ई-वेस्ट का बढ़ता संकट: भारत और रामपुर के सामने चुनौतियाँ व समाधान

नगरीकरण- शहर व शक्ति
08-09-2025 09:06 AM
ई-वेस्ट का बढ़ता संकट: भारत और रामपुर के सामने चुनौतियाँ व समाधान

रामपुरवासियो, डिजिटल युग (Digital Age) ने हमारी ज़िंदगी को जितना आसान और तेज़ बनाया है, उतनी ही चुपचाप एक गंभीर समस्या भी हमारे आसपास बढ़ रही है, इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (E-Waste)। रोज़ाना हम मोबाइल फोन (mobile phone), कंप्यूटर (computer), टीवी (T.V.), रेफ्रिजरेटर (Refrigerator) और न जाने कितने इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (electronic equipment) इस्तेमाल करते हैं, लेकिन जैसे ही ये पुराने या खराब हो जाते हैं, ये कचरे के ढेर में बदलकर हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक अदृश्य ख़तरा बन जाते हैं। रामपुर, जो अपनी तहज़ीब, शिक्षा और बदलते आधुनिक स्वरूप के लिए जाना जाता है, इस चुनौती से अछूता नहीं है। यहाँ भी, पुराने गैजेट्स (Gadgets) और घरेलू उपकरण कबाड़ में जाने के बाद सही तरीके से निपटाए न जाएँ तो ज़हरीले रसायन मिट्टी, पानी और हवा में घुलकर हमारे और आने वाली पीढ़ियों के लिए खतरा बढ़ा सकते हैं। यह समस्या उतनी ही वास्तविक है जितनी हमारे रोज़मर्रा की ज़िंदगी, बस फर्क इतना है कि हम इसे अक्सर देखना नहीं चाहते।
इस लेख में हम ई-वेस्ट की बढ़ती मात्रा और उसकी वार्षिक वृद्धि दर को समझेंगे, साथ ही बड़े शहरों के योगदान पर नज़र डालेंगे। हम जानेंगे कि ई-वेस्ट में नष्ट हो रही कीमती धातुएं जैसे सोना, चांदी और तांबा हमारी अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित कर रही हैं। इसके बाद, हम देखेंगे कि भारत के कौन से शहर सबसे बड़े ई-वेस्ट उत्पादक हैं और उनका औद्योगिक व आईटी (IT) क्षेत्र से क्या संबंध है। हम यह भी पढ़ेंगे कि ई-वेस्ट पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर किस तरह नकारात्मक असर डालता है। आगे, हम ई-वेस्ट के प्रमुख प्रकारों पर चर्चा करेंगे और अंत में जानेंगे कि इसे सही तरीके से रीसाइक्लिंग कर उपयोगी संसाधनों में कैसे बदला जा सकता है।

भारत में इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट उत्पादन की वर्तमान स्थिति
भारत आज डिजिटल और तकनीकी क्रांति के दौर में है, लेकिन इसके साथ एक अदृश्य बोझ भी तेज़ी से बढ़ रहा है, ई-वेस्ट का पहाड़। हर साल करोड़ों टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हो रहा है और 2019-20 से अब तक इसमें 72.54% की चौंकाने वाली वृद्धि दर्ज की गई है। तकनीक इतनी तेज़ी से बदल रही है कि मोबाइल, लैपटॉप (Laptop), टीवी जैसे उपकरण कुछ ही साल में पुराने और अनुपयोगी हो जाते हैं। उपभोक्ता संस्कृति ने भी इस समस्या को और गहरा कर दिया है, लोग अपग्रेड (upgrade) करने के लिए पुराने उपकरण जल्दी बदल देते हैं, चाहे वे अभी भी काम कर रहे हों। औद्योगिक और शैक्षिक शहर भी इस उत्पादन में योगदान करते हैं, जहाँ पुराने कंप्यूटर, मोबाइल, औद्योगिक मशीनें और अन्य उपकरण बड़ी मात्रा में कबाड़ का हिस्सा बनते हैं। यह सिर्फ एक आंकड़ा नहीं, बल्कि आने वाले समय में पर्यावरणीय संकट का संकेत है।

ई-वेस्ट में नष्ट होने वाले कीमती धातु और उनका आर्थिक मूल्य
अक्सर हम सोचते हैं कि कबाड़ यानी कचरा, लेकिन ई-वेस्ट इसके उलट साबित होता है, यह एक छिपा हुआ खज़ाना है। भारत में 2016 में ही ई-वेस्ट के रूप में सोना, चांदी, तांबा, एल्यूमिनियम (Aluminum) और प्लास्टिक (plastic) जैसी कीमती चीज़ें बर्बाद हो गईं, जिनका मौद्रिक मूल्य अरबों रुपये में था। इन धातुओं का दोबारा इस्तेमाल न सिर्फ अर्थव्यवस्था को मज़बूती दे सकता है, बल्कि खनन (mining) जैसी संसाधन-खपत वाली गतिविधियों पर हमारी निर्भरता भी कम कर सकता है। सोचिए, अगर सही रीसाइक्लिंग सिस्टम (recycling system) हो, तो हम अपने पुराने मोबाइल से निकला सोना और चांदी नए उत्पादों में इस्तेमाल कर सकते हैं। यह ‘कचरे से कमाई’ (wealth from waste) का असली उदाहरण है।

भारत में सबसे बड़े ई-वेस्ट उत्पादक शहर
भारत के कुछ बड़े शहर इस समस्या के केंद्र बन गए हैं, मुंबई, दिल्ली और बैंगलोर। मुंबई में भारी औद्योगिक गतिविधियों और आयात-निर्यात का दबाव है, जिससे पुरानी मशीनें और उपकरण तेज़ी से बेकार होते हैं। दिल्ली, अपने विशाल इलेक्ट्रॉनिक बाज़ार और उपभोग की संस्कृति के कारण, रोज़ाना टनों ई-वेस्ट पैदा करती है। बैंगलोर, जिसे भारत का आईटी हब कहा जाता है, में लाखों कंप्यूटर, सर्वर (server) और टेक्नोलॉजी गैजेट (technology gadget) तेज़ी से अपडेट (update) और रिप्लेस (replace) किए जाते हैं। इन शहरों की ई-वेस्ट हैंडलिंग (handling) रणनीतियों को समझकर रामपुर जैसे शहर भी अपनी नीतियां और रीसाइक्लिंग सिस्टम सुधार सकते हैं। इससे वे इस समस्या से पहले ही निपटने के लिए तैयार हो सकते हैं।

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के पर्यावरण और स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव
ई-वेस्ट का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इसमें मौजूद जहरीले तत्व लंबे समय तक हमारे पर्यावरण और शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं। सीसा (lead), पारा (mercury) और कैडमियम (cadmium) जैसी भारी धातुएं मिट्टी, पानी और हवा में घुलकर खाद्य श्रृंखला में प्रवेश कर जाती हैं। इनके कारण ग्रीनहाउस गैसों (greenhouse gasses) का उत्सर्जन बढ़ता है, जो जलवायु परिवर्तन को तेज़ करता है। स्वास्थ्य के लिहाज़ से यह और भी भयावह है, इनसे तंत्रिका तंत्र (nervous system) को नुकसान, अंगों की कार्यक्षमता में कमी, हार्मोनल असंतुलन (hormonal imbalance), और यहां तक कि कैंसर (cancer) जैसी गंभीर बीमारियां हो सकती हैं। यह समस्या इतनी चुपचाप बढ़ती है कि जब तक असर दिखे, तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट के प्रमुख प्रकार
ई-वेस्ट एक ही तरह का नहीं होता, बल्कि इसके कई रूप होते हैं, जैसे बड़े घरेलू उपकरण (फ्रिज - रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन - Washing Machine), साउंड और ऑडियो उपकरण (sound and audio equipment), चिकित्सा उपकरण (medical equipment), लाइटिंग (lighting) और बल्ब, बैटरियां, वायरिंग (wiring), स्विच, सौर ऊर्जा प्रणालियां, खिलौने और आधुनिक गैजेट। इन सभी में या तो खतरनाक रसायन होते हैं या फिर मूल्यवान धातुएं। उदाहरण के लिए, एक पुराना फ्रिज हानिकारक गैसें छोड़ सकता है, जबकि एक खराब लैपटॉप में सोना और तांबा छिपा हो सकता है। अगर इन्हें सही प्रक्रिया से रीसाइक्लिंग किया जाए, तो ये संसाधन दोबारा काम में आ सकते हैं और प्रदूषण भी कम होगा।

भारत में ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया
ई-वेस्ट रीसाइक्लिंग एक सुनियोजित प्रक्रिया है, लेकिन भारत में अभी यह बहुत सीमित स्तर पर हो रही है। शुरुआत होती है संग्रह (collection) और परिवहन (transportation) से, जहां ई-वेस्ट को अलग-अलग स्रोतों से लाकर रीसाइक्लिंग केंद्रों तक पहुंचाया जाता है। इसके बाद उपकरणों को मशीनों से काटा और छांटा जाता है, ताकि प्लास्टिक, धातु और अन्य हिस्सों को अलग किया जा सके। चुंबकीय (magnetic) और यांत्रिक (mechanical) तरीकों से धातुओं को शुद्ध किया जाता है, फिर इन्हें पिघलाकर नए उत्पादों के निर्माण में इस्तेमाल किया जाता है। अगर यह प्रक्रिया बड़े पैमाने पर और सही तरीके से लागू हो, तो न केवल प्रदूषण घटेगा, बल्कि हमें बेहतर गुणवत्ता वाला कच्चा माल भी मिलेगा, जिससे उद्योग और पर्यावरण दोनों को फायदा होगा।

संदर्भ-

https://short-link.me/1b5jD 

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