मेरठ के निकटवर्ती गढ़मुक्तेश्वर के गंगा तट पर महाभारत काल से लगता आया है कार्तिक मेला

नदियाँ और नहरें
25-11-2023 10:01 AM
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मेरठ के निकटवर्ती गढ़मुक्तेश्वर के गंगा तट पर महाभारत काल से लगता आया है कार्तिक मेला

हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में, कई प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र हैं। इनमें हापुड़ जिले में स्थित गढ़मुक्तेश्वर भी काफी खास है। यहां भगवान शिव मुक्तेश्वर रूप में विराजे हैं। मान्यता है कि, भगवान परशुराम ने एक बार नाराज होकर, शिवलिंग पर मुक्का मारा था, जिसके कारण,गढ़मुक्तेश्वर मंदिर में स्थापित शिवलिंग आधा धंस गया है। यहां हर वर्ष कार्तिक माह(अक्तूबर–दिसंबर)में,गंगा नदी के किनारे मेला लगता है।इसमें, लोग पूरे देश से यहां पूजा और गंगा स्नान करने के लिए आते हैं।
गढ़मुक्तेश्वर का उल्लेख भागवत पुराण और महाभारत में मिलता है। दावा हैं कि, यह पांडवों की राजधानी– प्राचीन हस्तिनापुर का एक हिस्सा था। इस शहर का नाम, मुक्तेश्वर महादेव के मंदिर से लिया गया है। कहा जाता है कि, यह मंदिर देवी गंगा को भी समर्पित है, जिनकी वहां चार मंदिरों में पूजा की जाती है। शहर में 80 सती स्तंभ भी हैं, जो उन स्थानों को चिह्नित करते हैं, जहां हिंदू विधवाएं सती-माता बन गई थीं। शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान शिव के गण घूमते हुए दुर्वासा ऋषि के आश्रम में पहुंच गए। उस समय ऋषि दुर्वासा तपस्या में मग्न थे।परंतु, भगवान शिव के गण दुर्वासा ऋषि का उपहास करने लगे। इससे क्रोधित होकर,दुर्वासा ऋषि ने गणों को पिचाश बनने का श्राप दे दिया।इससे भयभीत होकर गण अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना करने लगे। तब, दुर्वासा ऋषि ने गणों से कहा कि, मुक्ति के लिए उन्हें शिवबल्लभ जाकर तपस्या करनी पड़ेगी।फिर, सभी गण शिवबल्लभ जाकर तपस्या करने लगे, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें मुक्त कर दिया। तब से यह स्थान,गणमुक्तेश्वर कहलाने लगा था; जो आगे चलकर गढ़मुक्तेश्वर बन गया।
कहा यह भी जाता है कि, महाभारत काल में हुए युद्ध से, युधिष्ठिर विचलित हो गए थे और परेशान रहते थे।तब, भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें गढ़मुक्तेश्वर जाकर भगवान शिव की पूजा करने और पिंडदान करने को कहा था। और, इस वजह से युधिष्ठिर ने गढ़मुक्तेश्वर में शिव पूजा और पिंडदान किया था।इसके साथ ही, महाभारत युद्ध के बाद, भगवान कृष्ण ने पांडवों को भी, यहां आकर अपने प्रिय दिवंगत आत्माओं के लिए प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया था। तब से, हर वर्ष यहां कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा के किनारे मेला लगता है।
गढ़मुक्तेश्वर में लगने वाला मेला न केवल पौराणिक महत्व रखता है, बल्कि, यह सदियों से पर्यटन स्थल भी रहा है। इस वर्ष 2023 में आयोजित होने वाला मेला, महाभारत के बाद 5,623वां मेला होगा। हर साल इस मेले में, आसपास के जिलों और यहां तक कि आसपास के राज्यों से भी लाखों लोग आते हैं। ये आगंतुक यहां एक सप्ताह के लिए रुकते हैं और तंबूओं से बने अस्थायी निवास स्थलों में बस जाते हैं। वे ‘मुंडन’ और विवाह संपन्न कराने जैसे विभिन्न अनुष्ठानों में शामिल होते हैं, और दिवंगत आत्माओं के लिए प्रार्थना करते हैं।
पिछले वर्ष आयोजित गढ़ मेले में 35 लाख श्रद्धालु आये थे। इस पौराणिक मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या की दृष्टि से, इसे उत्तर भारत का ‘छोटा कुंभ’ भी कहा जाता है।
हालांकि, नवंबर 1946 में, यह मेला मुस्लिम विरोधी हिंसा का प्रमुख स्थल था। क्योंकि, उस समय ब्रिटिश भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भारत और पाकिस्तान विभाजन के कारण महत्वपूर्ण सांप्रदायिक अशांति का सामना करना पड़ रहा था। ज्ञानेंद्र पांडे ने इस जगह का वर्णन “विभाजन के अत्याचारों के लिए, एक रूपक” के रूप में किया है। हालांकि, पिछले वर्ष अर्थात 2022 में, यह एक सुव्यवस्थित और मज़ेदार कार्यक्रम था। पहले इस मेले के लिए, 22 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र में छह किलोमीटर लंबे नदी घाट का उपयोग किया गया था। तब, जिला प्रशासन को कई चुनौतियों का सामना भी करना पड़ा था। इन प्रारंभिक चुनौतियों में से एक, 12 से अधिक जिलों से यातायात प्रवाह का प्रबंधन करना था। इसलिए, अमरोहा जिले एवं हमारे मेरठ मंडल की टीम के साथ संयुक्त सघन बैठकों और विचार-विमर्श से ही मदद मिल सकी थी।इस मेले के दौरान, मेरठ प्रशासन की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है, क्योंकि,गढ़मुक्तेश्वर हमारे शहर मेरठ से सिर्फ 50 किलोमीटर दूर स्थित है।
यातायात प्रबंधन के अलावा, इस मेले से संबंधित अन्य कई महत्वपूर्ण समस्याएं प्रशासन के सामने खड़ी थी। परंतु, उचित प्रयासों एवं उत्तम प्रबंधन के कारण, गढ़ मेला पूरी तरह सफल रहा था और किसी भी दुर्घटना की सूचना नहीं मिली थी। यह सफलता, संभावित घटनाओं के लिए एक विस्तृत योजना के कारण थी। क्योंकि,जिलाधिकारी, मेधा रूपम के प्रेरित नेतृत्व में जिले के विभिन्न विभागों के सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने एक टीम के रूप में कार्य किया था। यह टीम अतीत में हुई गलतियों को सुधारने तथा ‘कुंभ मेला’ जैसे, सफल मेलों से कुछ बातें सीखने के लिए तैयार थी। यह ‘नेक्सस ऑफ गुड(Nexus of Good)’ का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है, क्योंकि, देश के अन्य लोग ऐसे आयोजनों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए, गढ़ में उठाए गए कदमों से सीख सकते हैं और उन्हें दोहरा सकते हैं। इस मेले का आयोजन जिला पंचायत द्वारा किया जाता था, लेकिन, योगी सरकार द्वारा इसे राजकीय मेले की मान्यता दिए जाने के बाद,अब राज्य शासन द्वारा मेला आयोजन के लिए, धनराशि उपलब्ध कराई जाती है। परंतु सभी व्यवस्थाएं अब भी, जिला पंचायत द्वारा ही पूरी कराई जाती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yea2fxss
https://tinyurl.com/554r93de
https://tinyurl.com/35eh5ssd
https://tinyurl.com/265ra2hy

चित्र संदर्भ
1. गढ़मुक्तेश्वर मेले के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. गढ़मुक्तेश्वर को दर्शाता एक चित्रण (Pexels)
3. पांडवों की सभा को दर्शाता एक चित्रण (PICRYL)
4. गढ़ गंगा मेले को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. मेले के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (rawpixel)