रामपुर में गुरु गोबिंद सिंह जयंती: समय के साथ समाज को दिशा देती शिक्षाएँ

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
27-12-2025 09:28 AM
रामपुर में गुरु गोबिंद सिंह जयंती: समय के साथ समाज को दिशा देती शिक्षाएँ

रामपुरवासियों जब हम इतिहास के पन्ने खोलते हैं तो कुछ ऐसे महान व्यक्तित्व सामने आते हैं जिन्होंने अपने साहस अपने शब्दों और अपनी आत्मा से पूरी दुनिया को यह सिखाया कि मनुष्य का असली मूल्य उसके धर्म या पहचान में नहीं बल्कि उसकी मानवता में होता है। गुरु गोबिंद सिंह का जीवन इन्हीं मूल्यों का प्रतीक है। वे केवल एक धार्मिक गुरु नहीं थे बल्कि एक कवि एक योद्धा एक दार्शनिक और एक ऐसे दूरदर्शी नेता थे जिन्होंने समाज को यह बताया कि अन्याय के सामने झुकना नहीं बल्कि सच्चाई और सम्मान के लिए खड़े होना ही असली धर्म है।रामपुर की धरती, जिसने हमेशा तहज़ीब और आपसी भाईचारे को महत्व दिया है, गुरु गोबिंद सिंह जयंती को मनाते समय उनकी वही शिक्षाएँ हमें अपने संस्कारों से गहराई से जुड़ने का अवसर देती हैं।
गुरु गोबिंद सिंह जयंती का असली अर्थ तब सामने आता है जब श्रद्धा के साथ-साथ संगठित सेवा और अनुशासन को भी महत्व दिया जाए। सिख गुरुपर्वों में अखंड पाठ, सतत लंगर और सेवा कार्य इस बात का उदाहरण हैं कि आध्यात्मिकता केवल विचार नहीं बल्कि कर्म में उतरनी चाहिए। यदि इस दिन समाज के लिए ठोस पहलें की जाएँ, तो यह पर्व स्मरण से आगे बढ़कर जिम्मेदारी और संवेदनशीलता का रूप ले सकता है।
आज के इस लेख में हम गुरु गोबिंद सिंह जयंती के महत्व को सरल रूप में समझेंगे। सबसे पहले यह जानेंगे कि यह पर्व क्यों मनाया जाता है और गुरु जी के जन्म का धार्मिक तथा सामाजिक महत्व क्या है। इसके बाद हम उनके जीवन की प्रमुख घटनाओं और उन शिक्षाओं पर नज़र डालेंगे, जो उन्हें एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व बनाती हैं। इसके बाद खालसा पंथ और पाँच ककार के महत्व को समझेंगे। साथ ही यह भी देखेंगे कि जयंती देशभर में कैसे मनाई जाती है और रामपुर में इसे और अधिक सार्थक बनाने के कौन से तरीके हो सकते हैं। अंत में जानेंगे कि गुरु जी का संदेश आज के रामपुर और खासकर युवा पीढ़ी के लिए क्यों उतना ही जरूरी है।

File:Guru Gobind Singh on horse with attendants.jpg

गुरु गोबिंद सिंह जयंती क्या है और क्यों मनाई जाती है
गुरु गोबिंद सिंह जयंती सिख परंपरा के अनुसार पौष माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन गुरु जी के अवतरण का स्मरण है और इसे श्रद्धा भक्ति और सामाजिक एकता के साथ मनाया जाता है। यह जयंती केवल एक जन्मदिन नहीं बल्कि उनके जीवन से जुड़े उस साहस भरे संदेश की याद दिलाती है जिसने लाखों लोगों को न्याय और आत्मसम्मान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी। गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन में अत्याचार और अन्याय के खिलाफ जिस दृढ़ता और निडरता के साथ संघर्ष किया वह आज भी समाज के लिए प्रेरणादायक है। रामपुर में भी कई लोग इस दिन गुरुद्वारों में जाकर अरदास करते हैं और गुरु जी के महान जीवन आदर्शों को याद करते हैं।

File:Page 150 - a man (likely Guru Gobind Singh) seated with Sikh worshipers. Watercolour drawing.jpg

गुरु गोबिंद सिंह का जीवन और उनके व्यक्तित्व की विशेषताएँ
गुरु गोबिंद सिंह का जन्म सत्रहवीं शताब्दी में पटना साहिब में हुआ था। बचपन से ही उनमें आध्यात्मिकता के साथ साथ वीरता और नेतृत्व की क्षमता दिखाई देने लगी थी। उन्होंने साहित्य दर्शन और शस्त्र विद्या तीनों क्षेत्रों में अद्वितीय दक्षता प्राप्त की। उनका जीवन संघर्षों से भरा था। उन्होंने अपने चारों पुत्रों को धर्म और मानवता की रक्षा के संघर्ष में खो दिया लेकिन इसके बावजूद उनके भीतर का साहस और न्याय के प्रति समर्पण कभी कम नहीं हुआ। उन्होंने समाज को यह सिखाया कि इंसान की महानता उसके कर्म और उसके सदाचार में है न कि उसके धर्म उसके परिवार या उसके पद में। 

खालसा पंथ की स्थापना और पाँच ककार का महत्व
वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण आध्यात्मिक और सामाजिक घटनाओं में से एक मानी जाती है। खालसा पंथ का उद्देश्य था कि हर व्यक्ति जाति वर्ग या किसी भी प्रकार के भेदभाव से मुक्त होकर समानता और साहस के आधार पर जीवन जी सके। इसी अवसर पर गुरु जी ने पाँच ककार की परंपरा को स्थापित किया जिनमें केश कंघा कड़ा कच्छेरा और कृपाण शामिल हैं। इन पाँच प्रतीकों का संदेश अत्यंत गहरा है क्योंकि वे अनुशासन स्वच्छता साहस आत्मसम्मान और सेवा भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन मूल्यों के चलते सिख समाज केवल एक धार्मिक समूह नहीं बल्कि एक अनुशासित एकजुट और न्यायप्रिय समुदाय के रूप में विकसित हुआ।

File:Mural depicting Guru Gobind Singh and Bhai Sangtia atop of a hill awaiting the goddess Chandi, with a Brahmin fleeing, from a Nirmala tomb, Hoshiarpur, Punjab, circa 19th century.jpg

गुरु गोबिंद सिंह जयंती कैसे मनाई जाती है
देशभर में जयंती के दिन सुबह से गुरुद्वारों में कीर्तन पाठ और अरदास शुरू हो जाते हैं। लोग प्रभात फेरियों में शामिल होते हैं जहां वे गुरु जी के शबदों का गायन करते हुए गलियों मोहल्लों से गुजरते हैं। लंगर की परंपरा इस दिन विशेष महत्व रखती है क्योंकि इसमें सभी लोग एक ही पंक्ति में बैठकर बिना किसी भेदभाव के भोजन ग्रहण करते हैं। यह केवल धार्मिक आयोजन नहीं बल्कि समानता और एकता का प्रतीक है। रामपुर में भी जयंती के अवसर पर गुरुद्वारों में श्रद्धालुओं का आना और सेवा कार्यों का आयोजन सामान्य है। यदि इस दिन रामपुर की युवा पीढ़ी समाज सेवा सफाई अभियान या किसी स्थानीय संस्था की मदद का कार्य करे तो यह जयंती और अधिक सार्थक बन सकती है। इससे गुरु जी का संदेश व्यवहारिक रूप से समाज के बीच जीवित रहता है।

गुरु गोबिंद सिंह का संदेश
गुरु गोबिंद सिंह ने हमेशा यह कहा कि अन्याय के सामने मौन रहना भी अन्याय में सहभागी होना है। उन्होंने सिखाया कि सच्चाई और धर्म के मार्ग पर चलने के लिए साहस और दृढ़ता की आवश्यकता होती है। उनका संदेश आज के समय में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब समाज में विविधताएँ बढ़ रही हैं और लोगों को एकता और सद्भाव के पुल की आवश्यकता है। रामपुर की युवा पीढ़ी जो शिक्षा प्रौद्योगिकी और नए अवसरों से तेज़ी से जुड़ रही है गुरु जी की इस सीख से बहुत लाभ उठा सकती है कि जीवन में सम्मान सेवा और साहस ही वह मूल्य हैं जो किसी इंसान को महान बनाते हैं।

संदर्भ 
https://tinyurl.com/5afy99kn 
https://tinyurl.com/yck53buc 
https://tinyurl.com/36yccknd
https://tinyurl.com/477adutj
https://tinyurl.com/4fbe9wry

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