मेरठवासियों, जानिए मशरूम की दुनिया: प्रकृति, विज्ञान और स्वाद का अद्भुत मेल

फफूंदी और मशरूम
19-12-2025 09:28 AM
मेरठवासियों, जानिए मशरूम की दुनिया: प्रकृति, विज्ञान और स्वाद का अद्भुत मेल

मेरठवासियों, आपने शायद महसूस किया होगा कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे शहर की थालियों और बाज़ारों में मशरूम की मौजूदगी कितनी तेजी से बढ़ी है। चाहे दिल्ली रोड के रेस्तरां हों, केंद्रीय बाज़ार की सब्ज़ी मंडियाँ हों, या फिर गंगानगर-शास्त्रीनगर की आधुनिक सुपरमार्केट - हर जगह मशरूम आधारित व्यंजन अब सामान्य और पसंदीदा विकल्प बन चुके हैं। पहले जहाँ इनका नाम सुनकर लगता था कि यह कोई महँगा, ‘मेट्रो-सिटी’ वाला विदेशी खाद्य पदार्थ है, वहीं अब मेरठ के घरों की रोज़मर्रा की रसोई में भी मशरूम सब्ज़ी, सूप, टिक्का और स्टिर-फ्राय की तरह अपनाए जा रहे हैं। लेकिन मेरठवासियों, क्या आपने कभी सोचा है कि यह मुलायम, सफेद या रंगीन टोपी जैसा दिखने वाला ढांचा असल में पौधा नहीं है? यह ‘फंगस’ यानी कवक है - और वह भी बेसिडिओमाइकोटा (Basidiomycota) नामक उस विशाल प्राकृतिक समूह का हिस्सा, जिसके सदस्य करोड़ों वर्षों से धरती के पारिस्थितिक संतुलन को सुरक्षित रखने का काम कर रहे हैं। यह तथ्य जितना वैज्ञानिक है, उतना ही रोचक भी, क्योंकि मशरूम का जीवन चक्र, इसकी सूक्ष्म संरचना और इसका विकास एक ऐसी कहानी है जिसमें प्रकृति की अद्भुत रचनात्मकता छिपी हुई है।
इस लेख में हम सबसे पहले, जानेंगे कि मशरूम क्या होते हैं और बेसिडिओमाइकोटा समूह से उनकी पहचान कैसे होती है। फिर, उनके प्रजनन तंत्र और बीजाणुओं के फैलाव की रोचक प्रक्रिया पर नज़र डालेंगे। हम देखेंगे कि प्रकृति में मशरूम सहजीवन, विघटन और पारिस्थितिक संतुलन में क्या भूमिका निभाते हैं। अंत में, भारत में पाए जाने वाले प्रमुख और उपयोगी मशरूम - जैसे बटन (button), ऑयस्टर (oyster), शिटाके (shitake) और रीशी (rishi) - का संक्षिप्त परिचय मिलेगा।

मशरूम और बेसिडिओमाइकोटा: संरचना व जैविक पहचान
मशरूम किसी पौधे या जानवर की तरह नहीं होते, बल्कि यह एक अत्यंत विकसित कवक समूह - बेसिडिओमाइकोटा - से संबंधित हैं। इनकी मूल संरचना जमीन के अंदर फैले महीन धागेनुमा तंतुओं से बनती है, जिन्हें हाइफ़े (Hyphae) कहा जाता है। यही हाइफ़े मिलकर मायसीलियम (mycelium) नामक जाल बनाते हैं, जो असल में कवक का असली शरीर है। हम जो मशरूम की टोपी देखते हैं, वह केवल बेसिडियोकार्प (Basidiocarp) या फलन-काय होता है, जिसका मुख्य उद्देश प्रजनन है। इस टोपी के नीचे विशेष कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें बेसिडिया (Basidia) कहते हैं। यहीं पर यौन प्रजनन द्वारा बेसिडियोस्पोर (Basidiospores) बनते हैं। इनकी संरचना किसी छतरी जैसी लगती है - ऊपर चिकनी टोपी, नीचे पंखुड़ीनुमा किनारे या नलिकाएँ, और नीचे मजबूत डंठल। यह पूरा ढांचा प्रकृति द्वारा इतनी खूबसूरती से विकसित किया गया है कि यह हवा, नमी और प्रकाश के अनुसार स्वयं को समायोजित कर लेता है। यही कारण है कि मशरूम केवल अपने अनुकूल वातावरण में ही दिखाई देते हैं - अक्सर नम, छायादार और सड़ते पत्तों वाली जगहों पर।

मशरूमों का प्रजनन तंत्र और बीजाणुओं का प्रसार
मशरूम का प्रजनन तंत्र प्रकृति की सबसे नयनाभिराम प्रक्रियाओं में से एक है। जब बेसिडिया (basidia) पर बीजाणु तैयार होते हैं, तो वे हवा में फैल जाते हैं। एक अकेला मशरूम हजारों से लेकर लाखों तक बीजाणु छोड़ सकता है। हवा इन्हें दूर-दूर तक ले जाती है; कभी-कभी छोटे कीट भी इनके वाहक बनते हैं, जैसा कि क्लैथ्रस रूबर (clathrus ruber) जैसी प्रजातियों में देखा जाता है। जब दो संगत बीजाणु आपस में मिल जाते हैं, तो वे नई हाइफ़े बनाते हैं और एक नया कवक जीवन शुरू होता है। यह प्रक्रिया शरद ऋतु और सर्दियों के दौरान सबसे अधिक सक्रिय रहती है। मशरूम के नीचे कागज़ रखकर ‘बीजाणु प्रिंट’ भी बनाया जा सकता है - जिसमें बीजाणुओं का गिरा हुआ पैटर्न अलग-अलग रंगों, आकारों और घनत्व द्वारा प्रजातियों की पहचान में मदद करता है। यह शौक वैज्ञानिकों और मशरूम संग्राहकों में काफी लोकप्रिय है।

पारिस्थितिकी में मशरूमों की भूमिका: सहजीवन, अपघटन और परजीविता
प्रकृति में मशरूम की भूमिका इतनी व्यापक है कि इनके बिना जंगल का जीवन अधूरा लगने लगे। सबसे पहले, कई मशरूम माइकोराइज़ा (Mycorrhiza) संबंध बनाते हैं - एक सहजीवी साझेदारी जिसमें मशरूम पेड़ों की जड़ों को खनिज व पानी उपलब्ध कराते हैं और बदले में पेड़ उन्हें कार्बोहाइड्रेट (carbohyderate) देता है। यह संबंध पौधों की वृद्धि के लिए अनिवार्य माना जाता है। दूसरा, कई मशरूम सैप्रोफाइट होते हैं - ये मृत लकड़ी, गिरे हुए पत्ते, और जैविक कचरे को विघटित करते हैं। इन्हें प्रकृति का सफ़ाईकर्मी कहना बिल्कुल सही है, क्योंकि ये जंगलों को सड़ने से बचाते हैं और मिट्टी में फिर से पोषक तत्व लौटाते हैं। कुछ मशरूम परजीवी भी होते हैं, जो कमजोर पेड़ों या पौधों पर बढ़ते हैं और कभी-कभी उन्हें नुकसान भी पहुँचाते हैं। लेकिन पारिस्थितिकी में इनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जंगलों की जैविक संतुलन प्रक्रिया का एक हिस्सा है।

भारत में उगने वाले प्रमुख और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण मशरूम
भारत में मशरूम की खेती तेजी से बढ़ रही है और कई किस्में अब आसानी से उपलब्ध हैं। बटन मशरूम (Agaricus bisporus) सबसे लोकप्रिय और आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण प्रजाति है। इसका हल्का स्वाद और नरम बनावट इसे घरों और होटलों दोनों में पसंदीदा बनाते हैं। ऑयस्टर मशरूम (Pleurotus spp.) अपनी पंखे के आकार की संरचना और कोमल स्वाद के लिए प्रसिद्ध है। यह किसानों के लिए भी लाभकारी है क्योंकि इसकी खेती अपेक्षाकृत आसान है। शिटाके मशरूम, जिनकी उत्पत्ति पूर्वी एशिया में हुई, अब भारत में भी उगाए जा रहे हैं। इनका मांसल स्वाद इन्हें विशेष व्यंजनों में उपयोगी बनाता है। एनोकी मशरूम, अपने लंबे सफ़ेद डंठल और छोटे गोल सिर के साथ, भारतीय बाज़ारों में अब जगह बना रहे हैं—विशेषकर सूप और एशियाई व्यंजनों में। और सबसे अनोखे - रीशी मशरूम (Ganoderma lucidum) - जिन्हें “अमरता का मशरूम” कहा जाता है, अपने औषधीय गुणों के कारण स्वास्थ्य जगत में अत्यधिक सम्मानित हैं।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/mrxkdnre 
https://tinyurl.com/2fc2ccss 
https://tinyurl.com/yc24ebuv 
https://tinyurl.com/39cvvc9p 
https://tinyurl.com/yp8a3fzt 
https://tinyurl.com/mwt4y4by 



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