लखनऊ कथक घराना व् दक्षिणी भरतनाट्यम:दोनों नृत्य शैलियों में झलकती भारत की समृद्ध परंपराएँ

द्रिश्य 2- अभिनय कला
18-06-2025 09:16 AM
लखनऊ कथक घराना व् दक्षिणी भरतनाट्यम:दोनों नृत्य शैलियों में झलकती भारत की समृद्ध परंपराएँ

भारतीय शास्त्रीय नृत्य, सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है, जो न केवल कला के विभिन्न रूपों को प्रदर्शित करता है, बल्कि प्रत्येक नृत्य शैली अपने विशेष इतिहास और सांस्कृतिक महत्व के साथ भारतीय समाज की विविधता को भी दर्शाती है। भारत में कई शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से कथक और भरतनाट्यम प्रमुख हैं। ये दोनों नृत्य शैलियाँ भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा मानी जाती हैं, और हर एक की अपनी अलग परंपरा, इतिहास और संगीत है। हालांकि कथक और भरतनाट्यम दोनों शास्त्रीय नृत्य रूप हैं, लेकिन इनकी शैली, भावनात्मक अभिव्यक्ति और प्रदर्शन में कई महत्वपूर्ण अंतर हैं।आज हम कथक और भरतनाट्यम के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। पहले हम कथक का उद्भव और विकास देखेंगे, और जानेंगे कि यह नृत्य शैली किस तरह विभिन्न दरबारों, खासकर मुग़ल दरबारों से जुड़ी थी। फिर हम भरतनाट्यम की भक्ति और सांस्कृतिक समृद्धि के प्रतीक के रूप में बदलने की यात्रा पर नज़र डालेंगे। इसके बाद, हम लखनऊ के कथक घराने की भूमिका पर ध्यान देंगे, जहां इस नृत्य शैली ने न केवल शुद्धता पाई, बल्कि एक नए आयाम में विकसित हुई। अंत में, हम दोनों शैलियों की कला और प्रदर्शन तकनीकों में अंतर समझेंगे, और यह देखेंगे कि किस प्रकार इन दोनों शैलियों ने समय के साथ समकालीन मंचों पर अपनी पहचान बनाई।

कथक का उद्भव और विकास

कथक का इतिहास भारतीय नृत्य परंपराओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह नृत्य शैली विशेष रूप से उत्तर भारत से जुड़ी है, जहां इसका विकास प्राचीन समय में हुआ। कथक शब्द का अर्थ है 'कथा' (कहानी) और यह नृत्य रूप मुख्य रूप से कहानी कहने की कला के रूप में विकसित हुआ। कथक की शुरुआत मंदिरों में धार्मिक कथाओं को प्रस्तुत करने से हुई थी। धीरे-धीरे यह मुग़ल दरबारों तक पहुंची और वहां इसे एक शाही नृत्य के रूप में मान्यता मिली। मुग़ल दरबारों में कथक का रूप बदलकर एक अधिक नृत्यकला के रूप में विकसित हुआ, जिसमें विशेष रूप से तात्कालिक मुग़ल संस्कृति और संगीत का प्रभाव दिखाई दिया।

कथक में संगीत, नृत्य और अभिनय का संगम होता है। इस शैली में नर्तक/नर्तकी कथा के पात्रों को नृत्य के माध्यम से जीवंत करते हैं, जिससे दर्शकों को एक नई दुनिया का अहसास होता है। कथक नृत्य में पांवों की गति और मुद्राएँ अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैं, जो कथानक के अनुरूप होती हैं।

भरतनाट्यम: भक्ति और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक

भरतनाट्यम भारतीय शास्त्रीय नृत्य का एक अन्य महत्वपूर्ण रूप है, जिसे विशेष रूप से दक्षिण भारत में उत्पन्न माना जाता है। यह नृत्य कला शुद्ध रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों से जुड़ी हुई है। इसके मूल में भक्ति है, और इसका उद्देश्य ईश्वर की पूजा और उसे श्रद्धा के रूप में प्रस्तुत करना है। पहले इसे मंदिरों में पुजारियों और भक्तों द्वारा किया जाता था, लेकिन समय के साथ यह एक प्रमुख सांस्कृतिक कला रूप में विकसित हो गया।

भरतनाट्यम की परंपरा में नृत्य, संगीत और अभिनय का मिश्रण होता है, जिसमें 'अभिनय' (हाव-भाव) का महत्वपूर्ण स्थान है। इस नृत्य में नर्तक/नर्तकी अपने शरीर की मुद्राओं और हाथों की कलाओं के माध्यम से भावनाओं और विचारों को व्यक्त करते हैं। भरतनाट्यम की प्रस्तुति में संगीत का विशेष महत्व है, और इसमें 'ताल' और 'राग' का गहरा समावेश होता है। यह नृत्य न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी है।

लखनऊ के कथक घराने की भूमिका

लखनऊ का कथक घराना भारतीय शास्त्रीय नृत्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस घराने का इतिहास बहुत समृद्ध और गौरवमयी है। लखनऊ में कथक को एक उच्च कला रूप के रूप में मान्यता प्राप्त है, और यहां के नर्तकियों ने इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। लखनऊ के कथक घराने में 'ताली' और 'जवाब' की तकनीक विशेष रूप से प्रमुख रही है, जिसमें नर्तक अपनी गति और पैरों की ताल के माध्यम से संगीत को पूरी तरह से जीते हैं।

लखनऊ के घराने के योगदान से कथक को एक नई दिशा मिली, और यह नृत्य शैली अधिक शुद्ध और पारंपरिक रूप में विकसित हुई। लखनऊ के कथक घराने ने कथक को एक धार्मिक, सांस्कृतिक और शाही नृत्य रूप में पेश किया। इस घराने के नर्तकियों ने कथक में अभिनय और भावनाओं के महत्व को पूरी तरह से समझा और इस कला को एक उच्च स्तर तक पहुँचाया।

कथक और भरतनाट्यम की कला और प्रदर्शन तकनीकों में अंतर

कथक और भरतनाट्यम, दोनों शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं, लेकिन इन दोनों के बीच कुछ प्रमुख अंतर भी हैं। कथक में मुख्य रूप से गति, ताल और अभिनय की अधिकता होती है। इसके प्रदर्शन में मुग़ल प्रभाव साफ़ देखा जा सकता है, और यह अधिक गतिशील और उत्तेजक होता है। भरतनाट्यम, हालांकि एक शांत और भक्ति प्रधान नृत्य शैली है, जिसमें पंक्ति और 'अभिनय' का विशेष ध्यान रखा जाता है।

कथक में 'ताली' और 'कुच' की तकनीक का प्रयोग होता है, जबकि भरतनाट्यम में 'अधिर' और 'नृत्य मुद्राएँ' प्रमुख होती हैं। कथक में पांवों की ताल की ध्वनि पर अधिक जोर दिया जाता है, जबकि भरतनाट्यम में 'हाथों की मुद्रा' और 'नज़ाकत' प्रमुख होती है।

कुल मिलाकर, कथक और भरतनाट्यम दोनों शास्त्रीय नृत्य शैलियाँ भारतीय नृत्य परंपराओं की गहरी धरोहर हैं। इन दोनों शैलियों में नृत्य, संगीत और अभिनय का एक अद्भुत संगम होता है, जो न केवल भारतीय संस्कृति को प्रदर्शित करता है, बल्कि यह दर्शकों को भारतीय कला की गहरी समझ और सम्मान भी प्रदान करता है। समय के साथ इन शैलियों ने अपनी पहचान बनाई और आज भी वैश्विक मंचों पर यह दोनों शैलियाँ भारतीय शास्त्रीय नृत्य की महिमा को बढ़ा रही हैं।

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