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रामपुरवासियो, भारत के प्रमुख पर्वों में छठ पूजा का अपना एक अलग और अद्भुत स्थान है। यह पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि यह हमारी परंपराओं, संस्कृति और सामाजिक एकता का प्रतीक भी है। बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में तो यह उत्सव विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है, लेकिन रामपुर जैसे नगरों में भी इसकी झलक देखने को मिलती है, जहाँ गंगा-जमुनी तहज़ीब के बीच यह पर्व आपसी भाईचारे और साझा संस्कृति का संदेश फैलाता है। छठ पूजा सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का अनूठा पर्व है, जिसमें कठोर व्रत, अनुशासन, शुद्धता और सामूहिक आस्था का अद्भुत संगम दिखाई देता है। घाटों पर एकत्र होकर महिलाएँ और पुरुष जल में खड़े होकर अर्घ्य अर्पित करते हैं, यह दृश्य न केवल आध्यात्मिक शांति देता है बल्कि एक सामूहिक ऊर्जा का भी अनुभव कराता है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर है, जहाँ पारंपरिक परिधान, घर में बने शुद्ध प्रसाद, विशेष व्यंजन और सूर्य को दिया जाने वाला अर्घ्य - सब मिलकर इस पर्व को विशिष्ट बनाते हैं। रामपुर की गलियों में जब छठ के अवसर पर तैयारियाँ शुरू होती हैं, तो घर-घर में शुद्धता और पवित्रता का वातावरण बन जाता है। महिलाएँ पारंपरिक साड़ियों में सुसज्जित होती हैं, पुरुष धोती-कुर्ता धारण करते हैं, और हर कोई व्रत और पूजा की पवित्रता बनाए रखने के लिए विशेष अनुशासन का पालन करता है। यह पर्व हमें केवल धर्म से नहीं जोड़ता, बल्कि हमें प्रकृति, समाज और परिवार से भी गहरा संबंध बनाने की प्रेरणा देता है।
आज हम इस लेख में विस्तार से जानेंगे कि छठ पूजा की पारंपरिक वेशभूषा क्यों हमारी सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का अभिन्न हिस्सा मानी जाती है। साथ ही, हम देखेंगे कि विशेष भोजन और प्रसाद केवल स्वाद या परंपरा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उनका गहरा धार्मिक और सामाजिक महत्व भी है। इसके बाद हम समझेंगे कि अर्घ्य अर्पण के आध्यात्मिक लाभ किस प्रकार मन और आत्मा को शुद्ध करते हैं तथा जीवन में संतुलन और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। और अंत में, हम यह भी देखेंगे कि छठ पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्व किस तरह पूरे समाज में एकता, आस्था और भाईचारे की भावना को और मजबूत बनाता है।
छठ पूजा की पारंपरिक वेशभूषा : संस्कृति और आस्था का प्रतीक
छठ पूजा की विशेषता सिर्फ पूजा-पाठ और अनुष्ठानों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसमें पहने जाने वाले पारंपरिक वस्त्रों का भी गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है। इस अवसर पर लोग अपनी परंपरा और आस्था को वस्त्रों के माध्यम से भी व्यक्त करते हैं। महिलाओं के लिए साड़ी सबसे प्रमुख परिधान मानी जाती है। खासकर बनारसी रेशमी साड़ी इस पर्व पर विशेष रूप से लोकप्रिय है। इसकी पहचान इसके चमकदार जरी कार्य और महीन कारीगरी में है। महीनों की मेहनत से तैयार की गई यह साड़ी केवल वस्त्र भर नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो पीढ़ियों से संजोई जाती आ रही है। इसी प्रकार, तसर सिल्क और चंदेरी कॉटन की साड़ियाँ भी इस पर्व पर खूब पहनी जाती हैं। इनमें बुनी जाने वाली पारंपरिक आकृतियाँ जैसे पेस्ली (आम का आकार), पुष्प, ज्यामितीय डिज़ाइन और प्राकृतिक दृश्यों की झलक न केवल सौंदर्य बढ़ाती है, बल्कि क्षेत्रीय संस्कृति और मान्यताओं को भी दर्शाती हैं। इन वस्त्रों में प्रयुक्त रंगों का भी विशेष महत्व है – लाल शुद्धता और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है और इसे सबसे शुभ रंग माना जाता है। पीला रंग ऊर्जा, खुशहाली और सूर्य की शक्ति का प्रतीक है, इसलिए इसे छठ जैसे सूर्य पूजा पर्व में विशेष रूप से पहना जाता है। हरा रंग नए जीवन और आशा का प्रतीक है, जबकि नारंगी/भगवा रंग त्याग, साधना और आध्यात्मिकता से जुड़ा हुआ है।
पुरुषों के लिए धोती और कुर्ता सबसे पारंपरिक पोशाक मानी जाती है। धोती का सफेद रंग पवित्रता और सादगी का प्रतीक है। वहीं, खास अवसरों पर रेशमी धोती और कुर्ता धारण करना इस पर्व की गरिमा को और बढ़ा देता है। कई क्षेत्रों में पुरुष अंगवस्त्रम भी पहनते हैं, जिसे कंधे पर डाला जाता है और यह सम्मान व सरलता का प्रतीक है। वस्त्रों की यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को जीवित रखती है बल्कि सांस्कृतिक निरंतरता का भी प्रतीक है, जो छठ पूजा को और भी विशेष बना देती है।
छठ पूजा का पारंपरिक प्रसाद और विशेष भोजन
छठ पूजा के अनुष्ठानों में प्रसाद का अत्यधिक महत्व है। यह प्रसाद सिर्फ पूजा का हिस्सा नहीं, बल्कि भक्तों की भक्ति, सादगी और समर्पण का प्रतीक भी होता है। प्रसाद बनाने की प्रक्रिया पूरी तरह से शुद्धता और पवित्रता के साथ होती है। घर की महिलाएँ और परिवार के सदस्य मिलकर प्रसाद बनाते हैं, जिससे यह कार्य भक्ति के साथ-साथ सामूहिक सहयोग और पारिवारिक एकता का भी संदेश देता है।

अर्घ्य अर्पण के आध्यात्मिक लाभ
छठ पूजा की सबसे महत्वपूर्ण और अद्वितीय परंपरा है उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करना। इसे छठ पूजा का हृदय भी कहा जाता है। अर्घ्य अर्पित करना सिर्फ एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि यह एक गहरा आध्यात्मिक अनुभव है, जिसके अनेक लाभ बताए गए हैं।

छठ पूजा का धार्मिक और सामाजिक महत्व
छठ पूजा का महत्व केवल धार्मिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी अत्यधिक है। यह पर्व भारत की प्राचीन परंपराओं और सामूहिक जीवनशैली का अनूठा उदाहरण है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की आराधना का प्रतीक है, जिनसे जीवन, ऊर्जा और स्वास्थ्य प्राप्त होता है। इस पूजा के दौरान नदी, तालाब और प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छता और पवित्रता पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इससे समाज को स्वच्छता और पर्यावरण संरक्षण का गहरा संदेश मिलता है। छठ पूजा का सबसे बड़ा संदेश है अनुशासन और आत्मसंयम। कई दिनों तक कठिन व्रत और तपस्या करने वाले व्रती अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं पर नियंत्रण रखते हैं और पूर्ण समर्पण के साथ पूजा करते हैं। यह त्याग और साधना का संदेश देता है। इस पर्व में महिला शक्ति का विशेष महत्व है। अधिकतर व्रती महिलाएँ होती हैं, जो पूरे परिवार की सुख-समृद्धि और समाज की भलाई के लिए कठोर तपस्या करती हैं। यह उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और आध्यात्मिक सामर्थ्य को दर्शाता है। अंत में, छठ पूजा सामुदायिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। इस दिन समाज के सभी लोग – चाहे वह किसी भी जाति, वर्ग या धर्म से हों – एक साथ घाट पर पूजा करने आते हैं। यहाँ सब बराबरी से शामिल होते हैं और यह सामाजिक एकता और भाईचारे का संदेश देता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/49c3dj4a
https://tinyurl.com/58uraafv
https://tinyurl.com/3rmzjpvv
https://tinyurl.com/2aes8c9t