रामपुरवासियो जानिए कैसे भारतीय महिला क्रिकेट संघर्ष से उठकर दुनिया में अपनी पहचान बना पाई?

गतिशीलता और व्यायाम/जिम
07-11-2025 09:14 AM
रामपुरवासियो जानिए कैसे भारतीय महिला क्रिकेट संघर्ष से उठकर दुनिया में अपनी पहचान बना पाई?

भारतीय महिला क्रिकेट की कहानी अब सिर्फ़ एक खेल नहीं, बल्कि साहस, संघर्ष और सपनों की उड़ान बन चुकी है। इस सफर का सबसे स्वर्णिम पल तब आया जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने 2025 महिला विश्व कप जीतकर पूरे देश का मान बढ़ा दिया है। उत्तर प्रदेश के आगरा की शान दीप्ति शर्मा और पूरी टीम की कड़ी मेहनत, संघर्ष और जज़्बे ने हर भारतीय के दिल को गर्व से भर दिया है। यह जीत सिर्फ़ एक टूर्नामेंट (tournament) नहीं, बल्कि उन सभी लड़कियों की सफलता थी जिन्हें कभी कहा गया था कि “क्रिकेट तुम्हारे लिए नहीं है।” आज महिला क्रिकेट एक ऐसा आंदोलन बन चुका है जिसने हजारों परिवारों की सोच बदल दी है। अब क्रिकेट मैदानों पर सिर्फ़ गेंद और बल्ले की आवाज़ नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, सम्मान और राष्ट्रगौरव की गूँज सुनाई देती है। इस यात्रा ने यह साबित कर दिया कि अगर इरादे मज़बूत हों, तो कोई भी सपना दूर नहीं।
इस लेख में हम जानेंगे कि महिला क्रिकेट की शुरुआत कैसे हुई और आज यह कहाँ तक पहुँच चुका है। सबसे पहले, हम इसके इतिहास और शुरुआती दौर को समझेंगे। इसके बाद बात करेंगे कि खेल अकादमियाँ, प्रशिक्षण सुविधाएँ और खेल उपकरण बनाने वाले उद्योग किस तरह महिला खिलाड़ियों की मदद कर रहे हैं। फिर हम उन महिला खिलाड़ियों की प्रेरक कहानियाँ जानेंगे, जिन्होंने कड़ी मेहनत और लगन से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। अंत में, हम देखेंगे कि महिला क्रिकेट के सामने कौन-सी चुनौतियाँ हैं और भविष्य में इसके क्या अवसर हो सकते हैं। इससे आपको महिला क्रिकेट की पूरी यात्रा का स्पष्ट और सरल चित्र मिलेगा।

भारतीय महिला क्रिकेट की शुरुआत और आधिकारिक स्थापना (1970-1973)
भारत में महिला क्रिकेट की कहानी तब शुरू होती है, जब न कोई क्रिकेट बोर्ड महिलाओं के लिए मौजूद था और न ही कोई संस्था जो इस खेल को दिशा दे सके। 1970 के दशक की शुरुआत में कुछ साहसी लड़कियाँ और महिलाएँ गलियों, स्कूल मैदानों और खुले पार्कों में बल्ला और गेंद लेकर खेलती थीं, लेकिन उनके पास न समुचित प्रशिक्षण था, न खेल सामग्री, न ही समाज का समर्थन। उनके सपनों को आकार देने के लिए 1973 में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया - ‘विमेंस क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया’ (Women's Cricket Association of India - WCAI - डब्ल्यूसीएआई) की स्थापना। इसका पंजीकरण उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुआ। इस संस्था के गठन ने पहली बार महिला क्रिकेट को एक औपचारिक पहचान दी। इसी वर्ष भारत ने अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट परिषद (International Women’s Cricket Council - IWCC - आईडब्ल्यूसीसी) की सदस्यता प्राप्त कर यह संकेत दिया कि अब भारतीय महिलाएँ विश्व क्रिकेट का हिस्सा बनने को तैयार हैं। यह सिर्फ एक संगठन नहीं था, बल्कि उन सपनों की पहली आधिकारिक दस्तक थी, जो कह रहे थे - “हम सिर्फ दर्शक नहीं, इतिहास बनाने आई हैं।”

प्रारम्भिक घरेलू प्रतियोगिताएँ और संरचना का विकास
डब्ल्यूसीएआई के बनने के बाद सबसे बड़ी चुनौती थी - प्रतिभाओं को मंच देना और प्रतियोगिताओं की मजबूत नींव तैयार करना। 1973 में पुणे में पहली इंटर-स्टेट नेशनल (Inter-State National) महिला क्रिकेट चैंपियनशिप हुई, जिसमें सिर्फ तीन टीमें शामिल थीं - महाराष्ट्र, मुंबई और उत्तर प्रदेश। शुरुआत छोटी थी, लेकिन विचार बड़ा था। देखते ही देखते कुछ वर्षों में टीमें बढ़कर 14 हो गईं, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि भारत की बेटियाँ इस खेल को अपना भविष्य बनाना चाहती हैं। यही नहीं, रेलवे, एयर इंडिया और अन्य सरकारी संस्थानों ने महिला खिलाड़ियों को रोजगार देकर उन्हें आर्थिक सुरक्षा दी, जिससे कई खिलाड़ी अपने परिवार व समाज की झिझक छोड़कर क्रिकेट को करियर के रूप में अपना सकीं। इसी अवधि में राजी झाँसी ट्रॉफी, अंडर-15 (Under-15) और अंडर-19 (Under-19) टूर्नामेंट शुरू हुए, जिसने ग्रामीण और छोटे शहरों से उभरती युवा प्रतिभाओं को राष्ट्रीय टीम तक पहुँचने का अवसर दिया। यह वह दौर था, जब महिला क्रिकेट ने अपने पैरों पर खड़ा होना शुरू किया और एक संरचित व्यवस्था ने जन्म लिया।

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट का सफर शुरू (1975–1980)
भारतीय महिला क्रिकेट का असली इम्तहान तब शुरू हुआ जब उसने सीमाओं को पार कर अपने सपनों को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ले जाने की हिम्मत की। वर्ष 1975 में ऑस्ट्रेलिया की अंडर-25 (Under-25) टीम भारत दौरे पर आई। यह दौर सिर्फ मैचों का नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, सीख और आत्मसम्मान का था। भारतीय खिलाड़ियों के पास अनुभव कम था, लेकिन जुनून भरपूर था। अगले ही वर्ष 1976 में भारतीय महिला टीम ने वेस्टइंडीज (West Indies) के खिलाफ अपना पहला आधिकारिक टेस्ट मैच खेला। यह कोई साधारण मैच नहीं था - यह वह क्षण था जब पहली बार भारतीय तिरंगा महिला खिलाड़ियों की जर्सी पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमक रहा था। 1978 में भारत ने एक और ऐतिहासिक कदम उठाया - पहली बार महिला वनडे विश्व कप की मेजबानी की। हालाँकि भारतीय टीम फाइनल तक नहीं पहुँच सकी, लेकिन यह साफ़ हो गया कि भारत की महिलाएँ अब सिर्फ प्रतिस्पर्धा करने नहीं, बल्कि जीतने का सपना लेकर मैदान में उतर रही हैं। यह आरंभ था एक नए युग का, जहाँ महिलाएँ अब छाया नहीं, बल्कि क्रिकेट के मंच की मुख्य धारा बन रही थीं।

महिला क्रिकेट की अग्रणी हस्तियाँ - स्तंभ जिन्होंने राह बनाई
जिस दौर में संसाधन कम थे, मैदान सीमित थे और समर्थन न के बराबर था, उस समय कुछ नाम थे जिन्होंने अपने साहस, कौशल और आत्मविश्वास से महिला क्रिकेट को पहचान दिलाई। शांता रंगास्वामी वह पहली भारतीय महिला बनीं जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में शतक लगाया और आने वाली पीढ़ियों के लिए उम्मीद की किरण बन गईं। डायना एडुल्जी अपनी तेज गेंदबाज़ी और निर्भीक कप्तानी के लिए जानी गईं; उन्होंने भारतीय महिला टीम को सिर्फ दिशा नहीं दी, बल्कि आत्मसम्मान दिया। संध्या अग्रवाल ने 1986 में टेस्ट मैच में 190 रन बनाकर विश्व रिकॉर्ड कायम किया और यह दिखाया कि भारतीय बल्लेबाज़ी विश्व स्तर पर कितनी मजबूत है। सुधा शाह जैसी खिलाड़ियों ने चुपचाप, निरंतर प्रदर्शन करके टीम की रीढ़ का काम किया। सरकार ने ऐसे योगदानों को सम्मान देते हुए कई खिलाड़ियों को अर्जुन अवार्ड से नवाज़ा। इन महिलाओं ने साबित किया - “रास्ते वही बनते हैं, जहाँ कदम बढ़ाने की हिम्मत होती है।”

संघर्ष का दौर और उम्मीद की लौ (1980-1995)
भारतीय महिला क्रिकेट का सफर हमेशा आसान नहीं रहा। 1980 से 1995 के बीच यह खेल लगातार अस्तित्व के संघर्ष से गुजरता रहा। 1986 से 1991 के बीच तो लगभग अंतरराष्ट्रीय मैच ही बंद हो गए। प्रायोजकों की कमी, खेल के लिए सीमित मैदान, कोचिंग का अभाव, मीडिया का नज़रअंदाज़ करना और समाज का सवाल - “लड़कियाँ क्रिकेट क्यों खेलती हैं?” - यह सब खिलाड़ियों के मनोबल को तोड़ सकता था। लेकिन इन महिलाओं ने हार नहीं मानी। उन्होंने साधारण मैदानों पर अभ्यास किया, अपने खर्च पर यात्रा की, कभी किराए के जूते पहने, कभी पुराने बल्ले से खेला, लेकिन खेलती रहीं। उनका संघर्ष रंग लाया जब 1995 में भारतीय महिला टीम ने न्यूजीलैंड की धरती पर पहली बार महिला वनडे सीरीज़ जीतकर इतिहास रच दिया। यह जीत सिर्फ एक ट्रॉफी नहीं थी, यह विश्वास का प्रमाण थी कि कठिन दौर हमेशा स्थायी नहीं होता - अगर हिम्मत हो तो कहानी बदल सकती है।

विश्व पहचान और आधुनिक युग की ओर बढ़ते कदम (1997–2025)
1997 में जब भारत ने महिला क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी की, तो कोलकाता के ईडन गार्डन्स (Eden Gardens) में 80,000 दर्शकों का भरपूर समर्थन यह बता रहा था कि यह खेल अब दिलों में जगह बना चुका है। 2005 और फिर 2017 में भारतीय महिला टीम ने विश्व कप के फाइनल तक पहुँचकर दुनिया को बताया कि भारतीय महिलाएँ सिर्फ हिस्सा लेने नहीं, बल्कि जीतने आई हैं। भले ही ट्रॉफी उनके हाथ नहीं लगी, लेकिन उनके संकल्प ने दुनिया का सम्मान जीत लिया। इसी दौरान बीसीसीआई ने महिला क्रिकेट को अपने अंतर्गत लिया, खिलाड़ियों को सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट (Central Contract) मिले, स्टेडियमों में बेहतर सुविधाएँ दी गईं और 2023 में डब्ल्यूपीएल (वुमेंस प्रीमियर लीग) [WPL – Women’s Premier League] की शुरुआत हुई - जिसने महिला क्रिकेट को आर्थिक और व्यावसायिक रूप से नई उड़ान दी। और फिर आया 2025 - जब भारतीय महिला टीम ने पहली बार वनडे विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया। यह सिर्फ एक जीत नहीं थी, यह उन अनगिनत बेटियों के सपनों की उड़ान थी, जिन्हें कहा गया था - “क्रिकेट तुम्हारे बस की बात नहीं।”

समाज, मीडिया और महिला क्रिकेट की बदलती छवि
वह दौर भी था जब लोग हँसकर कहते थे - “लड़कियाँ भी क्रिकेट खेलती हैं?” और आज वही गर्व से कहते हैं - “ये हमारी बेटियाँ हैं, जो देश का नाम रोशन कर रही हैं।” समाज की सोच बदली, क्योंकि मैदान में लड़कियों ने अपने बल्ले और जुझारूपन से जवाब दिया। मीडिया ने भी इस बदलाव को पहचानना शुरू किया। टीवी प्रसारण, लाइव मैच, सोशल मीडिया (Social Media), डॉक्यूमेंट्रीज़ (Documentaries) और विज्ञापनों में महिला खिलाड़ियों के चेहरे दिखाई देने लगे। हरमनप्रीत कौर के छक्के, मिताली राज की शांति, स्मृति मंधाना की तकनीक, झूलन गोस्वामी की स्विंग और शेफाली वर्मा की आक्रामकता ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया। आज महिला क्रिकेट सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि बदलाव की आवाज़ है। वह आवाज़ जो कहती है - “सपने किसी जेंडर (gender) के नहीं, साहस के होते हैं।”

संदर्भ- 
https://tinyurl.com/2mxr4hn2 
https://tinyurl.com/ms2buev5 
https://tinyurl.com/5cd9kv2k 
https://tinyurl.com/yc7nhwc5 



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