श्रद्धा के रंग में सराबोर,नवरात्रि को साल में दो बार मनाने के प्राकृतिक व आध्यात्मिक कारण

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
24-10-2023 10:13 AM
Post Viewership from Post Date to 24- Nov-2023 (31st Day)
City Readerships (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
1920 148 0 2068
* Please see metrics definition on bottom of this page.
श्रद्धा के रंग में सराबोर,नवरात्रि को साल में दो बार मनाने के प्राकृतिक व आध्यात्मिक कारण

नवरात्रि का उत्सव श्रद्धा के रंग में सराबोर होता है। नवरात्र के दिनों में भक्त देवी मां के प्रति विशेष उपासना का भाव प्रकट करते हैं। नवरात्र के दिनों में लोग भिन्न भिन्न तरह से मां की उपासना करते हैं। माता के इस पावन पर्व पर हर कोई उनकी अनुकंपा पाना चाहता है। नवरात्र का यह पावन त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है। पहला चैत्र मास में, जिसे चैत्र नवरात्र कहते हैं और दूसरा आश्विन मास में, जिसे शारदीय नवरात्रि कहते हैं। नवरात्रि के दिनों में नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा होती है, इन 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूप शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा , कुष्मांडा , स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। आश्विन मास में मनाए जाने वाले नवरात्रों में दसवें दिन को विजयदशमी यानी दशहरा त्यौहार के रूप में मनाया जाता है, जोकि सत्य की असत्य पर विजय का प्रतीक है। नवरात्रि का त्योहार साल में दो बार मनाए जाने के पीछे प्राचीन कथाओं का उल्लेख भी पुराणों में मिलता है। सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा के अनुसार, महिषासुर नाम का एक राक्षस था जो लोगों को आतंकित कर रहा था। देवता इस राक्षस से छुटकारा पाने के लिए देवी दुर्गा के समक्ष गए और उनसे प्राथर्ना की। नौ दिनों और रातों तक भीषण युद्ध के बाद, महिषासुर अंततः देवी दुर्गा द्वारा मारा गया। ऐसा कहा जाता है कि दसवें दिन, जिसे विजयादशमी या दशहरा के नाम से भी जाना जाता है, देवी दुर्गा अपने निवास स्थान पर लौट आईं। ऐसा भी माना जाता है कि पहले सिर्फ चैत्र नवरात्र होते थे जो कि ग्रीष्मकाल के प्रारंभ से पहले मनाए जाते थे। लेकिन जब नवरात्रि के नौवें दिन श्रीराम ने रावण का वध किया और उनकी विजय हुई, तब विजयी होने के बाद उन्होंने मां का आशीर्वाद लेने के लिए एक विशाल दुर्गा पूजा आयोजित की थी। इसके बाद से नवरात्रि का पर्व दो बार मनाया जाता है । ‘दशहरा’ शब्द दो शब्दों ‘दस’ और ‘हारा’ से मिलकर बना है। यदि इन दोनों शब्दों को जोड़ दिया जाए, तो ‘दशहरा’ उस दिन को दर्शाता है जब भगवान राम ने रावण के 10 सिरों को नष्ट कर दिया था। नवरात्र का पर्व दो बार मनाने के पीछे अगर प्राकृतिक कारणों की बात की जाए तो हम पाएंगे कि दोनों ही नवरात्र के समय मौसम परिवर्तन होता है। गर्मी और सर्दी के मौसम के प्रारंभ से पूर्व प्रकृति में एक बड़ा परिवर्तन होता है। प्रकृति मा की इसी शक्ति के उत्सव को आधार मानते हुए नवरात्रि का पर्व हर्ष और आस्था के साथ मनाया जाता है। वर्ष में केवल ये दो ही महीने, चैत्र और आश्विन के ऐसे है जब मौसम न अधिक गर्म न अधिक ठंडा होता है, इस समय ऐसा प्रतीत होता है कि प्रकृति स्वयं ही नवरात्रि के उत्सव के लिए तैयार रहती है। वैदिक पंचांग के अनुसार, नवरात्रि वर्ष में चार बार आती है। हालाँकि, इनमें दो प्रसिद्ध हैं: चैत्र और शरद नवरात्रि; बाकी की दो आषाढ़ और पौष माह की नवरात्रि को माघ गुप्त और आषाढ़ गुप्त नवरात्रि कहते हैं। यह नवरात्रि साधना के लिए महत्वपूर्ण होती है। चैत्र नवरात्रि को वसंत नवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। यह आमतौर पर मार्च या अप्रैल के महीने में आती है। इस समय नौ दिनों का एक भव्य त्योहार बड़े ही उत्साह के साथ उत्तरी भारत में मनाया जाता है।महाराष्ट्र के लोग इस नवरात्रि के पहले दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में मनाते हैं और कश्मीर में इसे नवरेह (Navreh) कहा जाता है। यह नवरात्रि उत्तरी और पश्चिमी भारत में उत्साहपूर्वक मनाई जाती है और रंगीन वसंत ऋतु को और अधिक आकर्षक और दिव्य बनाती है। इसे हिन्दू धर्म में साल की शुरुआत के रुप में भी देखा जाता है। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में भी भक्त इसे उगादी के रूप में मनाते हैं। नौ दिनों के इस उत्सव को रामनवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। कई लोगों का मानना है कि चैत्र नवरात्रि के पहले दिन माता दुर्गा अवतरित हुईं थी, और ब्रह्मा ने सृष्टि निर्माण को पूरा करने के लिए आगे कार्य किया था। चैत्र नवरात्रि का तीसरा दिन विष्णु के मत्स्य (मछली) अवतार से भी जुड़ा है। चैत्र नवरात्रि न केवल वसंत की शुरुआत का प्रतिनिधित्व करती है, बल्कि जीवित प्राणियों और परमात्मा के बीच प्रेम और इच्छा का भी प्रतिनिधित्व करती है। शरद नवरात्रि पूरे देश में सबसे प्रसिद्ध नवरात्रि है, जिसे महानवरात्रि के नाम से भी जाना जाता है। यह श्राद्ध (अपने पूर्वजों को याद करने का काल) के समापन के बाद शुरू होती है। यह अश्विन मास के दौरान सितंबर या अक्टूबर में सर्दियों की शुरुआत के दौरान मनायी जाती है। शरद नवरात्रि को कुछ स्थानों पर, विशेषकर असम और बंगाल में, दुर्गा पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इसके लिए बड़े-बड़े पंडालों का आयोजन होता है जहां मां दुर्गा की विशाल मूर्तियां स्थापित की जाती हैं और अंतिम दिन, देवी दुर्गा की मूर्ति को पानी में विसर्जित किया जाता है।

संदर्भ:
http://surl.li/mkiid
http://surl.li/mkiii
http://surl.li/mkiit
http://surl.li/mkiiw

चित्र संदर्भ

1. नवरात्रि के पूजा समारोह में मां दुर्गा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. नवदुर्गाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. रावण, मेघनाथ और कुम्भकरण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. गरबा आयोजन को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. लाल किले की रामलीला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.