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जेलीफ़िश से लेकर इंसान तक और शैवाल से ऑर्किड तक सभी जानवरों और पौधों की कोशिकाओं में कोशिका नाभिक होता है, जिसमें आनुवंशिक पदार्थ उपस्थित होता है जिसे डीएनए कहते है। यह डीएनए एक जीव की पूरी संरचना के लिये उत्तरदायी होता है। यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक विशेषताओं को स्थानांतरित करता है। हालांकि पौधों और जानवरों में डीएनए की संरचना रासायनिक स्तर पर एक ही आकार की होती है। दोनों के डीएनए न्यूक्लियोटाइड्स से बने होते हैं।
फिर ऐसा क्या है जो पौधो और जंतुओं को अलग अलग बनाता है। दरअसल न्यूक्लियोटाइड की व्यवस्था और उनका अनुक्रम निर्धारित करता है कि कौन सा प्रोटीन बनाया जाएगा। न्यूक्लियोटाइड्स की व्यवस्था ही तय करता है कि ये जंतु बनेगा या पौधा। शोध से पता चलता है कि पौधे और जानवर कुछ विशिष्ट प्रोटीन का उत्पादन कर सकते हैं। इसका एक उदाहरण साइटोक्रोम सी है, लेकिन क्योंकि डीएनए की नकल की प्रक्रिया त्रुटिपूर्ण है, इसलिये समय के साथ ये त्रुटियां बढ़ती रहती हैं, जिससे साइकोक्रोम सी विभिन्न प्राणियों में थोड़ा अलग अलग हो जाता है। वे जीन क्षेत्र जो मानव साइटोक्रोम सी में अमीनो एसिड अनुक्रम को निर्दिष्ट करते हैं, वे स्तनपायी में समान बनते हैं। हाल ही में विकासवादी और आणविक जानकारी के आधार पर एक वैकल्पिक प्रणाली उत्पन्न हुई है और इस दृष्टिकोण से साइकोक्रोम सी शायद विहित या निदर्शनात्मक अणु है।
हर प्रजाति में गुणसूत्रों की एक विशेष संख्या होती है, जिसे गुणसूत्र संख्या कहा जाता है। जानवरों में गुणसूत्र अधिक होते हैं और पौधे में कम होते हैं। इसके अलावा, पौधों और जंतुओं के जीनोम के आकार में भी अंतर होता है। पौधों में बड़े जीनोम होते हैं और अक्सर बहुगुणित होते हैं। वास्तव में जैविक दृष्टिकोण से, क्लियोटाइड्स की व्यवस्था का क्रम ही जीन और अन्य आनुवंशिक तत्वों को जन्म देता है और ये पौधों तथा जानवरों के बीच महत्वपूर्ण रूप से भिन्न होता है। यही उनके जैव रासायनिक, संरचनात्मक और शारीरिक अंतर को जन्म देता है।
हालांकि, जंतुओं और पौधों दोनों में कुछ सामान्य जीन भी हैं जो डीएनए प्रतिकृति, जीन प्रतिलेखन/अभिव्यक्ति, पोस्ट-अनुलेखन संशोधन, आरएनए अनुवाद और पोस्ट-अनुवादन संशोधनों जैसे प्रक्रियाओं में सहायता करते हैं। इसके अलावा, प्रोटीन को नियंत्रित करने वाले जीन जानवरों और पौधों दोनों में समान होते हैं। यहां तक की पौधों के डीएनए को जानवरों में स्थानांतरित भी किया जा सकता है, और शायद पूर्व में भी किया गया है। यह भी माना जाता है कि शायद मानव किसी पौधे के डीएनए के साथ विकसित हुआ है। एक नए अध्ययन के अनुसार मनुष्य शायद पौधों, सूक्ष्म जीवों और कवक से प्राप्त जीन के साथ विकसित हुआ है। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने विकास से संबंधित धारणाओं को चुनौती देते हुए 2001 में एक अध्ययन के अनुसार ये बताया कि मनुष्य पौधों से प्राप्त जीन के साथ विकसित हो सकता है लेकिन विश्लेषण के लिए बहुत कम डेटा उपलब्ध था। इसलिये इन निष्कर्षों को खारिज कर दिया गया। परन्तु शोधकर्ता अब स्वीकार करते हैं कि मानव जीनोम का लगभग एक प्रतिशत हिस्सा पौधों और अन्य स्रोतों से स्थानांतरित किया जा सकता था।
वह क्रियाविधि जिसके द्वारा जीन प्रचारित होता है, उसे क्षैतिज जीन स्थानांतरण (एचजीटी) के रूप में जाना जाता है, जिसमें बैक्टीरिया आनुवंशिक जानकारी साझा करते हैं। एचजीटी कई तरीकों से होता है जिसमें एक वायरस द्वारा विदेशी या बाह्य आनुवंशिक पदार्थ का पुरःस्थापना किया जाता है और बैक्टीरिया के बीच डीएनए का हस्तांतरण होता है। शोधकर्ताओं ने पाया कि प्राचीन समय में मानव सहित कई जंतुओं ने सूक्ष्मजीवों से "बाह्य" जीनों को ले लिया था, जो कि पर्यावरण में उनके सह-निवासी थे। जो कि पूरी तरह से पैतृक जीनों के विपरीत थे। अंततः शोधकर्ताओं का भी मानना है कि मानव जीनोम का एक प्रतिशत से भी कम हिस्सा पौधों और अन्य स्रोतों से स्थानांतरित किया जा सकता था।
संदर्भ:
1. https://earthsky.org/earth/dna-animals-plants
2. https://allaboutanimaldna.weebly.com/animal-dna-vs-plant-dna.html
3. https://bit.ly/2TxmZqI
4. https://bit.ly/2MjMuU3