
रामपुरवासियो, कभी सोचिए, जब हम गर्मी से बचने के लिए पेड़ की ठंडी छाँव में बैठते हैं, तो हमें कितना सुकून मिलता है। लेकिन उसी पेड़ की बाहरी परत - छाल - के बारे में हम कितनी बार सोचते हैं? अक्सर हम पेड़ों की जड़ों, पत्तों और फलों की चर्चा करते हैं, मगर छाल को नज़रअंदाज़ कर देते हैं। सच यह है कि छाल सिर्फ़ पेड़ की ढाल नहीं, बल्कि हमारी ज़िंदगी की अनगिनत ज़रूरतों की साथी रही है। यह हमें मौसम से बचाती है, कीटों से रक्षा करती है और इंसान के लिए तो कपड़ों से लेकर दवाइयों और ईंधन तक सब कुछ देने का काम करती आई है। इतिहास उठाकर देखें तो छाल से कपड़े, रस्सियाँ, यहाँ तक कि खाने तक का इंतज़ाम हुआ। नॉर्वे (Norway) में जब अकाल पड़ा था, तब लोगों ने छाल को पीसकर आटे में मिलाया और उससे अपने परिवारों को भूख से बचाया। यही नहीं, छाल से दर्द कम करने वाली औषधियाँ, सुगंधित इत्र, खेतों की नमी बचाने वाला मल्च और आज के ज़माने में तो कोयले का विकल्प बनने वाले ब्रिकेट्स (Briquettes) भी बनाए जा रहे हैं। सोचिए, जिस हिस्से को कभी पेड़ का कचरा समझा जाता था, वही अब ऊर्जा और उद्योगों का भविष्य बन रहा है। रामपुर जैसे शहरों में, जहाँ प्राकृतिक संसाधनों की अहमियत हर किसी के दिल से जुड़ी है, छाल हमें यह याद दिलाती है कि प्रकृति का कोई भी हिस्सा व्यर्थ नहीं होता। बस ज़रूरत है कि हम उसे पहचानें, उसका सम्मान करें और सही तरीक़े से इस्तेमाल करें। पेड़ की छाल सचमुच इंसान और प्रकृति के बीच का एक अनमोल रिश्ता है - एक ऐसा तोहफ़ा जिसे हम अक्सर अनदेखा करते हैं, लेकिन जिसने हर दौर में हमें सहारा दिया है।
आज हम इस लेख में सबसे पहले, हम जानेंगे कि पेड़ों की छाल की संरचना कैसी होती है और विश्व स्तर पर इसका उत्पादन कितना है। फिर, हम पढ़ेंगे कि प्राचीन समय में लोग छाल का किस तरह पारंपरिक उपयोग करते थे, चाहे वह कपड़े हों, रस्सियाँ हों या भोजन। इसके बाद, हम देखेंगे कि छाल औषधीय और सुगंधित उपयोग में किस तरह मानव स्वास्थ्य और जीवनशैली को प्रभावित करती है। आगे, हम चर्चा करेंगे कि छाल को वैकल्पिक ईंधन और ऊर्जा स्रोत के रूप में कैसे देखा जा रहा है। फिर हम समझेंगे कि कृषि और पर्यावरण के क्षेत्र में छाल का योगदान कितना अहम है। अंत में, हम आधुनिक उद्योगों और प्रसंस्करण संयंत्रों में छाल की भूमिका और उससे जुड़े नवाचारों पर नज़र डालेंगे।
पेड़ों की छाल की संरचना और उत्पादन
पेड़ों, पौधों और लताओं की जो बाहरी परत हमें दिखाई देती है, उसे छाल कहते हैं। यह परत न सिर्फ़ पेड़ को ढकती है, बल्कि उसके लिए एक मज़बूत सुरक्षा कवच का काम करती है। छाल मुख्य रूप से दो भागों में बाँटी जाती है - आंतरिक छाल (Inner Bark) और बाहरी छाल (Outer Bark)। आंतरिक छाल पेड़ की जीवन-रेखा होती है, जिसके माध्यम से पानी और पोषक तत्व ऊपर-नीचे प्रवाहित होते हैं, जबकि बाहरी छाल पेड़ को मौसम, कीटों और चोटों से बचाती है। इस तरह छाल दिखने में सरल लगे, पर इसकी संरचना बेहद जटिल और बहुआयामी है। आँकड़ों पर नज़र डालें तो हर साल विश्व स्तर पर लगभग 3.6 बिलियन क्यूबिक मीटर (billion cubic meter) लकड़ी की कटाई होती है, और इसका लगभग 10% हिस्सा छाल होता है। इसका मतलब है कि करीब 360 मिलियन (million) क्यूबिक मीटर छाल प्रतिवर्ष उत्पन्न होती है। किसी पेड़ में छाल का अनुपात उसकी प्रजाति, उम्र और पर्यावरणीय परिस्थितियों पर निर्भर करता है। यह अनुपात 5% से लेकर 28% तक हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, ओक (Oak), चिनार (Plane tree) और काले टिड्डे (Black Locust) जैसे पेड़ों में छाल का अनुपात सामान्य से कहीं ज़्यादा होता है। यही वजह है कि छाल को केवल पेड़ का अपशिष्ट मानना उचित नहीं, बल्कि अगर हम इसे सोच-समझकर इस्तेमाल करें तो यह भविष्य में एक मूल्यवान संसाधन साबित हो सकती है।
प्राचीन समय में छाल का पारंपरिक उपयोग
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही छाल का महत्व रहा है। पुराने समय में लोग छाल को सिर्फ पेड़ का हिस्सा नहीं, बल्कि जीवन के साथी के रूप में देखते थे। इसकी रेशेदार संरचना इतनी मज़बूत और उपयोगी होती है कि लोग इससे रस्सियाँ, कपड़े और चटाइयाँ तक बनाते थे। छाल को लेखन सामग्री के रूप में भी प्रयोग किया गया - कई संस्कृतियों में धार्मिक ग्रंथ, मानचित्र और चित्रकारी सीधे छाल पर ही उकेरी जाती थी। यह बात हमें बताती है कि छाल इंसान की संस्कृति और कला से भी जुड़ी रही है। इतना ही नहीं, कुछ समाजों में छाल को शुभ विवाह उपहार के रूप में भी दिया जाता था। यूरोप के उत्तरी भाग में तो छाल जीवन रक्षक भोजन का काम करती थी। स्कैंडिनेविया (Scandinavia) के लोग ठंडी सर्दियों में पाइन प्रजातियों की छाल को पीसकर आटे में मिलाकर खाते थे। यहाँ तक कि 1812 के नॉर्वे के भयानक अकाल के दौरान भी छाल ने हजारों परिवारों को भूख से बचाया था। यह तथ्य यह दर्शाता है कि छाल और इंसान का रिश्ता कितना गहरा, पुराना और बहुआयामी है।
छाल का औषधीय और सुगंधित उपयोग
प्रकृति ने छाल को सिर्फ़ मज़बूत बनाने तक सीमित नहीं किया, बल्कि इसमें अद्भुत औषधीय गुण भी भर दिए हैं। यही कारण है कि हजारों वर्षों से छाल पारंपरिक चिकित्सा और आधुनिक औषधि विज्ञान दोनों का हिस्सा रही है। आयुर्वेद और लोक चिकित्सा से लेकर आधुनिक फार्मेसी (pharmacy) तक, छाल की भूमिका विशेष रही है। उदाहरण के लिए, सैलिक्स एल्बा (Salix alba) और एस फ्रैजिलिस (S. fragilis) की छाल से निकाले गए तत्वों में दर्द निवारक और बुखार कम करने वाले गुण पाए जाते हैं। एसक्युलस हिप्पोकास्टेनम (Aesculus hippocastanum) की छाल दस्त, बवासीर और त्वचा संबंधी समस्याओं में राहत देती है। अफ्रीका में वार्बुर्गिया साल्यूटैरिस (Warburgia salutaris) की छाल और पत्तियाँ आज भी खांसी और सर्दी-जुकाम के इलाज में घरेलू दवा के रूप में इस्तेमाल होती हैं। वहीं कॉनड्रोडेंड्रॉन टोमेंटोसुम (Chondrodendron tomentosum) की छाल आधुनिक चिकित्सा में इतनी महत्वपूर्ण है कि इससे सर्जरी के दौरान मांसपेशियों को शिथिल करने वाली दवाएँ बनाई जाती हैं। सिर्फ़ औषधियों तक ही नहीं, छाल की प्राकृतिक सुगंध ने इत्र उद्योग में भी इसे खास स्थान दिलाया है। छाल से बनी सुगंधित वस्तुएँ लोगों के जीवन को न सिर्फ़ बेहतर बनाती हैं, बल्कि मन को भी ताज़गी और सुकून देती हैं। सच कहा जाए तो छाल प्रकृति का एक ऐसा उपहार है जिसने मानव स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता को हर युग में संवारा है।
छाल का ईंधन और ऊर्जा स्रोत के रूप में महत्व
आज पूरी दुनिया ऊर्जा संकट का सामना कर रही है और ऐसे समय में छाल एक बेहतरीन विकल्प के रूप में सामने आई है। जब छाल पूरी तरह सुखा दी जाती है, तो 10 टन छाल को जलाने से उतनी ही ऊष्मा पैदा होती है जितनी 7 टन कोयले से मिलती है। यानी छाल एक नवीकरणीय और पर्यावरण - हितैषी ऊर्जा स्रोत बन सकती है। यूरोप के कई देश पहले ही इस दिशा में काम शुरू कर चुके हैं। जंगलों में उपलब्ध छाल को संग्रहित करके उससे ब्रिकेट्स और पेलेट्स (Pellets) बनाए जाते हैं, जिन्हें जलाने से उच्च स्तर की ऊर्जा प्राप्त होती है। हालाँकि, छाल की सबसे बड़ी चुनौती उसकी नमी की मात्रा है - अक्सर छाल में 60% तक नमी होती है, जो इसकी ऊर्जा दक्षता को कम कर देती है। इसलिए इसका उचित सुखाना और प्रसंस्करण बेहद ज़रूरी है। भविष्य में जब दुनिया कोयला और पेट्रोलियम (petroleum) जैसे पारंपरिक ईंधनों से दूर होगी, तब छाल एक सस्ता, टिकाऊ और सुलभ विकल्प बनकर सामने आ सकती है। इसे सही ढंग से प्रबंधित किया जाए तो छाल सिर्फ़ अपशिष्ट नहीं रहेगी, बल्कि ऊर्जा समाधान का एक अहम हिस्सा होगी।
कृषि और पर्यावरण में छाल की भूमिका
कृषि और पर्यावरण संरक्षण में छाल की भूमिका कमाल की है। किसानों के लिए छाल का सबसे बड़ा योगदान है मल्चिंग (Mulching)। जब छाल को खेत की मिट्टी पर बिछा दिया जाता है, तो यह मिट्टी की नमी को लंबे समय तक बनाए रखती है। इससे न सिर्फ़ पानी के वाष्पीकरण की दर कम होती है, बल्कि मिट्टी का कटाव भी रुकता है। यही नहीं, छाल मिट्टी में जल अवशोषण को बढ़ाती है और समय के साथ उसकी गुणवत्ता और उर्वरता को सुधार देती है। पर्यावरण की दृष्टि से देखें तो छाल का उपयोग अपशिष्ट कोमूल्यवान संसाधन में बदल देता है। हालाँकि, हर प्रजाति की छाल मल्चिंग के लिए उपयुक्त नहीं होती क्योंकि कुछ पेड़ों की छाल में ऐसे रसायन होते हैं जो पौधों की वृद्धि को प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन जहाँ इसका सही चुनाव और उपयोग किया जाता है, वहाँ यह किसानों और पर्यावरण दोनों के लिए एक दोहरा लाभ देती है। यह न केवल कृषि को टिकाऊ बनाती है, बल्कि पर्यावरण को भी संतुलित करने में मदद करती है।
छाल प्रसंस्करण और आधुनिक उद्योग
आज के दौर में छाल का महत्व सिर्फ़ पारंपरिक उपयोग तक सीमित नहीं रहा है, बल्कि यह आधुनिक उद्योगों का अभिन्न हिस्सा बन चुकी है। लकड़ी प्रसंस्करण उद्योग अब छाल को व्यर्थ नहीं समझते, बल्कि इसके लिए विशेष प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित कर रहे हैं। छाल से ब्रिकेट्स और पेलेट्स बनाए जाते हैं, जिन्हें पुआल और चूरे जैसे बायोमास (biomass) के साथ मिलाकर तैयार किया जाता है। ये उत्पाद न केवल ऊर्जा उत्पादन के लिए उपयोगी हैं, बल्कि कोयले जैसे प्रदूषणकारी स्रोतों के अच्छे विकल्प भी हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ अब छाल प्रसंस्करण संयंत्रों में भारी निवेश कर रही हैं। इतना ही नहीं, छाल से बने नवाचारों को बढ़ावा देने के लिए हर साल "सर्वोत्तम छाल उत्पाद" का पुरस्कार भी दिया जाता है। यह सब दर्शाता है कि छाल अब केवल पेड़ों की बाहरी परत नहीं है, बल्कि एक ऐसा औद्योगिक संसाधन है जो भविष्य की अर्थव्यवस्था, सतत विकास और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
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