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अपनी नवाबी तहज़ीब, ऐतिहासिक इमारतों और साहित्यिक समृद्धि के लिए मशहूर लखनऊ की पहचान इसके गौरवशाली अतीत और आधुनिकता के संतुलित मेल में झलकती है। लेकिन क्या यह खूबसूरत शहर, भविष्य में भी इतना ही अनमोल बना रहेगा? शहर के लगातार विस्तार के साथ ही कई पर्यावरणीय चुनौतियाँ भी बढ़ रही हैं। वायु प्रदूषण, जंगलों की कटाई, जल संकट और कचरे की बढ़ती समस्या न केवल लखनऊ, बल्कि पूरे देश के लिए खतरा बन रही हैं। अगर हमें लखनऊ की ऐतिहासिक सुंदरता और सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखना है, तो हमें सतत विकास को प्राथमिकता देनी होगी। सतत विकास (Sustainable Development) का मतलब केवल नई इमारतें बनाने या बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना नहीं है। इसका असली उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विकास की कोई भी प्रक्रिया पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना आगे बढ़े। अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देकर, सार्वजनिक परिवहन को प्राथमिकता देकर, कचरे के प्रभावी प्रबंधन को अपनाकर और जल संरक्षण के ठोस प्रयासों से हम लखनऊ को अधिक स्वच्छ, हरा-भरा और स्वस्थ बना सकते हैं। जब गोमती नदी का पानी साफ़ रहेगा, शहर की गलियों में ताज़ी हवा बहेगी और ऐतिहासिक बाग़-उद्यान हरियाली से भरपूर रहेंगे, तभी लखनऊ अपनी असली खूबसूरती को बनाए रख पाएगा। इस लेख में हम सतत विकास की अवधारणा को विस्तार से समझेंगे! आगे हम यह भी जानेंगे कि लखनऊ जैसे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध शहर के लिए सतत विकास क्यों आवश्यक है। साथ ही, हम उन महत्वपूर्ण उपायों पर चर्चा करेंगे जो दीर्घकालिक विकास को संतुलित बनाए रखते हैं और ऐसे सफल उदाहरणों पर भी नज़र डालेंगे, जहाँ सतत विकास को प्रभावी रूप से लागू किया गया है।
आइए सबसे पहले "सतत विकास" या "संधारणीय विकास" की अवधारणा को समझते हैं।
सतत विकास का मतलब है "ऐसा विकास जिसके तहत वर्तमान ज़रूरतों को पूरा करते हुए भविष्य की आवश्यकताओं से समझौता न किया जाए।" यानी हम संसाधनों का उपयोग इस तरह करें कि वे आज के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए भी उपलब्ध रहें और उपयोगी बने रहें।
इसी सोच के तहत तैयार की गई इमारतों को "ग्रीन बिल्डिंग" कहा जाता है, जो पर्यावरण के अनुकूल होती हैं और ऊर्जा व संसाधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करती हैं। आज मनुष्य धरती के प्राकृतिक संसाधनों का बेहिसाब और अनियंत्रित दोहन कर रहा है। अगर यही स्थिति बनी रही, तो वह दिन दूर नहीं जब हमारे लिए शुद्ध हवा में सांस लेना और साफ पानी पीना भी दुर्लभ हो जाएगा। इसलिए अब सतत विकास पर ध्यान देना समय की आवश्यकता बन गई है।
यदि हम पेड़ों की अंधाधुंध कटाई, वन्यजीवों का शिकार और जीवाश्म ईंधनों जैसे कोयले और पेट्रोलियम का अत्यधिक उपयोग करते रहेंगे, तो ये संसाधन जल्द ही समाप्त हो जाएंगे। हालांकि हमारे पास हवा, पानी, और सूर्य की रोशनी जैसे नवीकरणीय संसाधन मौजूद हैं, लेकिन अगर इनका भी समझदारी से उपयोग न किया गया तो ये भी एक दिन समाप्त हो जाएंगे।
इसलिए, हमें आज ऐसे फ़ैसले लेने होंगे जो पर्यावरण को बचाएं और आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ, सुरक्षित और टिकाऊ भविष्य प्रदान कर सकें। तभी हम एक ऐसी दुनिया बना पाएंगे, जहाँ सभी को स्वच्छ हवा, शुद्ध जल और बेहतर जीवन जीने का अधिकार मिल सकेगा।
सतत विकास एक बहुआयामी अवधारणा है। यह तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित है-
१. आर्थिक विकास।
२. सामाजिक समावेशन।
३. पर्यावरण संरक्षण।
ये तीनों पहलू एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं। समाज के संतुलित और टिकाऊ विकास के लिए इनका समन्वित और संतुलित रूप से विकास होना अत्यंत आवश्यक है।
जब ये तीनों पहलू संतुलन में होते हैं, तभी समाज स्थिर, लचीला और समृद्ध बनता है। चलिए जानते हैं कैसे?
1. आर्थिक विकास: सतत आर्थिक विकास, सतत विकास का एक प्रमुख आधार है। इसका उद्देश्य केवल जी डी पी में वृद्धि नहीं, बल्कि समावेशी और समान अवसर प्रदान करने वाली अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है। इसके तहत ऐसी आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाता है जो समाज के सभी वर्गों को लाभ पहुँचाएँ, और साथ ही पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना आगे बढ़ें। जब विकास में हर वर्ग की भागीदारी होती है, तभी यह दीर्घकालिक और स्थायी बनता है।
2. सामाजिक समावेशन: सामाजिक समावेशन का अर्थ है: "ऐसा समाज बनाना जहाँ हर व्यक्ति को समान अवसर, संसाधनों की पहुँच और गरिमामय जीवन का अधिकार मिले।" इसमें लैंगिक समानता को प्रोत्साहन, समुदायों का समावेशी विकास, विभिन्न संस्कृतियों का सम्मान, और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करना शामिल है। इससे सामाजिक असमानता कम होती है और एक न्यायसंगत समाज की नींव पड़ती है।
3. पर्यावरण संरक्षण: पर्यावरण की देखभाल सतत विकास का तीसरा और बहुत ज़रूरी हिस्सा होता है। इसका मकसद है "प्रकृति की रक्षा करना और उसका समझदारी से उपयोग करना।" इसमें प्राकृतिक संसाधनों (जैसे पानी, जंगल, जमीन) का सावधानी से इस्तेमाल करना, जैव विविधता (पौधों और जानवरों की विभिन्न प्रजातियाँ) को बचाना और प्रदूषण को कम करना शामिल है।
हम नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सौर और पवन ऊर्जा), जल संरक्षण, पर्यावरण के अनुकूल निर्माण तरीकों और टिकाऊ यातायात प्रणालियों को अपनाकर इस दिशा में बड़ा योगदान दे सकते हैं।
अगर हम नवीकरणीय ऊर्जा (जैसे सौर और पवन ऊर्जा) का इस्तेमाल करें, पानी की बचत करें, पर्यावरण के अनुकूल निर्माण तरीकों को अपनाएँ और ऐसी परिवहन व्यवस्था को बढ़ावा दें जो पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाए, तो हम सतत विकास की दिशा में बड़ा कदम उठा सकते हैं।
सतत विकास का मतलब सिर्फ़ आर्थिक तरक्की नहीं है, बल्कि इसका मकसद समाज में समानता और पर्यावरण की रक्षा के बीच संतुलन बनाए रखना भी है।
इसमें कई महत्वपूर्ण पहलू शामिल हैं जो इसे एक दूरदर्शी और व्यापक सोच बनाते हैं:
1. पीढ़ी दर पीढ़ी बराबरी: सतत विकास यह सुनिश्चित करता है कि हमारी आज की ज़रूरतें पूरी पूरी होने के साथ साथ, हमारी आने वालीं पीढ़ियों की भी अपनी ज़रूरतें पूरी हो सकें। इसका मतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों का ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल न किया जाए।
2. पर्यावरण और विकास का मेल: यह सोच इस बात पर ज़ोर देती है कि जब हम देश की तरक्की की योजना बनाएँ, तो पर्यावरण की सेहत को भी ध्यान में रखें। एक साफ़ -सुथरा और स्वस्थ वातावरण ही टिकाऊ विकास की नींव है।
3. सबके लिए आर्थिक तरक्की: सतत विकास ऐसा आर्थिक मॉडल चाहता है जिससे समाज के हर वर्ग को फ़ायदा हो, खासकर उन लोगों को जो अक्सर विकास की मुख्यधारा से बाहर रह जाते हैं।
4. समाज में समानता: इसका मकसद ऐसा समाज बनाना है जिसमें सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के ज़रूरी सेवाएँ, मौके और संसाधन मिलें। सबको बराबरी का अधिकार हो – यही इसका लक्ष्य है।
5. संसाधनों का समझदारी से इस्तेमाल: सतत विकास यह सिखाता है कि हमें ज़मीन, पानी, जंगल और ऊर्जा जैसे संसाधनों का सोच-समझकर और जिम्मेदारी से इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि ये लंबे समय तक उपलब्ध रहें।
6. सबकी भागीदारी वाला शासन: इसमें सभी लोगों "खासकर स्थानीय समुदायों" को फ़ैसले लेने की प्रक्रिया में शामिल किया जाता है। इससे लोगों को अपने इलाके के विकास में हिस्सेदारी मिलती है।
7. बदलाव के अनुसार ढलने की क्षमता: सतत विकास ऐसी योजनाओं और प्रणालियों को बढ़ावा देता है जो सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय मुश्किलों का डटकर सामना कर सकें और ज़रूरत पड़ने पर खुद को समय के अनुसार बदल सकें।
8. तकनीकी तरक्की: यह पहलू नई तकनीकों को अपनाने पर ज़ोर देता है जो कम संसाधनों में ज़्यादा काम करें, पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचाएँ और लोगों की ज़िंदगी को बेहतर बनाएँ।
सतत विकास के कुछ उदाहरण निम्नवत दिए गए हैं:
1. नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएँ: सौर, पवन और जल ऊर्जा जैसी परियोजनाएँ हमें साफ़ और टिकाऊ ऊर्जा प्रदान करती हैं। इससे कोयला और पेट्रोल जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधनों पर निर्भरता कम होती है और वातावरण को भी नुकसान नहीं होता।
2. टिकाऊ खेती: जैविक खेती, फसल बदलना और पेड़ों के साथ खेती करना ऐसी विधियाँ हैं जो ज़मीन की उपजाऊ क्षमता बनाए रखती हैं और रासायनिक खादों के इस्तेमाल को कम करती हैं। यह किसानों की आमदनी को भी बढ़ाता है और पर्यावरण को भी सुरक्षित रखता है।
3. पर्यावरण के अनुकूल इमारतें (ग्रीन बिल्डिंग): ऐसी इमारतें जो बिजली और पानी की बचत करें और पर्यावरण को कम नुकसान पहुँचाएँ, टिकाऊ विकास का अच्छा उदाहरण हैं। इनमें ऐसी सामग्री और तकनीकें इस्तेमाल होती हैं जो लंबे समय तक चलती हैं और कम प्रदूषण करती हैं।
4. बेहतर सार्वजनिक परिवहन: सुलभ और भरोसेमंद बस, मेट्रो और ट्रेन जैसी सेवाएँ लोगों को निजी वाहन इस्तेमाल करने से रोकती हैं। इससे सड़कों पर ट्रैफ़िक कम होता है, प्रदूषण घटता है और ईंधन की भी बचत होती है।
कुल मिलाकर सतत विकास का मतलब है "ऐसी तरक्की जो सभी के लिए हो, लंबे समय तक चले और पर्यावरण को सुरक्षित रखे।" इसके लिए हमें अपनी सोच, तकनीक और जीवनशैली में बदलाव लाना होगा। यही भविष्य के लिए एक समझदारी भरा रास्ता है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में बांग्लादेश के हरे भरे शहर का स्रोत : Wikimedia
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