क्यों पवित्र नदियाँ और घाट, हम रामपुरवासियों के जीवन और आस्था का आधार हैं?

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
03-11-2025 09:16 AM
क्यों पवित्र नदियाँ और घाट, हम रामपुरवासियों के जीवन और आस्था का आधार हैं?

रामपुरवासियो, हमारा भारत केवल परंपराओं और संस्कृति के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी पवित्र नदियों और घाटों के लिए भी पूरी दुनिया में जाना जाता है। हिंदू धर्म में नदियों को मात्र जलधारा नहीं माना गया, बल्कि उन्हें साक्षात देवी का स्वरूप समझा गया है। जब भी कोई नदी अपने किनारे पर बहती है, तो वहाँ बने घाट लोगों के लिए केवल पानी तक पहुँचने का साधन नहीं रहते, बल्कि वे जीवन की धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा का हिस्सा बन जाते हैं। जन्म से लेकर विवाह और फिर मृत्यु तक, जीवन के हर महत्वपूर्ण संस्कार इन घाटों से जुड़ जाते हैं। गंगा जैसी पावन नदियाँ और हरिद्वार जैसे तीर्थस्थल सदियों से करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र रहे हैं। यहाँ आकर लोग केवल स्नान नहीं करते, बल्कि अपने भीतर की नकारात्मकता और पापों से मुक्ति पाने का विश्वास भी महसूस करते हैं। आज हम इसी विषय को और विस्तार से समझेंगे और देखेंगे कि आखिर क्यों पवित्र नदियाँ और घाट हमारी संस्कृति, धर्म और जीवन दर्शन का सबसे अहम आधार बन गए हैं।
इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि हिंदू धर्म में पवित्र नदियाँ और घाट क्यों इतने पूजनीय माने जाते हैं। इसके बाद हम गंगा नदी और उसके घाटों की विशेष भूमिका पर नज़र डालेंगे, जहाँ हर दिन लाखों श्रद्धालु स्नान और पूजा करते हैं। फिर हम हरिद्वार के धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व को समझेंगे और जानेंगे कि इसके पाँच प्रमुख तीर्थों में कुशावर्त घाट की पहचान क्यों सबसे खास है। अंत में, हम ऋषि दत्तात्रेय से जुड़ी किंवदंतियों, मोक्ष की अवधारणा और वाराणसी (काशी) की अंतिम मुक्ति में विशेष भूमिका पर चर्चा करेंगे।हिंदू धर्म में पवित्र नदियों और घाटों का महत्व
हिंदू धर्म में नदियाँ केवल जलधारा नहीं हैं, बल्कि इन्हें देवी का स्वरूप माना गया है। विश्वास है कि इनका जल मनुष्य को बाहरी और आंतरिक दोनों प्रकार की अशुद्धियों से मुक्त करता है। इसलिए स्नान और अर्घ्य जैसी धार्मिक क्रियाएँ विशेष रूप से घाटों पर की जाती हैं। घाट, जिनकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द “घट्टा” से हुई है, वास्तव में नदी तक पहुँचने और उसके पवित्र जल से जुड़ने का साधन हैं। यहाँ सीढ़ीदार संरचनाएँ नदी के प्रवाह के समानांतर बनाई जाती हैं, जो न केवल धार्मिक कार्यों में सहायक होती हैं, बल्कि बाढ़ सुरक्षा, मिट्टी की रोकथाम और नदी तट को स्थिर बनाए रखने जैसे व्यावहारिक उद्देश्य भी पूरा करती हैं। विवाह संस्कार, यज्ञ, तपस्या से लेकर मृत्यु संस्कार तक - जीवन के हर चरण में इन घाटों का विशेष योगदान होता है। यही कारण है कि भारत के प्राचीन शहर प्रायः नदियों और उनके घाटों के आसपास ही विकसित हुए।

गंगा नदी और उसके घाटों की विशेष भूमिका
गंगा को हिंदू परंपरा में “मोक्षदायिनी” और “पाप-नाशिनी” कहा जाता है। माना जाता है कि इसमें स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पाप मिट जाते हैं और आत्मा शुद्ध हो जाती है। यही कारण है कि हरिद्वार, वाराणसी और प्रयागराज जैसे स्थानों पर गंगा स्नान करने लाखों श्रद्धालु प्रतिदिन पहुँचते हैं। गंगा के तट पर बने घाट, जैसे हर-की-पौड़ी या दशाश्वमेध घाट, न केवल धार्मिक आस्था के प्रतीक हैं, बल्कि भारत की सामाजिक और सांस्कृतिक धड़कन भी हैं। गंगा जल का प्रयोग पूजा-अर्चना, नवजात शिशु के अभिषेक, विवाह, दीक्षा समारोह और यहाँ तक कि अंतिम संस्कार तक में होता है। यह विश्वास इतना गहरा है कि जीवन की अंतिम घड़ी में भी गंगा जल की एक बूंद आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाने वाला मार्ग माना जाता है।हरिद्वार का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व
हरिद्वार, जिसे “गंगा द्वार” कहा जाता है, हिंदू धर्म के सप्तपुरी (सात पवित्रतम तीर्थ) में से एक है। यह वह स्थान है जहाँ गंगा नदी हिमालय से निकलकर मैदानी क्षेत्रों में प्रवेश करती है। इस स्थल का आध्यात्मिक महत्व इस तथ्य से और बढ़ जाता है कि इसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त माना जाता है। हरिद्वार कुंभ मेले का भी प्रमुख केंद्र है, जहाँ करोड़ों श्रद्धालु गंगा स्नान और आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। धार्मिक ग्रंथों में वर्णन मिलता है कि हरिद्वार में स्नान करने से आत्मा के पाप धुल जाते हैं और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति मिलती है। इसलिए यह नगर केवल तीर्थयात्रियों के लिए ही नहीं, बल्कि अध्यात्म और साधना की तलाश करने वालों के लिए भी एक महत्वपूर्ण गंतव्य है।

हरिद्वार के पाँच प्रमुख तीर्थ और कुशावर्त घाट की पहचान
हरिद्वार के पाँच प्रमुख तीर्थ - हर-की-पौड़ी, कुशावर्त घाट, कनखल, मनसा देवी (बिल्व पर्वत) और चंडी देवी (नील पर्वत) - हिंदू आस्था के पाँच स्तंभ माने जाते हैं। इनमें से कुशावर्त घाट का विशेष स्थान है। यह घाट विशेष रूप से पितरों के श्राद्ध, तर्पण और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए जाना जाता है। विश्वास है कि यहाँ किए गए संस्कार आत्मा को मोक्ष प्रदान करते हैं। 18वीं शताब्दी में मराठा रानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित यह घाट आज भी लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इसकी लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि हर दिन हजारों तीर्थयात्री यहाँ स्नान और पूजा के लिए पहुँचते हैं।

ऋषि दत्तात्रेय और कुशावर्त घाट से जुड़ी किंवदंतियाँ
कुशावर्त घाट की पवित्रता केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं से भी जुड़ी है। कहा जाता है कि महान ऋषि दत्तात्रेय अक्सर इस घाट पर आते थे और गहन तपस्या करते थे। मान्यता है कि उन्होंने हजारों वर्षों तक एक पैर पर खड़े होकर कठोर साधना की, जिससे यह स्थान और भी पवित्र हो गया। उनकी तपस्या और आध्यात्मिक ऊर्जा से इस घाट को दिव्य आभा प्राप्त हुई। स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं का मानना है कि यहाँ ध्यान करने से साधक को आत्मिक शांति और ईश्वर से गहरा जुड़ाव मिलता है। यही कारण है कि कुशावर्त घाट को केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि साधना और मोक्ष की खोज का प्रतीक भी माना जाता है।मोक्ष की अवधारणा और गंगा घाटों की भूमिका
हिंदू दर्शन के अनुसार, जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्त करना है, यानी जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति। गंगा घाटों पर स्नान, तर्पण, अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन इसी मुक्ति की प्रक्रिया का अभिन्न हिस्सा हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि इन घाटों पर किए गए अनुष्ठान आत्मा को पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त कर देते हैं और उसे परमात्मा से मिला देते हैं। इस आस्था के कारण गंगा घाट केवल धार्मिक क्रियाओं का स्थल नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु की गहरी दार्शनिक अवधारणाओं का प्रतिनिधित्व भी करते हैं।

वाराणसी (काशी) और अंतिम मुक्ति में उसका स्थान
वाराणसी, जिसे काशी कहा जाता है, मोक्ष की नगरी के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ के मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट विशेष रूप से अंतिम संस्कार और अस्थि विसर्जन के लिए जाने जाते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार, काशी में मृत्यु होने पर आत्मा को सीधे मोक्ष प्राप्त होता है। यही कारण है कि लाखों लोग अपने जीवन के अंतिम समय को यहीं बिताने की कामना करते हैं। वाराणसी की यह परंपरा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच के सेतु का प्रतीक भी है। यहाँ के घाट अनगिनत पीढ़ियों से मानव आस्था, दर्शन और आध्यात्मिकता के केंद्र रहे हैं।

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/3795sy3f 
https://tinyurl.com/2f8u2ttb 
https://tinyurl.com/bdfrwusx 
https://tinyurl.com/6f36kjj2 
https://tinyurl.com/4a2pytwk