गंगा की लहरों संग बहती डॉल्फ़िन: प्रकृति और संस्कृति की अनसुनी दास्तान

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23-09-2025 09:14 AM
गंगा की लहरों संग बहती डॉल्फ़िन: प्रकृति और संस्कृति की अनसुनी दास्तान

उत्तर प्रदेश की नदियों का जिक्र हो और गंगा डॉल्फ़िन (Ganga Dolphin) का नाम न आए, ऐसा मुश्किल है। यह जीव, जिसे स्थानीय लोग ‘सूंस’ या ‘सुसु’ कहते हैं, सदियों से गंगा और उसकी सहायक नदियों का हिस्सा रहा है। कभी यह डॉल्फ़िन गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु जैसी विशाल नदी प्रणालियों में बड़ी संख्या में पाई जाती थी, लेकिन आज इनकी गिनती तेजी से घट रही है। गंगा डॉल्फ़िन न सिर्फ हमारी जैव विविधता का अहम हिस्सा है, बल्कि भारतीय संस्कृति में भी इसका विशेष स्थान है - इसे गंगा मैया का दूत और नदी के स्वास्थ्य का सूचक माना जाता है।
इस लेख में हम गंगा डॉल्फ़िन से जुड़ी छह अहम बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि इसका भौगोलिक वितरण कैसा है और दक्षिण एशिया की नदी प्रणालियों में यह किस तरह पाई जाती है। फिर, हम देखेंगे कि गंगा डॉल्फ़िन की शारीरिक बनावट और जैविक विशेषताएँ इसे नदी जीवन के लिए कैसे अनुकूल बनाती हैं। इसके बाद, हम पढ़ेंगे कि आज यह किन मुख्य खतरों का सामना कर रही है, जैसे अवैध शिकार, प्रदूषण और पर्यावास का नष्ट होना। आगे, हम चर्चा करेंगे कि मानव और डॉल्फ़िन के बीच होने वाले संघर्ष किन कारणों से बढ़ रहे हैं। फिर, हम जानेंगे कि डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया (WWF-India) किस तरह इन डॉल्फ़िनों के संरक्षण में जुटा है। अंत में, हम देखेंगे कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय बदलाव इनके भविष्य पर कैसा असर डाल सकते हैं।

गंगा डॉल्फ़िन का वितरण और सांस्कृतिक महत्व
गंगा डॉल्फ़िन (प्लैटानिस्टा गैंगेटिका - Platanista gangetica) भारत की राष्ट्रीय जलीय जीव है और मुख्य रूप से गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियों के मीठे पानी में पाई जाती है। इसका विस्तार नेपाल, बांग्लादेश और भारत के उत्तर व पूर्वी हिस्सों तक फैला हुआ है, जहाँ यह प्रायः गहरे, धीमी बहाव और अपेक्षाकृत साफ़ पानी वाले हिस्सों में रहना पसंद करती है। कई क्षेत्रों में इसे "सूस" या "शुशुक" के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपराओं में गंगा डॉल्फ़िन का विशेष स्थान है - लोककथाओं और प्राचीन ग्रंथों में इसे गंगा देवी का साथी माना गया है, और कई समुदाय इसे नदी की पवित्रता और स्वास्थ्य का प्रतीक मानते हैं। दिलचस्प बात यह है कि वैज्ञानिक भी इस विश्वास को आंशिक रूप से सही मानते हैं - जहाँ डॉल्फ़िन की आबादी स्थिर रहती है, वहाँ नदी का पारिस्थितिक संतुलन और जल गुणवत्ता भी अपेक्षाकृत बेहतर होती है। इस तरह यह जीव सिर्फ एक सुंदर जलीय प्राणी नहीं, बल्कि संस्कृति और प्रकृति के बीच एक जीवित पुल है।

File:Gangetic river Dolphin public domain.jpg

गंगा डॉल्फ़िन की विशेष शारीरिक व जैविक विशेषताएँ
गंगा डॉल्फ़िन का शरीर लंबा, पतला और लचीला होता है, जिसकी लंबाई औसतन 2 से 2.6 मीटर और वजन 70 से 90 किलो तक हो सकता है। इसका रंग हल्के भूरे से लेकर धूसर तक बदलता है, जो नदी के मटमैले पानी में इसे छिपने में मदद करता है। इसकी सबसे अनोखी विशेषता है - लगभग पूर्ण अंधापन। इसकी आँखें बहुत छोटी और कार्यक्षमता में सीमित होती हैं, इसलिए यह देखने की बजाय "इकोलोकेशन" (echolocation) तकनीक का इस्तेमाल करती है। अल्ट्रासोनिक ध्वनि (ultrasonic sound) तरंगें छोड़कर और उनके लौटने के समय व दिशा को पहचानकर यह अपने आस-पास का नक्शा "महसूस" कर पाती है। इस क्षमता के बल पर यह गंदले पानी में भी आसानी से मछलियाँ, झींगे और अन्य छोटे जलीय जीव पकड़ लेती है। चूँकि यह फेफड़ों से साँस लेती है, इसे हर 30 से 120 सेकंड में सतह पर आना पड़ता है। जब यह पानी से ऊपर आती है और एक धीमी, सीटी जैसी आवाज़ निकालती है, तो नदी किनारे खड़े लोगों के लिए वह एक अद्भुत क्षण बन जाता है।

मुख्य खतरे और चुनौतियाँ
आज गंगा डॉल्फ़िन गंभीर संकट में है। नदी में औद्योगिक कचरा, घरेलू सीवेज (domestic sewage), प्लास्टिक और जहरीले रसायन मिलकर इसके आवास को बर्बाद कर रहे हैं। कई जगहों पर पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि वहाँ डॉल्फ़िन का जीवित रहना मुश्किल हो गया है। इसके अलावा, मछली पकड़ने के बड़े और बारीक जालों में फँसकर इनकी मौत होना आम बात है। बड़े बांध, बैराज और जलविद्युत परियोजनाएँ नदी के प्राकृतिक प्रवाह को बाधित करती हैं, जिससे डॉल्फ़िन के लिए गहरे और आपस में जुड़े आवास खत्म होते जा रहे हैं। नौकाओं की आवाजाही और इंजन का शोर भी इनके इकोलोकेशन सिस्टम को बाधित करता है, जिससे ये शिकार करने और संवाद करने में परेशानी महसूस करती हैं। इन खतरों का संयोजन गंगा डॉल्फ़िन की आबादी को लगातार घटा रहा है और इसे विलुप्ति के कगार पर ला रहा है।

मानव-डॉल्फ़िन संघर्ष
कुछ इलाकों में मछुआरे डॉल्फ़िन को मछली संसाधनों का प्रतिस्पर्धी मानते हैं। उनका मानना है कि डॉल्फ़िन मछलियों की संख्या कम कर देती है, जिससे उनकी रोज़ी-रोटी पर असर पड़ता है। यह धारणा वैज्ञानिक तथ्यों से मेल नहीं खाती - डॉल्फ़िन केवल छोटी मछलियाँ और अन्य जलीय जीव खाती है, और वास्तव में यह नदी के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में मदद करती है। दुर्भाग्य से, जाल में फँसने से चोट या मौत की घटनाएँ आम हैं, और कभी-कभी मछुआरे इन्हें जानबूझकर नुकसान पहुँचा देते हैं। इस संघर्ष को कम करने के लिए ज़रूरी है कि मछुआरों को डॉल्फ़िन-हितैषी मछली पकड़ने के तरीके सिखाए जाएँ और उन्हें यह समझाया जाए कि डॉल्फ़िन का संरक्षण अंततः नदी की मछलियों और उनकी आजीविका दोनों के लिए लाभकारी है।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया (WWF-India) की संरक्षण पहलें
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया गंगा डॉल्फ़िन के संरक्षण के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपना रही है। सबसे पहले, संगठन महत्त्वपूर्ण आवास क्षेत्रों की पहचान करके उन्हें संरक्षित क्षेत्र घोषित कराने की दिशा में काम कर रहा है। दूसरे, यह स्थानीय समुदायों में जागरूकता फैलाने के लिए अभियान चला रहा है, जिसमें स्कूल कार्यक्रम, नाटक, चित्रकला प्रतियोगिताएँ और गाँव-गाँव बैठकों का आयोजन शामिल है। मछुआरों को डॉल्फ़िन-हितैषी जाल और तरीकों के बारे में प्रशिक्षित किया जाता है, ताकि जाल में फँसने की घटनाएँ कम हों। इसके साथ ही, वैज्ञानिक निगरानी के तहत डॉल्फ़िन की आबादी, उनके प्रवास के पैटर्न (pattern) और स्वास्थ्य की नियमित जाँच की जाती है। इन प्रयासों ने कुछ क्षेत्रों में डॉल्फ़िन की संख्या में स्थिरता लाने में मदद की है, लेकिन लंबी लड़ाई अभी बाकी है।

जलवायु और पर्यावरणीय बदलाव का प्रभाव
जलवायु परिवर्तन गंगा डॉल्फ़िन के भविष्य के लिए एक नया और खतरनाक मोर्चा खोल रहा है। मानसून के पैटर्न में बदलाव से कई नदियों में जलस्तर घट रहा है, जबकि कुछ क्षेत्रों में अचानक बाढ़ और तेज़ धारा इनके आवास को नुकसान पहुँचा रही है। बाढ़ मैदानों के सिकुड़ने से इनके शिकार के स्रोत भी घट रहे हैं। साथ ही, नदी तल में लगातार हो रहे बदलाव और कटाव से इनके आवास का नक्शा बदल रहा है। वैज्ञानिक चेतावनी देते हैं कि अगर जलवायु और प्रदूषण की समस्या पर तुरंत ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में गंगा डॉल्फ़िन केवल हमारी किताबों, तस्वीरों और संग्रहालयों में ही दिखाई देगी - और उस समय यह हमारी लापरवाही की एक दर्दनाक गवाही होगी।

संदर्भ- 

https://shorturl.at/JVGiR 

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