
समयसीमा 264
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 1032
मानव व उसके आविष्कार 803
भूगोल 253
जीव - जन्तु 310
रामपुरवासियो, राजमा सिर्फ एक साधारण दाल नहीं, बल्कि हमारी थाली, हमारी ज़ुबान और हमारी मिट्टी की एक भावनात्मक कहानी है। इसका वैज्ञानिक नाम फेजोलस वल्गेरिस (Phaseolus vulgaris) है और इसका आकार गुर्दे (kidney) जैसा होता है, इसलिए इसे अंग्रेज़ी में किडनी बीन्स (Kidney Beans) कहा जाता है। इसके रंग भी जैसे अपने-अपने अंदाज़ में पहचान बनाते हैं, गहरा लाल, भूरा, काला या चितकबरा। इतिहास बताता है कि राजमा की असली जन्मभूमि लैटिन अमेरिका (Latin America) रही, लेकिन सदियों पहले व्यापारिक रास्तों और सांस्कृतिक मेलजोल के जरिए यह लंबी यात्रा तय करते हुए भारत पहुँचा। यहाँ की ज़मीन और मौसम ने इसे इतना अपनाया कि यह हमारे भोजन का स्थायी हिस्सा बन गया। उत्तर भारत में, ख़ासकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में इसकी खेती और स्वाद दोनों ने खास पहचान बनाई। लेकिन रामपुर जैसे मैदानी ज़िलों में भी राजमा ने अपनी जगह बना ली है, खासकर सर्दियों में, जब गरमागरम राजमा-चावल की थाली परिवार को एक साथ बैठाकर खाने का बहाना बनती है। रामपुर के बाज़ारों में मिलने वाला पहाड़ी राजमा अपने गाढ़े रंग और भरपूर स्वाद के लिए जाना जाता है, जिसे लोग खास मौके पर बनाना पसंद करते हैं। राजमा की कहानी खेत से थाली तक केवल स्वाद की नहीं, बल्कि उस यात्रा की भी है, जिसमें यह अलग-अलग संस्कृतियों और भौगोलिक क्षेत्रों को जोड़ता है। यही वजह है कि यह दाल हमारे दिल, हमारी रसोई और हमारी ज़ुबान पर एक साथ राज करती है।
इस लेख में हम राजमा के पाँच अहम पहलुओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम देखेंगे कि राजमा का परिचय और इसकी उत्पत्ति से जुड़ी रोचक बातें क्या हैं। इसके बाद, हम पढ़ेंगे कि इसमें कौन-कौन से पोषक तत्व पाए जाते हैं और ये हमारे शरीर के लिए क्यों जरूरी हैं। फिर हम इसके स्वास्थ्य लाभों पर बात करेंगे, जिसमें हृदय, पाचन और मधुमेह नियंत्रण से लेकर त्वचा और बालों की सेहत तक सब शामिल है। आगे हम राजमा की कृषि और उत्पादन प्रक्रिया को समझेंगे, कहाँ इसकी खेती होती है, कौन-सी जलवायु और तकनीक इसके लिए अनुकूल हैं। अंत में, हम विविध किस्मों और इससे जुड़ी अन्य फसलों, जैसे फ्रेंच बीन्स (French Beans), के बारे में जानेंगे।
परिचय और उत्पत्ति
राजमा फेजोलस वल्गेरिस प्रजाति का सदस्य है, जिसका आकार अक्सर गुर्दे जैसा और बनावट थोड़ी सख़्त होती है। इसका रंग विविध होता है, गहरा लाल, हल्का भूरा, काला या चितकबरा। इसकी उत्पत्ति लैटिन अमेरिका में मानी जाती है, जहाँ से यह यूरोप और एशिया में फैला। भारत में आने के बाद यह उत्तर भारतीय व्यंजनों में रच-बस गया। खासकर जम्मू-कश्मीर का राजमा-चावल तो इतना लोकप्रिय है कि यह वहाँ की सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन चुका है। हिमाचल और उत्तराखंड के ठंडे, ऊँचे इलाकों में भी यह बड़े चाव से उगाया और खाया जाता है।
पोषण संरचना और मुख्य तत्व
राजमा पोषण का खज़ाना है। 100 ग्राम उबले हुए राजमा में लगभग 127 कैलोरी (calorie), 8.7 ग्राम प्रोटीन (protein), 22.8 ग्राम जटिल कार्बोहाइड्रेट (carbohydrates) और 6.4 ग्राम आहार फाइबर (fiber) मौजूद होता है, जबकि वसा की मात्रा मात्र 0.5 ग्राम है। इसमें मौजूद उच्च गुणवत्ता वाला पौध-आधारित प्रोटीन मांसपेशियों और ऊतकों की मरम्मत के लिए आवश्यक है। जटिल कार्बोहाइड्रेट धीरे-धीरे ऊर्जा छोड़ते हैं, जिससे लंबे समय तक भूख नहीं लगती और रक्त शर्करा स्थिर रहता है। फाइबर पाचन तंत्र को दुरुस्त रखता है और कब्ज से बचाता है। इसके अलावा, राजमा में आयरन (iron), मैग्नीशियम (magnesium), पोटैशियम (potassium), फोलेट (Folate), विटामिन B1 (Vitamin B1) और कई पादप यौगिक पाए जाते हैं, जो शरीर के विभिन्न कार्यों को सुचारू रखते हैं।
स्वास्थ्य लाभ
राजमा के नियमित सेवन से हृदय स्वास्थ्य बेहतर होता है क्योंकि इसमें मौजूद घुलनशील फाइबर खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल - LDL) को कम करने में मदद करता है। इसका कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स (glycemic index) मधुमेह रोगियों के लिए वरदान है, क्योंकि यह रक्त शर्करा को अचानक बढ़ने नहीं देता। प्रीबायोटिक फाइबर (probiotic fiber) आंतों के अच्छे बैक्टीरिया (bacteria) को पोषण देता है, जिससे पाचन शक्ति बढ़ती है। आयरन और फोलेट खून की कमी को दूर करते हैं, जबकि मैग्नीशियम और पोटैशियम हड्डियों, मांसपेशियों और नसों को मजबूत बनाते हैं। इसके एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) तत्व शरीर को फ्री-रेडिकल्स (free-radicals) से होने वाले नुकसान से बचाते हैं, जिससे त्वचा, बाल और आंखें स्वस्थ रहती हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।
राजमा की कृषि और उत्पादन
भारत में हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में राजमा की खेती बड़े पैमाने पर होती है। वैश्विक स्तर पर अमेरिका, चीन और ब्राज़ील (Brazil) इसके प्रमुख उत्पादक हैं। राजमा को ठंडी और शुष्क जलवायु सबसे ज़्यादा पसंद है, जिसमें तापमान 18–25°C के बीच हो। बुवाई खरीफ और रबी दोनों मौसम में की जा सकती है। बुवाई से पहले बीज उपचार और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी का चयन आवश्यक है। नियमित सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण से पैदावार बढ़ती है। राजमा आमतौर पर 90–120 दिनों में तैयार हो जाता है और फसल कटाई के बाद दानों को अच्छी तरह सुखाकर संग्रहित किया जाता है।
विविध किस्में और अन्य संबंधित फसलें
राजमा की कई किस्में हैं, लाल, सफेद, काले, चितकबरे और छोटे-बड़े आकार के। हिमाचली और कश्मीरी राजमा अपने अद्वितीय स्वाद और मुलायम बनावट के लिए खास पहचान रखते हैं। इसके परिवार में ही आने वाली एक और लोकप्रिय फसल है फ्रेंच बीन्स, जिसका इतिहास यूरोप और लैटिन अमेरिका से जुड़ा है, लेकिन आज यह भी भारतीय रसोई का हिस्सा बन चुका है। राजमा सिर्फ एक साधारण दाल नहीं, बल्कि यह स्वाद, पोषण, स्वास्थ्य और कृषि की अनूठी कहानी है। खेत से थाली तक इसकी यात्रा यह साबित करती है कि यह छोटा-सा दाना हमारी रसोई और जीवन का अभिन्न हिस्सा है, और शायद इसी वजह से यह हर उम्र और हर मौसम में उतना ही पसंद किया जाता है।
संदर्भ-
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.