समय - सीमा 282
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1046
मानव और उनके आविष्कार 822
भूगोल 257
जीव-जंतु 309
| Post Viewership from Post Date to 26- Nov-2021 (30th Day) | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Readerships (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2385 | 154 | 0 | 2539 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
शनि भय नहीं है! किन्तु दुर्भाग्य से हिंदू धर्म के प्रमुख देव शनि को क्रूर माना जाता है, वास्तविकता
में जानकारों के अनुसार शनि देव दंड का विधान तय करते हैं, और कर्मों के आधार पर दंड देते हैं।
सूर्य पुत्र शनिदेव को कर्मफल दाता माना गया है। हालांकि पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने
वाला मानते हैं, लेकिन पुराणों के अनुसार शनि मोक्ष प्रदान करने वाले एक मात्र देवता है।
वास्तविकता में शनि देव प्रकृति में संतुलन स्थापित करते हैं, उन्हें न्याय का देवता भी माना जाता
है। अपने अधिकांश मूर्तियों और चित्रों में शनिदेव को नीले या काले रंग के वस्त्र पहने, गहरे रंग
और गिद्ध पर सवार या आठ घोड़ों द्वारा खींचे जा रहे, लोहे के रथ पर चित्रित किया जाता है।
उनके हाथों में धनुष, बाण, कुल्हाड़ी और त्रिशूल दर्शाएं जाते है। अपने कई चित्रणों में वे एक विशाल
कौवे पर भी विराजमान होते हैं। वे जहाँ भी जाते हैं, वह कौवा उनके साथ-साथ चलता है। कई
विद्वान उन्हें भगवान् शंकर और विष्णु का अवतार भी मानते हैं।
शनि नाम मूल सनाश्चर से आया है, जिसका अर्थ है धीमी गति से चलने वाला (संस्कृत में, "शनि"
का अर्थ है "शनि ग्रह" और "चर" का अर्थ है "गति"। शनि अक्सर गहरे नीले या काले रंग के कपड़े
पहनकर वह नीले रंग का फूल और नीलम धारण करते हैं। बालक के रूप में शनि को कभी-कभी
लंगड़ा दिखाया जाता है। हिंदू धर्म के अनुसार उनकी दिशा पश्चिम और शनिवार को शनिदेव का
दिवस माना जाता है। शनि पुराणों में एक पुरुष हिंदू देवता हैं, जिनकी सभी प्रतिमाओं में उन्हें एक
तलवार या डंडा (राजदंड) लेकर दर्शाया जाता है।
हालांकि शनिदेव के मंदिर देश के हर हिस्से में प्रचुरता से व्याप्त हैं, लेकिन भारत में मुख्य तौर पर
तीन चमत्कारिक शनि सिद्ध पीठ स्थापित हैं। शनि के चमत्कारिक सिद्ध पीठों मे जाने और
अपने किये गये पापॊं की क्षमा मागने से जो भी पाप होते हैं, वह सभी नष्ट हो जाते है।
हमारे शहर मेरठ में लालाजी द्वारा निर्मित शनि धाम के साथ माँ शाकुम्भरी देवी मंदिर तथा
अन्नपूर्णा माता मंदिर के साथ विद्धमान है। मंदिर परिसर में 27 फीट श्री शनि महाराज अष्टधातु
विग्रह मूर्ति भी स्थापित है, जिसकी धरती से ऊंचाई लगभग 51 फीट ऊपर है।
अष्टधातु को ऑक्टो-मिश्र धातु भी कहा जाता है। यह एक मिश्र धातु है, जिसका उपयोग अक्सर
भारत में जैन और हिंदू मंदिरों के लिए धातु की मूर्तियों की ढलाई के लिए किया जाता है। इन
अष्टधातुओं में आठ धातु सोना, चाँदी, तांबा, सीसा, जस्ता, टिन, लोहा, तथा पारा (रस) की गणना
की जाती है। वास्तविक अष्टधातु में सभी आठ धातुएं समान अनुपात में होती हैं, (प्रत्येक में
12.5%)। अष्टधातु की रचना शिल्प शास्त्रों में की गई है, यह प्राचीन ग्रंथों का एक संग्रह है जो कला,
शिल्प और उनके डिजाइन नियमों, सिद्धांतों और मानकों का वर्णन करता है। साथ ही शिल्प
शास्त्र में चौसठ कलाओं का उल्लेख मिलता है, जिन्हे 'बाह्य-कला' कहते हैं। इनमें काष्ठकारी,
स्थापत्य कला, आभूषण कला, नाट्यकला, संगीत, वैद्यक, नृत्य, काव्यशास्त्र आदि हैं। इनके
अलावा चौसठ अभ्यन्तर कलाओं का भी उल्लेख मिलता है जो मुख्यतः 'काम' से सम्बन्धित हैं,
जैसे चुम्बन, आलिंगन आदि।
शिल्पशास्त्र में मुख्यतः मूर्तिकला और वास्तुशास्त्र में भवन, दुर्ग, मन्दिर, आवास आदि के निर्माण
का वर्णन है। अष्टधातु का उपयोग इसलिए किया जाता है, क्योंकि इसे हिंदू धर्म में अत्यंत शुद्ध,
सात्विक माना जाता है, इसका क्षय नहीं होता है, और यह कुबेर, विष्णु, कृष्ण, राम, कार्तिकेय, और
देवी-देवताओं, दुर्गा और लक्ष्मी को भी समर्पित किया जा सकता है। अष्टधातुओं की पवित्रता और
दुर्लभता के कारण, ये शुद्ध मूर्तियाँ अक्सर चोरी हो जाती हैं।
अष्टधातु से निर्मित कुछ मूर्तियाँ
छठी शताब्दी ईस्वी पूर्व की हैं। अष्टधातु की मूर्तियाँ बनाने की प्रक्रिया तुलनात्मक रूप से जटिल
होती है। पहले चरण में, मोम का उपयोग करके देवता का सटीक मॉडल बनाया जाता है। दूसरे
चरण में, मोम के मॉडल को मोल्ड बनाने के लिए मिट्टी से ढक दिया जाता है। तीसरे चरण में मोम
और मिट्टी के सांचे में आग लगा दी जाती है। चौथे में, आवश्यक अनुपात के अनुसार ली गई आठ
धातुओं को पिघलाया जाता है। पांचवें चरण में, पिघला हुआ अमलगम मिट्टी के सांचे में डाला
जाता है, और ठंडा होने दिया जाता है। अंतिम चरण में, ठंडा होने के बाद, मिट्टी के सांचों को तोड़
दिया जाता है,और अष्टधातु की पवित्र मूर्ति प्राप्त हो जाती है।
संदर्भ
https://bit.ly/3Gy5xrc
https://bit.ly/3Gl92kx
https://en.wikipedia.org/wiki/Shilpa_Shastras
https://en.wikipedia.org/wiki/Ashtadhatu
https://www.learnreligions.com/shani-dev-1770303
https://en.wikipedia.org/wiki/Shani
चित्र संदर्भ
1. मेरठ के बालाजी मंदिर में अष्टधातु से निर्मित शनिदेव की मूर्ति का एक चित्रण (bhaktibharat)
2. शनिदेव का एक चित्रण (wikimedia)
3. श्री शक्ति देवी मंदिर में 8वीं शताब्दी की अष्टधातु शक्ति मूर्ति को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.