लोक रंगमंच में रची रास लीला: मंच पर भक्ति, संवाद में आत्मा की अनुभूति

द्रिश्य 2- अभिनय कला
17-08-2025 09:14 AM
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भारतीय लोक रंगमंच एक समन्वित कला-रूप है, जिसमें संगीत, नृत्य, भाव-भंगिमा (pantomime), पद्य रचना, महाकाव्य एवं वीरगाथा गायन, दृश्य-कला, धार्मिक अनुष्ठान और ग्राम्य उत्सव की जीवंत झलक देखने को मिलती है। इसकी जड़ें न केवल भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में गहराई से धँसी हुई हैं, बल्कि यह सदियों से सामाजिक मूल्यों और स्थानीय पहचान का प्रतिबिंब भी रही है। लोक रंगमंच केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि एक ऐसा जीवंत संप्रेषण माध्यम रहा है, जिसने जनमानस के बीच संवाद, चेतना और सामाजिक समरसता को पनपाया है।

पहले वीडियो में हम रास लीला की एक मनमोहक झलक देखेंगे।

इस सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य में रास लीला का स्थान अत्यंत विशिष्ट है। श्रीकृष्ण की रास लीला, विशेष रूप से वृंदावन की गोपियों के साथ, न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह भक्ति, सौंदर्य, और परमानंद के गहनतम रूपों का प्रतीक भी है।  रास लीला केवल नृत्य या प्रेम का उत्सव नहीं है; यह चेतना की उस अवस्था का उद्घाटन है, जहाँ भौतिक सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं और केवल 'रस' शेष रह जाता है, परम आनंद, दिव्य प्रेम की तरलता। यही 'रस' रास का आधार है, एक ऐसा भाव जो न तो शब्दों में बाँधा जा सकता है, न तर्कों में समाया जा सकता है। 'लीला' इस रस का अनौपचारिक, अलौकिक और चिरस्थायी प्रवाह है। किंवदंतियों के अनुसार, जब यह महा रास संपन्न हो रहा था, तब देवगण स्वर्ग से इसे देखने के लिए विमानों में आकाश में एकत्र हो गए। उन्होंने कामना की कि अगले जन्म में उन्हें स्वर्ग में नहीं, बल्कि ब्रज में जन्म मिले ताकि वे गोपी रूप में इस लीला का हिस्सा बन सकें। यहाँ तक कि स्वयं महादेव शिव भी इस लीला में भाग लेने की इच्छा से प्रेरित हुए। किंतु जब उन्हें बताया गया कि रास में एकमात्र पुरुष कृष्ण हैं, तो उन्होंने गोपी का रूप धारण करने की प्रार्थना की। अंततः वे 'गोपीश्वर महादेव' बने और रास लीला के द्वारपाल।

नीचे दिए गए वीडियो के ज़रिए हम रास लीला को समझने की कोशिश करेंगे। 

इस प्रकार रास लीला केवल एक धार्मिक कथा नहीं, बल्कि लोक रंगमंच की उस अद्वितीय परंपरा का जीवंत उदाहरण है, जहाँ अध्यात्म, सौंदर्य और लोक संस्कृति एक दूसरे में विलीन होकर एक दिव्य अनुभव रचते हैं। यह उस भारतीय परंपरा का सजीव प्रतिबिंब है, जहाँ मंच एक मंदिर है, नृत्य आराधना है, और दर्शक स्वयं लीला का भाग। आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में रास लीला को लोक रंगमंच की भाँति प्रस्तुत किया जाता है – कोई इसे धार्मिक आयोजन मानता है, कोई कलात्मक प्रदर्शन।

नीचे दिए गए लिंक में हमें रास लीला की एक सुंदर प्रस्तुति देखने को मिलेगी।

संदर्भ-

https://short-link.me/15Hl4 

https://short-link.me/15Hlc 

https://short-link.me/15Hlg 

https://short-link.me/1a43x 

https://short-link.me/1a42v 

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