मेरठवासियों जानिए, किण्वन का अद्भुत विज्ञान: दही, पनीर, ब्रेड और वाइन का जीवित संसार

बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ, क्रोमिस्टा और शैवाल
29-12-2025 09:26 AM
मेरठवासियों जानिए, किण्वन का अद्भुत विज्ञान: दही, पनीर, ब्रेड और वाइन का जीवित संसार

मेरठ की खाद्य संस्कृति में डेयरी (dairy) और बेकरी (bakery) का खास स्थान है, और किण्वन इन्हें सुरक्षित, स्वादिष्ट और पौष्टिक बनाने में बड़ी भूमिका निभाता है। दही की मलाईदार बनावट, छाछ-लस्सी की ताज़गी, पनीर का स्वाद, और ब्रेड की नरमी - इन सबके पीछे सूक्ष्मजीवों की अनदेखी लेकिन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका छिपी होती है। किण्वन एक ऐसा विज्ञान है जो हमारे भोजन को सुरक्षित बनाता है, उसे नया स्वाद देता है और कई बार उसकी पाचन क्षमता भी बढ़ा देता है।
इस लेख में सबसे पहले, हम जानेंगे कि डेयरी किण्वन (Dairy Fermentation) में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (Lactic Acid Bacteria) दही, पनीर और छाछ के स्वाद व बनावट को कैसे बदलते हैं। फिर, हम यह समझेंगे कि सूक्ष्मजीव कैसे पनीर के विविध स्वाद, टेक्सचर और सुगंध का निर्माण करते हैं। इसके बाद, हम सोया सॉस की पारंपरिक किण्वन प्रक्रिया के रहस्यों को खोलेंगे। वाइन निर्माण में यीस्ट की भूमिका की वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझेंगे। फिर हम जानेंगे कि ब्रेड को फूलाने और स्वादिष्ट बनाने में यीस्ट (yeast) कैसे काम करती है। और अंत में, हम इस बात पर पहुँचेंगे कि किण्वन हमारे स्वाद, पोषण और संरक्षण के क्षेत्र में कितना महत्वपूर्ण योगदान देता है।

डेयरी किण्वन में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया की भूमिका (दही, पनीर, छाछ)
मेरठ के लगभग हर घर में शाम को दही जमाने की तैयारी होना एक आम दृश्य है, लेकिन इस साधारण-सी दिखने वाली प्रक्रिया के पीछे एक अद्भुत विज्ञान काम करता है - लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (लैब - LAB)। ये सूक्ष्मजीव दूध में मौजूद लैक्टोज (lactose) को धीरे-धीरे लैक्टिक एसिड में बदलते हैं, और यही परिवर्तन दही की हल्की खट्टास, उसका गाढ़ापन और उसका चिकना, मुलायम टेक्सचर (texture) बनाता है। जब लैब सक्रिय होते हैं, तो दूध का पीएच (pH) धीरे-धीरे कम होता जाता है, जिससे दूध का मुख्य प्रोटीन ‘केसीन’ (Casein) जमकर दही की ठोस संरचना बनाता है। पनीर बनाने में इस प्रक्रिया में एक और महत्वपूर्ण घटक शामिल होता है - रेनिन एंज़ाइम (Rennin enzyme)। जब रेनिन और लैब मिलकर क्रिया करते हैं, तो दूध का प्रोटीन अलग ढंग से जमता है और पनीर का आधार तैयार होता है, जिससे दुनिया भर में अनगिनत प्रकार के पनीरों का निर्माण संभव होता है। छाछ और लस्सी में भी यही लैब स्वाद, हल्केपन और पाचन क्षमता को बढ़ाते हैं, जिससे ये पेय गर्मियों में शरीर को ठंडक देने के साथ-साथ पेट के लिए भी फायदेमंद बन जाते हैं। केवल एक कटोरी दही ही हमारे पाचन तंत्र में मौजूद सैकड़ों प्रकार के बैक्टीरिया समूहों के संतुलन को सुधारने में मदद कर सकती है - यानी दही सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक प्रोबायोटिक (probiotic) शक्ति है।

किण्वन और पनीर के विविध स्वादों में सूक्ष्मजीवों का योगदान
पनीर का स्वाद और सुगंध जितनी विविध होती है, उतनी ही विविध उसके भीतर काम करने वाले सूक्ष्मजीवों की दुनिया होती है। मोज़रेला (mozzarella) की हल्की मिठास, चेडर का तीखापन, गौडा की नट जैसी महक और परमेज़न (Parmesan) की गहराई - इन सबका निर्माण केवल दूध से नहीं, बल्कि उन सूक्ष्मजीवों से होता है जो पनीर को पकाने, सुखाने और उम्र बढ़ाने (एजिंग - aging) के समय सक्रिय रहते हैं। एजिंग के दौरान बैक्टीरिया प्रोटीन और वसा को छोटे-छोटे स्वादयुक्त यौगिकों में तोड़ते हैं, और यही यौगिक पनीर को उसकी पहचान, सुगंध और जटिलता देते हैं। उदाहरण के लिए ब्लू चीज़ का नीला जाल जैसा खास पैटर्न दरअसल पेनिसिलियम रोक्वेफ़ोर्टी (Penicillium roqueforti) नामक फफूंदी के विकास से बनता है, जो उसे तीखा, तेज़ और गहराई से भरपूर स्वाद देती है। अलग-अलग क्षेत्रों में बने पनीरों का स्वाद उस क्षेत्र की मिट्टी, हवा, पशुओं के चारे, दूध की गुणवत्ता और स्थानीय सूक्ष्मजीवों पर निर्भर करता है - इसे ही “टेरोइर” (Terroir) कहा जाता है।

सोया सॉस निर्माण की पारंपरिक किण्वन प्रक्रिया
सोया सॉस (Soya Sauce) एशियाई भोजन का हृदय है, और इसकी निर्मिति सदियों पुरानी एक अत्यंत जटिल लेकिन सुंदर किण्वन परंपरा पर आधारित है। प्रक्रिया की शुरुआत होती है कोजी तैयार करने से, जहाँ सोयाबीन और गेहूँ को भाप देकर उन पर एस्परगिलस मोल्ड (Aspergillus mold) फैलाया जाता है। यह फफूंदी धीरे-धीरे एंज़ाइम बनाती है जो सोयाबीन के प्रोटीन और गेहूँ के स्टार्च (starch) को छोटे घटकों में तोड़ते हैं, यानी किण्वन के लिए आधार तैयार करती है। इसके बाद इस मिश्रण को नमक के घोल, जिसे ब्राइन (brine) कहा जाता है, में रखा जाता है और महीनों या कई बार वर्षों तक एक बड़े पात्र में पकने के लिए छोड़ दिया जाता है। इस चरण को मोरोमी कहा जाता है, और यह धीमी, प्राकृतिक किण्वन सोया सॉस की आत्मा बनाता है। इस दौरान सूक्ष्मजीव अमीनो एसिड (amino acid), विशेषकर ग्लूटामिक एसिड (Glutamic acid), का निर्माण करते हैं, जो ‘उमामी’ (Umami) - दुनिया का पांचवाँ मूल स्वाद - प्रदान करता है। यही उमामी सोया सॉस को वह गहराई, मिठास, नमकपन और धरती-सी सुगंध देता है, जो इसे साधारण मसाले से एक जटिल स्वाद-संरचना में बदल देती है।

वाइन निर्माण में यीस्ट द्वारा अल्कोहल किण्वन
वाइन की दुनिया जितनी भव्य दिखती है, उसकी जड़ में उतना ही सूक्ष्म और रोचक विज्ञान छिपा है - यीस्ट आधारित किण्वन। वाइन बनाने की मुख्य कलाकार सैकरोमाइसेज़ सेरेविसिया (Saccharomyces cerevisiae) नामक यीस्ट है, जो अंगूर के रस या ‘मस्ट’ (Must) में मौजूद शर्करा को अल्कोहल (alcohol) और कार्बन डाईऑक्साइड (CO₂) में बदल देती है। कई बार प्राकृतिक यीस्ट पहले से ही अंगूर की त्वचा पर मौजूद होती है, जिससे किण्वन अपने आप शुरू हो जाता है; जबकि कुछ निर्माता विशिष्ट स्वाद और गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए चयनित यीस्ट स्ट्रेन जोड़ते हैं। वाइन का अंतिम स्वाद केवल अंगूर के प्रकार पर निर्भर नहीं होता - किण्वन का तापमान, ऑक्सीजन (O₂) की उपलब्धता और पूरी प्रक्रिया की अवधि भी सुगंध, गाढ़ापन और बनावट को गहराई से प्रभावित करती है। ठंडे तापमान पर धीमा किण्वन फलों जैसी सुगंधों को उभारता है, जबकि अपेक्षाकृत गर्म किण्वन गहरे, भारी और जटिल स्वादों को जन्म देता है।

ब्रेड उत्पादन में यीस्ट का योगदान
ब्रेड बनना एक साधारण रसोई प्रक्रिया नहीं, बल्कि एक जीवंत वैज्ञानिक घटना है जहाँ यीस्ट आटे को जीवन देती है। जब यीस्ट आटे में मौजूद प्राकृतिक शर्करा को खाती है, तो वह कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ती है - और यही गैस आटे में छोटे-छोटे बुलबुले बनाती है, जिससे आटा ऊपर उठता है और हल्का, फूला हुआ बनता है। इसे प्रूफिंग कहा जाता है। जब ब्रेड को ओवन में रखा जाता है, तो उच्च तापमान इन गैस बुलबुलों को स्थिर कर देता है और ब्रेड का नरम, स्पंजी क्रम्ब (spongy crumb) तैयार होता है। यीस्ट केवल गैस ही नहीं बनाती, बल्कि दर्जनों सुगंध और स्वाद यौगिक भी पैदा करती है, जो ब्रेड को उसका विशिष्ट खुशबूदार और ताज़ा स्वाद देते हैं। ओवन की गर्मी से बाहर की परत भूरी होकर एक सख्त, स्वादिष्ट क्रस्ट बनाती है, जो ब्रेड की बनावट को और बेहतर बनाती है।

किण्वन का महत्व—स्वाद, संरक्षण और पोषण में बढ़ोतरी
किण्वन सिर्फ स्वाद बढ़ाने की तकनीक नहीं, बल्कि एक प्राकृतिक सुरक्षा कवच भी है जो भोजन को खराब होने से बचाता है। किण्वन के दौरान बनने वाले लैक्टिक एसिड, अल्कोहल और अन्य जैविक अम्ल हानिकारक जीवों को बढ़ने नहीं देते, जिससे भोजन लंबे समय तक सुरक्षित रहता है - यह प्राचीन समय की सबसे प्रभावी संरक्षण विधियों में से एक थी। पोषण की दृष्टि से भी किण्वन बेहद महत्वपूर्ण है; यह भोजन के घटकों को सरल बनाकर उन्हें आसानी से पचने योग्य और अधिक लाभकारी बना देता है। उदाहरण के लिए दही लैक्टोज असहिष्णु लोगों के लिए भी उपयुक्त होता है, क्योंकि लैब लैक्टोज को तोड़कर पाचन को आसान बना देते हैं। किण्वन स्वाद, सुगंध और टेक्सचर में भी अनोखा योगदान देता है, जो भोजन को सामान्य से असाधारण बना देता है। यही कारण है कि भारतीय, जापानी, यूरोपीय, अफ्रीकी-दुनिया की हर खाद्य संस्कृति किण्वन से प्रभावित है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/2s4jkyrj
https://tinyurl.com/mu2rv6ey
https://tinyurl.com/3ej9kcvp
https://shorturl.at/EEbjo 

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