महासागरों पर मंडराता संकट: बढ़ते जलस्तर से जीवन और रोज़गार पर असर

समुद्र
23-08-2025 09:24 AM
महासागरों पर मंडराता संकट: बढ़ते जलस्तर से जीवन और रोज़गार पर असर

जब हम महासागरों की बात करते हैं, तो हमारे मन में अक्सर एक शांत, गहराइयों से भरा, और जीवन से सराबोर दृश्य उभरता है। लेकिन आज वही महासागर एक अदृश्य संकट की चपेट में हैं। जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि ने समुद्री पारिस्थितिकी को हिला कर रख दिया है। समुद्र का सतही तापमान तेज़ी से बढ़ रहा है, लहरों की दिशा बदल रही है, जलस्तर लगातार ऊपर उठ रहा है, और ये सभी परिवर्तन न केवल समुद्री जीवों के अस्तित्व को चुनौती दे रहे हैं, बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका, सुरक्षा और भोजन के स्रोत को भी सीधे प्रभावित कर रहे हैं। यह अब सिर्फ विज्ञान की चिंता नहीं, बल्कि मानव अस्तित्व से जुड़ा एक बड़ा प्रश्न बन चुका है। 
इस लेख में हम गहराई से समझने की कोशिश करेंगे कि कैसे जलवायु परिवर्तन महासागरों की गति, संरचना और जीवन को प्रभावित कर रहा है, न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से, बल्कि उन मानवीय गतिविधियों के संदर्भ में भी, जो इस संकट को और गहरा बना रही हैं। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि इस चुनौती से उबरने के लिए दुनिया को किन व्यावहारिक और टिकाऊ समाधानों की ओर बढ़ना होगा।

महासागरों पर जलवायु परिवर्तन का समग्र प्रभाव
आज जलवायु परिवर्तन केवल पेड़ों, बर्फ की चादरों या गर्मियों की लंबाई तक सीमित संकट नहीं है, यह अब महासागरों की आत्मा को भी झकझोर रहा है। समुद्र का सतही तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिससे समुद्री धाराओं की दिशा, वेग और संतुलन बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इसके परिणामस्वरूप न केवल मौसम चक्र अस्थिर हो गया है, बल्कि वैश्विक मानसून प्रणालियों पर भी असर पड़ा है। समुद्र की लवणता (salinity) में असामान्य बदलाव, जलधाराओं की चाल की अनियमितता और समुद्र की बायोजियोकेमेस्ट्री (biogeochemistry) में असंतुलन, इन सबने मिलकर एक चुपचाप उभरती त्रासदी को जन्म दिया है। इसका असर मछुआरों की आय से लेकर मौसम आधारित खेती तक, सब पर पड़ रहा है, और हममें से अधिकतर को इसका अंदाज़ा तक नहीं है।

समुद्र स्तर में वृद्धि: कारण और वैश्विक खतरें
ग्लेशियरों (glaciers) के तेज़ी से पिघलने, समुद्री जल के थर्मल एक्सपैंशन (thermal expansion) और भूमिगत जल के अत्यधिक दोहन ने मिलकर समुद्र के जलस्तर को अभूतपूर्व गति से ऊपर उठा दिया है। इस परिवर्तन के परिणाम केवल समुद्र तटों तक सीमित नहीं रहते, यह तटीय शहरों की बुनियादी ढाँचे, सांस्कृतिक धरोहरों और आम जनजीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। अनुमान है कि 2050 तक 30 करोड़ लोग हर साल गंभीर बाढ़ की चपेट में आ सकते हैं। बांग्लादेश, भारत, थाईलैंड (Thailand), चीन और इंडोनेशिया (Indonesia) जैसे देशों के लिए यह सिर्फ पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि जीवन, राजनीति और भविष्य की सुरक्षा का सवाल बन चुका है। इंडोनेशिया ने तो इस खतरे को भांपते हुए राजधानी जकार्ता को ही स्थानांतरित करने का फैसला लिया है, यह दर्शाता है कि चुनौती कितनी विशाल और वास्तविक है।

तटीय पारिस्थितिक तंत्र पर संकट और आजीविका पर असर
भारत की लगभग 7,500 किलोमीटर लंबी तटरेखा पर बसे लाखों परिवार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समुद्र से जुड़ी अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं, चाहे वह मछलीपालन हो, पर्यटन, समुद्री व्यापार या नमक उत्पादन। लेकिन जलवायु परिवर्तन और बढ़ते समुद्र-स्तर ने इस पारिस्थितिक संतुलन को तोड़ दिया है। 2019 में आए फेनी चक्रवात ने ओडिशा के प्रसिद्ध पूरी मंदिर को क्षतिग्रस्त किया और हजारों परिवारों की जीविका छीन ली। कोविड-19 की वजह से जब पर्यटन और मछली व्यापार लगभग ठप हो गया था, तब तटीय समुदायों की दुर्दशा और उजागर हो गई। यह साफ है कि समुद्र का संकट सिर्फ पर्यावरण की नहीं, बल्कि मानवीय गरिमा और जीवन की बुनियादी ज़रूरतों से जुड़ा मुद्दा है।

महासागरीय अम्लीकरण और समुद्री जीवन पर प्रभाव
हममें से कितने लोग यह जानते हैं कि समुद्र में घुलती कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) वहाँ की रासायनिक संरचना को बदल रही है? यह प्रक्रिया जिसे हम "महासागरीय अम्लीकरण" (ocean acidification) कहते हैं, अब समुद्री जीवन के लिए एक गहरा खतरा बन चुकी है। कोरल रीफ्स (choral reefs), जो लाखों समुद्री प्रजातियों का घर हैं, सबसे पहले इसकी चपेट में आते हैं। वहीं डीऑक्सीडेशन (Deoxygenation), यानी समुद्र में घुली ऑक्सीजन (oxygen) की मात्रा का गिरना, मछलियों, झींगा और अन्य जीवों को मार रहा है या उन्हें प्रवास के लिए मजबूर कर रहा है। जैव विविधता का यह टूटना, सिर्फ एक इकोलॉजिकल (ecological) संकट नहीं, बल्कि हमारी खाद्य श्रृंखला और आजीविका पर सीधा हमला है। यह चुपचाप होने वाली मौत है, जो समुद्र की गहराइयों में शुरू होती है और हमारी थालियों तक पहुँचती है।

समाधान की दिशा में प्रयास: संरक्षण और टिकाऊ प्रबंधन की ज़रूरत
आज केवल चेतावनियाँ देना या आँकड़े साझा करना काफी नहीं है। समुद्रों को बचाने के लिए ज़मीन पर ठोस, सामूहिक और तत्काल प्रयास ज़रूरी हैं। सबसे पहले, हमें ग्रीनहाउस गैसों (greenhouse gases) के उत्सर्जन पर नियंत्रण पाना होगा, यह जलवायु संकट की जड़ है। फिर, समुद्री पारिस्थितिक तंत्र का वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण से संरक्षण करना होगा। इसके लिए टिकाऊ मत्स्यपालन, मैंग्रोव (mangroves) जैसे प्राकृतिक अवरोधों का पुनर्निर्माण, और प्रकृति-आधारित समाधानों को अपनाना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत जैसे देशों को अपने तटीय शहरों और गाँवों की योजना नए तरीके से बनानी होगी, ताकि न सिर्फ समुद्र से जूझा जा सके, बल्कि उसके साथ संतुलन भी कायम रखा जा सके। महासागर की सेहत अब एक पारिस्थितिक नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी बन चुकी है, और यह हम सबकी साझी जवाबदेही है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/2XqFf 

https://shorturl.at/w1CDK 

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