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रामपुरवासियों, प्रकृति और पृथ्वी के रहस्यों को जानने की जिज्ञासा हमेशा से हमें आकर्षित करती रही है। जब बात हिमालय जैसे भव्य पर्वत श्रेणी की हो, तो यह उत्सुकता और भी बढ़ जाती है। हमारे देश की उत्तर दिशा में खड़ा यह विराट हिमालय सिर्फ एक पर्वत नहीं, बल्कि करोड़ों वर्षों के भूवैज्ञानिक परिवर्तनों का जीवित इतिहास है। आज हम स्ट्रैटिग्राफी (Stratigraphy) की मदद से यह समझने की कोशिश करेंगे कि यह अद्भुत पर्वत कैसे बना और इसका निर्माण किस तरह पृथ्वी की परतों के उतार-चढ़ाव से जुड़ा हुआ है।
आज हम क्रमबद्ध तरीके से जानेंगे कि स्ट्रैटिग्राफी क्या होती है और यह पृथ्वी की परतों को समझने में कैसे मदद करती है। इसके बाद, हम देखेंगे कि स्ट्रैटिग्राफी की सहायता से हिमालय निर्माण की प्रक्रिया को कैसे समझा जाता है। फिर, हम जानेंगे कि भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट (Eurasian Plate) के शक्तिशाली टकराव ने हिमालय को जन्म देने में कैसी भूमिका निभाई। इसके अतिरिक्त, हिमालय की परतों की मोटाई, उत्थान और ज्वालामुखीय गतिविधि के समाप्त होने जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं को भी समझेंगे। अंत में, हम यह भी देखेंगे कि आने वाले मिलियन (million) वर्षों में हिमालय कैसे बदल सकता है और इसका भविष्य कैसा दिख सकता है।
स्ट्रैटिग्राफी क्या है और यह भूवैज्ञानिक परतों को कैसे समझाती है?
स्ट्रैटिग्राफी पृथ्वी विज्ञान की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण शाखा है, जो पृथ्वी की सतह के नीचे मौजूद परतों का वैज्ञानिक अध्ययन करती है। पृथ्वी की सतह के नीचे लाखों - करोड़ों वर्षों में बनी परतें एक तरह से हमारे ग्रह की ‘डायरी’ की तरह होती हैं, जिनमें समय के साथ हुए परिवर्तन दर्ज होते चलते हैं। स्ट्रैटिग्राफी का काम इन परतों को पढ़ना, उनके क्रम और संरचना को समझना और यह पता लगाना है कि किसी क्षेत्र में कौन-कौन सी भूवैज्ञानिक घटनाएँ कब और कैसे हुई होंगी। स्ट्रैटिग्राफी में सबसे पहले ऊर्ध्वाधर परतों को देखकर यह समझा जाता है कि कौन-सी परत सबसे पुरानी है और कौन-सी सबसे नई। नीचे की परतें अधिक पुरानी होती हैं, जबकि ऊपर की परतें हाल के समय में बनी होती हैं; इसे समय आयाम कहा जाता है। समय आयाम से वैज्ञानिक यह अनुमान लगा पाते हैं कि किसी क्षेत्र में किस प्रकार के परिवर्तन किस अनुक्रम में हुए। इसी तरह, जब परतों को क्षैतिज दिशा में देखा जाता है, तो पता चलता है कि भौगोलिक क्षेत्र के अनुसार परतों की मोटाई या संरचना में क्या परिवर्तन आते हैं। इस प्रकार के अध्ययन को स्थान आयाम कहा जाता है, जो यह समझने में मदद करता है कि अलग-अलग क्षेत्रों में परतें क्यों और कैसे भिन्न दिखाई देती हैं। इन दोनों आयामों को मिलाकर वैज्ञानिक पृथ्वी की परतों के विकास, उनके फैलाव और उनमें दर्ज भूवैज्ञानिक घटनाओं का एक क्रमिक इतिहास तैयार करते हैं।

स्ट्रैटिग्राफी के माध्यम से हिमालय निर्माण की प्रक्रिया को कैसे समझा जाता है?
हिमालय का निर्माण करोड़ों वर्षों में हुई भूवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का परिणाम है। जब वैज्ञानिक स्ट्रैटिग्राफी की सहायता से हिमालय क्षेत्र की परतों का अध्ययन करते हैं, तो उन्हें पृथ्वी के प्राचीन इतिहास से जुड़ी कई महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं। उदाहरण के लिए, टेथिस महासागर (Tethys Ocean) के तल में जमा हुई पुरानी तलछटें, वहां के जीवाश्म, तथा चट्टानों की संरचना यह स्पष्ट संकेत देती हैं कि एक समय में इस क्षेत्र में समुद्र मौजूद था। इन परतों की मोटाई, उनका झुकाव, और उनमें मौजूद तलछटी पदार्थ यह बताता है कि कैसे लंबे समय तक समुद्री तल पर पदार्थ जमा होते गए और फिर टेक्टोनिक शक्तियों (Tectonic forces) के कारण एक-दूसरे के ऊपर चढ़ते गए। स्ट्रैटिग्राफी यह भी दिखाती है कि पृथ्वी की सतह पर बनी ये परतें कैसे धीरे-धीरे उठीं, मुड़ीं और अंततः पर्वतमालाओं का रूप लेने लगीं। स्ट्रैटिग्राफी की वजह से वैज्ञानिक यह समझ पाते हैं कि हिमालय क्षेत्र की परतें केवल ऊपर से दिखने वाली चट्टानें नहीं हैं, बल्कि ये लाखों वर्षों के दबाव, खिसकन और टकराव के परिणाम हैं। यह विज्ञान हमें हिमालय का इतिहास इस तरह पढ़ने में मदद करता है, जैसे किसी पुराने ग्रंथ के अध्याय दर अध्याय ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव से हिमालय कैसे बना?
लगभग 225 मिलियन वर्ष पहले भारत एक विशाल द्वीप था, जो वर्तमान ऑस्ट्रेलियाई तट के पास स्थित था। उस समय एशिया और भारत के बीच विशाल टेथिस महासागर फैला हुआ था। जब सुपरकॉन्टिनेंट पैंजिया (Supercontinent Pangea) टूटने लगा, तो भारतीय प्लेट स्वतंत्र होकर उत्तर की ओर बढ़ने लगी। यह गति सामान्य नहीं थी - भारत पृथ्वी की सबसे तेज़ चलने वाली महाद्वीपीय प्लेटों में से एक बन गया और लगभग 9-16 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की दर से उत्तर की ओर खिसकने लगा। इस तेज़ गति के कारण टेथिस महासागर का तल धीरे-धीरे यूरेशियन प्लेट के नीचे दबने लगा, जिसे सबडक्शन (Subduction) कहते हैं। लेकिन भारतीय प्लेट का अग्रभाग बहुत मोटी तलछटों से भरा था। जब यह तलछट दबने लगी, तो वह टूटकर यूरेशियन प्लेट की सीमा पर जमा होती चली गई और एक विशाल एक्रीशनरी वेज (Accretionary Wedge) का निर्माण हुआ। यही वेज आगे चलकर हिमालय के आधार का एक बड़ा हिस्सा बना। जब लगभग 50-40 मिलियन वर्ष पहले भारतीय प्लेट यूरेशियन प्लेट से सीधे टकराई, तो टेथिस महासागर लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गया और समुद्री तल बंद हो गया। इस टकराव ने पृथ्वी की परतों पर इतना शक्तिशाली दबाव डाला कि वे परतें ऊपर उठने लगीं और धीरे-धीरे हिमालय का निर्माण हुआ - यह निर्माण आज भी जारी है।

हिमालय का विकास, परतों की मोटाई और ज्वालामुखीय गतिविधि का समाप्त होना
भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के बीच हुआ यह विशाल टकराव इतना शक्तिशाली था कि इससे पृथ्वी की परतें मुड़ गईं और उनमें बड़े-बड़े भ्रंश बन गए। यही वलन और भ्रंश हिमालय की ऊँचाई बढ़ाने का मुख्य कारण बने। इस क्षेत्र में महाद्वीपीय परत की मोटाई बढ़ते-बढ़ते लगभग 75 किलोमीटर तक पहुँच गई, जो विश्व के कुछ सबसे मोटे भू-भागों में से एक है। जब परतें इतनी मोटी हो जाती हैं, तो नीचे से ऊपर उठने वाला मैग्मा सतह तक नहीं पहुँच पाता। वह बीच में ही ठंडा होकर जम जाता है। परिणामस्वरूप, हिमालय क्षेत्र में ज्वालामुखीय गतिविधि लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गई। इसका अर्थ यह है कि हिमालय का निर्माण ज्वालामुखीय विस्फोट से नहीं, बल्कि शुद्ध रूप से दो विशाल प्लेटों के टकराव और संपीड़न से हुआ है। इस पूरी प्रक्रिया ने हिमालय को एक निरंतर उठते रहने वाली पर्वतमाला का रूप दे दिया है, जिसका निर्माण और विकास भूवैज्ञानिक शक्तियों के अधीन आज भी जारी है।

हिमालय पर्वत का भविष्य: आने वाले मिलियन वर्षों में क्या परिवर्तन होंगे?
हिमालय आज भी ‘जीवित’ पर्वत है - यानी इसका निर्माण रुका नहीं है। भारतीय प्लेट अब भी यूरेशियन प्लेट की ओर बढ़ रही है, जिसके कारण हिमालय प्रति वर्ष लगभग 1 सेंटीमीटर की दर से ऊँचा उठ रहा है। यद्यपि अपक्षय और अपरदन इसकी ऊँचाई को संतुलित करते रहते हैं, लेकिन भूवैज्ञानिक दृष्टि से हिमालय एक बढ़ती हुई पर्वतमाला है। आने वाले 5-10 मिलियन वर्षों में भारत और तिब्बत के बीच दूरी और कम हो जाएगी, और भारत का भूभाग लगभग 180 किलोमीटर और उत्तर की ओर धकेला जाएगा। इस प्रक्रिया से नेपाल की वर्तमान स्थिति और भूगोल में बड़े बदलाव आ सकते हैं। हालांकि, हिमालय का अस्तित्व समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है। यह पर्वतमाला उसी प्रकार बनी रहेगी - ऊँची, विशाल और निरंतर विकसित होने वाली। हिमालय के भविष्य का अध्ययन यह दर्शाता है कि हमारा ग्रह लगातार बदलता रहता है और हिमालय इस परिवर्तन का सबसे सुंदर और महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
संदर्भ -
http://tinyurl.com/3d6cfp69
http://tinyurl.com/3ssz3xe7
http://tinyurl.com/2ax9usdf
https://tinyurl.com/yh5n2jdf
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