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जौनपुर एक कृषि प्रधान जिला है। यहाँ पर रोजगार के साधन के रूप में कृषि महत्वपूर्ण स्थान ग्रहण कर के रखती है। कृषि खेती और वानिकी के माध्यम से खाद्य और अन्य सामान का उत्पादन सम्बंधित है। कृषि कार्य एक मुख्य विकास था, जो सभ्यताओं के विकास का कारण बना, इसमें पालतू जानवरों का पालन किया गया और फसलों को उगाया गया, इस कारण अतिरिक्त खाद्य का उत्पादन हुआ। कृषि का अध्ययन कृषि विज्ञान के रूप से जाना जाता है तथा इसी से सम्बंधित विषय बागवानी का अध्ययन भी इसी विषय में किया जाता है। यदि कृषि के प्रकारों पर नजर डाली जाए तो कृषि के बहुत से प्रकार होते हैं -
*स्थानान्तरी कृषि
*जीविका कृषि
*व्यापारिक कृषि
*गहन कृषि
*विस्तृत कृषि
*मिश्रित कृषि
*ट्रक कृषि
*विशिस्ट बागवानी कृषि
*व्यापारिक कृषि
भारत की कुल 54% आबादी कृषि क्षेत्र में हैं, इस क्षेत्र को प्रथिमिकी क्षेत्र कहते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का एक अहम योगदान है। कृषि का सकल घरेलु उत्पाद (GDP) में 16.6% योगदान है। खेतीबाड़ी के सफ़ल होने के पीछे बहुत से कारक हैं- इसमें अर्थव्यवस्था, पानी की उपलब्धता, ज़मीन की उर्वरक क्षमता और वातावरण की अपनी अहमियत होती है। खेतीबाड़ी और कृषि के पहले एक योजना बनानी पड़ती है, भारत के हर राज्य के जिलों की अपनी-अपनी कृषि योजना है। जौनपुर में कई प्रकार की कृषि सम्बंधित योजनाएं बनायी गयी हैं। इनमें से ही एक योजना है आकस्मिक योजना, आकस्मिक योजना को समझने से पहले जौनपुर जिले के कृषि सम्बंधित आंकड़ो को समझना आवश्यक है। यदि उत्तरप्रदेश जिले के कृषि सम्बंधित आंकड़ों को देखा जाए तो जौनपुर के आंकड़े निम्नलिखित सारणियों में हैं-
इस प्रकार से हम जौनपुर के कृषि क्षेत्र के विषय में जानकारी पाते हैं। अब जौनपुर में होने वाली बारिश पर नजर डालते हैं। इसकी मासिक सारणी निम्नलिखित है-
जिले में भूमि का प्रयोग निम्नलिखित आंकड़ों के अनुसार होता है-
जौनपुर जिले की मिट्टी निम्नलिखित है-
कृषि हेतु कुल प्रयोग में लायी गयी जमीन-
कृषि हेतु सिंचाई की व्यवस्था-
जिले में सिंचाई के स्त्रोत-
मुख्य फसल उगाने वाली ज़मीन-

जिले में सूखे एवं अकाल से बचने के आकस्मिक उपाय इस प्रकार से हैं -
फसल/फसल प्रणाली में बदलाव - चावल, काला चना, काबुली चना एवं बाजरे को बदल दें। चारे के रूप में बाजरे की खेती करें। सितम्बर के पहले सप्ताह में तोरिया बोने के लिए ज़मीन को तैयार करें। बाजरे और अरहर दोनों को एक साथ बोयें।
प्रारंभिक मौसम सूखा पड़ने पर यह करें -
सूखे को सहन करने वाले चावल उगाएँ। एक ही खेत में कई फसल उगायें।
मध्य ऋतु सूखा पड़ने पर यह करें -
अगर संभव हुआ तो छिड़काव वाली सिंचाई करें (5 सेंटीमीटर)। धूल मलच/स्ट्रॉ का उपयोग करें। एक खेत में कई फसल लगायें। थिन्निंग (Thinning) के ज़रिये पौधों के बीच एक अच्छी दूरी बनाएं।
बारिश जल्दी ख़त्म होने के कारण पड़ने वाले सूखा पर यह करें -
अगर संभव हुआ तो छिड़काव वाली सिंचाई करें (5 सेंटीमीटर)। धूल मलच/स्ट्रॉ का उपयोग करें। पुरानी पत्तियों को अवशोषित करें। रबी ऋतू के दौरान- तोरिया (Toria) को बोएं। फसल की कटाई अपने अनुसार करें, मुख्य फसलों की सिंचाई अच्छे ढंग से करें।
सूखा पड़ने की स्थिति में कभी भी ऐसी फसल बोनी चाहिए जो कि कम पानी में भी उग जाएँ।
संदर्भ:
1. http://www.crida.in/CP-2012/statewiseplans/Uttar%20Pradesh/UP14-Jaunpur-27.09.2012.pdf