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रामपुरवासियो, आपने टीवी पर या अख़बारों में ऐसी दिल दहला देने वाली ख़बरें ज़रूर देखी होंगी कि अचानक कुछ ही मिनटों में पहाड़ों पर आसमान से इतना पानी बरस पड़ा कि पूरा इलाक़ा डूब गया। लोग घरों से निकल भी नहीं पाए और सड़कें, पुल और खेत सब पानी की धारा में बह गए। गाँव के गाँव उजड़ गए और देखते ही देखते तबाही का मंजर सामने आ गया। यह कोई साधारण बारिश नहीं होती, बल्कि इसे क्लाउडबर्स्ट (Cloudburst) कहा जाता है। क्लाउडबर्स्ट की खासियत यही है कि यह बहुत छोटे क्षेत्र - सिर्फ़ 10 से 30 वर्ग किलोमीटर - में और बेहद कम समय, कभी-कभी आधे घंटे से भी कम में, मूसलाधार बारिश करता है। आम लोग इसे अक्सर “आसमान से बाल्टी उलटने” जैसी बारिश कहते हैं। अचानक हुई यह भारी वर्षा इतनी ताक़तवर होती है कि पल भर में नदियाँ उफान मारने लगती हैं, मिट्टी ढहकर भूस्खलन का कारण बनती है और पूरा प्राकृतिक संतुलन बिगाड़ देती है। असल में, यह एक बेहद जटिल और वैज्ञानिक प्रक्रिया है। बादलों के भीतर हवा की गति, नमी की अधिकता और तापमान का अंतर मिलकर ऐसी स्थिति बनाते हैं कि बादल अचानक अपने भीतर का सारा पानी एक साथ छोड़ देते हैं। इसलिए इसे समझना और इसके खतरों को पहचानना बेहद ज़रूरी है। क्योंकि जब तक हम यह नहीं जानते कि यह घटना क्यों होती है और इसके क्या परिणाम होते हैं, तब तक इससे बचाव और तैयारी करना लगभग नामुमकिन हो जाता है।
इस लेख में हम क्लाउडबर्स्ट को चरण-दर-चरण समझेंगे। सबसे पहले क्लाउडबर्स्ट की परिभाषा और वैज्ञानिक आधार जानेंगे, जिसमें इसकी तीव्रता, क्षेत्र और बादलों की भूमिका स्पष्ट होगी। इसके बाद देखेंगे कि क्लाउडबर्स्ट कैसे और किन कारणों से होता है, जैसे ओरोग्राफ़िक लिफ्टिंग (Orographic Lifting), तेज़ हवाओं और वायुमंडलीय अस्थिरता की भूमिका। फिर हम में भारत में हुई प्रमुख घटनाओं और उनके प्रभावों पर चर्चा करेंगे, जहाँ फ़्लैश फ़्लड्स (Flash Floods), भूस्खलन और सामाजिक-आर्थिक नुकसान सामने आते हैं। अंत में, हम जानेंगे कि क्लाउडबर्स्ट की भविष्यवाणी और आपदा प्रबंधन में क्या चुनौतियाँ और समाधान मौजूद हैं, और एनडीएमए (NDMA) द्वारा सुझाए गए उपाय किस तरह लोगों की सुरक्षा में मदद कर सकते हैं।
क्लाउडबर्स्ट की परिभाषा और वैज्ञानिक आधार
क्लाउडबर्स्ट कोई साधारण बारिश नहीं, बल्कि एक बेहद असामान्य और खतरनाक मौसमीय घटना है। इसका अर्थ है कि किसी सीमित भौगोलिक क्षेत्र, जो अक्सर 10 से 30 वर्ग किलोमीटर तक होता है, में एक घंटे के भीतर 100 मिलीमीटर या उससे अधिक वर्षा हो जाए। सोचिए, इतनी बारिश सामान्य तौर पर कई दिनों में होती है, लेकिन यहाँ सबकुछ सिर्फ़ कुछ ही मिनटों या घंटों में घट जाता है। यह घटना प्रायः क्यूम्युलोनिंबस (Cumulonimbus) बादलों के भीतर होती है, जो अपनी घनी और ऊँची संरचना के लिए जाने जाते हैं। इन बादलों में लैंगमुइर प्रभाव (Langmuir Effect) काम करता है, जिसमें छोटी-छोटी बूँदें आपस में टकराकर मिल जाती हैं और धीरे-धीरे आकार में बड़ी होती जाती हैं। जब ये बादल इतने भारी हो जाते हैं कि उन्हें संभाल नहीं पाते, तो अचानक पानी का बोझ नीचे गिर जाता है। यही कारण है कि इसे अक्सर “बाल्टी उलटने जैसी बारिश” कहा जाता है - यानी आसमान से पानी मानो एक ही झटके में नीचे गिरा हो।
क्लाउडबर्स्ट होने की प्रक्रिया और कारण
क्लाउडबर्स्ट का संबंध पहाड़ी इलाक़ों और वायुमंडलीय गतिविधियों से गहराई से जुड़ा हुआ है। इसका मुख्य कारण ओरोग्राफ़िक लिफ्टिंग है। जब नमी से भरी हवा पहाड़ों से टकराती है, तो उसे ऊपर उठने पर मजबूर होना पड़ता है। जैसे-जैसे हवा ऊपर जाती है, वह ठंडी होने लगती है और उसमें मौजूद वाष्प बादलों में बदलकर फँस जाता है। इसके साथ ही, तेज़ अपड्राफ़्ट्स (updrafts) यानी ऊर्ध्वगामी हवाएँ, पानी की भारी बूँदों को गिरने से रोक लेती हैं। लेकिन यह स्थिति ज़्यादा देर तक नहीं टिकती। जब अचानक ठंडी हवा का दबाव बढ़ता है या वातावरण में अस्थिरता पैदा होती है, तो यह सारा पानी एक साथ ज़मीन पर बरस पड़ता है। मानसूनी हवाओं का योगदान इसमें विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है। इन हवाओं के साथ नमी की अधिकता और वैश्विक ऊष्मीकरण जैसे कारक इसे और भी तीव्र बना देते हैं। यही वजह है कि आजकल क्लाउडबर्स्ट की घटनाएँ और ज़्यादा बार देखने को मिल रही हैं।
भारत में क्लाउडबर्स्ट की घटनाएँ और उदाहरण
भारत में क्लाउडबर्स्ट की घटनाएँ नई नहीं हैं, लेकिन इनकी संख्या और असर दोनों बढ़ते जा रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र, पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्वी राज्य इसके सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं। हाल ही में 2024 में मनाली और केदारनाथ में क्लाउडबर्स्ट हुआ, जिसने बड़े पैमाने पर तबाही मचाई। पहाड़ों पर बसे गाँव बह गए, सड़कों और पुलों का अस्तित्व मिट गया। 2021 में जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में भी ऐसी ही घटना दर्ज की गई थी, जिसने कई परिवारों को उजाड़ दिया। इससे पहले 2018 में कर्नाटक के बेलगावी में भी क्लाउडबर्स्ट जैसी स्थिति बनी थी। इन घटनाओं से यह साफ़ है कि सिर्फ़ उत्तरी पर्वतीय राज्य ही नहीं, बल्कि दक्षिण भारत तक इसकी चपेट में आ सकता है। ख़ास बात यह है कि उत्तराखंड, हिमाचल और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्य लगभग हर साल ऐसी घटनाओं का सामना करते हैं, जिससे हज़ारों लोग प्रभावित होते हैं और जान-माल का बहुत बड़ा नुक़सान होता है।
क्लाउडबर्स्ट के प्रभाव और ख़तरे
क्लाउडबर्स्ट के परिणाम बेहद विनाशकारी होते हैं। सबसे पहले तो अचानक आने वाले फ़्लैश फ़्लड्स यानी तेज़ बाढ़ पूरी घाटी को मिनटों में डुबो देते हैं। यह बाढ़ न केवल गाँवों को बल्कि खेतों, पुलों और सड़कों को भी बहा ले जाती है। इसके साथ ही, भूस्खलन का ख़तरा भी कई गुना बढ़ जाता है। जब पहाड़ों की मिट्टी और चट्टानें लगातार पानी से भीगती हैं, तो वे अपनी पकड़ खो देती हैं और नीचे गिर जाती हैं। मिट्टी और मलबे का बहाव पूरे गाँवों को ढक सकता है, जंगलों को तहस-नहस कर सकता है और इंसानों को सुरक्षित निकलने का मौका तक नहीं देता। इनसे खेती पूरी तरह बर्बाद हो जाती है, घर टूट जाते हैं और लोग बेघर हो जाते हैं। यही नहीं, पलायन की स्थिति बन जाती है और पानी से फैलने वाली बीमारियाँ भी लोगों की मुसीबत बढ़ा देती हैं। पर्यावरण और वन्यजीवन पर इसका असर दीर्घकालिक होता है - नदियों का रास्ता बदल जाता है, जंगलों की जैव विविधता नष्ट हो जाती है और प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता है।
क्लाउडबर्स्ट की भविष्यवाणी और चुनौतियाँ
क्लाउडबर्स्ट का सबसे बड़ा खतरा यही है कि यह अचानक होता है और बहुत ही छोटे क्षेत्र में होता है। यही कारण है कि इसकी भविष्यवाणी करना बेहद कठिन है। सैटेलाइट्स (satellites) बड़े क्षेत्रों की निगरानी करने में सक्षम हैं, लेकिन 10 वर्ग किलोमीटर जैसे छोटे-से इलाके की बारीकियों को पकड़ पाना उनके लिए लगभग असंभव है। डॉप्लर रडार (Doppler Radar) और ग्राउंड स्टेशन (Ground Station) कुछ मदद तो करते हैं, लेकिन पहाड़ी इलाक़ों की जटिल भौगोलिक परिस्थितियों में ये भी अपनी सीमाएँ दिखाते हैं। यही वजह है कि लोगों के पास तैयारी का समय नहीं होता और नुकसान बढ़ जाता है। हालाँकि वैज्ञानिक लगातार नई तकनीकों पर काम कर रहे हैं। हाई-रेज़ॉल्यूशन (High-resolution) डॉप्लर रडार और उन्नत मौसम पूर्वानुमान प्रणाली से कुछ हद तक सुधार आया है, लेकिन फिर भी इस प्राकृतिक आपदा की सटीक भविष्यवाणी करना आज भी एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
आपदा प्रबंधन और समाधान (NDMA दिशानिर्देश सहित)
क्लाउडबर्स्ट से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने कई महत्वपूर्ण कदम सुझाए हैं। इनमें सबसे पहला है रिस्क मैपिंग (Risk Mapping) और माइक्रो ज़ोनिंग (Micro Zoning), ताकि यह पता चल सके कि कौन-से इलाके सबसे अधिक जोखिम वाले हैं। डॉप्लर रडार और रेनफ़ॉल अलर्ट सिस्टम (Rainfall Alert System) का विस्तार करके लोगों को समय पर चेतावनी दी जा सकती है। निर्माण पर नियंत्रण रखना भी उतना ही ज़रूरी है, ताकि नाज़ुक ढलानों पर भारी इमारतें न बनाई जाएँ। मज़बूत ड्रेनेज सिस्टम शहरों और कस्बों को अचानक आई बारिश से बचा सकते हैं। इसके अलावा, मॉक ड्रिल्स (Mock Drills) और कम्युनिटी ट्रेनिंग (Community Training) लोगों को तैयार रखती हैं, ताकि आपदा आने पर वे घबराएँ नहीं और सही कदम उठा सकें। एनडीएमए यह भी ज़ोर देता है कि इको-फ़्रेंडली (eco-friendly) निर्माण और वनीकरण से पहाड़ों को मज़बूती दी जाए। पेड़ न केवल मिट्टी को बाँधकर रखते हैं, बल्कि पानी को सोखकर भूस्खलन के खतरे को भी कम करते हैं।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/hfm2nant
https://tinyurl.com/3ur749ph
https://tinyurl.com/nbu59ue6
https://tinyurl.com/3ur749ph
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