मेरठ घंटाघर

अवधारणा I - मापन उपकरण (कागज़/घड़ी)
01-02-2018 10:54 AM
मेरठ घंटाघर

घंटाघर प्रत्येक महत्वपूर्ण शहरों में पाया जाता है यह प्रदर्शित करता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में वह शहर कितना महत्वपूर्ण था। मेरठ से लेकर लखनऊ, मुम्बई, कोटा आदि स्थानों पर घंटाघरों की प्राप्ति होती है। घंटाघर उद्योगों के समीप ही मुख्य रूप से बनाया जाता है जिसका प्रमुख कारण होता था यहाँ पर काय करने वालों को समय से अवगत कराना। मेरठ का घंटाघर अत्यन्त खूबसूरती से बनाया गया है तथा यह मुख्य बाज़ार में स्थित है। जैसा की मेरठ एक औद्योगिक शहर था तो यहाँ पर घंटाघर का होना लाज़मी है। ब्रिटिश राज में मेरठ के भीड़भाड़ वाले इलाके में 1913 में घंटाघर का निर्माण हुआ तथा इसमें इंग्लैंड से वेस्टन एंड वॉच कंपनी की घड़ी 1914 में लगार्इ गर्इ। मेरठ के घंटाघर के पास ही टाउन हॉल है। मेरठ का यह घंटाघर भारतीय आजादी के लिये हुये कई सभाओं का गवाह रह चुका है। मेरठ के इस घंटाघर की खासियत यह थी कि हर घंटे बाद इसके पेंडुलम की आवाज दस किलोमीटर की परिधि तक पहुंचती थी। 30 के दशक में नेताजी सुभाष चंद बोस ने टाउन हाल की जनसभा में लोगों में जोश भरा था। इसमें दूर-दूर से लोग उन्हें सुनने आए थे। सुभाषचन्द्र बोस ने घंटाघर की तारीफ भी की थी। यहां महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू समेत कर्इ नेताओं ने देश की आजादी के लिए जनसभाएं की थी। आजादी के बाद घंटाघर की इस बिल्डिंग का नाम भी नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वार रखा गया। 1. https://goo.gl/grvfn1 2.https://goo.gl/i2RRHy