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चमकीले धागे को बारीक सुई में लपेट, कपड़े पर करिश्मा बुनने की कला है जरदोजी। वर्तमान में जरदोजी केवल शाही परंपराओं तक सीमित नहीं है बल्कि आम आदमी तक पहुंचने के लिए व्यापार और बाजार में व्यापक रूप से मौजूद है। भारत के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित जरदोजी कढ़ाई शानदार रूप से अलंकृत सुनहरे धागे का काम है। इसे 12 वीं शताब्दी में दिल्ली के तुर्क-ओ-अफगान सुल्तानों द्वारा भारत में लाया गया था। साड़ी, लहंगा-चोली, पर्दे, तकिया, बैग (bag), जानवरों का श्रंगार, बटुआ, जूते, बेल्ट (Belt) और कोट आदि जरदोजी कढ़ाई से सजाए जाते हैं।
फारसी शब्द जरदोजी से इसकी उत्पत्ति हुई जिसका अर्थ है कपड़े पर सोने और चांदी की कढ़ाई। लखनऊ में, चिकन कारीगरों की भारी बहुमत सुन्नी मुसलमान हैं, वहीं ज़रदोज़ी कारीगरों में ज्यादातर शिया मुसलमान आते हैं। 1970 के दशक तक जरदोजी का कार्य सीमित था लेकिन 1980 के दशक में इसे बॉम्बे में कई हिंदी फिल्म उद्योग के कौस्टयुम डिजाइनरों (Costume Designers) द्वारा अपना लिया गया था। बढ़ती मांग के चलते जरदोजी ने पहली बार लखनऊ की सीमाओं को पार कर लिया था और हरदोई जिले के संडीला में जरदोजी के कार्य के लिए पहली कार्यशाला खोली गयी थी। 1980-2000 के बीच, इसे एक उद्योग के रूप में स्वीकार किया गया और साथ ही आसपास के जिलों के कई ग्रामीण कारीगर लखनऊ के जरी कारीगरों के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा के साथ उभरे थे।
जरदोजी की बाजार में बढ़ती मांग के बजाए भ्रष्ट चक्र ने जरदोजी के कारीगरों को काफी प्रभावित किया। कोई बचत ना होने के कारण कई कारीगर निजी साहूकारों के जालों में फंस गए। राज्य सरकार और विभिन्न सरकारी संस्थाओं द्वारा सभी वादों के बावजूद, उनके लिए संस्थागत वित्त का कोई प्रावधान, कोई उधार की सुविधा, कोई चिकित्सा बीमा और कोई सब्सिडी (Subsidy) नहीं दी गई। कुछ योजनाएँ लागू की गई लेकिन वे केवल कागजों पर ही मौजूद है। यह जानकर हैरानी होती है कि सरकार के पास लखनऊ और आसपास के जिलों में इस शिल्प में काम करने वाले कारीगरों की संख्या नहीं है। चिकनकारी के बाद जरदोजी को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई और भारत के बाहर भी जरदोजी कढ़ाई के साथ साड़ी और अन्य कपड़े काफी लोकप्रिय हुए। कई जरदोजी कढ़ाई के कारीगर की स्थिती में कोई सुधार नहीं आया तो वहीं कुछ कारीगर सफलतापूर्वक कार्य करने में सफल रहे। कुछ जरदोजी कारीगरों के बीच एकता की कमी के कारण, उन्हें आपस में ही प्रतियोगिता का सामना करना पड़ता है, जिसका फायदा व्यापारी और दुकानदार उठाते हैं।
जरदोजी का डिजाइन (Design) यदि छोटा होता है, तो लकड़ी के तख्तों की बजाय एक छोटे धातु के फ्रेम (Frame) का भी उपयोग किया जा सकता है। जब कढ़ाई को कपड़े के विशेष केंद्र पर किया जाना हो तो वहां यह काफी आरामदायक होता है। इस कढ़ाई को पूरा करने में 1 दिन से लेकर 10 दिन तक का भी समय लग सकता है, यह डिजाइन के प्रकार पर निर्भर करता है। सामान्यतः दुल्हन द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों की कढ़ाई अधिक जटिल होती है।
जरदोजी से अलंकृत कपड़े हमेशा से ही विशेष रूप से शादियों और विशेष समारोहों के लिए प्रचलित रहे हैं। पिछले 50 वर्षों के दौरान, जरदोजी का पुनरुद्धार हुआ है। न केवल यह नवीनतम डिजाइनर आउटलेट (Designer Outlet) में पाया जाता है बल्कि इसका शादियों और भव्य समारोहों के आंतरिक साज-सज्जा के लिए भी उपयोग किया जा रहा है।
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/2UmrqVL
2. http://www.craftmark.org/sites/default/files/Zardozi%20Embroidery.pdf