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जौनपुरवासियो, आज हमारे जिले की महिलाएँ घर की दहलीज़ से निकलकर खेत, फैक्टरी (factory), निर्माण स्थल और संस्थानों में मेहनत और हुनर का नया इतिहास लिख रही हैं। चाहे वो ग्रामीण खेतों की पगडंडियाँ हों या शहरी सीमाओं की फैक्ट्रियाँ, महिलाएँ हर मोर्चे पर अपनी मेहनत से समाज को आगे बढ़ा रही हैं। ऐसे में यह बेहद ज़रूरी हो जाता है कि हम यह जानें कि कानून उनके अधिकारों की रक्षा कैसे करता है। भारत के श्रम कानूनों में कामकाजी महिलाओं के लिए कई ऐसे विशेष प्रावधान हैं, जो उन्हें सुरक्षित, सम्मानजनक और सहायक कार्यस्थल सुनिश्चित करते हैं। यह लेख इन्हीं कानूनों और व्यवस्थाओं की गहराई से पड़ताल करेगा।
इस लेख में हम सबसे पहले यह समझेंगे कि भारत के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी क्या है और वे किन क्षेत्रों में काम कर रही हैं। फिर हम जानेंगे कि फैक्टरी, खान और निर्माण जैसे जोखिमपूर्ण क्षेत्रों में उनके लिए कौन-कौन से सुरक्षा प्रावधान और कार्य सीमाएँ निर्धारित हैं। इसके बाद हम मातृत्व लाभ अधिनियम के तहत मिलने वाली छुट्टियों और वेतन सुरक्षा पर चर्चा करेंगे। चौथे भाग में हम कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए अलग शौचालय, धुलाई और बाल देखभाल जैसी मूलभूत सुविधाओं पर बात करेंगे। और अंत में, हम जानेंगे कि किस प्रकार भारत सरकार के प्रशिक्षण संस्थान जौनपुर जैसी जगहों की महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रहे हैं।
भारत में महिला श्रमिकों की भूमिका और कार्यबल में उनकी भागीदारी का विश्लेषण
भारत जैसे विशाल और विविधतापूर्ण देश में महिलाएँ एक मज़बूत श्रमशक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं।2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में लगभग 149.8 मिलियन (million) महिला श्रमिक कार्यरत थीं। इनमें से 121.8 मिलियन महिलाएँ ग्रामीण क्षेत्रों में काम कर रही थीं, जबकि शेष 28 मिलियन महिलाएँ शहरी कार्यस्थलों से जुड़ी थीं। जौनपुर जैसे ज़िले, जहाँ लगभग 90% आबादी गाँवों में रहती है, वहाँ महिलाएँ खेती, खेतिहर मज़दूरी, पशुपालन और घरेलू उद्योगों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। वे केवल श्रमिक नहीं, बल्कि अपने परिवार और समाज की आर्थिक नींव हैं।
कार्य के प्रकार में महिलाओं की भागीदारी विविध है:
ग्रामीण क्षेत्रों में महिला कार्य भागीदारी दर 30% से अधिक है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह दर केवल 15% है। संगठित क्षेत्रों में भी महिलाओं की स्थिति धीरे-धीरे मज़बूत हो रही है। 2011 में संगठित क्षेत्र में 5.95 मिलियन महिलाएँ कार्यरत थीं, जिनमें से 3.21 मिलियन महिलाएँ सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं में कार्य कर रही थीं। हालाँकि अभी भी वेतन, अवसर और सुरक्षा के मामलों में सुधार की ज़रूरत है। कार्यस्थल पर महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय और अवसर की समानता का लक्ष्य तभी प्राप्त हो सकता है जब उन्हें संपूर्ण रूप से श्रम कानूनों की जानकारी और उनका संरक्षण मिले।
फैक्टरी, खान और निर्माण क्षेत्रों में महिलाओं के लिए सुरक्षा और कार्य सीमाएँ
जब महिलाएँ उद्योगों, खदानों और निर्माण स्थलों पर काम करती हैं, तो उनके लिए विशेष सुरक्षा उपायों का होना अनिवार्य है। भारत सरकार द्वारा लागू किए गए फ़ैक्टरी अधिनियम, 1948, बीड़ी एवं सिगार (cigar) श्रमिक अधिनियम, 1966 और खान अधिनियम, 1952 जैसे कानून महिलाओं को खतरनाक परिस्थितियों से बचाते हैं।
प्रमुख सुरक्षा प्रावधान:
भूमिगत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध:
1952 के खान अधिनियम के तहत, महिलाओं को खदान के भूमिगत हिस्सों में काम करने की अनुमति नहीं है, क्योंकि वहाँ ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी, गैस रिसाव (gas leak), या भूस्खलन जैसे जोखिम होते हैं। जौनपुर में कई महिलाएँ निर्माण और मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स (manufacturing units) में काम करती हैं। ऐसे में यह बेहद आवश्यक है कि नियोक्ता इन सभी नियमों का पालन करें और महिलाओं के कार्यस्थल को सुरक्षित बनाएं। यह कानून न केवल उनकी शारीरिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं, बल्कि मानसिक शांति भी प्रदान करते हैं।
मातृत्व लाभ अधिनियम और महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश के प्रावधान
मातृत्व नारी जीवन का एक महत्वपूर्ण दौर है और इस समय उसे सुरक्षा और आराम की आवश्यकता होती है। मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 महिलाओं को यह अधिकार देता है कि वे गर्भावस्था के दौरान काम से 6 महीने तक का अवकाश ले सकें, और इस अवधि में उन्हें पूरा वेतन भी मिले।
प्रमुख बिंदु:
महिला श्रमिकों के लिए कार्यस्थलों पर बुनियादी सुविधाएँ: शौचालय, धुलाई और बाल देखभाल
महिलाओं के लिए साफ-सुथरे शौचालय, धुलाई की जगह और बाल देखभाल केंद्र (क्रेच) कार्यस्थल पर आवश्यक सुविधाएँ हैं, जो सीधे तौर पर उनकी कार्यक्षमता और गरिमा से जुड़ी होती हैं।
प्रमुख कानून और प्रावधान:
जहाँ महिलाएँ छोटे उद्योगों या निर्माण स्थलों पर काम करती हैं, वहाँ अक्सर इन सुविधाओं की कमी पाई जाती है। इनकी अनुपस्थिति से महिलाओं को कई बार स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं, असहजता और तनाव का सामना करना पड़ता है। नियोक्ताओं और सरकारी निकायों को इन नियमों के पालन हेतु ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए।
महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम और उनके आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रयास
शिक्षा और कौशल ही महिला सशक्तिकरण के मूल आधार हैं। भारत सरकार के महिला व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं को हुनरमंद बनाना, रोज़गार दिलाना और उन्हें स्वावलंबी बनाना है।
प्रमुख संस्थान:
इन कार्यक्रमों से जुड़कर जौनपुर की महिलाएँ न केवल नौकरी पाने में सक्षम हो सकती हैं, बल्कि घरेलू उद्योग, ऑनलाइन सेवाएँ, या स्वरोज़गार के ज़रिए अपनी आर्थिक स्थिति भी सुधार सकती हैं। राज्य सरकारों द्वारा अब उत्तर प्रदेश के ज़िलों में भी प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
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