जौनपुर की ऐतिहासिक धरोहरों में झलकती है भारतीय गणित की समृद्ध परंपरा!

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
09-05-2025 09:30 AM
जौनपुर की ऐतिहासिक धरोहरों में झलकती है भारतीय गणित की समृद्ध परंपरा!

हमारे शहर का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य ,गणित और विज्ञान की प्राचीन विधियों से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह नगर शिक्षा और विद्वत्ता की भूमि रहा है, जहाँ विभिन्न युगों में गणित और खगोल विज्ञान पर शोध होते रहे हैं। जौनपुर की कई भव्य इमारतों को इतना सटीक बनाने के लिए भी गणित की कई शाखाओं का प्रयोग किया गया है! प्राचीन भारतीय विद्वानों ने ऐसी अद्भुत तकनीकें विकसित की थीं, जो आज भी गणित और विज्ञान की दुनिया में अपनी अमिट छाप छोड़ रही हैं? उन्हीं में से एक है कटपयादि प्रणाली, जो संस्कृत अक्षरों को संख्यात्मक मान प्रदान करने की अनोखी विधि थी। इस प्रणाली ने न केवल गणित को सरल बनाया, बल्कि खगोल विज्ञान में भी क्रांतिकारी योगदान दिया।

अब एक दिलचस्प उदाहरण देखते हैं! संस्कृत में एक प्रसिद्ध श्लोक है:

"गोपी भाग्य मधुव्रत, श्रृंगिसो दधि संधिगा,

खला जीवित खटावा, गला हल रसंदरा।"

सुनने में यह भले ही एक साधारण श्लोक लगे, लेकिन जब इसे कटपयादि प्रणाली से कूटानुवाद किया जाता है, तो यह आश्चर्यजनक रूप से पाई (π) का मान 3.141592653589793… प्रकट करता है! यह केवल एक संयोग नहीं, बल्कि भारतीय गणितज्ञों की अद्वितीय प्रतिभा और उनकी गहरी गणितीय समझ का प्रमाण है। आज के इस लेख में हम  भारतीय गणितज्ञों के उन महान योगदानों पर प्रकाश डालेंगे, जिन्होंने गणित को नई दिशा दी। भारत ने केवल शून्य की खोज की, बल्कि कलन (Calculus), बीजगणित और संख्याओं के जटिल सिद्धांतों से भी पूरी दुनिया को प्रभावित किया। इसके अलावा, हम विस्तार से समझेंगे कि कटपयादि प्रणाली कैसे काम करती थी और कैसे इसका प्रयोग प्राचीन भारतीय गणित में एक प्रारंभिक एन्क्रिप्शन (encryption) और कोडिंग (coding) विधि के रूप में किया जाता था। 

चित्र स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह 

प्राचीन भारतीय गणितज्ञों ने सम्पूर्ण गणित को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया और इसकी एक मज़बूत नींव रखी। उन्होंने शून्य, स्थान-मान संख्या प्रणाली, वैदिक गणित, अंकगणित, बीजगणित और त्रिकोणमिति जैसी महत्वपूर्ण अवधारणाएँ विकसित कीं, जिन्हें आज भी गणित के मूल स्तंभ माना जाता है। उन्होंने अंकगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति को भी व्यवस्थित रूप से परिभाषित किया, जिससे गणित की दिशा ही बदल गई। उन्होंने समीकरण हल करने के नए तरीके खोजे और साइन (sine), कोसाइन (cosine) व आर्कटैन्जेंट (arctangent) जैसे त्रिकोणमितीय कार्यों के लिए अनंत श्रेणियों की खोज की। इसके अलावा, दशमलव आधारित संख्या प्रणाली के विकास में भी उनका योगदान बेहद महत्वपूर्ण रहा।

आर्यभट्ट, पिंगला, ब्रह्मगुप्त, बोधायन और भास्कर जैसे महान गणितज्ञों ने भारत के स्वर्ण युग में गणित को नई-नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया। उनके शोध और खोजों ने न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में गणित के विकास को गहराई से प्रभावित किया। आज जो हम आधुनिक गणित पढ़ते हैं, उसकी जड़ें भी इन्हीं प्राचीन गणितज्ञों के कार्यों में छिपी हैं।

क्या आप जानते हैं कि आज हम जो नंबर प्रणाली इस्तेमाल करते हैं, उसकी शुरुआत भी भारत में ही हुई थी? 1200 ईसा पूर्व तक, गणित के ज्ञान को वेदों में लिखा जा रहा था। इन ग्रंथों में संख्याओं को दस की शक्तियों के रूप में दर्शाया गया था। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक ब्राह्मी अंक विकसित हो चुके थे। यही अंक प्रणाली आगे चलकर हिंदू-अरबी संख्या प्रणाली बनी, जिसे आज पूरी दुनिया अपनाती है। जब शून्य का विकास हुआ, तो भारतीय गणितज्ञ उच्च गणित के जटिल सिद्धांतों को समझने और विकसित करने में सक्षम हुए।

बख्शाली पांडुलिपि, जिसमें अंक "शून्य" को काले बिंदु द्वारा दर्शाया गया है | चित्र स्रोत : Wikimedia 

शून्य की खोज – क्या आपने कभी सोचा है कि अगर शून्य न होता, तो गणना कैसी होती? शून्य का इतिहास बहुत पुराना है। सबसे पहले इसके प्रमाण बख्शाली पांडुलिपि में मिलते हैं, जहां यह केवल एक प्लेसहोल्डर (placeholder) के रूप में इस्तेमाल किया गया था। लेकिन भारतीय गणितज्ञों ने इसे सिर्फ़ एक प्रतीक तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे एक स्वतंत्र संख्या में परिवर्तित कर दिया। इस खोज ने न केवल संख्याओं को व्यवस्थित तरीके से लिखना आसान बनाया, बल्कि वित्तीय रिकॉर्ड रखने की प्रणाली को भी मज़बूत किया।

द्विघात समीकरणों का हल – क्या आपको स्कूल में द्विघात समीकरण पढ़ते समय कभी कठिनाई हुई है? सातवीं शताब्दी में, महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने अपने 'ब्रह्मस्फुट सिद्धांत' में पहली बार शून्य के साथ गणनाओं के नियम स्पष्ट किए। उन्होंने द्विघात समीकरणों को हल करने के लिए नियम बनाए, जिससे जटिल गणनाएँ आसान हो गईं। आज जो गणित स्कूलों में पढ़ाया जाता है, उसकी जड़ें इन्हीं खोजों में हैं।

ऋणात्मक संख्याओं की परिभाषा: क्या आप जानते हैं कि ऋणात्मक संख्याओं का पहला व्यवस्थित उपयोग भी भारत में ही हुआ था? ब्रह्मगुप्त ने नकारात्मक संख्याओं की अवधारणा को समझाया। उन्होंने सकारात्मक संख्याओं को "भाग्य" और ऋणात्मक संख्याओं को "ऋण" कहा। उनके अनुसार, "शून्य से घटाया गया भाग्य, ऋण बन जाता है" और "शून्य से घटाया गया ऋण, भाग्य बन जाता है।" ये नियम आज भी गणित में इस्तेमाल किए जाते हैं।

कलन (Calculus) की नींव भारत में रखी गई थी!:- हम अक्सर न्यूटन (Newton) और 

लाइब्निज़ (Leibniz) को कैलकुलस (Calcul) का जनक मानते हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारतीय गणितज्ञ भास्कराचार्य ने 500 साल पहले ही इन अवधारणाओं पर काम किया था? उन्होंने गति और परिवर्तन दरों की गणना से जुड़े नियम विकसित किए। इसके अलावा, भास्कराचार्य ने बीजगणित, अंकगणित, ज्यामिति और त्रिकोणमिति में भी अहम योगदान दिया। उनके कई गणितीय निष्कर्ष यूरोप में सैकड़ों साल बाद खोजे गए।

चित्र में लीलावती का एक पृष्ठ दिखाया गया है, जो भास्कर द्वितीय द्वारा रचित सिद्धांत शिरोमणि का प्रथम खंड है, जो 1650 संस्करण का है। कोने में, पाइथागोरस प्रमेय को प्रदर्शित करने वाला एक ज्यामितीय आरेख है, जो समकोण त्रिभुज की भुजाओं के बीच संबंध दर्शाता है।  चित्र स्रोत : Wikimedia 

आपको जानकर हैरानी होगी कि भारतीय विद्वानों ने 2000 साल पहले ही एक गुप्त संख्यात्मक कोडिंग प्रणाली विकसित कर ली थी! इसे "कटपयादि सूत्र" कहा जाता था। इस तकनीक के ज़रिए हर अक्षर को एक विशिष्ट संख्या दी जाती थी, जिससे शब्दों के अंदर संख्याएं छिपाई जा सकती थीं। यह प्रणाली प्राचीन भारत की पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व से प्रचलित थी।

कैसे काम करता था कटपयादि सूत्र?

इसका उपयोग इस प्रकार था कि अगर किसी श्लोक को कटपयादि तालिका के अनुसार कूटानुवाद किया जाए, तो उसमें छिपे हुए संख्यात्मक प्रतिरूप सामने आ जाते थे। उदाहरण के लिए, यह प्रसिद्ध श्लोक देखें:

"गोपी भाग्य मधुव्रता, श्रृंगिसो दधि संधिगा, खला जीवित खटावा, गला हल रसंदरा।"

अब, अगर इस श्लोक को कटपयादि नियम के अनुसार संख्याओं में बदला जाए, तो हमें यह परिणाम मिलता है:

ग=3, प=1, भ=4, य=1, म=5, धु=9, र=2, ठ=6, श्रु=5, ग=3, श=5, द=8, ध=9, सा=7, ध= 9, ग=3, ख=2, ल=3, ज=8, वि=4, त=6, ख=2, त=6, व=4, ग=3, ला=3, हा=8, ला=3, रा=2, सा=7, दा=9, रा=2

जो कि इस संख्या के बराबर आता है:

31415926535897932384626433832792

अब यहाँ चौंकाने वाली बात यह है कि यह संख्या π (पाई) के पहले 31 अंकों से मेल खाती है, केवल इसमें एक दशमलव नहीं है! प्राचीन भारतीय विद्वानों ने संख्याओं को गुप्त रूप से छिपाने की यह अद्भुत तकनीक विकसित की थी। वेदों और श्लोकों को याद रखने और सही उच्चारण सुनिश्चित करने के लिए छंदों का उपयोग किया जाता था। यह प्रणाली इतनी प्रभावी थी कि समय के साथ संगीत में भी समाहित हो गई, जिसका प्रमाण सामवेद में मिलता है। इस तरह, भारतीय विद्वानों ने गणित, भाषा और संगीत को आपस में जोड़कर एक अद्भुत कोडिंग प्रणाली तैयार की, जो आधुनिक एन्क्रिप्शन (encryption) तकनीकों से भी मेल खाती है!

इस प्रकार भारत ने न केवल संख्याओं की भाषा को परिभाषित किया, बल्कि गणित को एक नई दिशा भी दी। शून्य की खोज से लेकर जटिल समीकरणों को हल करने के नियम विकसित करने तक, भारतीय गणितज्ञों का योगदान अमूल्य है। यह विरासत आज भी विज्ञान, इंजीनियरिंग और आधुनिक गणित में देखी जा सकती है। गणित के इस महान सफ़र पर गर्व करना स्वाभाविक है!

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/25mtc5yl 

https://tinyurl.com/25rp9j55 

https://tinyurl.com/uk9x43k 

https://tinyurl.com/239sxhu8 

मुख्य चित्र में जौनपुर की एक मस्जिद का स्रोत : प्रारंग चित्र संग्रह 

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