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जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन तीन धर्मों में से एक माना जाता है। आज भी यह धर्म भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है। जैन धर्म की सबसे बड़ी विशेषता इस धर्म की मूल शिक्षाओं में निहित है। आइये, आज महावीर जयंती के इस पावन अवसर पर जैन समुदाय की कुछ मूलभूत शिक्षाओं को ग्रहण करें।
जैन धर्म भारत के सबसे पुराने धर्मों में से एक है, जिसका इतिहास कम से कम पहली शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य जितना पुराना माना जाता है। जैन दर्शन हमें सिखाता है कि अहिंसा और सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया भाव रखना ही आत्मज्ञान का एकमात्र मार्ग है।
हिंदुओं और बौद्धों की भाँति जैन अनुयायी भी पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं।जहां मनुष्य के कर्म जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र का निर्धारण करते हैं । जैनियों का मानना है कि जीवित जीवों को नुकसान पहुंचाने के कारण बुरे कर्मों का गठन होता है , अतः बुरे कर्मों से बचने के लिए मनुष्यों को अहिंसा का अभ्यास करना चाहिए। जैनियों का मानना है कि इंसानों की तरह पौधों, जानवरों, हवा और पानी में भी आत्मा होती है। इसलिए जैन धर्म के अनुयायी सख्त शाकाहारी होते हैं और किसी भी जीव को नुकसान पहुंचाने से बचते हैं।
अहिंसा के अलावा, जैन धर्म में चार अन्य व्रत (सच बोलो, चोरी मत करो, यौन संयम ( ब्रह्मचर्य) का अभ्यास, और सांसारिक चीजों के प्रति आसक्त मत बनो।) भी हैं जो जैन धर्म के विश्वासियों का मार्गदर्शन करते हैं।
जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा 24 तीर्थंकरों या आध्यात्मिक नेताओं की स्तुति की जाती है जो ज्ञान प्राप्त कर पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो गए। जैन अनुयायी तीर्थंकरों को अपने भगवान के रूप में मानते हैं, लेकिन वे ईश्वर को एक निर्माता, रक्षक और संहारक के रूप में नहीं मानते हैं।
महावीर, को जैन धर्म का 24 वां और अंतिम तीर्थंकर माना जाता है। भगवान महावीर का जन्म चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को 599 ईसा पूर्व में भारत के बिहार राज्य में हुआ था। । ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार, यह दिन अप्रैल के महीने में आता है। महावीर के जन्मदिन को महावीर जयंती दिवस के रूप में मनाया जाता है। वह वैशाली के राजा सिद्धार्थ तथा रानी त्रिशला के पुत्र थे । उनके बचपन का नाम वर्धमान था। एक राजकुमार होने के कारण उनके पास सभी सांसारिक एवं भौतिक सुख सुविधाएं मौजूद थी किंतु इसके बावजूद मात्र 30 साल की उम्र में ही उन्होंने तपस्वी का जीवन जीने के लिए अपनी सांसारिक संपत्ति को त्याग दिया। उन्होंने अपनी इच्छाओं, भावनाओं और आसक्तियों पर विजय प्राप्त करने के लिए अगले बारह साल गहन मौन और ध्यान में बिताए।
महावीर सभी असहनीय कष्टों के खिलाफ स्थिर हो चुके थे और उनकी आध्यात्मिक शक्तियां पूरी तरह से विकसित हो गई थीं। 12 वर्षों के गहन उपवास और ध्यान के बाद, उन्होंने आत्मज्ञान प्राप्त किया और अंततः महावीर बन गए। भगवान महावीर एक ऐसे मनुष्य थे जिन्होंने जैन दर्शन के अनुसार, ध्यान और आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से पूर्णता और ज्ञान प्राप्त किया। इस अवधि के अंत में, उन्हें पूर्ण ज्ञान, शक्ति और आनंद की अनुभूति हुई, जिसे केवल ज्ञान या पूर्ण ज्ञान के रूप में जाना जाता है।
महावीर ने अगले तीस साल पूरे भारत में भ्रमण करते हुए, अपने द्वारा अर्जित किए गए शाश्वत सत्य का प्रचार किया। उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य लोगों को जन्म, जीवन, दर्द, दुख और मृत्यु के चक्र से पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करने में मदद करना और स्वयं की स्थायी आनंदमय स्थिति को प्राप्त करना था, जिसे मुक्ति, निर्वाण, पूर्ण स्वतंत्रता या मोक्ष के रूप में जाना जाता है। महावीर ने समझाया कि प्रत्येक जीव अज्ञानता के कारण कर्म परमाणुओं के बंधन में जकड़ा हुआ है, और ये परमाणु हमारे अच्छे या बुरे कर्मों से लगातार जमा होते रहते हैं।
परंपरा के अनुसार, उन्होंने जैन अनुयायियों के एक बड़े समुदाय (मृत्यु के समय 14,000 भिक्षु और 36,000 आर्यिका) की स्थापना की।
आज, जैन धर्म के लगभग 40 लाख से अधिक अनुयायी हैं जिनमें से अधिकांश अनुयायी भारत में रहते हैं। जैन धर्म की शिक्षाओं ने दुनिया भर में कई लोगों को प्रभावित किया है, जिनमें महात्मा गांधी भी शामिल हैं, जिन्होंने पूर्ण अहिंसा के लिए जैनियों की प्रतिबद्धता की प्रशंसा की और उस विश्वास को भारतीय स्वतंत्रता के लिए अपने आंदोलन में शामिल किया।
जैन धर्म का पालन करने वाले अहिंसा, सत्यवादिता, अस्तेय, शुद्धता, और अपरिग्रह (वैराग्य) के पाँच महान व्रतों में विश्वास करते हैं। जैन भिक्षु इन व्रतों का कड़ाई से पालन करते हैं, जबकि आम लोग इनका पालन अपनी जीवन शैली के अनुसार करते हैं।
भगवान महावीर के उपदेश उनके तत्काल शिष्यों द्वारा ‘आगम सूत्र’ में मौखिक रूप से संकलित किए गए थे। श्वेतांबरी जैनियों द्वारा इन सूत्रों को उनकी शिक्षाओं के प्रामाणिक संस्करणों के रूप में स्वीकार किया गया, जबकि दिगंबर जैनों द्वारा ऐसा नहीं किया गया ।
72 वर्ष की आयु में, भगवान महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया और उनकी शुद्ध आत्मा ने अपना शरीर त्याग कर पूर्ण मुक्ति प्राप्त की। माना जाता है कि यदि जैन धर्म के सिद्धांतों को सही परिप्रेक्ष्य में ठीक से समझा जाए और उनका निष्ठापूर्वक पालन किया जाए तो जीवन में संतोष के साथ-साथ आंतरिक खुशी और आनंद की प्राप्ति होती है ।
भगवान महावीर के जन्म और शिक्षाओं का सम्मान करने के लिए दुनिया भर में जैनियों द्वारा महावीर जयंती को बड़ी ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। महावीर भारत में जैन धर्म के अंतिम तीर्थंकर और संस्थापक थे। उन्होंने अहिंसा का उपदेश दिया और सभी जीवित प्राणियों के प्रति सम्मान दिखाया, जिस कारण उन्हें महावीर नाम मिला।
उनकी शिक्षाओं और दर्शन को याद करने के लिए ही हर साल महावीर जयंती मनाई जाती है।
महावीर जयंती पर, जैन लोग मंदिरों का दौरा करते हैं और महावीर की मूर्ति को ‘अभिषेक' के नाम से जाने जाने वाला औपचारिक स्नान कराते हैं। इस दौरान मंदिरों को झंडों से सजाया जाता है, और लाखों भक्तों के साथ प्रार्थना करते हुए रथ जुलूस निकाला जाता है। इसके अलावा इस अवसर पर पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं और गरीबों को भिक्षा दी जाती है। साथ ही आध्यात्मिक स्वतंत्रता और सदाचार के दर्शन का प्रचार करने के लिए धार्मिक स्थलों या मंदिरों में धर्मोपदेश भी आयोजित किए जाते हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3KpxhSS
https://bit.ly/3zmQVs8
https://bit.ly/3nzc4Na
चित्र संदर्भ
1. जैन प्रतीक एवं शिक्षाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. जैन धर्म के आधिकारिक प्रतीक, जिसे जैन प्रतीक छिहना के नाम से जाना जाता है। इस जैन प्रतीक पर 1974 में सभी जैन संप्रदायों द्वारा सहमति व्यक्त की गई थी। को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3.जैन मंदिर की पेंटिंग में अंधे पुरुषों और एक हाथी के साथ अनेकांतवाद की व्याख्या की गई है, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. दिगंबर साधु (भिक्षु) को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. जैन भिक्षुणियां ध्यानमग्न मुद्रा, को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
6.भगवान महावीर को को दर्शाता चित्रण (flickr)