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कांच और उससे बनी वस्तुएं सालों से घर-बाजारों की सजावट में चार चाँद लगा रहे हैं। कांच के निर्माण में महत्वपूर्ण एवं आवश्यक तत्व ग्लास रेत (Glass Sand) है। यह एक विशिष्ठ प्रकार की रेत होती है, जिसमें सिलिका (Silica) तत्व की अधिक (लगभग 88 से 99% ) और आयरन ऑक्साइड (Iron Oxide), क्रोमियम (Chromium), कोबाल्ट (Cobalt) और अन्य तत्वों (Other Colorants) की कम मात्रा पाई जाती है, जो इसे कांच की वस्तुओं का निर्माण करने के लिए उपयुक्त बनाती है। कांच के निर्माण के लिए आवश्यक कच्चे माल में कोयला और रसायन के साथ सिलिका रेत की आपूर्ति भारत के कई स्थानों से की जाती है। कांच के निर्माण के लिए दूसरा आवश्यक तत्व कोयला पश्चिम बंगाल और झारखंड में बड़ी मात्रा में पाया जाता है। साथ ही अन्य आवश्यक रसायन जैसे बोरेक्स, सोडा ऐश, सेलेनियम, नमकपेट्री, मैंगनीज डाइऑक्साइड और रंग बड़े पैमाने पर देश के कई हिस्सों में ही उपलब्ध हैं। सर्वप्रथम 1960 में पाकिस्तान के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (The Geological Survey of Pakistan (GSP)) द्वारा शेरपुर जिले के श्रीबर्डी अपझिला के बलिजुरी मौजा में कांच की रेत की खोज की गई। कांच की रेत 30 लेंस में 0.15 से 2.13 मीटर तक मोटी होती है, जो रिजर्व 0.596 वर्ग किमी के क्षेत्र में 0.64 मिलियन टन तक पाई गई। पाकिस्तान के भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने हबीगंज जिले के नयापारा क्षेत्र में 1970-71 में, उसके बाद 1972-73 में, और 1974-76 में सर्वेक्षण किया। अंततः बांग्लादेशी सर्वेक्षण (Geological Survey of Bangladesh (GSB)) द्वारा यहाँ विस्तार से सर्वेक्षण का कार्य संपन्न हुआ।
भारत में कांच उद्योग को दो भागों में विभक्त किया गया है:
भारत में कांच का कुटीर उद्योग
भारत में कर्नाटक राज्य का बेलगाम और उत्तर प्रदेश राज्य का फ़िरोज़ाबाद शहर कांच के कुटीर उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। कांच के लघु उद्दोग के अंतर्गत कांच की चूड़ियाँ, सजावट का सामान, टेबल लैंप, कांच के बर्तन, फूलदान इत्यादि का निर्माण किया जाता है। इस उद्योग में छोटी भट्टियों में या तो कारखानों में उत्पादित कांच के ब्लॉक अथवा नदियों से प्राप्त अशुद्ध रेत से निर्मित निम्न श्रेणी के कांच का प्रयोग किया जाता है।
भारत में कांच का कारखाना उद्योग
भारत में उत्तर प्रदेश का सिरेमिक उद्योग मुख्य रूप से शीट ग्लास, बल्ब, चिमनी, मोटर हेडलाइट्स के निर्माण से सम्बंधित है। पंजाब वैज्ञानिक वस्तुओं के उत्पादन के लिए, तो बंगाल और महाराष्ट्र टेस्ट-ट्यूब, ग्लास ट्यूब, बीकर और फ्लैट ग्लास के लिए प्रचलित है। देश में फैक्ट्री उद्योग इन राज्यों सहित बिहार तथा झारखंड में फैला है।
उत्तर प्रदेश राज्य का छोटा सा शहर फ़िरोज़ाबाद भारत में कांच उद्दोग का केंद्र माना जाता है, खास कर यहाँ बनने वाली चूड़ियां विश्व भर में प्रसिद्ध है। एक घरेलू व्यवसाय के रूप में यहाँ चूड़ी बनाने का कार्य 200 से अधिक वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है और यह शहर दुनिया में कांच की चूड़ियों का सबसे बड़ा निर्माता है। फ़िरोज़ाबाद राजधानी दिल्ली से लगभग 200 किलोमीटर दूर आगरा के निकट स्थित है। हालाँकि ग्लास उद्योग भी आधुनिक तकनीकों को अपना चुका है परन्तु यहां कांच बनाने के पारम्परिक तरीकों को आज भी प्राथमिकता दी जाती है। चमचमाती और रंग-बिरंगी चूड़ियों से सजा यह शहर शोषण और बाल श्रम की दयनीय स्थिति को बयां करता है। कांच बनाने के पारम्परिक तरीके मनुष्य के स्वास्थ के लिए अनुकूल नहीं हैं और ऐसी परिस्थिति में छोटे - छोटे बच्चों का फैक्ट्रियों में कई घंटों तक काम करना बहुत ही दुखद है। वहां काम करने वाले श्रमिकों में तपेदिक या फेफड़ों और छाती के संक्रमण जैसी घातक बीमारियां देखी गयी हैं, साथ ही त्वचा में जलन, एलर्जी और दृष्टि में गिरावट होना यहाँ आम बात है।
भारत में कांच से बनी वस्तुओं में ग्लास कंटेनर और खोखले माल का उत्पादन यहाँ की 40 से अधिक छोटी इकाइयों द्वारा किया जाता है। भारत में कांच का पहला कारखाना 1993 में स्थापित हुआ था, जहाँ फ्लैट ग्लास (Flat Glass) बनाने का कार्य किया जाता था, इस ग्लास का उपयोग निर्माण, वास्तुकला, मोटर वाहन, दर्पण और सौर ऊर्जा उद्योगों में किया जाता था। इस ग्लास का उपयोग न केवल इमारतों की सुंदरता बढ़ाने के लिए किया जाता था बल्कि यह लकड़ी का भी बेहतर विकल्प सिद्ध हुआ। बाद में कई विदेशी कंपनियों ने भी नए ब्रांड के साथ इस बाजार में प्रवेश किया। भारत की कई विनिर्माण इकाइयां वैक्यूम फ्लास्क (Vacuum Flask) और रिफिल का निर्माण करती हैं, जिसकी गुणवत्ता विकसित देशों में उत्पादित वैक्यूम फ्लास्क और रिफिल से भी उत्कृष्ट मानी जाती है।
ग्लास ब्लॉइंग (Glass Boiling) एक तकनीक है, जिसका प्रयोग पिघले हुए कांच को बबल ट्यूब या ब्लो ट्यूब की सहायता से बुलबुले की तरह उड़ाने के लिए किया जाता है। ग्लास को उड़ाने वाले व्यक्ति को ग्लासब्लोवर (Glassblower), ग्लासस्मिथ (Glassmith) या गफ़र (Gaffer) कहा जाता है। फ़िरोज़ाबाद में भी कई ग्लासब्लोअर रहते हैं। लंबे लोहे के पाइप के माध्यम से भट्ठी में पिघलाए गए कांच को उड़ाना एक कला की भांति है और बहुत कम लोग ही इस कला में पारंगत हैं। यह 1 शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य में अस्तित्व में आया तथा तब से 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक ग्लास बनाने की स्वतन्त्र विधि (Free-blowing) को व्यापक रूप से अपनाया गया। आज भी इस पद्धति को कांच के बने पदार्थ के निर्माण में, विशेष रूप से कलात्मक उद्देश्यों के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्लास के पिघले हुए लोचदार भाग में हवा के छोटे-छोटे कणों को स्वतंत्र रूप से उड़ाया जाता है। कांच उद्द्योग दशकों से भारतीय अर्थव्यवस्था का हिस्सा रहा है और आगे भी नई तकनीकों के साथ इससे सम्बंधित व्यवसाय ग्रामीण लोगों के आय का स्त्रोत रहेंगे।