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रामपुरवासियो, क्या आपने कभी सोचा है कि गन्ने से रस निकालने के बाद बचने वाला वो रेशेदार हिस्सा - जिसे हम अक्सर कचरा समझ लेते हैं - असल में कितना उपयोगी हो सकता है? यही है बगास (bagasse), जो आज रामपुर की मिट्टी से उठकर पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को नई दिशा दे रहा है। रामपुर की पहचान केवल अपनी खेती और मिलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यहाँ के मेहनती किसान और उद्योगपति अब इस बगास को एक नए संसाधन के रूप में देख रहे हैं। पहले यह बगास शुगर मिलों के पास जलाकर खत्म कर दिया जाता था, लेकिन अब यही पदार्थ बिजली, बायोगैस (biogas) और पर्यावरण-अनुकूल पैकेजिंग जैसी आधुनिक तकनीकों में काम आ रहा है। आज रामपुर की मिलें सिर्फ़ चीनी नहीं, बल्कि हरित ऊर्जा और टिकाऊ उद्योगों का भविष्य भी गढ़ रही हैं। इस बदलाव ने न सिर्फ़ प्रदूषण कम किया है, बल्कि स्थानीय लोगों के लिए नए रोज़गार और व्यवसाय के रास्ते खोले हैं। गन्ने का यह ‘बचा हुआ हिस्सा’ अब रामपुर के विकास की नई पहचान बनता जा रहा है - जहाँ परंपरा, नवाचार और प्रकृति एक साथ आगे बढ़ रहे हैं।
आज हम समझेंगे कि बगास क्या होता है और यह कैसे बनता है। फिर जानेंगे इसके पर्यावरणीय लाभ और टिकाऊ उपयोग। इसके बाद, हम देखेंगे कि बगास का इस्तेमाल पैकेजिंग और डिस्पोज़ेबल (disposable) उत्पादों में कैसे हो रहा है। आगे, हम रामपुर की अर्थव्यवस्था में इसके बढ़ते औद्योगिक प्रभाव को समझेंगे। अंत में, हम बगास की ऊर्जा उत्पादन में भूमिका पर नज़र डालेंगे और देखेंगे कि यह हरित भविष्य की ओर कैसे योगदान दे रहा है।
बगास क्या होता है और यह कैसे बनता है?
गन्ने से रस निकालने के बाद जो रेशेदार पदार्थ पीछे बचता है, उसे ही बगास कहा जाता है। यह हल्के भूरे रंग का, हल्का लेकिन मज़बूत रेशेदार पदार्थ होता है, जिसमें लगभग 45-50% पानी, 40-45% रेशे और 2-3% तक घुली हुई शर्करा होती है। इसके रेशे मुख्यतः सेल्यूलोज़ (cellulose), हेमिसेल्यूलोज़ (Hemicellulose) और लिग्निन (lignin) से बने होते हैं, जो इसे संरचनात्मक मज़बूती प्रदान करते हैं। भारत के गन्ना उत्पादन वाले इलाक़ों में गन्ना पेराई के दौरान, हज़ारों टन बगास उत्पन्न होता है। पहले इसे चीनी मिलें केवल ईंधन के रूप में जलाती थीं, ताकि भाप और गर्मी पैदा की जा सके। लेकिन आज यही बगास पेपर इंडस्ट्री (paper industry), पैकेजिंग, और ऊर्जा उत्पादन में अहम भूमिका निभा रहा है। यह बदलाव इस बात का प्रतीक है कि कैसे एक साधारण कृषि अपशिष्ट, नवाचार और तकनीक की मदद से मूल्यवान संसाधन में बदल सकता है।
बगास के पर्यावरणीय लाभ और टिकाऊ उपयोग
बगास का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल (biodegradable) और कम्पोस्टेबल (compostable) है। यानी इसके उपयोग के बाद यह मिट्टी में आसानी से मिल जाता है और किसी भी प्रकार का प्रदूषण नहीं फैलाता। बगास में कोई हानिकारक रसायन या प्लास्टिक यौगिक नहीं होते, जिससे यह पर्यावरण के लिए सुरक्षित रहता है। जब बगास को कम्पोस्ट में बदला जाता है, तो यह मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ाता है और उसमें जैविक पोषक तत्वों की मात्रा सुधारता है। यही कारण है कि इसे कई किसान जैविक खेती में उपयोग करते हैं। इसके अलावा, बगास के उत्पादन और प्रसंस्करण में कार्बन उत्सर्जन भी बहुत कम होता है, जिससे यह पारंपरिक औद्योगिक सामग्रियों की तुलना में अधिक टिकाऊ विकल्प बन जाता है। शहरों और कस्बों में, जहाँ प्लास्टिक कचरा एक बड़ी चुनौती है, वहाँ बगास आधारित उत्पाद इस समस्या का एक व्यवहारिक समाधान बनते जा रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण की रक्षा करते हैं, बल्कि लोगों में हरित जीवनशैली अपनाने की जागरूकता भी बढ़ा रहे हैं।
पैकेजिंग और डिस्पोज़ेबल उत्पादों में बगास का उपयोग
प्लास्टिक के बढ़ते प्रदूषण से पूरी दुनिया परेशान है। हर साल लाखों टन प्लास्टिक कचरा जलाशयों और नदियों में पहुँचता है - और हमारे देश के कई क्षेत्र भी इससे अछूते नहीं हैं। लेकिन बगास ने इस समस्या के समाधान की दिशा में नई उम्मीदें जगाई हैं। आज बगास के रेशों से बनी प्लेटें, कप, कटोरियाँ, फूड कंटेनर (food container), स्ट्रॉ (straw) और अन्य डिस्पोज़ेबल आइटम्स (disposable items) तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। ये उत्पाद 100% प्राकृतिक, मजबूत, और माइक्रोवेव-सेफ (microwave-safe) होते हैं। इनका निर्माण किसी रासायनिक प्रक्रिया से नहीं बल्कि यांत्रिक दबाव और गर्मी के ज़रिए किया जाता है, जिससे ये पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं। कई स्थानीय स्टार्टअप अब इन बगास उत्पादों के निर्माण में जुटे हैं। युवाओं ने छोटे-छोटे उद्योगों के माध्यम से बगास पैकेजिंग को रेस्तरां, होटल और फूड डिलीवरी व्यवसायों में पहुँचाना शुरू कर दिया है। यह बदलाव न केवल प्रदूषण घटाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह स्थानीय स्तर पर स्वदेशी नवाचार की भावना को भी मज़बूती दे रहा है।

अर्थव्यवस्था और बगास आधारित उद्योगों का विस्तार
भारत की अर्थव्यवस्था हमेशा से कृषि और उद्योगों के संतुलन पर आधारित रही है। अब इसमें बगास आधारित उद्योगों ने नई ऊर्जा का संचार किया है। बगास से बने उत्पादों की माँग बढ़ने के साथ, देशभर में छोटे और मध्यम स्तर के उद्योग तेजी से विकसित हो रहे हैं। इन उद्योगों में मशीन ऑपरेटर (machine operator), डिज़ाइनर, पैकेजिंग तकनीशियन और मार्केटिंग (maketing) विशेषज्ञों के लिए रोज़गार के नए अवसर खुले हैं। कई महिला उद्यमी भी बगास उत्पाद निर्माण में शामिल हो रही हैं, जिससे यह क्षेत्र समावेशी विकास का उदाहरण बन रहा है। सरकारी स्तर पर भी बायोडिग्रेडेबल उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए अनुदान, प्रशिक्षण और टेक्नोलॉजी सहायता जैसी योजनाएँ शुरू की गई हैं। इससे हरित उद्योगों की हिस्सेदारी बढ़ रही है और यह क्षेत्र टिकाऊ विकास के मॉडल के रूप में उभर रहा है।

ऊर्जा उत्पादन और बायोगैस में बगास की भूमिका
बगास का उपयोग केवल औद्योगिक उत्पादन में ही नहीं, बल्कि ऊर्जा निर्माण में भी किया जा सकता है। बगास को जब नियंत्रित तापमान पर जलाया या किण्वित किया जाता है, तो इससे बायोगैस निकलती है, जिसमें मुख्यतः मीथेन गैस होती है। इस गैस से बिजली, भाप और ताप ऊर्जा उत्पन्न की जाती है, जो कारखानों, मिलों और यहाँ तक कि घरेलू उपयोग के लिए भी उपयुक्त है। देश के कई चीनी उद्योग पहले से ही को-जनरेशन सिस्टम का उपयोग कर रहे हैं, जहाँ बगास से निकली ऊर्जा का उपयोग खुद मिल की ज़रूरतें पूरी करने और अतिरिक्त बिजली ग्रिड को बेचने में किया जाता है। इस तरह बगास ने पारंपरिक कोयले या पेट्रोलियम पर निर्भरता घटाई है और ऊर्जा आत्मनिर्भरता बढ़ाई है। भविष्य में, यदि बगास आधारित बायोगैस प्लांटों को प्राथमिकता दी जाए, तो यह स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भारत को एक अग्रणी देश बना सकता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/rvbznmav
https://tinyurl.com/m5z8b24p
https://tinyurl.com/2p9am5jb
https://tinyurl.com/4nj86buu
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