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रामपुरवासियों, क्या आपने कभी सोचा है कि हमारे देश में एक ऐसा पक्षी भी है जिसके छोटे-से घोंसले की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लाखों रुपये तक पहुँच जाती है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं भारतीय स्विफ्टलेट (Swiftlet) नामक उस अद्भुत पक्षी की, जो न सिर्फ़ अपनी अनोखी उड़ान शैली के लिए जाना जाता है, बल्कि अपनी लार से बनाए गए घोंसले के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यह पक्षी भारत के दक्षिण-पश्चिमी पहाड़ों और श्रीलंका के कुछ हिस्सों में पाया जाता है, और इसका जीवन, स्वभाव और इसके घोंसले की कहानी किसी रहस्य से कम नहीं लगती। आइए, आज हम इस असाधारण पक्षी की दुनिया में झाँकते हैं - जहाँ विज्ञान, परंपरा और प्रकृति तीनों मिलकर एक अनोखी कहानी बुनते हैं।
आज हम जानेंगे कि यह भारतीय स्विफ्टलेट पक्षी आखिर कैसा दिखता है और इसकी उड़ान शैली कितनी अनोखी है। फिर, हम इसके घोंसले की उस चमत्कारिक संरचना के बारे में जानेंगे, जो पूरी तरह इसकी लार से बनती है और जिसकी कीमत लाखों में आंकी जाती है। इसके बाद, हम देखेंगे कि पूर्वी एशिया के देशों में इसी घोंसले से बनने वाला बर्ड्स नेस्ट सूप (Bird’s Nest Soup) क्यों इतना मशहूर है और कैसे इस परंपरा ने एक विशाल उद्योग का रूप ले लिया है। अंत में, हम बात करेंगे भारत में इस पक्षी के संरक्षण, कानूनी स्थिति और भविष्य में इसके संरक्षण को लेकर उठाए जा रहे कदमों की - ताकि यह दुर्लभ पक्षी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी सुरक्षित रह सके।
भारतीय स्विफ्टलेट: भारत का अनोखा और दुर्लभ पक्षी
भारतीय स्विफ्टलेट, जिसे वैज्ञानिक नाम एरोड्रामस यूनिकलर (Aerodramus unicolor) से जाना जाता है, प्रकृति की उन रहस्यमयी कृतियों में से एक है जो अपने छोटे आकार में भी बड़े आश्चर्य समेटे हुए हैं। लगभग 12 सेंटीमीटर लंबा यह पक्षी गहरे भूरे रंग का होता है, और इसके पंख बूमरैंग के समान तिरछे होते हैं - जो इसे हवा में तेजी से घूमने-फिरने की अद्भुत क्षमता देते हैं। इसका शरीर पतला और फुर्तीला होता है, जिससे यह बड़ी कुशलता से उड़ान भर सकता है। इसके पैर इतने छोटे होते हैं कि यह केवल ऊर्ध्वाधर सतहों पर चिपकने के लिए ही उनका प्रयोग कर पाता है, और ज़मीन पर चलने में लगभग असमर्थ होता है। स्विफ्टलेट का जीवन मुख्य रूप से आसमान में ही बीतता है। यह पक्षी दिनभर उड़ते हुए हवा में मौजूद छोटे कीड़ों को पकड़कर अपना भोजन करता है। केवल प्रजनन काल में यह गुफाओं की गहराई में लौटता है, जहाँ यह अपने घोंसले बनाता है। इन गुफाओं का अंधकार और नमी इस पक्षी के लिए एक आदर्श वातावरण प्रदान करती है। यह जीवनशैली दर्शाती है कि किस तरह प्रकृति ने हर जीव को उसके परिवेश के अनुरूप ढालने में कोई कमी नहीं छोड़ी है - और स्विफ्टलेट इसका एक जीवंत उदाहरण है।

लाखों में बिकने वाले घोंसले की अनोखी संरचना और विशेषताएँ
भारतीय स्विफ्टलेट का घोंसला किसी प्राकृतिक कारीगरी से कम नहीं। नर स्विफ्टलेट अपनी मोटी, लचीली और चिपचिपी लार से एक आधे कप के आकार का सफेद, चमकदार घोंसला बनाता है। यह घोंसला गुफाओं की दीवारों पर ऊर्ध्वाधर सतहों पर चिपका होता है। आश्चर्य की बात यह है कि यह पूरी तरह पक्षी की लार से बना होता है - इसमें न तो पत्तियाँ होती हैं, न टहनियाँ, न ही कोई बाहरी सामग्री। यह घोंसला जब सूखता है, तो एक पारदर्शी, हल्के कठोर और अत्यंत सुंदर संरचना में बदल जाता है। इसी दुर्लभता और विशिष्टता के कारण इसका आर्थिक मूल्य अत्यधिक होता है। अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में यह घोंसला लगभग ₹1 लाख प्रति किलो तक बिकता है। चीन, हांगकांग और सिंगापुर जैसे देशों में इसे विलासिता का प्रतीक माना जाता है। यह न केवल एक जैविक आश्चर्य है, बल्कि एक आर्थिक संपदा भी - जिसने विज्ञान, व्यापार और पारंपरिक विश्वासों को एक साथ जोड़ दिया है।
बर्ड्स नेस्ट सूप: एशिया का स्वाद और परंपरा
एशिया के कई देशों में स्विफ्टलेट के घोंसलों से बनने वाला “बर्ड्स नेस्ट सूप” (Bird’s Nest Soup) एक राजसी व्यंजन के रूप में जाना जाता है। चीन, मलेशिया (Malaysia), इंडोनेशिया (Indonesia), थाईलैंड (Thailand) और हांगकांग में यह सूप हजारों वर्षों से परंपरा का हिस्सा है। पुराने चीनी ग्रंथों में इसे “स्वास्थ्य और दीर्घायु का पेय” कहा गया है। माना जाता है कि यह सूप शरीर को ऊर्जा देता है, त्वचा को निखारता है और प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। यही कारण है कि इसे “व्हाइट गोल्ड” (White Gold) यानी सफेद सोना कहा जाता है। यह सूप बनाना भी एक कला है। सूखे घोंसलों को कई घंटों तक पानी में भिगोया जाता है, जिससे वे मुलायम हो जाते हैं। फिर इन्हें चिकन, अदरक और मसालों के साथ पकाया जाता है। अमीर वर्गों के लिए यह सिर्फ़ भोजन नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा का प्रतीक है। यह परंपरा बताती है कि कैसे मनुष्य ने प्रकृति से प्राप्त साधनों को न केवल पोषण का माध्यम बनाया, बल्कि संस्कृति और परंपरा का हिस्सा भी बना लिया।

कृत्रिम घोंसला कॉलोनियाँ और ग्रामीण अर्थव्यवस्था
एशिया के कई देशों ने स्विफ्टलेट संरक्षण को व्यावसायिक अवसर में बदल दिया है। इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों में अब “स्विफ्टलेट हाउस” (Swiftlet House) या “बर्ड हाउस” (Bird House) बनाए जाते हैं - ये विशेष रूप से डिजाइन की गई इमारतें होती हैं जहाँ पक्षियों को घोंसला बनाने के लिए आकर्षित किया जाता है। इन घरों के अंदर तापमान, नमी और ध्वनि वातावरण को प्राकृतिक गुफाओं जैसा बनाया जाता है ताकि स्विफ्टलेट आराम से घोंसले बना सकें। इस मॉडल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह ग्रामीणों के लिए एक स्थायी आय का स्रोत बन गया है। लोग अब इन कृत्रिम कॉलोनियों की देखभाल करते हैं, और घोंसलों की कटाई केवल चूजों के उड़ने के बाद की जाती है। इस प्रकार संरक्षण और आजीविका - दोनों उद्देश्यों को एक साथ पूरा किया जा रहा है। यदि भारत भी इस मॉडल को अपनाए, तो यह हमारे ग्रामीण इलाकों में आर्थिक सशक्तिकरण और पर्यावरणीय संतुलन का बेहतरीन उदाहरण बन सकता है।
प्रतिध्वनि निर्धारण क्षमता: स्विफ्टलेट का अनोखा नेविगेशन सिस्टम
स्विफ्टलेट की सबसे आश्चर्यजनक विशेषता है इसकी इकोलोकेशन (Echolocation) या प्रतिध्वनि निर्धारण क्षमता। बहुत कम पक्षी प्रजातियों में यह क्षमता पाई जाती है। जब ये पक्षी गुफाओं के गहरे अंधकार में उड़ते हैं, तो ये अपनी चहक या क्लिक जैसी ध्वनियाँ निकालते हैं। ये ध्वनि तरंगें गुफा की दीवारों से टकराकर वापस लौटती हैं, और स्विफ्टलेट उनके आधार पर अपने आसपास के स्थानों का अंदाज़ा लगाता है। यह वही प्रणाली है जिसका उपयोग चमगादड़ करते हैं। इससे यह पक्षी अंधेरे में भी टकराए बिना उड़ सकता है, घोंसला ढूँढ सकता है और अपने बच्चों की देखभाल कर सकता है। यह अद्भुत जैविक तंत्र हमें यह एहसास कराता है कि प्रकृति ने हर जीव को अपने वातावरण में जीवित रहने की अनूठी बुद्धिमत्ता दी है।
संरक्षण और कानूनी स्थिति: भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम में स्थान
भारत में स्विफ्टलेट की बढ़ती दुर्लभता और इसके घोंसलों की भारी मांग को देखते हुए 2002 में इसे भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Indian Wildlife Protection Act) की अनुसूची में शामिल किया गया। इसका उद्देश्य था - इसके अवैध शिकार और अनियंत्रित घोंसला कटाई पर रोक लगाना।
हालाँकि, इस सख्ती के बाद ग्रामीणों का इस पक्षी के संरक्षण में रुचि कम होने लगी क्योंकि उन्हें कोई आर्थिक लाभ नहीं दिख रहा था। इसी समस्या को हल करने के लिए जयराम रमेश की अध्यक्षता में हुई राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) की बैठक में निर्णय लिया गया कि स्विफ्टलेट को अस्थायी रूप से सूची से हटाया जाए और नियंत्रित घोंसला संग्रह की अनुमति दी जाए। इस नीति का उद्देश्य था संरक्षण और व्यवसायिकरण का संतुलन बनाना। इसका परिणाम यह हुआ कि अब स्थानीय समुदाय भी इस संरक्षण में भागीदारी कर रहे हैं - क्योंकि उन्हें इसके बदले आर्थिक लाभ भी मिल रहा है।

भविष्य की दिशा: सतत संरक्षण और आर्थिक संतुलन
आज भारत में स्विफ्टलेट संरक्षण को एक “सतत विकास” (Sustainable Development) मॉडल के रूप में देखा जा रहा है। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में वन विभाग ने कृत्रिम घोंसला कॉलोनियों की स्थापना की है, जहाँ पक्षियों की निगरानी रखी जाती है और घोंसले केवल तब लिए जाते हैं जब चूजे उड़ने के योग्य हो जाएँ। यह प्रणाली न केवल पक्षियों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है बल्कि ग्रामीण समुदायों को भी आय का साधन देती है। इस मॉडल को देश के अन्य तटीय क्षेत्रों में भी अपनाया जा सकता है। इससे स्थानीय लोगों में वन्यजीव संरक्षण के प्रति विश्वास और सहयोग बढ़ेगा। भविष्य का लक्ष्य यह होना चाहिए कि संरक्षण केवल कानूनों तक सीमित न रहे - बल्कि यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था, शिक्षा और पारिस्थितिकी के साथ जुड़कर एक समग्र प्रणाली बने।
संदर्भ-
https://bit.ly/3VbkLJj
https://bit.ly/3Uci49g
https://bit.ly/3OE42Mx
https://tinyurl.com/4j2v7ua7
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