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रामपुर के नागरिकों, हमारा शहर, ऐतिहासिक वास्तुकला और स्मारकों की समृद्ध विरासत का घर है, जो इसके शाही अतीत और सांस्कृतिक विरासत को दर्शाते हैं। क्या आप जानते हैं कि मध्ययुगीन इतिहास के अनुसार, रामपुर दिल्ली क्षेत्र का हिस्सा था, और बदायूँ और संभल ज़िलों के बीच विभाजित था। बाद में, मुगल काल की शुरुआत में, रोहिलखंड की राजधानी बदायूँ से बदलकर बरेली कर दी गई जिससे रामपुर का महत्व और बढ़ गया। रामपुर राज्य (Rampur State), ब्रिटिश शासन के दौरान और उसके बाद भी साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य था। रामपुर राज्य, 15 तोपों की सलामी वाला राज्य था और इसकी स्थापना 7 अक्टूबर 1774 को ब्रिटिश कमांडर अलेक्ज़ेंडर चैंपियन की उपस्थिति में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान (Faizullah Khan) ने की थी। फैज़ुल्ला खान ने रामपुर में नए किले का निर्माण कराया और इस तरह 1775 में रामपुर शहर की स्थापना हुई। उसके बाद ब्रिटिश संरक्षण के तहत यह एक समृद्ध राज्य बना रहा। तो आइए आज, रामपुर राज्य की उत्पत्ति और इतिहास के बारे में जानते हैं और नवाबों के अधीन, विशेष रूप से सैय्यद मुहम्मद सईद खान (Muhammad Said Khan) के संदर्भ में, रियासत के प्रशासन पर प्रकाश डालते हैं। इसके साथ ही, हम नवाबी युग के दौरान रामपुर की वास्तुकला की विशेषताओं के बारे में जानेंगे। इस संदर्भ में, हम दुर्लभ पांडुलिपियों और ऐतिहासिक ग्रंथों के खजाने रामपुर रज़ा पुस्तकालय के महत्व पर चर्चा करेंगे और रामपुर रज़ा पुस्तकालय की अनूठी वास्तुकला का पता लगाएंगे।
रामपुर राज्य की उत्पत्ति और इतिहास:
रोहिल्ला पठानों के 1772 में मराठों के खिलाफ़ सैन्य सहायता के लिए अवध के नवाब से लिये कर्ज़ को वापस देने से मुकरने पर, 1774-75 का रोहिल्ला युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध में ईस्ट इंडिया कंपनी (East India Company) ने नवाबों की सहायता की और जिससे नवाबों ने रोहिल्लाओं को पराजित कर दिया और उनकी पूर्व राजधानी बरेली से खदेड़ दिया। इसके बाद 7 अक्टूबर 1774 को ब्रिटिश कमांडर कर्नल चैंपियन की उपस्थिति में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान द्वारा रामपुर में रोहिल्ला राज्य की स्थापना की गई। फ़ैज़ुल्ला खान ने रामपुर में नए किले का निर्माण कराया और इस तरह 1775 में रामपुर शहर की स्थापना हुई। पहले नवाब ने शहर का नाम बदलकर अपने नाम पर 'फ़ैज़ाबाद' करने का प्रस्ताव रखा। लेकिन फ़ैज़ाबाद के नाम से जानी जाने वाली कई अन्य जगहें पहले से ही मौजूद थीं, इसलिए नाम बदलकर मुस्तफ़ाबाद उर्फ़ रामपुर कर दिया गया। नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने रामपुर पर 20 वर्षों तक शासन किया। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद अली खान (Muhammad Ali Khan) ने सत्ता संभाली, लेकिन 24 दिनों के बाद रोहिल्ला नेताओं ने उनकी हत्या कर दी और गुलाम मुहम्मद खान (Ghulam Muhammad Khan) को नवाब घोषित किया। ईस्ट इंडिया कंपनी ने इस पर आपत्ति जताई और केवल 3 महीने और 22 दिनों के शासनकाल के बाद गुलाम मुहम्मद खान को हरा दिया। इसके बाद, मुहम्मद अली खान के बेटे अहमद अली खान को नया नवाब बनाया गया। उन्होंने 44 वर्षों तक शासन किया। उनके कोई पुत्र नहीं था, इसलिए गुलाम मुहम्मद खान के पुत्र मुहम्मद सईद खान ने नए नवाब के रूप में पदभार संभाला। उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद यूसुफ़ अली खान (Muhammad Yusef Ali Khan) ने सत्ता संभाली। उनका बेटा कल्ब अली खान 1865 में नया नवाब बना। रज़ा अली खान 1930 में आखिरी शासक नवाब बने। 1 जुलाई 1949 को रामपुर राज्य का भारत गणराज्य में विलय कर दिया गया।
नवाबों के अधीन रामपुर रियासत का प्रशासन:
नवाब मोहम्मद सईद खान के शासन के दौरान राज्य के प्रशासन में उल्लेखनीय सुधार हुआ। उन्होंने न्याय की दीवानी और फ़ौजदारी अदालतों का आयोजन किया और राज्य में सरकार की एक ऐसी प्रणाली शुरू की जो पहले अज्ञात थी। इस शासन प्रणाली से भू-राजस्व संग्रह में सुधार के साथ-साथ उल्लेखनीय वृद्धि हुई। उनके शासनकाल में एक चौकी और सोलह थानों की स्थापित की गई, अस्तबल, बुग्घी-खाना और मोती मस्जिद जैसी कुछ नई इमारतें बनाई गईं, और अफ़गानपुर के पास और बाग बेनज़ीर के पास जैसी कुछ नई सड़कों का निर्माण किया गया। वह एक उत्कृष्ट विद्वान थे और तिब (यूनानी चिकित्सा) से अच्छी तरह परिचित थे। वह एक कवि और अच्छे गद्यकार थे। नवाब मोहम्मद सईद खान शिया संप्रदाय के अनुयायी थे। उन्होंने कोठी खुर्शीद मंज़िल के पास एक इमाम बाड़ा बनवाया, और सोने और चांदी के अलम और जरीह इमाम बाड़े को भेंट किए।
नवाबों के शासनकाल के दौरान रामपुर की वास्तुकला की विशेषताएं:
रामपुर के शासकों का क्षेत्र की वास्तुकला पर विशिष्ट प्रभाव रहा है। यहां की इमारतें और स्मारक मुगल शैली की वास्तुकला की उपस्थिति का संकेत देते हैं। कुछ इमारतें बहुत पुरानी हैं और समय के साथ इनका बार-बार निर्माण किया गया है। रामपुर का किला यहां की उत्कृष्ट वास्तु कला का एक अच्छा उदाहरण है। इसमें रज़ा पुस्तकालय या हामिद मंज़िल भी है, जो शासकों का पूर्व महल था। इसमें एशिया में प्राच्य पांडुलिपियों का एक बड़ा संग्रह है। इस किले में इमामबाड़ा भी है। इसके अलावा, यहां की जामा मस्जिद, रामपुर में पाई जाने वाली वास्तुकला के बेहतरीन नमूनों में से एक है। यह कुछ हद तक दिल्ली की जामा मस्जिद से मिलती-जुलती है। इसका निर्माण नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने करवाया था। इसकी वास्तुकला में मुगल वास्तुकला की छाप स्पष्ट है। मस्जिद में कई प्रवेश-निकास द्वार हैं। इसमें तीन बड़े गुंबद और चार ऊंची मीनारें हैं जिनमें सोने के शिखर हैं। इसमें एक मुख्य ऊंचा प्रवेश द्वार है जिसमें एक अंतर्निर्मित घंटाघर है जिसके ऊपर एक बड़ी घड़ी लगी हुई है जिसे ब्रिटेन से आयात किया गया था। यहां नवाब द्वारा बनवाए गए कई प्रवेश-निकास द्वार हैं, उदाहरण के लिए शाहबाद गेट, नवाब गेट, बिलासपुर गेट आदि।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय का महत्व:
रामपुर रज़ा पुस्तकालय में 17,000 पांडुलिपियों का एक विशाल संग्रह है, जिसमें 4413 चित्रों के साथ 150 सचित्र पांडुलिपियां और लगभग 83,000 मुद्रित पुस्तकें, एल्बम में 5,000 लघु चित्र, सुलेख के 3000 नमूने और 205 ताड़ के पत्ते शामिल हैं। कई दुर्लभ और मूल्यवान ग्रंथ अरबी, फ़ारसी, उर्दू, हिंदी और अन्य भाषाओं में हैं। इस संग्रह में इतिहास, दर्शन, विज्ञान, साहित्य और धर्म सहित कई विषयों पर काम शामिल हैं। इस पुस्तकालय में कई दुर्लभ कलाकृतियों का संग्रह भी है, जिनमें लघु चित्र, सिक्के और ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व की अन्य वस्तुएँ शामिल हैं। इसमें एक संरक्षण प्रयोगशाला है जो इन कलाकृतियों को संरक्षित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए काम करती है कि वे भविष्य की पीढ़ियों के लिए संरक्षित रहें।
रामपुर रज़ा पुस्तकालय की अनूठी वास्तुकला:
शानदार हामिद मंज़िल की आठ मीनारों में स्थित विश्वप्रसिद्ध रामपुर रज़ा पुस्तकालय भारत में बहुलवाद का एक महान प्रतीक है। पुस्तकालय की मीनार का निचला हिस्सा एक मस्जिद के आकार में बना है; इसके ठीक ऊपर का हिस्सा एक चर्च जैसा दिखता है, जबकि तीसरा हिस्सा एक सिख गुरुद्वारे के वास्तुशिल्प डिज़ाइन को दर्शाता है, और सबसे ऊपरी हिस्सा एक हिंदू मंदिर के आकार में बनाया गया है। समावेशिता की यह भावना लोगों को सद्भाव से रहने के लिए प्रेरित करती रही है। इस इमारत की आंतरिक वास्तुकला, यूरोपीय वास्तुकला से प्रेरित है। इसकी अनूठी वास्तुकला, पूर्ववर्ती रामपुर रियासत की प्रकृति और राजनीति के बारे में एक लंबी कहानी बताती है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में रामपुर रज़ा पुस्तकालय से जामा मस्जिद का नज़ारा: स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह