 
                                            समय - सीमा 266
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                                            चींटियों को कौन नहीं जानता? चींटियों की कई प्रजातियां संसार के लगभग हर हिस्से में पाई जाती हैं। चींटियाँ हमारे आसपास पाये जाने वाले सभी जन्तुओं में से सबसे अधिक संख्या में पाए जाने वाले और सबसे अधिक परिचित जन्तु हैं। कुछ चींटियों का व्यवहार बड़ा ही रोचक होता है। इन्ही चींटियों में से एक ग्रीन ट्री चींटियां है जो इंजीनियरिंग की एक उल्लेखनीय प्रणाली का उपयोग करके पेड़ों में अपने घरों का निर्माण करती हैं। ये ग्रीन ट्री चींटीयां भारत के हिमालय की तलहटी में, नेपाल, दक्षिणी चीन, उत्तरी वियतनाम, और क्वींसलैंड के दक्षिणी तट में तथा ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं।
इन बुनकर चींटियों का उपयोग व्यावसायिक रूप से भी किया जाता है। इनके लार्वा को इंडोनेशिया में कीट-खाने वाले पक्षियों के लिए महंगे आहार के रूप में बेचा जाता है और श्रमिक चींटियों का उपयोग भारत और चीन में पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है। ये अपेक्षाकृत आक्रामक स्वभाव की होती हैं और झुंड में अपने घोंसले बना कर रहती है। ये अपना घोंसला बनाने के लिये पत्तियों का उपयोग करती है और श्रमिक चींटियों द्वारा पत्तियों को एक साथ बांधने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला धागा भी बड़ा मज़ेदार होता है। यह इन चींटियों के लार्वा में रेशम होता है। लार्वा ले जाने वाले श्रमिक घोंसले को सटीकता के साथ बांधते हुए आगे बढ़ते हैं, जबकि अन्य श्रमिक धैर्यपूर्वक पत्तियों को पकड़ते हैं। इस कार्य को पूरा होने में कई घंटे लग सकते हैं।
 
हालांकि इनकी कॉलोनियों में एक ही रानी है, परंतु पूरे पेड़ पर इनके कई घोंसले होते है, इन सुपर कॉलोनियों में हजारों चींटियां हो सकती हैं तथा एक पेड़ पर 150 से अधिक घोंसले हो सकते हैं और एक कॉलोनी आठ साल तक अस्तित्व में बनी रह सकती है। रानी चींटी एक घोंसले में ही है, लेकिन उसके अंडे कॉलोनी के अन्य घोंसलों में वितरित किए जाते हैं। सिर्फ घोंसले का निर्माण ही इन चींटियों की अनूठी प्रतिभा नहीं है। ये अपने स्वयं के शरीर का उपयोग करके पुलों और सीढ़ी का निर्माण भी कर सकते हैं। इस प्रकार ये आसानी से उस स्थान पर भी पंहुच जाती है जहां पहुचना मुश्किल है। इतना ही नहीं ये चींटियां विभिन्न कैटरपिलर, टिड्डे और अन्य सैप चूसने वाले कीटों की कई प्रजातियों की सक्रिय रूप से रक्षा करती हैं। बदले में ये इन चींटियों को शर्करा स्राव प्रदान करते है, यह एक समृद्ध खाद्य स्रोत है और इन चींटियों के लिए एक मूल्यवान वस्तु है।
ये भोजन की तलाश में दूर दूर तक यात्रा करती है तथा एक दूसरे को अपनी एक विशेष गंध (फेरोमोन्स) द्वारा पहचानती हैं। इनके पास बहुत मंद दृष्टि होती है और अपने रास्ते को महसूस करने के लिए ग्रीन ट्री चींटी अपने एंटीना का उपयोग करती हैं तथा ये ज्यादातर रात में ही काम करती हैं। भोजन में ये पौधे और जानवर दोनों को खाती हैं। जो जानवर ये खाती हैं, वे ज्यादातर छोटे अकशेरुकी होते हैं। परंतु इन्हे कई बार छोटे मृत पक्षियों और सरीसृपों को पेड़ों में घसीटते हुए और अपने लार्वा को खिलाते हुए देखा गया है। इतना ही नहीं ये बड़े कशेरुकी जानवरों के शवों को भी चट कर जाती है।
ये चींटियां जीवन भर पूरी तरह से सक्रिय रहती है। अंडे से निकलने के बाद, वे लार्वा के रूप में जीवन शुरू करते हैं और बाद के जीवन को केवल परिश्रम करने में बिताती हैं। ये छोटी सी प्राणी वास्तव में हमारे पारिस्थितिक तंत्र में एक महत्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय भूमिका निभाता है।
संदर्भ:
1.	https://www.minibeastwildlife.com.au/resources/green-tree-ants/
 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        