लखनऊ की भाषाई रंगत से जनाब, फ़ायदे होते हैं बेहिसाब!

ध्वनि 2- भाषायें
14-05-2025 09:22 AM
लखनऊ की भाषाई रंगत से जनाब, फ़ायदे होते हैं बेहिसाब!

क्या आपने कभी हमारे शहर लखनऊ की गलियों में चलते हुए गौर किया है कि यहाँ हर मोड़ पर भाषा की एक नई ख़ुशबू बसती है? कभी किसी पान की दुकान पर ठेठ अवधी में बतकही सुनाई देती है, तो कभी नुक्कड़ पर उर्दू की नज़ाकत कानों में रस घोल देती है। कहीं ब्रज की मस्ती छलकती है, तो कहीं बुंदेलखंडी का ठेठपन दिल जीत लेता है। दरअसल, यही भाषाओं का यह रंग-बिरंगा संगम लखनऊ की असली पहचान है! यह एक ऐसी पहचान है जो इसकी तहज़ीब में रची-बसी है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, हिंदी भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है, लेकिन इसकी धड़कनों में उर्दू, अवधी, ब्रज, भोजपुरी, बुंदेलखंडी और कन्नौजी की मिठास भी घुली हुई है। ये भाषाएँ सिर्फ़ लखनऊ की ज़ुबान ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता का आईना भी हैं। इसलिए आज के इस लेख में हम भारत के बहुभाषिक परिदृश्य में डुबकी लगाएंगे। हम जानेंगे कि कैसे भाषाओं का यह सुरमय संगम हमारी संस्कृति को और भी समृद्ध और रंगीन बनाता है। अंत में हम यह भी देखेंगे कि उत्तर प्रदेश में बोली जाने वाली ये भाषाएँ हमारे लोकजीवन, परंपराओं और पहचान में किस तरह घुल-मिल गई हैं।

चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह

146 करोड़ की आबादी वाले भारत की भाषा और संस्कृति में अद्भुत विविधता देखने को मिलती है। यहाँ के लोग अक्सर एक से अधिक भाषा या बोली समझते और बोलते हैं, जो भारत की अनूठी पहचान को दर्शाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल 121 भाषाएँ, मातृभाषा के रूप में बोली जाती हैं। इनमें से 22 भाषाओं को संविधान में "अनुसूचित भाषा" का दर्जा प्राप्त है। संविधान के अनुच्छेद 344(1) और 351 के तहत, आठवीं अनुसूची में शामिल ये भाषाएँ (असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संथाली, सिंधी, तमिल, तेलुगु और उर्दू) हैं।

भारत में सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा हिंदी है। 2011 की जनगणना के अनुसार, हर 10 में से 4 भारतीय, यानी लगभग 52.8 करोड़ लोग हिंदी बोलते हैं। इसके बाद, बंगाली का स्थान है, जिसे करीब 9.7 करोड़ लोग बोलते हैं, जो कुल आबादी का लगभग 8% है। तीसरे स्थान पर मराठी है, जिसे 8.3 करोड़ (करीब 7%) लोग बोलते हैं, और चौथे स्थान पर तेलुगु है, जिसे 8.1 करोड़ यानी 6% लोग बोलते हैं। अन्य आधिकारिक भाषाओं को बोलने वालों की संख्या 2% से 4% के बीच है, लेकिन उनका सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व बहुत ज़्यादा है।

भारत में भाषाओं की विविधता सिर्फ़ आँकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह देश की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है। हर भाषा अपने साथ एक अनूठा इतिहास, साहित्य, संगीत और परंपरा समेटे हुए होती है। भारत में बोली जाने वाली भाषाएँ सिर्फ़ संख्याओं का खेल नहीं हैं, बल्कि ये हमारी संस्कृति, पहचान और इतिहास का प्रतीक भी हैं। भारत का बहुभाषी समाज इसकी विविधता और समावेशिता को दर्शाता है। यहाँ विभिन्न धर्मों, जातियों और वर्गों के लोग मिलकर रहते हैं और अपनी-अपनी भाषाओं में संवाद करते हैं, जिससे भारत की सांस्कृतिक संपन्नता झलकती है।

चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह

क्या आप जानते हैं कि बहुभाषावाद यानी अनेक भाषाओँ में बोलना हमें कई तरह के लाभ भी पहुंचाता है, जिनमें शामिल हैं:

  • बुद्धिमत्ता और रचनात्मकता में वृद्धि: बहुभाषावाद यानी एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान होने से न केवल हमारा संचार कौशल मज़बूत होता है, बल्कि यह हमारी दिमागी क्षमता को भी बढ़ाता है। कई शोध बताते हैं कि “जो लोग दो या अधिक भाषाएँ बोलते हैं, उनकी स्मरण शक्ति, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और समस्या सुलझाने की योग्यता बेहतर होती है।” इसके अलावा, उनकी रचनात्मक सोच भी निखर जाती है, जिससे वे नवाचार और कल्पनाशीलता में आगे रहते हैं।
  • बेहतर मानसिक कौशल: द्विभाषी और बहुभाषी लोगों में कार्यकारी कार्यक्षमता (executive function) अधिक प्रभावी होती है। इसका मतलब है कि ऐसे लोग योजना बनाने, काम को व्यवस्थित करने और विचारों को नियंत्रित करने में अधिक सक्षम होते हैं। इससे उनके निर्णय लेने और जटिल समस्याओं को सुलझाने की क्षमता बेहतर होती है।
विविध भारतीय लिपियाँ | चित्र स्रोत : Wikimedia 
  • सामाजिक और भावनात्मक विकास: कई भाषाएँ बोलने वाले लोग अक्सर अधिक सहानुभूति रखने वाले व्यक्तित्व के होते हैं। वे दूसरों के दृष्टिकोण को बेहतर समझ पाते हैं, जिससे उनकी सामाजिक समझ और भावनात्मक बुद्धिमत्ता मज़बूत होती है। अंतर-सांस्कृतिक संचार में भी उनकी क्षमता अधिक प्रभावी होती है, जिससे वे दूसरी संस्कृतियों में आसानी से ढल जाते हैं।
  • दुनिया को समझने का व्यापक दृष्टिकोण: जब कोई व्यक्ति अलग-अलग भाषाएँ सीखता है, तो वह उन भाषाओं से जुड़ी संस्कृतियों, मूल्यों और सोचने के तरीकों को भी जानने लगता है। इससे उसकी दुनिया को देखने और समझने की क्षमता का विस्तार होता है। वह विभिन्न परंपराओं, साहित्य और जीवनशैलियों से रूबरू होता है, जिससे उसकी सोच में परिपक्वता आती है।
  • व्यावसायिक और व्यक्तिगत लाभ: बहुभाषावाद से न सिर्फ़ ज्ञान बढ़ता है, बल्कि यह आपके करियर में भी मददगार साबित होता है। अलग-अलग भाषाओं का ज्ञान होने से व्यक्ति को नौकरी में अधिक अवसर मिलने लगते हैं। यात्रा के दौरान स्थानीय भाषा को जानने से उसके अनुभव और भी समृद्ध और सहज हो जाते हैं। इसके अलावा ऐसे लोगों की मनोरंजन, साहित्य और सूचना के अधिक संसाधनों तक पहुँच भी आसान हो जाती है।
चित्र स्रोत : Wikimedia 

क्या आप जानते हैं कि अकेले हमारे उत्तर प्रदेश में 100 से भी ज़्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं? भारतीय भाषा सर्वेक्षण (LSI) के अनुसार, यह राज्य भाषाई विविधता का एक शानदार उदाहरण है। भारतीय भाषा सर्वेक्षण (Linguistic Survey of India), भारत सरकार की एक परियोजना है, जिसका उद्देश्य देश में बोली जाने वाली भाषाओं का दस्तावेज़ीकरण और अध्ययन करना है। "भारतीय भाषा सर्वेक्षण – उत्तर प्रदेश" भी इस परियोजना का हिस्सा है, जिसमें राज्य की 12 प्रमुख भाषाओं का गहराई से अध्ययन हुआ। इनमें हिंदी, अवधी, देहाती, गिहारो, खड़ी बोली, प्रतापगढ़ी, राठौरी, मैनपुरी, मलहम, मलयानी, गुरुमुखी और उर्तिया शामिल हैं। इस रिपोर्ट को जुलाई 2023 में प्रकाशित किया गया था।

आइए अब जनगणना के आकड़ों के आधार पर भाषाओं की विविधता को समझने का प्रयास करते हैं:

2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल 122 भाषाएँ बोली जाती हैं। इनमें से 101 भाषाएँ अकेले उत्तर प्रदेश में बोली जाती हैं। इनमें 22 अनुसूचित भाषाएँ और 79 गैर-अनुसूचित भाषाएँ शामिल हैं। यह आँकड़ा बताता है कि उत्तर प्रदेश भाषाई विविधता का एक विशाल केंद्र है।

चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह

आइए अब उत्तर प्रदेश में प्रयोग होने वाली कुछ प्रमुख भाषाओँ पर एक नज़र डालते हैं:

अवधी: अवधी, जिसे बैसवारा भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में बोली जाती है। यह भाषा गंगा-यमुना संगम के निचले हिस्से में भी प्रचलित है। 2011 की जनगणना के अनुसार, अवधी बोलने वालों की संख्या 38,50,906 थी। अवधी का साहित्य, लोकगीत और बोलचाल की शैली इसे बेहद लोकप्रिय बनाती है।

देहाती: देहाती, हिंदी भाषा की एक उपभाषा है, लेकिन इसकी संरचना भोजपुरी के अधिक क़रीब मानी जाती है। दिलचस्प बात यह है कि जनगणना में इसे मैथिली की मातृभाषा के रूप में दर्ज किया गया है, क्योंकि इसकी लिपि और उच्चारण मैथिली से मिलते-जुलते हैं। उत्तर प्रदेश में इसे ख़ासतौर पर ग्रामीण इलाकों में बोला जाता है।

गिहारो: गिहारो उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र में रहने वाले गिहार समुदाय की मातृभाषा है। इस भाषा का प्रमुख केंद्र सीतापुर जिला है। 2001 की जनगणना में, गिहारो को मातृभाषा के रूप में सबसे ज़्यादा यहीं दर्ज किया गया था। हालांकि, यह भाषा अब धीरे-धीरे सिमट रही है।

गुरुमुखी: उत्तर प्रदेश में  गुरुमुखी भाषा बोलने वालों की संख्या 10,460 है, जबकि पूरे भारत में यह संख्या 35,545 है। इस भाषा का पंजाबी से गहरा संबंध है, इसलिए इसे पंजाबी भाषा के अंतर्गत रखा गया है।

मुख्य रूप से यह भाषा सिख समुदाय द्वारा बोली जाती है।

खड़ी बोली: खड़ी बोली को आधुनिक हिंदी का आधार माना जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 50,195 लोग खड़ी बोली बोलते हैं। खड़ी बोली का साहित्य और व्याकरण आधुनिक हिंदी का प्रमुख स्रोत है, इसलिए इसका भाषाई महत्व काफ़ी ज़्यादा है।

मलहम: मलहम भाषा धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। आसपास की प्रमुख भाषाओं का बढ़ता प्रभाव इसकी गुमनामी का प्रमुख कारण है। भाषाई रूप से यह आधुनिक हिंदी और खड़ी बोली के सबसे क़रीब मानी जाती है। इसका संरक्षण बेहद आवश्यक है, वरना यह जल्द ही लुप्त हो सकती है।

प्रतापगढ़ी: प्रतापगढ़ी भाषा, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में बोली जाती है। पुरानी पीढ़ी इस भाषा को बचाने के लिए कथाएँ और नैतिक कहानियाँ सुनाकर युवा पीढ़ी को जोड़ने का प्रयास कर रही है। हालांकि, इस भाषा का कोई मानक रूप या लिखित साहित्य मौजूद नहीं है, जिससे इसका संरक्षण करना एक बड़ी चुनौती है।

राठौरी: राठौरी भाषा मुख्य रूप से हमीरपुर जिले में बोली जाती है। इसका उपयोग आमतौर पर सिर्फ़ घरों में बातचीत तक सीमित है। यह भाषा शिक्षा या जनसंचार माध्यमों में नहीं बोली जाती, जिससे इसका विस्तार काफ़ी सीमित है।

उर्तिया: उर्तिया भाषा उत्तर प्रदेश के लखनऊ, चिनहट और सुल्तानपुर जिलों के कुछ हिस्सों में बोली जाती है। हालांकि, इसे बोलने वालों की संख्या काफ़ी कम है, इसलिए इसका संरक्षण भी आवश्यक है।

अब हमें पता है कि भारत की भाषाई विविधता ही इसकी सांस्कृतिक संपन्नता का प्रतीक है। 146 करोड़ की आबादी वाले इस देश में 122 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं, जिनमें से 22 को संविधान में अनुसूचित भाषा का दर्जा प्राप्त है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में ही 100 से अधिक भाषाओं का अस्तित्व इस विविधता को दर्शाता है। भारत में बोली जाने वाली हर भाषा अपने साथ एक समृद्ध साहित्य, संगीत, परंपरा और इतिहास को संजोए हुए है। कई भाषाएँ बोलने वाले लोग न केवल बौद्धिक रूप से समृद्ध होते हैं, बल्कि सामाजिक, व्यावसायिक और भावनात्मक रूप से भी अधिक सक्षम होते हैं। भाषाओं का यह विविध संसार भारत को एक बहुरंगी सांस्कृतिक माला में पिरोता है, जिसकी सुंदरता इसकी भाषाई विविधता में ही बसती है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/238awzow 

https://tinyurl.com/275lvk38 

https://tinyurl.com/24k7xx8o 

मुख्य चित्र में लखनऊ में आयोजित एक समारोह का चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह 

पिछला / Previous


Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.