह नींव दी है जिस पर वे आत्मविश्वास के साथ अपने सपनों की इमारत खड़ी कर रही हैं। इन क़ानूनों ने न केवल उनके जीवन की दिशा बदली है, बल्कि समाज में समानता और सम्मान की भावना को भी मज़बूत किया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/zdpnp6ah
https://tinyurl.com/rneuubcr



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