मेरठ की खेती में मधुमक्खियाँ और ततैयाँ: परागण की दुनिया और बिगड़ता संतुलन

तितलियाँ व कीड़े
14-07-2025 09:20 AM
मेरठ की खेती में मधुमक्खियाँ और ततैयाँ: परागण की दुनिया और बिगड़ता संतुलन

मेरठवासियों, क्या आप जानते हैं कि आपके बगीचे या खेत में मंडराती मधुमक्खियाँ सिर्फ शहद नहीं बनातीं, बल्कि पूरी कृषि व्यवस्था और खाद्य सुरक्षा की रीढ़ हैं? ये नन्हे जीव फूलों से पराग इकट्ठा करते समय पौधों का परागण करते हैं, जिससे फल, सब्ज़ियाँ और बीज बनने की प्रक्रिया संभव होती है। विश्व के एक-तिहाई भोजन का उत्पादन मधुमक्खियों जैसे परागणकों पर निर्भर करता है। मेरठ जैसे कृषि प्रधान क्षेत्र में इनकी मौजूदगी फसलों की गुणवत्ता और उत्पादन को सीधा प्रभावित करती है। हैरानी की बात यह है कि धरती पर हज़ारों मधुमक्खी प्रजातियाँ होने के बावजूद, केवल आठ ही ऐसी हैं जो शुद्ध शहद बना सकती हैं। शहद बनाने की प्रक्रिया में वे एंज़ाइम, तापमान और हवा का उपयोग कर महीनों की मेहनत से एक-एक बूँद तैयार करती हैं। इसके अलावा, ये पर्यावरण को संतुलित रखने, कीट नियंत्रण और जैव विविधता बनाए रखने में भी सहयोग करती हैं। अफसोस की बात है कि जलवायु परिवर्तन और कीटनाशकों के कारण इनकी संख्या में भारी गिरावट आ रही है। इसलिए अब समय आ गया है कि हम मधुमक्खियों को केवल शहद देने वाला कीट नहीं, बल्कि प्रकृति का संरक्षक मानकर इनके संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठाएँ।

इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि मधुमक्खियाँ शहद कैसे बनाती हैं और यह प्रक्रिया कितनी जटिल और मेहनत से भरी होती है। इसके बाद हम समझेंगे कि कैसे मधुमक्खियाँ परागण के माध्यम से हमारे पारिस्थितिक तंत्र को संतुलित रखती हैं। फिर हम उन प्रमुख शहद उत्पादक प्रजातियों की जानकारी लेंगे जो इस कार्य में अग्रणी हैं। ततैया और मधुमक्खी में भ्रम पैदा करने वाले अंतर को स्पष्ट करते हुए, हम मैक्सिकन शहद ततैया जैसी अपवाद प्रजातियों पर भी नजर डालेंगे। अंत में, हम जलवायु परिवर्तन के कारण इन कीटों पर मंडराते खतरे को समझने का प्रयास करेंगे।

मधुमक्खियों द्वारा शहद निर्माण की जटिल और अद्भुत प्रक्रिया

मधुमक्खियाँ शहद बनाने की प्रक्रिया में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर देती हैं। यह कार्य केवल मीठा रस इकट्ठा करने तक सीमित नहीं होता, बल्कि यह कई जैविक और रासायनिक चरणों से होकर गुजरता है। सबसे पहले, श्रमिक मधुमक्खियाँ – जो सभी मादा होती हैं – फूलों से रस और पराग एकत्र करती हैं। इस रस को वे अपने पहले पेट (Proventriculus) में संग्रहित करती हैं, जहाँ इनवर्टेज (Invertase) जैसे एंज़ाइम जटिल शर्करा को सरल ग्लूकोज (Glucose) और फ्रुक्टोज (Fructose) में बदलते हैं। फिर मधुमक्खी छत्ते में लौटकर यह रस अन्य श्रमिकों को मुँह से मुँह के ज़रिए देती है, जिससे नमी घट जाती है और रस गाढ़ा होकर शहद बन जाता है।

एक बार शहद तैयार हो जाने पर, उसे मोम की बनी कोशिकाओं में संग्रहित कर दिया जाता है और मोम से सील कर दिया जाता है। यह प्रक्रिया शहद को खराब होने से बचाती है और लंबे समय तक सुरक्षित बनाए रखती है। मधुमक्खियाँ इस शहद का उपयोग शिशु लार्वा के पोषण और सर्दियों में भोजन के रूप में करती हैं। यह मेहनत इतनी अधिक होती है कि एक चम्मच शहद के लिए हज़ारों फूलों का रस एकत्र करना पड़ता है।

मधुमक्खियों की भूमिका: परागण और पारिस्थितिकी तंत्र में योगदान

मधुमक्खियाँ केवल शहद बनाने के लिए नहीं जानी जातीं, बल्कि वे परागण के रूप में भी प्रकृति की सबसे उपयोगी सेवाएँ प्रदान करती हैं। जब मधुमक्खियाँ फूलों का रस और पराग इकट्ठा करती हैं, तब वे एक फूल से दूसरे फूल पर परागण करती हैं, जिससे पौधों का प्रजनन संभव होता है। यह प्रक्रिया फल, सब्ज़ियों और बीजों के उत्पादन के लिए अत्यंत आवश्यक होती है।

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विश्व स्तर पर उत्पादित भोजन का लगभग एक-तिहाई हिस्सा परागणकों पर निर्भर करता है, जिनमें मधुमक्खियाँ सबसे अहम भूमिका निभाती हैं। अगर मधुमक्खियाँ न हों, तो मानव जाति के सामने खाद्य संकट खड़ा हो सकता है। इसके अतिरिक्त, वे जंगली पारिस्थितिक तंत्रों को भी संतुलित बनाए रखने में मदद करती हैं, जो जैव विविधता के लिए आवश्यक है।
आज कई देशों में वाणिज्यिक कृषि में मधुमक्खियों को किराए पर लिया जाता है ताकि वे फसलों में परागण करें। उनका योगदान न केवल पर्यावरणीय, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यदि मधुमक्खियाँ न रहें, तो सेब, बादाम, टमाटर, और कॉफी जैसी फसलें भी प्रभावित होंगी। इसी कारण पर्यावरणविद "कॉलोनी पतन विकार (Colony Collapse Disorder)" को वैश्विक संकट मानते हैं।

शहद बनाने वाली प्रमुख मधुमक्खी प्रजातियाँ और उनकी विशेषताएँ

शहद उत्पादन के लिए विश्व भर में केवल आठ ज्ञात मधुमक्खी प्रजातियाँ उत्तरदायी हैं, जिन्हें तीन प्रमुख वर्गों में बाँटा गया है: माइक्रापिस (Micrapis), मेगापिस (Megapis), और एपिस (Apis)।

माइक्रापिस (Micrapis) वर्ग की दो प्रमुख प्रजातियाँ हैं — एपिस फ्लोरिया (Apis florea) और एपिस एंड्रेनिफॉर्मिस (Apis andreniformis), जो आकार में छोटी होती हैं और खुले में छोटे छत्ते बनाती हैं। इनकी रक्षा प्रणाली  और सामाजिक संकेत प्रणाली अत्यंत अद्वितीय होते हैं।

मेगापिस (Megapis) वर्ग की प्रजातियाँ – एपिस डॉर्साटा (Apis dorsata) और एपिस लेबोरिओसा (Apis laboriosa) – आकार में बहुत बड़ी होती हैं और खुले में विशाल छत्ते बनाती हैं, जिनमें लाखों मधुमक्खियाँ रह सकती हैं।

एपिस (Apis) वर्ग में चार प्रमुख प्रजातियाँ आती हैं: एपिस मेलिफेरा (Apis mellifera), एपिस सेराना (Apis cerana), एपिस कोशेवनिकोवी (Apis koshevnikovi), और एपिस निग्रोसिन्क्टा (Apis nigrocincta)। इनमें एपिस मेलिफेरा (Apis mellifera) दुनिया की सबसे व्यावसायिक रूप से पाली जाने वाली मधुमक्खी (Commercially Domesticated Bee) है, जबकि अन्य प्रजातियाँ जैव विविधता (Biodiversity) में योगदान देने वाली दुर्लभ मधुमक्खियाँ (Rare Bee Species) हैं।

एपिस सेराना (Apis cerana) भारत और एशिया में पारंपरिक मधुमक्खी पालन के लिए प्रयोग की जाती है। एपिस डॉर्साटा (Apis dorsata) से प्राप्त रॉक हनी (Rock Honey) बहुत पोषक और मूल्यवान माना जाता है। इन प्रजातियों का व्यवहार, रक्षा प्रणाली और आवास वरीयता वैज्ञानिक शोध के मुख्य केंद्र हैं।

ततैया और मधुमक्खी के बीच समानताएँ और भ्रामक अंतर

मधुमक्खियाँ और ततैया देखने में कुछ हद तक समान लग सकती हैं, लेकिन इन दोनों में कई मूलभूत अंतर होते हैं। मधुमक्खियाँ मुख्य रूप से फूलों का रस और पराग एकत्र करती हैं, जबकि ततैया मांसाहारी प्रवृत्ति की होती हैं और शिकार को अपने बच्चों के लिए एकत्र करती हैं। दोनों ही परागण में मदद करती हैं, परंतु मधुमक्खियाँ इस कार्य में अधिक कुशल और समर्पित होती हैं। मधुमक्खियाँ शहद बनाती हैं और संग्रहित करती हैं, जबकि ततैया शहद नहीं बनातीं। ततैयों की आक्रामकता अधिक होती है, जिससे उन्हें अक्सर घृणा की दृष्टि से देखा जाता है।

हालांकि, पारिस्थितिक तंत्र में ततैयों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है – वे कीट नियंत्रण में मदद करती हैं और जैविक संतुलन बनाए रखती हैं। इस कारण से उन्हें केवल ‘हानिकारक कीट’ मानना उचित नहीं होगा। ततैयों की कुछ प्रजातियाँ फसलों को बचाने में मदद करती हैं क्योंकि वे टिड्डों, कैटरपिलरों और अन्य कीटों को शिकार बनाती हैं। इसके अलावा, कुछ ततैयाँ परजीवी कीटों की आबादी पर नियंत्रण रखती हैं। प्रकृति में इनकी भूमिका गहराई से समझना पारिस्थितिकीय अनुसंधान का हिस्सा है।

मैक्सिकन शहद ततैया: शहद बनाने वाली अनोखी ततैया प्रजाति

जहाँ अधिकांश ततैयाँ शहद नहीं बनातीं, वहीं मैक्सिकन शहद ततैया (Mexican Honey Wasp) इस धारणा से अपवाद है। यह दुर्लभ ततैया प्रजाति वास्तव में शहद का निर्माण करती है, हालाँकि यह मात्रा में बहुत कम होता है और मधुमक्खियों द्वारा बनाए गए शहद जितना शुद्ध या व्यापक नहीं होता। यह ततैया अपने बनाए गए शहद का उपयोग मुख्य रूप से अपने लार्वा को भोजन देने के लिए करती है। वैज्ञानिक इस प्रजाति पर लगातार अध्ययन कर रहे हैं, ताकि इसके व्यवहार और पारिस्थितिक योगदान को बेहतर समझा जा सके। यह प्रजाति इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति में कोई भी जीव पूरी तरह 'व्यर्थ' नहीं होता।
इसके शहद में पौष्टिक तत्त्व भी पाए गए हैं, परंतु अभी तक यह व्यावसायिक उत्पादन में उपयोग नहीं होता। इस ततैया की सामाजिक संरचना, छत्ते का निर्माण और रक्षा प्रणाली में मधुमक्खियों जैसी विशेषताएँ मिलती हैं। यह प्रकृति के जैविक अनुकूलन का अद्भुत उदाहरण है।

जलवायु परिवर्तन और निवास स्थान संकट: मधुमक्खियों और ततैयों के लिए खतरे

आज के समय में मधुमक्खियाँ और ततैयाँ दोनों ही जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के कारण संकट में हैं। अंधाधुंध कीटनाशकों का उपयोग, वनों की कटाई, शहरीकरण और तापमान में असंतुलन उनके निवास स्थान को तेजी से नष्ट कर रहा है। विशेष रूप से मधुमक्खियों की जनसंख्या में आई गिरावट एक वैश्विक चिंता का विषय बन चुकी है। यह न केवल शहद उत्पादन पर प्रभाव डालता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता को भी खतरे में डालता है। ततैयाँ भी इस संकट का सामना कर रही हैं, जिससे कीट नियंत्रण और पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित हो रहा है।

इसलिए अब समय आ गया है कि हम इन छोटे मगर शक्तिशाली कीटों के संरक्षण के लिए जागरूकता फैलाएँ और वैज्ञानिक तथा जैविक खेती की ओर कदम बढ़ाएँ। कॉलोनी पतन विकार (Colony Collapse Disorder)' के चलते लाखों मधुमक्खी कालोनियाँ एकाएक खाली हो रही हैं, जिनका कोई निश्चित कारण नहीं मिला है। शोधकर्ता इसे पर्यावरणीय तनाव, कीटनाशक, रोगजनक और मोबाइल टॉवर विकिरण जैसी अनेक संभावनाओं से जोड़ते हैं। इस संकट को रोकना मानवता के लिए भोजन सुरक्षा और पारिस्थितिक संतुलन के लिए अत्यंत आवश्यक है।

 

संदर्भ-

https://tinyurl.com/34w9cs7w 

https://tinyurl.com/y2csj4ws 

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